Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
उत्तराध्ययनसूत्रम
Uttaradhyayanasūtram
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
उत्तराध्य य न सूत्रम्
Uttarādhyayanasūtram
A Jain Canonical Work
Edited for the use of University Students
BY
RD. VA DEKAR, M. A. Professor of Sanskrit and
Allied Languages, Fergusson College.
Poona-4.
N. V. VAIDYA, M. A. Professor of Ardhamāgadbi, Fergusson College,
Poona-4.
.......
.
..
POONA
1954
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
PREFACE
This edition of the Uttaradhyayans-Sutra is specifically intended for the University students of Ardhamagadhi. The text followed is essentially based on the excellent edition of Prof. Jarl Charpentier of Upsala. But as the edition is no longer available and as there is no other good edition of the text available for the last so many years, we are presenting this complete edition of the text only, at a moderate price for the student world. We have corrected a few misprints in Prof. Charpentier's edition and have incorporated a few better readings, as given in Devendra's commentary. We propose to bring out another edition with introduction, The summary of chapters, Index of verses and vocabulary of difficult words and technical terms if possible. We take this opportunity of thanking the management of the Aryabhushan Press for prompt and excellent printing of the book.
Fergussion College,
Poona
26 January 1954.
R. D. Vadekar
N. V. Vaidya
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ विणयसुयं प्रथमं अध्ययनम् ॥
संजोगा विप्पमुक्कस्त अणगारस्स मिक्खुणो। विणयं पाउकरिस्सामि आणुपुदिव सुणेह मे ॥१॥ आणानिद्देसकरे गुरूणमुवबायकारए। इंगियागारसंपने से विणीए त्ति बुखाई ॥२॥ आणानिसकरे गुरूणमणुववायकारए । पडणीए असंबुद्धे आविणीप त्ति वुचई ॥३॥ जहा सुणी पूहकण्णी निकसिज्जह सव्वसो । एवं दुस्सीलपडिणीए मुहरी निक्कसिजई ॥४॥ कणकुण्डमं चाताणं विटुं मुंजइ सूयरे। एवं सीलं चासाणं दुस्सीले रमई मिए ॥५॥ . सुणिया भावं साणस्त सूयरस्स नरस्स य । विणए ठवेज अप्पाणमिच्छन्तो हिबमप्पणी ॥६॥ सम्हा विणयमसिज्जा सीलं पडिलमेज्जए। बुद्धपुत्ते नियागट्ठी न निक्कसिज्जा कण्हुई ॥७॥ निसन्ते सियाऽमुहरी बुद्धाणं अन्तिए सया। अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा निरट्राणि उ वजए॥८॥ अणुसासिओ न कुप्पिज्जा खंति सेविज पण्डिए । खुड्डहिं सह संसरिंग हासं कीडं च वजए ॥९॥ मा व चण्डालियं कासी बहुयं मा ग आलवे । कालेण य आहिन्जित्ता तओ झाइज एगगो ॥१०॥ आहश्च चण्डालियं कट्ट न निण्हविज कयाइ वि। कडं कडे त्ति भासेज्जा अकडं नो कडे त्ति य ॥११॥ मा गलियस्से व कसं वरणमिच्छे पुणो पुणो। कसं व वट्टमाइण्णे पावगं परिवाए॥१२॥
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
१.१३
उत्तराध्ययनसूत्रम् अणासवा थूलवया कुसीला मिपि चण्डं पकरिन्ति सीसा। चित्ताणुया लहु दक्खोववेया
पसायए ते हु दुरासयं पि॥१३॥ नापुटो वागरे किंचि पुटो वा नालियं वए। कोहं असच्चं कुम्वेज्जा धारेज्जा पियमप्पियं ॥१४॥ अप्पा चेव दमेयत्वो अप्पा हु खलु दुद्दमो। अप्पा दन्तो सुही होइ अस्सि लोए परत्थ य ॥१५॥ वरं मे अप्पा दन्तो संजमेण तवेण य । माहं परेहि दम्मन्तो बन्धणेहि वहेहि य॥१६॥ पड़णीयं च बुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा। आवी वा जइ वा रहस्से नेव कुज्जा कयाइ वि॥१७॥ न पक्खओं न पुरओ नेव किच्चाण पिट्रओ। न जुंज ऊरुणा ऊरु सयणे नो पडिस्सुणे ॥१८॥ नेव पल्हत्थियं कुज्जा पक्खपिण्डं च संजए। पाए पसारिए वावि न चिट्टे गुरुणन्तिए ॥१९॥ आयारिएहि वाहित्तो तुसिणीओ न कयाइ वि। पसायपेही नियागट्ठी उवचिढे गुरुं सया॥२०॥ आलवन्ते लवन्ते वा न निसीएज्ज कयाइ वि। चइऊणमासणं धीरो जओ जत्तं पडिस्सुणे ॥२१॥ आसणगओ न पुच्छिज्जा नेव सेज्जागओ कया। आगम्मुकुडुओ सन्तो पुच्छिज्जा पंजलीउडो॥ २२॥ एवं विणयजुत्तस्स मुत्तं अत्थं च तदुभय। पुच्छमाणस्स सीसस्स वागरिज जहासुयं ॥२३॥ सुसं परिहरे भिक्खू न य ओहारिणिं वए। भासादोसं परिहरे मायं च वज्जए सया॥२४॥ न लवेज पुटो सावज्जं न निटुं न मम्मयं । अप्पणट्ठा परट्टा वा उमयस्सन्तरेण वा ॥२५॥ समरेसु अंगारेसु सन्धीस य महापहे । एगो एगिस्थिए सद्धि नेव चिट्टे न संलव ॥२६॥
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
विजयसुयम
जं मे बुद्धाणुसासन्ति सीएण फरसेण वा । मम लामो त्ति पेहाए पयओ तं पडिस्सुणे ॥ २७ ॥
अणुसासणमोवायं दुक्कडस्स य खोयणं । हियं तं मण्णई पण्णो बेसं होइ असाहुणो ॥ २८ ॥ हियं विगयभया बुद्धा फरुसं पि अणुसासणं । बेसं तं होइ मूढाणं खन्तिसोहिकरं पयं ॥ २९ ॥ आसणे उवचिट्टेज्जा अणुचे अकुए थिरे । अप्पुटाई निरुट्ठाई निखीएज्जप्पकुक्कर ॥ ३० ॥
कालेr निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जिन्ता काले कालं समायरे ॥ ३१ ॥
परिवाडीप न चिटुज्जा भिक्खू दत्तेसणं चरे । पडिलवेण पखित्ता मियं कालेण भक्खए ॥ ३२ ॥ नाइदूरमणासको नन्नेसिं चक्खुफासओ । एगो चिटुज्ज भचट्ठा लंघिया तं नरकमे ॥ ३३ ॥ नाइउथे न नीए वा नासको नाइदूरओ । फासुयं परकडं पिण्डं पडिगाहेज्ज संजए ॥ ३४ ॥ अप्पपानेऽप्पवीर्यमि पढिच्छनाम संजुडे । समयं संजय भुंजे जयं अपरिसाडियं ॥ ३५ ॥ सुकार्ड त्ति सुपक्कि त्ति सुच्छिने सुहडे मडे । सुट्टिए सुलद्धित्ति सावज्जं वज्जए मुणी ॥ १६ ॥ रमए पण्डिप सासं हयं भई व वाहए । बालं सम्मइ सासन्तो गलियस्सं व वाहए ॥ ३७ ॥ खड्डया मे चवेडा मे अक्कोसा य वहा य मे । कल्लाणमणुसासन्तो पावदिट्टि त्ति मन्नई ॥ १८ ॥ पुत्तो मे भाव नाइ त्ति साहू कल्लाण मन्नई । पावदिट्ठी उ अप्पाणं सासं दासु त्ति मन्नई ॥ ३९ ॥ न कोवए आयरियं अप्पाणं पि न कोवए । बुद्धोवधाई न सिया न सिया तोत्तगवेसए ॥ ४० ॥
आयरियं कुवियं नच्चा पत्तिएण पसायए । विज्झवेज्ज पंजलिउडो वपज्जन पुणु त्ति य ॥ ४१ ॥
[ - १.४१
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
१.४२-] उत्तराध्ययनसूत्रम्
धम्मज्जियं च ववहारं बुद्धहायरियं सया। तमायरन्तो ववहारं गरहं नाभिगच्छई ॥४२॥ मणोगयं वक्तगयं जाणित्तायरियस्स उ। तं परिगिज्झ वायाए कम्मुणा उववायए॥४३॥ वित्ते अचोइए निच्च खिप्पं हवइ सुचोइए। जहोवइटुं सुकयं किच्चाई कुवई सया॥१४॥ नच्चा नमइ मेहावी लोए कित्ती से जायए। हवई किच्चाणं सरणं भूयाणं जगई जहा ॥४५॥ पुज्जा जस्स पसीयन्ति संबुद्धा पुवसंथुया। पसन्ना लाभइस्सन्ति विउलं अट्टियं सुयं ॥४६॥ स पुज्जसत्ये सुविणीयसंसए मणोरई चिटुइ कम्मसंपया। तवोसमायारिसमाहिसंवुडे महज्जुई पंच वयाई पालिया ॥४७॥ स देवगन्धव्वमणुस्सपूइए चहत्तु देहं मलपंकपुस्वयं । सिद्धे वा हवइ सासए देवे वा अप्परए महिडिए ॥४ात्तिवेमि॥
विणयसुयं समत्तं ॥१॥
॥ परीसहज्झयणं द्वितीयं अध्ययनम् ॥
सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं । इह खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयन्तो पुट्ठो नो निण्हवेज्जा । कयरे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयन्तो पुढो नो निण्हवेज्जा । इमे ते खलु बावीसं परीसहा समजेणं
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
परीसहज्झयणम्
-२.११ भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा आभिभूय भिक्खायरियाए परिवयन्तो पुट्टो नो निण्हवेज्जा। तं जहा ॥ दिगिछापरीसहे १पिवासापरीसहे २ सीयपरीसहे ३ उसिणपरीसहे ४ दंसमसयपरीसहे ५ अचेलपरीसहे ६ अरइपरीसहे ७ इत्थीपरीसहे ८ चरियापरीसहे९निसीहियापरीसहे १०सेज्जापसिहे ११ अक्कोसपरीसहे१२ वहपसिहे १३ जायणापरीसहे १४ अलाभपरीसहे १५ रोगपरीसहे १६ तणफासपरीसहे १७ जल्लपरीसहे १८ सक्कारपुरकारपरीसहे १९ पन्नापरीसहे २० अन्नाणपरीसहे २१ दसणपरीसह २२ ॥
परीसहाणं पविभत्ती कासवेणं पवेइया। तं भे उदाहरिस्सामि आणुपुस्विं सुणेह मे ॥१॥ १ दिगिंछापरिगए देहे तवस्सी भिक्खु थामवं ।
न छिन्देन छिन्दावए न पए न पयावए॥२॥ कालीपव्वंगसंकासे किसे धमणिसंतए। मायने असणपाणस्स अदीणमणसो चरे॥३॥ . तओ पुटो पिवासाए दोगुंछी लज्जसंजए। सीओदगं न सेविज्जा वियडस्सेसणं चरे॥४॥ छिन्नावाएसु पन्थेसु आउरे सुपिवासिए।
परिसुक्खमुहादीणे तं तितिक्खे परीसहं ॥५॥ ३ चरन्तं विरयं लूहं सीयं फुसइ एगया। नाइवेलं मुणी गच्छे सोचाणं जिणसासणं ॥ ६॥ न मे निवारणं अत्थि छवित्ताणं न विज्जई ।
अहे तु अग्गि सेवामि इइ भिक्खू न चिन्तए ॥७॥ ४ उसिणंपरियावेणं परिदाहेण तज्जिए। चिंसु वा परियावेणं सायं नो परिदेवए ॥८॥ उण्हाहितत्ते मेहावी सिणाणं नो वि पत्थए । गायं नो परिसिंचेज्जा न वीएज्जा य अप्पयं ॥९॥ ५ पुटो य दसमतपहिं समरेव महामुणी।
नागो संगामसीसे वा सूरो आभिहणे परं ॥ १०॥ न संतसे न वारेज्जा मणं पिन पओसए । उवेहे न हणे पाणे भुंजन्ते मंससोणियं ॥११॥
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
२.१२-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् ६ परिजुण्णेहि वत्थेहिं होक्खामि त्ति अचेलए।
अदुवा सचेले होक्खामि इह भिक्खू न चिन्तए ॥ १२ ॥ एगयाऽचेलए होइ सचेले आवि एगया। एयं धम्माहियं नच्चा नाणी नो परिदेवए ॥१३॥ ७ गामाणुगामं रीयन्तं अणगारं अकिंचणं।
अरई अणुप्पवेसेज्जा तं तितिक्खे परीसहं ॥१४॥ अरई पिट्टओ किच्चा विरए आयरक्खिए। धम्मारामे निरारम्भ उवसन्ते मुणी चरे ॥१५॥ ८ संगो एस मणूसाणं जाओ लोगंमि इथिओ।
जस्स एया परिन्नाया सुकडं तस्स सामण्णं ॥१३॥ एयमादाय मेहावी पंकभूया उ इथिओ।
नो ताहिं विणिहम्मेज्जा चरेज्जत्तगवेसए ॥१७॥ ९ एग एव चरे लाढे अभिभूय परीसहे। गामे वा नगरे वापि निगमे वा रायहाणिए ॥१८॥ असमाणे चरे भिक्खू नेव कुज्जा परिग्गहं।
असंसत्ते गिहत्थेहिं अणिएओ परिन्वए ॥१९॥ १० सुसाणे सुनगारे वा रुक्खमले व एगओ।
अकुक्कुओ निसीएज्जा न य वित्तासए परं ॥२०॥ तत्थ से चिट्रमाणस्स उवसग्गाभिधारए।
संकाभीओ न गच्छेज्जा उट्टित्ता अन्नमासणं ॥२१॥ ११ उच्चावयाहिं सेज्जाहिं तवस्सी भिक्खु थामवं ।
नाइवेलं विहम्मेज्जा पावदिट्ठी विहम्मई ॥ २२ ॥ पइरिकुवस्सयं लद्धं कल्लाणमदुव पावयं। किमेगराइं करिस्सह एवं तत्थs हियासए ॥ २३ ॥ १२ अक्कोसेज्जा परे भिक्खं न तेसि पडिसंजले ।
सरिसो होइ बालाणं तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २४॥ सोच्चाणं फरुसा भासा दारुणा गामकण्टगा।
तुसिणीओ उवेहेज्जा न ताओ मणसीकरे ॥ २५॥ १३ हओ न संजले भिक्खू मणं पिन पओसए।
तितिक्खं परमं नच्चा भिक्खू धम्मं समायरे ॥२६॥
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
-२.४१
परीसहज्झयणम् समणं संजयं दन्तं हणेज्जा कोइ कत्थई ।
नात्थ जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए ॥२७॥ १४ दुक्करं खलु भो निच्चं अणगारस्स भिक्खुणो।
सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किंचि अजाइयं ॥२८॥ गोयरग्गपविटुस्स पाणी नो सुप्पसारए।
सेओ अगारवासु त्ति इइ भिक्खू न चिन्तए ॥ २९॥ १५ परेसु घासमेसेज्जा भोयणे परिणिट्टिए।
लद्ध पिण्डे अलद्धे वा नाणुतप्पेज्ज पण्डिए ॥३०॥ अज्जेवाहं न लब्मामि अवि लाभो सुए सिया।
जो एवं पडिसंचिक्खे अलामो तं न तज्जए ॥३१॥ १६ नच्चा उप्पइयं दुक्खं वेयणाए दुहटिए ।
अदीणो थावए पर्व पुटो तत्थहियासए ॥ ३२॥ तेहच्छं नाभिनन्देज्जा संचिक्खत्तगवेसए।
एवं खु तस्स सामण्णं जं न कुज्जा न कारवे ॥ ३३ ॥ १७ अचेलगस्स लूहस्स संजयस्स तवस्सिणो।
तणस सयमाणस्स हुज्जा गायविराहणा ॥३४॥ आयवस्स निवाएणं अउला हवह वेयणा।
एवं नच्चा न सेवान्त तन्तुजं तणतज्जिया ॥३५॥ १८ किलिनगाए मेहावी पंकेण व रएण वा। चिंस वा परियावेण सायं नो परिदेवए ॥ १६ ॥ वेएज निजरापेही आरियं धम्मऽणुत्तरं ।
जाव सरीरभेउ त्ति जलं कारण धारए ॥ ३७॥ १९ अभिवायणमन्भुटाणं सामी कुज्जा निमन्तणं ।
जे ताई पडिसेवन्ति न तेर्सि पीहए मुणी ॥ ३८॥ अणुक्कसाई अपिच्छे अनाएसी अलोलए।
रसेसु नाणुगिज्झेज्जा नाणुतप्पेज्ज पनवं ॥ ३९ ॥ २० से नूणं मए पुवं कम्माणाणफला कडा।
जेणाहं नाभिजाणामि पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४०॥ अह पच्छा उइज्जन्ति कम्माणाणफला कडा।। एवमस्सासि अप्पाणं नच्चा कम्मविवागयं ॥४१॥
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
२.४२
उत्तराध्ययनसूत्रम् २१ निरट्टगम्मि विरओ मेहुणाओ सुसंवुडो।
जो सक्खं नाभिजाणामि धम्मं कल्लाणपावगं ॥४२॥ तवावहाणमादाय पडिमं पडिवज्जओ।
एवं पि विहरओ मे छउमं न नियट्टई ॥४३॥ २२ नत्थि नृणं परे लोए इड्डी वावि तवस्सियो।
अदुवा वंचिओ मि त्ति इइ भिक्खू न चिन्तए ॥४४॥ अभू जिणा अस्थि जिणा अदुवावि भविस्सई। मुसं ते एवमाहंस इइ भिक्खू न चिन्तए ॥४५॥ एए परीसहा सव्वे कासवेण निवेइया। जे भिक्खू न विहम्मेज्जा पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४६॥ त्ति बेमि॥
॥ परीसहज्झयणं समत्तं ॥२॥
॥ चाउरंगिज्ज तृतीयं अध्ययनम् ॥ चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जन्तुणो। माणुसत्तं सुई सद्धा संजमंमि य वीरियं ॥१॥. समावन्नाण संसारे नाणागोत्तासु जाइ। कम्मा नाणाविहा कट्ट पुढो विस्सभिया पया ॥२॥ एगया देवलोएसु नरएसु वि एगया। एगया आसुरं कायं आहाकम्महि गच्छई ॥३॥ एगया खत्तिओ होइ तओ चण्डालवोक्कसो। तओ कीडपयंगो य तओ कुन्थुपिपीलिया ॥४॥ एवमावडजोणी पाणिणो कम्मकिन्बिसा। न निविज्जन्ति संसारे सव्वद्येसु व खत्तिया ॥५॥ कम्मसंगोह सम्मुढा दुक्खिया बहुवेयणा। अमाणुसासु जोणीस विणिहम्मान्ति पाणिणो ॥६॥ कम्माणं तु पहाणाए आणुपुवी कयाइ उ । जीवा सोहिमणुप्पत्ता आययन्ति मणुस्सयं ॥७॥
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
चाउरंगिज्जं
[-३.२० माणुस्सं विग्गहं लड़े सुई धम्मस्स दुल्लहा। जं सोचा पडिवज्जन्ति तवं खन्तिमहिंसयं ॥८॥ आहच्च सवर्ण लद्धं सद्धा परमदुल्लहा। सोच्चा नेआउयं मग्गं वहवे परिभस्सई ॥९॥ सुई च लढे सद्धं च वीरियं पुण दुल्लहं। बहवे रोयमाणा वि नो य णं पडिवज्जए॥१०॥ माणुसत्तंमि आयाओ जो धम्म सोच्च सद्दहे। तवस्सी वीरियं लड़े संवुडे निद्धणे रयं ॥११॥ सोही उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ट । निवाणं परमं जाइ घयसित्ति व्व पावए ॥१२॥ विगिंच कम्मुणो हेउं जसं संचिणु खन्तिए। सरीरं पाढवं हिच्चा उट्ठे पक्कमई दिसं ॥१३॥ विसालिसेहि सीलोहिं जक्खा उत्तरउत्तरा। महासुक्का व दिप्पन्ता मन्नन्ता अपुणच्चवं ॥ १४ ॥ अप्पिया देवकामांणं कामरूवविउविणो। उहूं कप्पेस चिटन्ति पुव्वा वाससया बहू ॥१५॥ तत्थ ठिच्चा जहाठाणं जक्खा आउक्खए चुया। उवेन्ति माणुसं जोणिं से दसंगेऽभिजाई ॥१६॥ खेत्तं वत्थु हिरण्णं च पसवो दासपोरुसं। चत्तारि कामखन्धाणि तत्थ से उववज्जई ॥ १७ ॥ मित्तवं नायवं होइ उच्चागोए य वण्णवं। अप्पायंके महापने अभिजाए जसोबले ॥ १८ ॥ भोच्चा माणुस्सए भोए अप्पडिरूवे अहाउयं । पुल्विं विसुद्धसद्धम्मे केवलं बोहि बुज्झिया ॥ १९ ॥ चउरंगं दुल्लहं मत्ता संजमं पडिवज्जिया। तवसा धुयकम्मंसे सिद्ध हवइ सातए ॥ २०॥ त्ति कमि ।।
॥ चाउरंगिज्जं समत्तं ॥३॥
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
४.१-]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
॥ असंखयं चतुर्थ अध्ययनम् ॥ असंखयं जीविय मा पमायए जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं विजाणाहि जणे पमत्ते किण्णू विहिंसा अजया गहिन्ति ॥१॥ जे पावकम्महि धणं मणूसा समाययन्ती अमइं गहाय । पहाय ते पासपयट्टिए नरे वेराणुबद्धा नरयं उवन्ति ॥२॥ तेणे जहा सन्धिमुहे गहीए सकम्मुणा किच्चा पावकारी। एवं पया पेच्च इहं च लोए कडाण कम्माण न मावलु आत्थि ॥ ३ ॥ संसारमावन्न परस्स अट्रा साहारणं जंच करेह कम्म। कम्मरस ते तस्स उ वेयकाले न बन्धवा बन्धवयं उवेन्ति॥४॥ वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते इममि लोए अवा परत्था। दीवप्पणटे व अणन्तमोहे नेयाउयं वट्टमवट्टमेव ॥५॥ सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी न वीससे पण्डिए आसुपने। घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं भारुण्डपक्खी व चरप्पमत्ते ॥६॥ चरे पयाई परिसंकमाणो जं किंचि पास इह मण्णमाणो। लाभन्तरे जीविय व्हइत्ता पच्छा परिन्नाय मलावधंसी ॥७॥ छन्दनिरोहेण उवेइ मोक्खं आसे जहा सिक्खियवम्मधारी। पुवाई वासाई चरप्पमत्ते तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मोक्खं ॥८॥ स पुत्वमेवं न लभेज्ज पच्छा एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीयई सिढिले आउयमि कालोवणीए सरीरस्स भेए ॥५॥ खिप्पं न सक्केइ विवेगमे तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे। समिच्च लोयं समया महेसी आयाणुरक्खी चरमप्पमत्ते ॥ १०॥ मुहं मुहं मोहगुणे जयन्तं अणेगरुवा समण चरन्तं । फासा फुसन्ती असमंजसं च न तेसु भिक्खू मणसा पउस्से ॥११॥ मन्दा य फासा बहुलोहाणिज्जा तहप्पगारेसुमणं न कुज्जा। रक्खिज्ज कोहं विणएज्ज माणं मायं न सेवे पयहेज्ज लोहं ॥ १२ ॥ जेऽसंखया तुच्छ परप्पवाई ते पिज्जदोसाणुगया परज्झा। एए अहम्मे त्ति दुगुंछमाणो कंखे गुणे जाव सरीरभेओ ॥१३॥
त्ति बेमि॥ ॥ असंखयं समत्तं ॥४॥
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
११
अकाममरणि
॥ अकाममरणिज्जं पञ्चमं अध्ययनम् ॥
अण्णवंसि महोघांस एगे तिण्णे दुरुत्तरं । तत्थ एगे महापने इमं पण्हमुद्राहरे ॥ १ ॥ सन्तिमे य दुवे ठाणा अक्खाया मारणन्तिया । अकाममरणं चेव सकाममरणं तहा ॥ २ ॥ बालाणं अकामं तु मरणं असई भवे । ' पण्डियाणं सकामं तु उक्कोसेण सहं भवे ॥ ३ ॥ तत्थिमं पढमं ठाणं महावीरेण देखियं । कामगिद्धे जहा बाले मिसं कूराहं कुन्वई ॥ ४ ॥ जे गिद्धे कामभोगेसु पगे कूडाय गच्छाई । न मे दिट्ठे परे लोए चक्खुदिट्ठा इमां रई ॥ ५ ॥
हत्थागया इमे कामा कालिया जे अणागया । को जाणइ परे लोप अत्थि वा नत्थि वा पुष्णो ॥ ६ ॥ जणेण सद्धि होक्खामि इइ बाले पगढभई । कामभोगाणुराणं. केसं संपडिवज्जई ॥ ७ ॥ तओ से दण्डं समारभई तसेसु थावरेसु य । अट्ठाए य अट्ठाए भूयग्गामं विहिंसई ॥ ८ ॥
.
हिंसे बाले मुसावाई माइल्ले पिसुणे सढे | भुंजमाणे सुरं मंसं सेयमेयं ति मन्नई ॥ ९ ॥
कायसा वयसा मत्ते विचे गिद्धे य इत्थिसु । दुहओ मलं संचिणह सिसुणागु व्व मट्टियं ॥ १० ॥ तओ पुढो आर्यकेणं गिलाण परितप्पई । पभीओ परलोगस्स कम्माणुप्पेहि अप्पणो ॥ ११ ॥ सुया मे नरप ठाणा असीलाणं च जा गई । बालाणं कूरकम्माणं पगाढा जत्थ वेयणा ॥ १२ ॥ तत्थोववाइयं ठाणं जहा मेयमणुस्सुयं । आहाकम्मोहं गच्छन्तो सो पच्छा परितप्पई ॥ १३ ॥ जहा सागडिओ जाणं समं हिच्चा महापहं । . विसमं मग्गमोइण्णो अक्खे भग्गंमि सोयई ॥ १४ ॥
। - ५.१४
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
५.१५ - ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
एवं धम्मं विउक्कम्म अहम्मं पडिवज्जिया । बाले मच्चुमुहं पत्ते अक्खे भग्गे व सोयई ॥ १५ ॥ तओं से मरणन्तंमि बाले सन्तस्सई भया । अकाममरणं मरई धुत्ते व कलिना जिए ॥ १६ ॥ एयं अकाममरणं बालाणं तु पवेइयं । एत्तो काममरणं पण्डियाणं सुणेह मे ॥ १७ ॥ मरणं पि सपुण्णाणं जहा मेयमणुस्सुयं । विप्पसण्णमणाघायं संजयाण वुसीमओ ॥ १८ ॥ न इमं सव्वेसु भिक्खूसु न इमं सव्वेसुऽगारिसु । नाणासीला अगारत्था विसमसीला य भिक्खुणो ॥ १९ ॥ सन्ति एगेहिं भिक्खुहिं गारत्था संजमुत्तरा । गारत्थेहि य सवहिं साहवो संजमुत्तरा ॥ २० ॥ चीराजिणं नगिणिणं जडी संघाडिमुण्डिणं । एयाणि वि न तायन्ति दुस्सीलं परियागयं ॥ २१ ॥ पिण्डोलए व दुस्सीले नरगाओ न मुच्चई । भिक्खाए वा गिहत्थे वा सुन्वए कम्मई दिवं ॥ २२ ॥ अगारिसामाइयंगाणि सड्डी कारण फासए । पोसहं दुहओ पक्खं एगरायं न हावए ॥ २३ ॥ एवं सिक्खासमावन्ने गिहिवासे वि सुव्वए । मुई छविपव्वाओ गच्छे जक्खसलोगयं ॥ २४ ॥ अह जे संवुडे भिक्खू दोहं अन्नयरे सिया । सव्वदुक्खप्पहीणे वा देवे वावि महिड्डिए ॥ २५ ॥ उत्तराई विमोहाई जुइमन्ताणुपुव्वसो । समाइण्णाई जक्खेहिं आवासाइं जसंसिणो ॥ २३ ॥ दीहाउया इड्डिमन्ता समिद्धा कामरूविणो । अहुणोववन्नसंकासा भुज्जो अचिमलिप्पभा ॥ २७ ॥ ताणि ठाणाणि गच्छन्ति सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खाए वा गिहत्थे वा जे सन्ति परिनिव्वुडा ॥ २८ ॥ तेसि सोच्चा सपुज्जाणं संजयाण वुसीमओ । न संतसन्ति मरणन्ते सीलवन्ता बहुस्सुया ॥ २९ ॥
१२
*'*
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
खुड्डागनियण्ठिज्ज
... [-६९ तुलिया विसेसमादाय दयाधम्मस्स खन्तिए। विप्पसीएज्ज मेहावी तहाभूएण अप्पणा ॥३०॥ तओ काले अभिप्पेए सही तालिसमन्तिए। विणएज्ज लोमहरिसं भेयं देहस्स कंखए ॥३१॥ अह कालंमि संपत्ते आघायाय समुस्सयं । सकाममरणं मरई तिण्हमन्नयरं मुणी ॥ ३२ ॥ त्ति बोमि ॥
॥ अकाममरणिज्जं समत्तं ॥५॥
॥ खुड्डागनियण्ठिज्ज षष्ठं अध्ययनम् ॥ जावन्तऽविज्जापुरिसा सव्वे ते दुक्खसंभवा। लुप्पन्ति बहुसो मूढा संसारंमि अणन्तए ॥१॥ समिक्ख पंडिए तम्हा पासजाई पहे बहू। अप्पणा सच्चमेसेज्जा मेत्तिं भूएसु कप्पए ॥२॥ माया पिया पहुसा भाया भज्जा पुत्ता. य ओरसा। नालं ते मम ताणाय लुप्पन्तस्स सकम्मुणा ॥३॥ एयमद्रं सपेहाए पासे समियदसणे। छिन्द गेद्धिं सिहं च न कंखे पुत्वसंथुयं ॥४॥ गवासं मणिकुंडलं पसवो दासपोरुसं। सम्वमेयं चहत्ताणं कामरूवी भविस्ससि ॥५॥ [थावरं जंगमं चेव धणं धण्णं उवक्खरं । पच्चमाणस्स कम्मोह नालं दुक्खाउ मोयणे अज्झत्थं सवओ सव्वं दिस्स पाणे पियायए। न हणे पाणिणो पाणे भयवेराओ उवरए ॥६॥ आयाणं नरयं दिस्स नायएज्ज तणामवि । दोगुंछी अप्पणो पाए दिलं भुंजेज्ज भोयणं ॥७॥ इहमेगे उ मन्नन्ति अप्पच्चक्खाय पावगं । आयारियं विदित्ताणं सव्वदुक्खाण मुच्चई ॥८॥ भणन्ता अकरेन्ता य बन्धमोक्खपइण्णिणो । वायाविरियमेत्तेण समासासेन्ति अप्पयं ॥९॥
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
६.१०-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् न चित्ता तायए भासा कुओ विज्जाणुसासणं । विसमा पावकम्मोहिं बाला पंडियमाणिणो ॥ १० ॥ जे केइ सरीरे सत्ता वण्णे रूवे य सव्वसो। मणसा कायवक्केणं सवे ते दुक्खसंभवा ॥११॥ आवना दीहमद्धाणं संसारंमि अणंतए। तम्हा सम्वदिसं पस्सं अप्पमत्तो परिव्वए ॥१२॥ बहिया उडमादाय नावकंखे कयाह वि। पुवकम्मखयट्ठाए इमं देहं ससुद्धरे॥१३॥ विविच्च कम्मुणो हेर्ड कालखी परित्वए । मायं पिंडस्स पाणस्स कडं लखूण भक्खए ॥१४॥ सनिहिंचन कुवेज्जा लेवमायाए संजए। पक्खी पत्तं समादाय निरवेक्खी परित्वए ॥१५॥ एसणासमिए लज्जू गामे अणियओ चरे।
अप्पमत्तो पमत्तेहिं पिंडवायं गवेसए ॥१६॥ एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तररंसी अणुसरनाणदंसणधरे अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए॥ति बेमि॥
। खुड्डागनियंठिज्जं समतं ॥६॥
॥ एलयं सप्तमं अध्ययनम् ॥ जहाएसं समुद्दिस्स कोइ पोसेज्ज एलयं ।
ओयणं जवसं देज्जा पोसेज्जा वि सयंगणे ॥१॥ तओ से पुढे परिवूढे जायमेए महोदरे। पीणिए विउले देहे आएसं परिकंखए ॥२॥ जाव न एइ आएसे ताव जीवह से दुही। अह पत्तंमि आएसे सीसं छेत्तूण भुज्जई ॥३॥ जहा खलु से उरम्भे आएसाए समीहिए। एवं बाले अहम्मिटे ईहई नरयाउयं ॥ ४॥
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
एयज्झयणं
[-७.१९. हिंसे बाले मुसावाई अद्धाणास विलोवए। अन्नादत्तहरे तेणे माई कन्नुहरे सढे॥५॥ इत्थीविसयगिद्धे य महारंमपरिग्गहे। भुंजमाणे सुरं मंसं परिवूढे परंदमे ॥६॥ अयकक्करभोई य तुंडिल्ले चियलोहिए। आउयं नरए कंखे जहाएसं व एलए ॥७॥ आसणं सयणं जाणं वित्तं कामे य भुजिया। दुस्साहडं धणं हिच्चा बटुं संचिणिया रयं ॥८॥ तओ कम्मगुरू जन्तू पच्चुप्पन्नप्परायणे। अए ब्व आगयाएसे मरणन्तमि सोई॥९॥ तओ आउपरिक्खीणे चुया देहा विहिंसगा। आसुरीयं दिसं बाला गच्छन्ति अवसा तमं ॥१०॥ जहा कागिणिए हे सहस्सं हारए नरो। अपच्छं अम्बगं मोच्चा राया रज्जंतु हारए ॥११॥ एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण अन्तिए। सहस्सगुणिया भुज्जो आउं कामा य दिविया ॥१२॥ अणेगवासानउया जा सा पनवओ ठिई। जाणि जीयन्ति दुम्मेहा ऊणे वाससयाउए ॥१३॥ जहा य तिनि वणिया मूलं घेचूण निग्गया। एगो ऽत्थ लहई लाहं एगो मूलेण आगओ ॥१४॥ एगो मूलं पि हारित्ता आगो तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा एवं धम्मे वियाणह ॥ १५ ॥ माणुसत्तं भवे मूलं लाभो देवगई भवे। मूलच्छेएण जीवाणं नरगतिरिक्खत्तणं धुवं ॥१६॥ दुहओ गई बालस्स आवई वहमूलिया। देवत्तं माणुसत्तं च जं जिए लोलयासढे ॥१७॥ तओ जिए सई होइ दुविहं दोग्गई गए। दुल्लहा तस्स उम्मुग्गा अद्धाए सुइरादवि॥१८॥ एवं जियं सहाए तुलिया बालंच पंडिया मूलियं ते पवेसन्ति माणुसिं जोणिमेन्ति जे ॥१९॥
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
७.२० – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
मायाहि सिक्खाहिं जे नरा गिहिसुव्वया । उवेन्ति माणुस जोणि कम्मसच्चा हु पाणिणो ॥ २० ॥
जेसि तु विउला सिक्खा मूलियं ते अइच्छिया । सीलवन्ता सवीसेसा अदीणा जन्ति देवयं ॥ २१ ॥ एवमद्दीणवं भिक्खु अगारिं च वियाणिया । कहण्णु जिच्च मेलिक्खं जिच्चमाणे न संविदे ॥ २२ ॥
जहा कुसग्गे उदगं समुद्देण समं मिणे । एवं माणुस्सगा कामा देवकामाण अन्तिए ॥ २३ ॥
कुसग्गमेत्ता इमे कामा सन्निरुद्धमि आउए । कस्स हे पुराकाउं जोगवखेमं न संविदे ॥ २४ ॥
इह कामाणियट्टस्स अन्तट्टे अवरज्झई । सोच्चा नेयाउयं मग्गं जं भुज्जो परिभस्सई ॥ २५ ॥ ३ह कामणियट्टस्स अन्तट्ठे नावरज्झई । पूइदेहनिरोहेणं मवे देवि त्ति मे सुयं ॥ २६ ॥
हड्डी जुई असो वण्णो आउं सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु तत्थ से उववज्जई ॥ २७ ॥
बालस्स पस्स बालत्तं अहम्मं पडिवज्जिया । चिच्चा धम्मं अहम्मिट्ठे नरए उववज्जई ॥ २८ ॥
धीरस्स पस्स धरित्तं सच्चधम्माणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्मं धम्मिट्टे देवेसु उववज्जई ॥ १९ ॥
तुलियाण बालभावं/ अबालं चेव पण्डिए । चइऊण बालभावं अबालं सेवए मुणि ॥ ३० ॥ त्ति बेमि ॥
॥ एलयज्झयणं समन्तं ॥ ७ ॥
१६
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७
काविलीयं
॥ काविलीयं अष्टमं अध्ययनम् ॥
अधुवे असासयंमी संसारंमि दुक्खपउराए । किं नाम होज्ज तं कस्मयं जेणाहं दोग्गदं न गच्छेज्जा ॥ १ ॥ विजहित्तु पुव्वसंजोयं न सिणेहं कहिचि कुव्वेज्ज़ा । असिणेह सिणेहकरेहिं दोसपओसेहिं मुच्चए भिक्खू ॥ २ ॥ तो नाणदंसणसमग्गो हियनिस्सेसाय सव्वजीवाणं । सिं विमोक्खणट्टाए भासई मुणिवरो विगयमोहो ॥ ३ ॥ सव्वं गन्थं कलहं च विप्पजहे तहाविहं भिक्खू । सव्वेसु कामजासु पासमाणो न लिप्पई ताई ॥ ४ ॥ भोगामिसदोसविसण्णे हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे । बाले य मन्दिए मूढे बज्झई मच्छिया व खेलंमि ॥ ५ ॥ दुपरिच्चया इमे कामा नो सुजहा अधीरपुरिसेहिं । अह सन्ति सुव्वया साहू जे तरन्ति अतरं वणिया वा ॥ ६ ॥
समणा मु एगे वयमाणा पाणवहं मिया अयाणन्ता । मन्दा निरयं गच्छन्ति बाला पावियाहिं विट्ठीहिं ॥ ७ ॥
[-८१४
नहु पाणवहं अणुजाणे सुच्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवारिएहिं अक्खायं जेहिं इमो. साहुधम्मो पन्नत्तो ॥ ८ ॥ पाणे य नाइवाएज्जा से समिए त्ति वुच्चई ताई । तओ से पावयं कम्मं निज्जाइ उदगं व थलाओ ॥ ९ ॥ जगनिस्सिएहिं भूपहिं तसनामेहिं थावरेहिं च । नो सिमारभे दंड मणसा वयस कायसा चैव ॥ १० ॥ सुद्धेसणाओ नच्चाणं तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । जायाए घासमेसेज्जा रसगिद्धे न सिया भिक्खाए ॥ ११ ॥ पन्ताणि चेव सेवेज्जा सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु वक्कसं पुलागं वा जवणट्ठाए निसेवए मंथुं ॥ १२ ॥ जे लक्खणं च सुविणं च अंगविज्जं च जे पउंजन्ति । नहु ते समणा वुञ्चन्ति एवं आयरिएहिं अक्खायं ॥ १३ ॥ इहजीवियं अणियमेत्ता पब्भट्ठा समाहिजीएहिं । ते कामभोगरसगिद्धा उववज्जन्ति आसुरे काए ॥ १४ ॥ [JTS-II. U. 2]
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
८-१५- ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
तत्तो वि य उवट्टित्ता संसारं बहुं अणुपरियडन्ति । बहुकम्मलेवलित्ताणं बोही होइ सुदुलहा तेसिं ॥ १५ ॥ कसि पि जो हमें लोयं पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से इइ दुप्पूरए इमें आया ॥ १६ ॥ जहा लाहो तहा लोहो लाहा लोही पवडूई । दीमासकयं कज्जं कोडीए वि न निडियं ॥ १७ ॥
नो रक्सीसु गिज्झेज्जा गंडवच्छासुणेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता खेल्लन्ति जहा व दासेहिं ॥ १८ ॥
नारीसु नोवगिज्झेज्जा इत्थी विप्पजहे अणगारे । धम्मं च पेसलं नच्चा तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं ॥ १९ ॥
૨
इइ एस धम्मे अक्खाए कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं । तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति तेहिं आरा हिया दुवे लोग ॥ २० ॥ त्ति बोम ॥
॥ काविलीयं समत्तं ॥ ८ ॥
॥ नभिपव्वज्जा नवमं अध्ययनम् ॥
चइऊण देवलोगाओ उववन्नो माणुसंमि लोगंमि । उवसन्तमोहणिज्जो सरई पोराणियं जाई ॥ १ ॥ जाई सरितु भयवं सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवेत्तु रज्जे अभिणिक्खमई नमी राया ॥ २ ॥ से देवलोगसरिसे अन्तेउरवरगओ वरे भोए । भुंजितु नमी राया बुद्धो भोगे परिच्चयई ॥ ॥ मिहिलं सपुरजणवयं बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिवखन्तो एगन्तमहिडिओ भयवं ॥ ४ ॥ कोलाहलगन्भूयं आसी मिहिलाए पव्वयन्तंमि । तइया रायरिसिंमि नमिमि अभिणिक्खमन्तंमि ॥ ५ ॥ अब्भुट्टियं रायरिसिं पव्वज्जाठाणमुत्तमं ॥ सक्को माहणरुवेण इमं वयणमन्त्रवी ॥ ६ ॥
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९
नमिपव्वज्जा
किष्णु भो अज्ज मिहिला कोलाहलग संकुला । सुव्वन्ति दारुणा सद्दा पासापसु गिहेसु य ॥ ७ ॥ एयम निसामित्ता हेऊकारणचीइओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्ववी ॥ ८ ॥ मिहिलाए चेइए वच्छे सीयच्छाए मणोरमे । पत्तपुप्फ फलोवेए बहूणं बहुगुणे सया ॥ ९ ॥ वारण हीरमाणंमि चेइयंमि मणोरमे । दुहिया असरणा अन्त्ता एए कन्दन्ति भो खगा ॥ १० ॥
एयमट्ठे निसामित्ता हेऊकारणन्रोइओ । तओ नाम रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥ ११ ॥
एस अग्गी य वाऊ य एयं उज्झइ मन्दिरं । भयवं अन्तेउरं तेणं कीस णं नावपेक्खह ।। १२ ।। एयमट्टं मिसामित्ता हेऊकारण चोहओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी ॥ १३ ॥
सुहं वसामो जीवामो जेसिं मो नत्थि किंचण । मिहिलाए उज्झमाणए न मे उज्झर किंचण ॥ १४ ॥ चत्तपुत्तकलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्खुणी । पियं न विज्जई किंचि अप्पियं पि न विज्जई ॥ १५ ॥
बहुं तु मुणिणो भई अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वओ विप्प मुक्कस्स पगन्तमणुपस्सओ ॥ १६ ॥
एयटुं निखामित्त: हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥ १७ ॥ पागारं कारइत्ताणं गोपुरट्टालगाणि च । उस्सूलगसयग्धीओ तओ गच्छसि खत्तिया ॥ १८ ॥ एयम निसामित्ता हेऊकारणचोइअं । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी ॥ १९ ॥ सद्धं नगरं किच्चा तवसंवरमम्गलं । खन्ति निउणपागारं तिगुत्तं दुप्पधंसयं ॥ २० ॥ धणुं परक्कर्म किच्चा जीवं च इरियं सया । धिरं च केयणं किच्चा सचेण पलिमन्थर ॥ २१ ॥
[ - ९.११
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
उत्तराध्ययनसूत्रम्
तवनारायजुत्तेण भेत्तूर्णं कम्मकंचुयं । मुणी विगयसंगामो भवाओं परिमुच्चए ॥ २२ ॥
एयटुं निसामित्ता हे ऊकारण चोइओ । तओ नाम रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥ २३ ॥ पासाए कारइत्ताणं वद्धमाणगिहाणि य । बालग्गपोइयाओ य तओ गच्छसि खत्तिया ॥ २४ ॥ एयम निसामित्ता ऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमव्ववी ॥ २५ ॥ संसयं खलु सो कुणई जो मग्गे कुणई घरं । जत्थेव गन्तुमिच्छेज्जा तत्थ कुव्वेज्ज सासयं ॥ २६ ॥ एमटुं निसामित्ता ऊकारणचोइओ । तओ नाम रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥ २७ ॥
९-२२– ]
आमोसे लोमहारे य गंठिभेए य तक्करे । नगरस्स खेमं काऊणं तओ गच्छसि खत्तिया ॥ २८ ॥
एयम निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमन्त्रवी ॥ २९ ॥
असई तु मणुस्सेहिं मिच्छा दण्डो पजुंजई । अकारिणोऽत्थ बज्झन्ति मुच्चई कारओ जणो ॥ ३० ॥
एयम निसामित्ता ऊकारणचीइओ । तओ नाम रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥ ३१ ॥
जे के पत्थिवा तुझं नानमन्ति नराहिवा । बसे ते ठावइत्ताणं तओ गच्छसि खत्तिया ॥ ३२ ॥
एयम निसामित्ता ऊकारण चोइओ । तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्ववी ॥ ३३ ॥
जो सहस्सं सहस्साणं संगामे दुज्जए जिणे । एगं जिणेज्ज अप्पाणं एस से परमो जओ ॥ ३४ ॥ अप्पाणमेव जुज्झाहि किं ते जुज्झेण बज्झओ । अपणामेवमप्पाणं जइत्ता सुहमेहए ॥ ३५ ॥ पंचिन्दियाणि कोहं मांणं मायं तहेव लोहं च । दुज्जयं चैव अप्पाणं सव्वं अप्पे जिए जियं ॥ ३६ ॥
२०
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
नमिपस्वज्जा
[-१:५१ एयमढे निसामित्ता हेऊकारणचोइओ। तओ नर्मि रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥ ३७॥ जइत्ता विउले जन्ने भोइत्ता समणमाहणे। दच्चा भोच्चा य जिट्ठा य तओ गच्छसि खत्तिया ॥ ३८॥ एयमढें निसामित्ता हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी ॥३९॥ जो सहस्सं सहस्साणं मासे मासे गवं दए । तस्सावि संजमो सेओ अदिन्तस्स वि किंचण ॥४०॥ एयमढे निसामित्ता हेऊकारणचोइओ। तओ नाम रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥४१॥ घोरासमं चइत्ताणं अचं पत्थेसि आसमं। इहेव पोसहरओ भवाहि मणुयाहिवा ॥४२॥ एयम, निसामित्ता हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी ॥४३॥ मासे मासे तु जो बालो कुसग्गेण तु मुंजए। न सो सुक्खायधम्मस्स कलं अग्घइ सोलसिं ॥४॥ एयम निसामित्ता हेऊकारणचोहओ। तओ नर्मि रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥४५॥ हिरण्णं सुवण्णं मणिमुत्तं कंसं दूसं च वाहणं । कोसं वड्डावात्ताणं तओ गच्छसि खत्तिया ॥४६॥ एयमटुं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ।
तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी॥४७॥ सुवण्णरुप्पस्स उ पव्वया भवे सिया हु केलाससमा असंखया। नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि इच्छा उ आगाससमा अणन्तिया ॥४८॥
पुढवी साली जवा चेव हिरणं पसुभिस्सह। पडिपुण्णं नालमेगस्स इइ विज्जा तवं चरे॥४९॥ एयमदं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ। तओ नामि रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥५० ।। अच्छेरयमन्भुदए भोए चयसि पत्थिवा। असन्ते कामे पत्थेसि संकप्पेण विहम्मसि ॥५१॥
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
९.५२-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् एयमटुं निसामित्ता हेअकारणचोइओ। तओ दमी रायरिसी देविन्द इणमब्बवी ॥५२॥ सलं कामा विसं कामा कामा आसीविसोवमा। कामे य पत्थेमाणा अकामा जन्ति दोग्गरं ॥५३॥ अहे वयन्ति कोहेणं माणेणं अहमा गई। माया गईपडिग्याओ लोभाओ दुहओ मयं ॥५४॥ अवउज्झिऊण माहणरूवं विउविऊण इन्दत्तं। वन्दइ अभित्थुणन्तो इमाहि महुराहिं वग्गृहि ॥५५॥ अहो ते निज्जिओ कोहो अहो माणो पराजिओ। अहो निरकिया माया अहो लोभो वसीकओ ॥५६॥ अहो ते अज्जवं साहु अहो ते साहु मद्दवं । अहो ते उत्तमा खन्ती अहो ते मुत्ति उत्तमा ॥५७ ॥ इह सि उत्तमो भन्ते पच्छा होहिसि उत्तमो। लोगुत्तमुत्तमं ठाणं सिद्धि गच्छसि नीरओ॥५८॥ एवं अभित्थुणन्तो रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए। पयाहिणं करेन्तो पुणो पुणो वन्दई सक्को ॥५९ ॥ तो वन्दिऊण पाए चक्कंकुसलक्खणे मुणिवरस्स । आगासेणुप्पइओ ललियचलकुंडलतिरीडी ॥६॥ नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वहदेही सामण्णे पज्जुवटिओ ॥ ६१ ॥ एवं कन्ति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा। विणियन्ति भोगेसु जहा से नमी रायरिसि ॥६२॥त्ति बेमि ॥
॥ नमिपव्वज्जा समत्ता ॥९॥
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
२३
दुमपत्तयं
॥ दुमपत्तयं दशमं अध्ययनम् ॥
दुमपत्तर पण्डुयए जहा निवडह राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम मा पमायए ॥ १ ॥ कुसग्गे जह ओस बिन्दुए थोवं चिट्टइ लम्बमाणए । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम मा पमायए ॥ २ ॥ इइ इत्तरियम्मि आउए जीवियए बहुपचचवायए । विहुणाहि रयं पुरे कडं समयं गोयम मा पमायए ॥ ३ ॥ दुलहे खलु माणुसे भवे चिरकालेण वि सव्वपाणिणं । गाढा विवाग कम्मुणो समयं गोयम मा पमायए ॥ 8 ॥ पुढविक्कायमइगओ उक्कोसं जीवों उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम मा पमायए ॥ ५ ॥ आउक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम मा पमायए ॥ ६ ॥ तेक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम मा पमायए ॥ ७ ॥ वाक्काय महगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखाईयं समयं गोयम मा पमायए ॥ ८ ॥ वणस्सर का यमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालमणन्तदुरन्तयं समयं गोयम मा पमायए ॥ ९ ॥ बेइन्दिय कायमइ गओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्ज सनियं समयं गोयम मा पमायए ॥ १० ॥ तेइन्दिय कायम गओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्ज सन्नियं समयं गोयम मा पमायए ॥। ११ ॥
[ - १०.१४
उरिन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसन्नियं समयं मोयम मा पमायए ॥ १२ ॥ पंचिन्दिय कायमइ गओ उक्कोसं जीवो उ संवसे ॥ सत्तट्टभवग्गहणे समयं गोयम मा पमायएं ॥ १३ ॥ देवे नेरइए यमदगंओ उक्कोसं जीवो उ संवसे । इक्वेक्क भवग्गहणे समयं गोयम मा पमाय ॥ १४ ॥
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०.१५-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् एवं भवसंसारे संसरइ सुहासुहहि कम्मेहिं । जीवा पमायबहुलो समयं गोयम मा पमायए ॥ १५॥ लद्धण वि माणुसत्तणं आरिअत्तं पुणरावि दुल्लहं । बहवे दसुया मिलक्खुया समयं गोयम मा पमायए ॥ १६ ॥ लभ्रूण वि आरियत्तणं अहीणपंचिन्दियया हु दुल्लहा। विगलिन्दियया हु दीसई समयं गोयम मा पमायए ॥१७॥ अहीणपंचिन्दियत्तं पि से लहे उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा। कुतित्थिनिसेवए जणे समयं गोयम मा पमायए ॥१८॥ लद्धण वि उत्तमं सुई सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा। मिच्छत्तनिसेवए जणे समयं गोयम मा पमायए ॥ १९॥ धम्म पि हु सद्दहन्तया दुल्लहया काएण फासया। इह कामगुणेहि मुच्छिया समयं गोयम मा पमायए ॥ २०॥. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते।। से सोयबले य हाई समयं गोयम मा पमायए ॥२१॥ परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते। से चखुबले य हायई समयं गोयम मा पमायए ॥२२॥ परिजूरह ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते। से घाणबले य हायई समय गोयम मा पमायए ॥२३॥ परिजरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते। से जिन्भबल य हायई समयं गोमय मा पमायए ॥२४॥ परिजूरह ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते। से फासबले य हायई समयं गोमय मा पमायए ॥२५॥ परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते। से सव्वबले य हायई समयं गोयम मा पमायए ॥ २६ ॥ अरई गण्डं विसूइया आयंका विविहा फुसन्ति ते। विहडइ विद्धंसह ते सरीरयं समयं गोयम मा पमायए ॥२७॥ वोछिन्द सिणेहमप्पणो कुमुयं सारदयं व पाणियं । से सम्वसिणेहवज्जिए समयं गोयम मा पमायए ॥२८॥
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
बहुस्सुयपुज्ज
[-११.१ चिच्चाण धणं च भारियं पव्वइओ हि सि अणगारियं । मा वन्तं पुणो वि आइए समयं गोयम मा पमायए ॥ २९ ॥ अवउज्झिय मित्तबन्धवं विउलं चेव धणोहसंचयं । मा तं बिइयं गवेसए समयं गोयम मा पमायए ॥ ३० ॥ न हु जिणे अज्ज दिस्सई बहुमए दिस्सई मग्गदसिए। संपइ नेयाउए पहे समयं गोयम मा पमायए॥३१॥ अवसोहिय कण्टगापहं ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया समयं गोयम मा पमायए ॥ ३२ ॥ . अबले जह भारवाहए मा मग्गे विसमे वगाहिया। पच्छा पच्छाणुतावए समय गोयम मा पमायए॥ ३३ ॥ तिण्णो हु सि अण्णवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम मा पमायए ॥ ३४॥ अकलेवरसेणिमुस्सिया सिद्धि गोयम लोय गच्छसि। खेमं च सिवं अणुत्तरं समयं गोयम मा पमायए ॥ ३५ ॥ बुद्ध परिनिव्वुडे चरे गामगए नगरे व संजए। सन्तीमग्गं च वूहए समयं गोयम मा पमायए ॥३६॥ बुद्धस्स निसम्म भासियं सुकहियमट्रपओवसोहियं । रागं दोसं च छिन्दिया सिद्धिगई गए गोयमे ॥ ३७॥ त्ति बेमि॥
"एमपतयं समत्तं ॥१०॥
॥ बहुस्सुयपुज्जं एकादशं अध्ययनम् ॥ संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो। आयारं पाउकरिस्सामि आणुपुत्विं सुणेह मे ॥१॥ जे यावि होइ निविज्जे थद्ध लुद्ध अणिग्गहे। अभिक्खणं उल्लवई अविणीए अबहुस्सुए ॥२॥
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
११.३-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् अह पंचहिं ठाणेहि जहिं सिक्खा न लब्भई । थम्भा कोहा पमाएणं रोगेणालस्सएण य ॥३। अह अटहिं ठाणेहिं सिक्खासील त्ति वुच्चई। अहस्सिरे सया दन्ते न य मम्ममुदाहरे ॥४॥ नासीले न विसीले न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए सिक्खासीले त्ति वुई ॥५॥ अह चोद्दसहिं ठाणेहिं वट्टमाणे उ संजए। अविणीए वुच्चई सो उ निव्वाणं च न गच्छ॥६॥ अभिक्खणं कोही हवइ पबन्धं च पकुम्बई । मेत्तिज्जमाणो वमा सुयं लद्धण मज्जई ॥७॥ आवि पावपरिक्खेवी अवि मित्तेसु कुप्पई । सुप्पियस्सावि मित्तस्स रहे भासह पावगं ॥८॥ पइण्णवाई दुहिले थद्ध लुद्धे अणिग्गहे। . असंविभागी अचियत्ते अविणीए त्ति वुच्चई ॥९॥ अह पन्नरसहिं ठाणहिँ सुविणीए त्ति वृच्चाई । नीयावत्ती अचवले अमाई अकुऊहले ॥१०॥ अप्पं च अहिक्खिवई पबन्धं च न कुवई। मेत्तिज्जमाणो भयई सुयं लबुं न मज्जई ॥११॥ न य पावपरिक्खेवी न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स रहे कल्लाण भासई ॥ १२ ॥ कलहडमरवज्जिए बुद्ध अभिजाइए। हिरिमं पडिसंलीणे सुविणीए त्ति वुच्चई ॥ १३॥ वसे गुरुकुले निच्च जोगवं उवहाण । पियंकरें पियंवाई से सिक्खं लद्धमरिहई ॥१४॥ जहा संखम्मि पयं निहियं दुहओ वि विराया। एवं बहुस्सुए भिक्खू धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥१५॥ जहा से कम्बोयाणं आइण्णे कन्थए सिया। आसे जवेण पवरे एवं हवई बहुस्सुए ॥१३॥ जहाइण्णसमारूढे सूरे दढपरक्कमे। उभओ नन्दिघोसेणं एवं हवइ बहुस्सुए ॥१७॥
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
बहुस्सुयपुज्ज
[-- ११.३१ जहा करेणुपरिकिण्णे कुंजरे सट्रिहायणे । बलवन्ते अप्पडिहए एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १८ । जहा से तिक्खसिंगे जायखन्धे विराई । वसहे जूहाहिवई एवं हवइ बहुस्सुए ॥१९॥ जहा से तिक्खदाढे उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे मियाण पवरे एवं हवइ. बहुस्सुए ॥२०॥ जहा से वासुदेवे संखचक्कगयाधरे। अप्पडिहयबले जोहे एवं हवइ बहुस्सुए ॥२१॥ जहा से चाउरन्ते चक्कवट्टी महिथिए। चोद्दसरयणाहिवई एवं हवह बहुस्सुए ॥२२॥ जहा से सहस्सक्खे वज्जपाणी पुरन्दरे। सक्के देवाहिवई एवं हवा बहुस्सुए ॥२३॥ जहा से तिमिरविद्धंसे उच्चिटन्ते दिवायरे। जलन्ते इव तेएण एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २४॥ जहा से उडवई चन्दे नक्खत्तपरिवारिए। पडिपुण्णे पुण्णमासीए एवं हवा बहुस्सुए ॥ २५ ॥ जहा से सामाइयाणं कोट्रागारे सुरक्खिए। माणाधनपडिपुणे एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २६ ॥ जहा सा दुमाण पवरा जम्बू नाम सुदंसणा। अणाढियस्स देवस्स एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २७॥ जहा सा नईण पवरा सलिला सागरंगमा। सीया नीलवन्तपवहा एवं हवा बहुस्सुए ॥२८॥ जहा से नगाण पवरे सुमहं मन्दरे गिरी। नाणोसहिपज्जलिए एवं हवह बहुस्सुए ॥२९॥ जहा से सयंभूरमणे उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुण्णे एवं हवइ बहुस्सुए ॥ ३० ॥ समुद्दगम्भीरसमा दुरासया|
अचक्किया केणइ दुप्पहंसया। . सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो . खावतु कम्म गइमुखमं गया ॥३१॥
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
११.३२-] उत्तराध्ययनसूत्रम्
तम्हा सुयमहिटिज्जा उत्तमट्टगवेसए । जेणऽप्पाणं परं चेव सिद्धि संपाउणेज्जासि ॥ ३२ ॥ त्ति बेमि॥
· ॥ बहुस्सुयपुज्जं समत्तं ॥११॥
॥हरिएसिज्जं द्वादशं अध्ययनम् ॥ सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो मुणी। हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइन्दिओ ॥१॥ इरिएसणभासाए उच्चारसमिईसु य। जओ आयाणनिक्खेवे संजओ सुसमाहिओ ॥२॥ मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइन्दिओ। भिक्खट्टा बम्भइज्जाम्मि जन्नवाडं उवढिओ ॥३॥ तं पासिऊणमेज्जन्तं तवेण परिसोसियं। पन्तोवहिउवगरणं उवहसन्ति अणारिया ॥४॥ जाईमयपडिबद्धा हिंसगा अजिइन्दिया।
अवम्भचारिणो बाला इमं वयणमब्बवी ॥५॥ कयरे आगच्छइ दित्तवे काले विगराले फोकनासे। ओमचेलए पंसुपिसायभूए संकरसं परिवरिय कण्ठे ॥६॥ को रे तुवं इय अदंसणिज्जे काए व आसाइहमागओ सि। ओमचेलगा पंसुपिसायभूया गच्छ क्खलाहि किमिहं ठिओ सि ॥७॥ जवखे तहिं तिन्दुयरुक्खवासी अणुकम्पओ तस्स महामुणिस्स। पच्छायइत्ता नियगं सरीरं इमाइं वयणाइमुदाहरित्था ॥८॥ समणो अहं संजओ बम्भयारी विरओ धणपयणपरिग्गहाओ। परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले अन्नस्स अट्ठा इहमागओ मि ॥९॥ वियरिज्जइ खज्जइ भुज्जई य अन्नं पभूयं भवयाणमेयं । जाणेह मे जायणजीविणु त्ति सेसावसेसं लभऊ तवस्सी ॥१॥ उवक्खडं भोयण माहणाणं अत्तट्रियं सिद्धमिहेगपखं । नऊ वयं एरिसमनपाणं दाहामु तुज्झं किमिहं ठिओ सि ॥११॥
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
हरिएसिज्जं
[
थलेसु बीयाई ववन्ति कासगा तहेव निन्नेसु य आससाए । एयाह सद्धाए दलाह मज्झं आराहए पुण्णमिणं खु खेत्तं ॥ १२ ॥ खेत्ताणि अम्हं विइयाणि लोए जहिं पकिण्णा विरुहन्ति पुण्णा । जे माहणा जाइविज्जोववेया ताई तु खेत्ताइं सुपेसलाई ॥ १३ ॥ कोहो य माणो य वहो य जेसिं मोसं अदत्तं च परिग्गहं च । ते माहणा जाइविज्जाविहूणा ताइं तु खेत्ताई सुपावयाई ॥ १४ ॥ तुभेत्थ भो भारधरा गिराजं अटुं न जाणेह अहिज्ज वेए । उच्चावयाई मुणिणो चरन्ति ताइं तु खेत्ताइं सुपेसलाई ॥ १५ ॥ अज्झायाणं पडिकूलभासी पभाससे किं तु सगासि अहं । अवि एवं विणस्सउ अन्नपाणं न य णं दाहामु तुमं नियण्ठा ।। १६ ।। समिईहि मज्झं सुसम । हियस्स गुत्ताहि गुत्तस्स जिइन्दियस्य । जइ मे न दाहित्य आहेसणिज्जं किमज्ज जन्नाण लहित्थ लाहं ॥ १७ ॥ के एत्थ खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा सह खण्डिएहिं । एयं दण्डेण फलएण हन्ता कण्ठम्मि घेतूण खलेज्ज जो णं ॥ १८ ॥ अज्झावयाणं वयणं सुणेत्ता उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा । दण्डेहि वित्तहि कसेहि चेव समागया तं इसि तालयन्ति ॥ १९ ॥ रन्नो तहिं कोसलियस्स धूया भद्द-त्ति नामेण अणिन्दियंगी । तं पालिया संजय हम्ममाणं कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेद । २० ॥ देवाभिओगेण निओइएणं दिना मु रन्ना मणसा न झाया । नरिन्ददेविन्दऽभिवन्दिएणं जेणम्हि वन्ता इसिणा स एसो ॥ २१ ॥ एसो हु सो उग्गतवो महप्पा जिइन्दिओ संजओ वम्भयारी ।
जो मे तथा नेच्छइ दिज्जमाणि पिउणा सयं कोसलिएण रन्ना ॥ २२ ॥ महाजसो एस महाणुभागो घोरवओ घोरपरक्कमो य । मा एयं हीलह अहीलणिज्जं मा सब्वे तेपण भे निद्दहेज्जा ॥ २३ ॥ एयाई तीसे वयणाई सोच्चा पत्तीइ भद्दाइ सुहासियाई । इसिस्स वेयावडियट्टयाए जक्खा कुमारे विणिवारयन्ति ॥ २४ ॥ ते घोररूवा डिय अन्तलिक्खेऽसुरा तर्हि तं जणं तालयन्ति । ते भिन्नदेहे रुहिरं वमन्ते पासितु भद्दा इणमाह भुज्जेो ॥ २५ ॥ गिरिं नहिं खणह अयं दन्तेहिं खाग्रह |
जायतेयं पापहि हणह जे भिक्खु अवमन्नह ॥ २६ ॥
२९
-
१२-२६
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९.२७-] उत्तराभ्ययनसूत्रम्
आसीविसो उग्गतवो महेसी घोरवओ घोरपरक्कमो य। अगणिं व पक्खन्द पयंगसेणा जे भिक्खुयं भत्तकाले वह ॥२७॥ सीसेण एयं सरणं उवेह समागया सम्वजणेण तुम्मे । जइ इच्छह जीवियं वा धणं वा लोगं पि एसो कुविओ डहेज्जा ॥२८॥ अवडिय पिट्रिसउत्तमंगे पसारियाबाहुअकम्मचे । निज्झेरियच्छे रुहिरं वमन्ते उद्धंमुहे निग्गयजीहनेत्ते ॥ २९॥ ते पासिया खण्डिय कट्ठभूए विमणो विसण्णो अह माहणो सो। इसिं पसाएइ समारियाओ हीलं च निन्दं च खमाह भन्ते ॥ ३०॥ बालेहि मूढेहि अयाणपहिं जं हीलिया तस्स खमाह भन्ते । महप्पसाया इसिणो हवन्ति न हू मुणी कोवपरा हवन्ति ॥ ३१ ॥ पुवि च इण्हि च आ गयं च मणप्पदोसो न मे अस्थि कोह। जक्खा हु वेयावडियं करेन्ति तम्हा हु एए निहया कुमारा ॥३२॥ अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा तुन्भे न वि कुप्पह भूइपन्ना। तुभं तु पाए सरणं उवेमो समागया सव्वजण अम्हे ॥ ३३ ॥ अच्चेमु ते महाभाग न ते किंचि न अच्चिमो। भुंजाहि सालिम कूरं नाणावंजणसंजुयं ॥ ३४॥ इमं च मे अस्थि पभूयमन्नं तं भुंजसू अम्ह अणुग्गहट्ठा । बाढं ति पडिच्छइ भत्तपाणं मासस्स ऊ पारणए महप्पा ॥३५॥. तहियं गन्धोदयपुप्फवासं दिव्वा तहिं वसुहारा य बुट्टा । पहयाओ दुन्दुहीओ सुरोहिं आगामे अहो दाणं च घुटुं ॥ ३६॥ सक्खं खुदीसइ तवोविसेसो न दीसई जाइविसेस कोई। सोवागपुत्तं हरिएससाहुं जस्सेरिसा इड्डि महाणुभागा ॥ ३७॥ किं माहणा जोइसमारभन्ता उदएण सोहिं बहिया विमग्गह। जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं न तं सुदिटुं कुसला वयन्ति ॥ ३८॥ कुस च जूवं तणकटुमग्गिं सायं च पायं उदगं फुसन्ता। पाणाइं भूयाई विहेडयन्ता भुज्जो वि मन्दा पगरेह पावं ॥ ३९॥ कहं चरे भिक्खु वयं जयामो पावाई कम्माई पाल्लयामो। अक्खाहि णे संजय जक्खपूहया कहं सुजटुं कुसला वयन्ति ॥ ४०॥ छज्जीवकाए असमारभन्ता मोसं अदत्तं च असेवमाणा। परिग्गहं इथिओ माणमायं एवं परिमाय चरन्ति दन्ता ॥११॥
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
चित्तसम्भूइज्जं
[ - १३.६.
मुसंडा पंचहिं संवरेहिं इह जीवियं अणवकंखमाणा । वोसटुकाए सुइचत्तदेहा महाजयं जयई जन्नसिद्धं ॥ ४२ ॥ के ते जोई के व ते जोइठाणे का ते सुया किं व ते कारिसंगं । हाय ते कयरा सन्ति भिक्खू कयरेण होमेण हुणासि जोहं ॥ ४३ ॥ तवो जोई जीवो जोइठाणं जोगा सुया सरीरं कारिसंगं । कम्मं एहा संजमजोगसन्ती होमं हुणामि इसिणं पसत्थं ॥ ४४ ॥
३१
के ते हरए के य ते सन्तितित्थे कहिं सिणाओ व रयं जहासि । आइक्ख णे संजय जक्खपूइया इच्छामो नाउं भवओ सगासे ॥ ४५ ॥ धम्मे हर बम्भे सन्तितित्थे अणाविले अत्तपसन्नलेसे । जहिं सिणाओ विमलो विसुद्ध सुसीइओ पजहामि दोसं ॥ ४६ ॥ एयं सिणाणं कुसलेहि विट्ठ महासिणाणं इसिणं पसत्थं । जहिं सिणाया विमला विसुद्धा महारिसी उत्तमं - ठाण पत्त ॥ ४७ ॥ त्ति बेमि ॥
॥ हरिएसिज्जं समत्तं ॥ १२ ॥
॥ चित्तसम्भूइज्जं त्रयोदशं अध्ययनम् ॥
जाईपराइओ खलु कासि नियाणं तु हत्थिणपुरम्मि । चुलणीए बम्भदत्तो उववन्नो पउमगुम्माओ ॥ १ ॥ कम्पिल्ले संभूओ चित्तो पुण जाओ पुरिमतालाम्म । सेट्ठिकुलम्मि विसाले धम्मं सोऊण पव्वइओ ॥ २ ॥ कम्पिल्लम्म य नयरे समागया दो वि चित्तसम्भूया । सुहदुक्ख फलविवागं कहेन्ति ते एक्कमेक्कस्स ॥ ३ ॥ चक्कवट्टी महिडीओ बम्मदत्तो महायसो । भायरं बहुमाणेणं इमं वयणमब्बवी ॥ ४ ॥ आसिमो भायरो दो वि अन्नमन्नवसाणुगा । अन्नमन्नमणूरन्ता अन्नमनहिएसिणो ॥ ५ ॥ दासा दसणे आसी मिया कालिंजरे नगे । हंसा मयंगतीरे सोवागा कासिभूमिए ॥ ६ ॥
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३.७ --]
उत्तराध्ययनसूत्रम् देवा य देवलोगम्मि आसि अम्हे माहिड्डिया। इमा नो छट्टिया जाई अन्नमन्नेण जा विणा ॥७॥ कम्मा नियाणप्पगडा तुमे राय विचिन्तिया। तेसिं फलविवागेण विप्पओगमुवागया ॥८॥ सच्चसोयप्पगडा कम्मा मए पुरा कडा । ते अज्ज परिभुजामो किं नु चित्ते वि से तहा ॥९॥ सत्वं सुचिण्णं सफलं नराणं कडाण कम्माण न मोक्ख अथि। अत्थेहि कामोह य उत्तमेहिं आया ममं पुण्णफलोववेए ॥१०॥ जाणाहि संभूय महाणुभागं महिड्डियं पुण्णफलोववेयं । चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं इड्डी जुई तस्स वि य प्पभूया ॥११॥ महत्थरूवा वयणप्पभूया गाहाणगीया नरसंघमझे। जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया इहं जयन्ते समणो मि जाओ ॥१२॥ उच्चोयए महु कक्के य बम्भे पवेइया आवसहा य रम्मा । इमं गिहं चित्तधणप्पभूयं पसाहि पंचालगुणोववेयं ॥ १३॥ नट्टेहि गीपहि य वाहपहिं नारीजणाहिं परियारयन्तो। भुंजाहि भोगाइं इमाई भिक्खू मम रोयई पन्वज्जा हु दुकावं ॥१४॥ तं पुवनेहेण कयाणुरागं नराहिवं कामगुणेसु गिद्धं । धम्मस्सिओ तस्स हियाणुपेही चित्तो इमं वयणमुदाहरित्था ॥ १५ ॥ सव्वं विलवियं गीयं सत्वं नर्से विडम्बियं । सत्वे आभरणा भारा सब्वे कामा दुहावहा ॥१६॥ बालाभिरामेसु दुहावहेसुन तं सुहं कामगुणेसु रायं । विरत्तकामाण तवोहणाणं जं भिक्खुणं सीलगुणे रयाणं॥१७॥ नरिंद जाई अहमा नराणं सोवागजाई दुहओ गयाणं । जहिं वयं सव्वजणस्स वेस्सा वसीय सोवागनिवेसणेसु ॥१८॥ तीसे य जाईइ उ पावियाए वुच्छासु सोवागनिवेसणेसु।। सव्वस्स लोगस्स दुगंछाणेज्जा इहं तु कम्माई पुरे कडाई ॥१९॥ सो दाणि सिं राय महाणुमागो महिडिओ पुण्णफलोववेओ। चइत्तु भोगाई असासयाइं आयाणहेउं अभिणिक्खमाहि ॥ २०॥ इह जीविए राय असासयम्मि धणियं तु पुण्णाई अकुव्वमाणो । से सोयई मच्चुमुहोवणीए धम्म अकाऊण परंसि लोए ॥२१॥
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
चित्तसम्भूइज्जं
[-१३.३५ जहेह सीही व मियं गहाय मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले। न तस्स माया व पिया व भाया कालम्मि तम्मंसहरा भवंति ॥२२॥ न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइओ न मित्तवग्गा न सुया न बन्धवा । एक्को सयं पच्चणुहोइ दुक्खं कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ॥ २३॥ चेच्चा दुपयं च चउप्पयं च खेत्तं गिहं धणधनं च सन्वं । सकम्मबीओ भवसो पयाइ परं भव सुंदर पावगं वा ॥२४॥ तं इक्कगं तुच्छसरीरगं से चिईगयं डज्झिय पावगेणं। भज्जा य पुत्ता वि य नायओ य दायारमन्नं अणुसंकमन्ति ॥ २५॥ उवणिज्जई जीवियमप्पमायं वण्णं जरा हरइ नरस्स राय। पंचालराया वयणं सुणाहि मा कासि कम्माई महालयाई ॥२६॥ अहं पि जाणामि जहह साहू जं मे तुमं साहसि वक्कमेयं । भोगा इमे संगकरा हवन्ति जे दुज्जया अज्जो अम्हारिसेहिं ॥२७॥ हत्थिणपुरम्मि चित्ता इट्टणं नरवई महिडियं । कामभोगसु गिद्धणं नियाणमसुहं कडं ॥२८॥ तस्स में अपडिकन्तस्स इमं एयारिसं फलं।
जाणमाणो वि जं धम्मं कामभोगेसु सुच्छिओ ॥ २९॥ नागो जहा पंकजलावसन्नो दटुं थलं नाभिसमेइ तीरं। एवं वयं कामगुणसु गिद्धा न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो ॥ ३०॥ अच्चेइ कालो तूरन्ति राइओ न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा। उविच्च भागा पुरिसं चयन्ति दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ॥ ३९ ॥ जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो अज्जाई कम्माई करेहि रायं। धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकम्पी तो होहिसि देवो इओ विउव्वी ॥ ३२ ॥ न तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी गिद्धो सि आरम्भपरिग्गहेसु। माहं कआ एत्तिउ विप्पलावा गच्छामि राय आमन्तिओ सि ॥ ३३ ॥ पंचालराया वि य बम्भदत्तो साहुस्स तस्स वयणं अकाउं । अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥ ३४॥ चित्ता वि कामेहि विरत्तकामो उदग्गचारित्ततवो महेसी। अणुत्तरं संजम पालइत्ता अणुत्तरं सिद्धिगई गओ ॥ ३५॥ त्ति बेमि॥
॥चित्तसंभूइज्जं समत्तं ॥१३॥
-
| JTS-II. 1. 3]
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४.१ -] उत्तराध्ययनसूत्रम्
॥उसुयारिजं चतुर्दशं अध्ययनम् ॥ देवा भवित्ताण पुरे भवम्मी केई चुया एगविमाणवासी। पुरे पुराणे उसुयारनामे खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे ॥१॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं कुलेसुदग्गेसु य ते पसृया। निविण्णसंसारभया जहाय जिणिन्दमग्गं सरणं पवना ॥ २ ॥ पुमत्तमागम्म कुमार दो वी पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती। विसालकित्ती य तहोसुयारो रायत्थ देवी कमलावई य ॥३॥ जाईजरामच्चुभयाभिभूया बहिविहाराभिनिविट्ठचित्ता। संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा दट्टण ते कामगुणे विरत्ता ॥४॥ पियपुत्तगा दोन्नि वि माहणस्स सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स। सरितु पोराणिय तत्थ जाइं तहा सुचिण्णं तवसंजमं च ॥५॥ ते कामभोगेसु असज्जमाणा माणुस्सएK जे यावि दिया। मोक्खाभिकंखी अभिजायसडा तायं उवागम्म इमं उदाहु॥६॥ असासयं दट्टु इमं विहारं बहुअन्तरायं न य वाहमाउं । तम्हा गिहंसि न रई लहामो आमन्तयामो चरिस्सामु मोणं ॥ ७ ॥ अह तायगो तत्थ मुणीण तेसिं तवस्स वाघायकरं वयासी। इमं वयं वेयविओ वयन्ति जहा न होई असुयाण लोगो॥८॥ अहिज्ज वेए परिविस्स विप्पे पुत्ते परिटुप्प गिहंसि जाया। भोच्चाण भोए सह इत्थियाहिं आरण्णगा होह मुणी पसत्था॥ ९॥ सोयरिंगणा आवगुणिन्धणेणं मोहाणिला पज्जलणाहिएणं । संतत्तभावं परित्तप्पमाणं लालप्पमाणं बहुहा बहुं च ॥१०॥ पुरोहियं तं कमसोऽणुणन्तं निमंतयन्तं च सुए धणेणं। जहकम कामगुणोहि चेव कुमारगा ते पसमिक्ख वकं ॥ ११ ॥ वेया अहीया न भवन्ति ताणं भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं । जाया य पुत्ता न हवन्ति ताणं को णाम ते अणुमन्नेज्ज एयं ॥१२॥ खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा। संसारमोक्खस्स विपक्खभूया खाणी अणत्थाण उ कामभोगा॥१३॥
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
उसुयारिज्जं
[ - १४.२८
परिव्वयन्ते अणियत्तकामे अहो य राओ परितप्यमाणे । अन्नप्पमन्ते धणमे समाणे पप्पांति मच्चुं पुरिसे जरं च ॥ १४ ॥ इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं । तं एवमेवं लालप्पमाणं हरा हरंति त्ति कहं पमाए ॥ १५ ॥ धणं पभूयं सह इत्थियाहिं सयणा तहा कामगुणा पगामा । तवं कए तप्प जस्त लोगो तं सव्व साहीणमिहेव तुभं ॥ १६ ॥ धणेण किं धम्मधुराहिगारे सयणेण वा कामगुणेहि चेव । समणा भविस्सामु गुणोहधारी वहिंविहारा अभिगम्म भिक्खं ॥ १७ ॥
३५
जहा य अग्गी अरणी असन्तो खीरे घयं तेल्लमहा तिलेसु । एमेव ताया सरीरंसि सत्ता संमुच्छई नासह नावचिट्ठे ॥ १८ ॥ नो इन्दियग्गेज्झ अमुत्तभावा अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो । अज्झत्थहेउं निययस्स बन्धो संसारहेउं च वयन्ति बन्धं ॥ १९ ॥ जहा वयं धम्ममजाणमाणा पावं पुरा कम्ममकासि मोहा ।. ओरुज्झमाणा परिरक्खियन्ता तं नेव भुज्जो वि समायरामो ॥ २० ॥ अमाहयंमि लोगंमि सव्वओ परिवारिए ।
के
अमोहाहिं पडन्तीहिं गिहंसि न रई लभे ॥ २१ ॥ अब्भाहओ लोगो केण वा परिवारिओ । का वा अमोहा वृत्ता जाया चिंतावरी हुमि ॥ २२ ॥ मखुणाऽब्भाहओ लोगो जराए परिवारिओ । अमोहा रयणी वृत्ता एवं ताय वियाणह ॥ २३ ॥ जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई । अहम्मं कुणमाणस्स अफला जन्ति राइओ ॥ २४ ॥ जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियन्तई । धम्मं च कुणमाणस्स सफला जन्ति राइओ ॥ २५ ॥ एगओ संवसित्ताणं दुहओ सम्मत्तसंजुया । पच्छा जाया गमिस्सामी भिक्खमाणा कुले कुले ॥ ३६ ॥ जस्सत्थि मच्चुणा सक्खं जस्स चऽत्थि पलायणं । जो जाणे न मरिस्सामि सो हु कखे सुए सिया ॥ २७ ॥ अज्जेव धम्मं पडिवज्जयामो जहिं पवना न पुणन्भवामो । अणायं नैव य अस्थि किंचि सद्वाखमं णे विणइत्तु रागं ॥ २८ ॥
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४.२९ -] उत्तराध्ययनसूत्रम् पहीणपुत्तस्स हु बस्थि वासो वासिटि भिक्खायरियाइ कालो। साहाहि रुक्खो लहए समाहि छिनाहि साहाहि तमेव खाणुं ॥२९॥ पंखाविहूणो व्व जहेव पक्खी भिच्चविहूणो देव रणे नरिन्दो। विवन्नसारो वणिओ व्व पोए पहीणपुत्तो मि तहा अहं पि॥३०॥ सुसंभिया कामगुणा इमे ते संपिण्डिया अग्गरसप्पभूया। भुंजामु ता कामगुणे पगामं पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ॥३१॥ भुत्ता रसा भोइ जहाहणे वओन जीवियट्रा पजहामि भोए। लाभं अलामं च सुहं च दुक्खं संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥३२॥ मा हू तुम सोयरियाण सम्भरे जुण्णो व हंसो पडिसोत्तगामी। भुंजाहि भोगाई मए समाणं दुक्खं खु भिक्खायरियाविहारो॥३३॥ जहा य भोई तणुयं भुयंगो निम्मोयणि हिच्च पलेइ मुत्तो। एमए जाया पयहन्ति भोए ते हं कहं नाणुगमिस्समेको ॥ ३४॥ छिन्दित्तु जालं अवलं व रोहिया मच्छा जहा कामगुणे पहाय। . धोरेयसीला तवसा उदारा धीरा हु भिक्खायरियं चरन्ति ॥३५॥ नहेव कुंचा समइक्कमन्ता तयाणि जालाणि दलित्त हंसा। फ्लेन्ति पुत्ता य पई य मज्झं ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्का ।। ३३ ।। पुरोहियं तं ससुयं सदारं सोचाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए। कुडुम्ब सारं विउलुत्तमं च रायं अभिक्खं समुवाय देवी ॥३७॥ वन्तासी पुरिसोरायं न सो होइ पसंसिओ। माहणेण परिच्चत्तं धणं आदाउमिच्छसि ॥ ३८॥ सव्वं जगं जइ तुहं सव्वं वावि धणं भवे । सव्वं पि ते अपज्जत्तं नेव ताणाय तं तव ॥ ३९॥ मरिहिसि रायं जया तया वा मणोरमे कामगुणे विहाय । एक्को हु धम्मो नरदेव ताणं न विज्जई अन्नमिहेह किंचि ॥४०॥ नाहं रमे पविखणि पंजरे वा संताणछिन्ना चरिस्सामि मोणं। अकिंचणा उज्जुकडा निरामिसा परिग्गहारग्भनियत्तदोसा ॥११॥ दवग्गिणा जहा रण्णे डज्झमाणेसु जन्तुसु। अन्ने सत्ता पमोयन्ति रागद्दोसवसं गया ॥४२॥ एवमेव वयं मूढा कामभोगेसु मुच्छिया। डज्झमाणं न बुज्झामो रागद्दोसग्गिणा जगं ॥४३॥
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
सभिवखू
[-१५.२ भोगे भोच्चा वमित्ता य लहुभूयविहारिणो। आमोयमाणा गच्छन्ति दिया कामकमा इव ॥४४॥ इमे य बद्धा फन्दन्ति मम हत्थऽजमागया। वयं च सत्ता कामेसु भविस्सामो जहा इमे ॥४५॥ सामिसं कुललं दिस्स बज्झमाणं निरामिसं। आमिसं सव्वमुज्झित्ता विहरिस्सामो निरामिसा ॥४६॥ गिद्धोवमा उ नचाणं कामे संसारवणे। उरगो सुवण्णपासे ब्व संकमाणो तणुं चरे ॥ ४७॥ नामो व्य बन्धणं छित्ता अप्पणो वसहिं वए। पयं पच्छं महारायं उसुयारि सि मे सुखं । ४८ चइता विउलं रज्जं काममोमे व दुरचए । निम्बिसया निरामिसा निन्नेहा निप्परिग्गहा ॥४९॥ सम्मं धम्मं वियाणित्ता चच्चा कामगुणे वरे। तवं पगिज्मऽहक्खायं घोरं घोरपरकम्मा ॥५०॥. एवं ते कमसो बुद्धा सव्वे धम्मपरायणा। जम्ममच्चुभउविंग्गा दुक्खस्सन्तगवेसिणो ॥५१॥ सासणे विगयमोहाणं पुवि भावणमाविया । अचिरेणेव कालेण दुक्खस्सन्तमुवागया । ५२॥ राया सह देवीप माहणो य पुरोहिओ। माहणी दारगा चेव सम्वे ते परिनिवुड ॥२३॥ तिमि ॥
॥ उसयारिज समत्तं ॥१४॥
॥ सभिक्खू पञ्चदशं अध्ययनम् ॥
मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्मं सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने । संथवं जहिज्ज अकामकामे अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू ॥१॥ राओवरयं चरेज्ज लाढे विरए वेयवियाऽऽयरखिए। पन्ने अमिभूय सव्वदंसी जे कम्हि चि न मुच्छिए स भिक्खू ॥२॥
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५.३ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
अक्कीसवहं विन्तु धीरे मुणी चरे लाढे निच्चमायगुत्ते । अव्वग्गमणे असंपहिले जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ३ ॥ पन्तं सयणासणं भत्ता सीउण्हं विविहं च दंसमसगं । अव्वग्गमणे असंपहिट्टे जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ४ ॥ नो सक्कमिच्छई न पूयं नो वि य वन्दणगं कुओ पसंतं । से संजय सुव्वए तवस्सी सहिए आयगवेसए स भिक्खू ॥ ५ ॥ जेण पुण जहाइ जीवियं मोहं बा कसिणं नियच्छई । नरनारिं पजहे सया तवस्सी न य कोऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥ ६ ॥ छिन्नं सरं भोमं अन्तलिक्खं सुमिणं लक्खणदण्डवत्थुविज्जं । अंगवियारं सरस्स विजयं जे विज्जाहिं न जीवइ स भिक्खू ॥ ७ ॥ मन्तं मूलं विविधं बेज्जचिन्तं वमणाविरेयणधूमणेत्तसिसाणं । आउरे सरणं तिगिच्छियं च तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू ॥ ८ ॥ खत्तियगण उग्गरायपुत्ता माहणभोइय विविहा य सिप्पिणो । नो तेसिं वयह सिलोगपूयं तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू ॥ ९ ॥ गिहिणी जे पव्वइएण दिट्ठा अप्पवइएण व संथुया हविज्जा ।
सिं इहलोइयफल। जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥ १० ॥ सयणासणपाणभोयणं विविहं खाइमसाइमं परेसिं । अदए पडिसेहिए नियण्ठे जे तत्थ न पउस्सई स भिक्खू ॥ ११ ॥ जं किं चि आहारपाणजायं विविहं खाइमसाइमं परेसिं लक्षं । जो तं तिविहेण नाणुकम्पे मणवय काय सुसंवुडे स भिक्खू ॥ १२ ॥ आयामगं चेव जवोदणं च सीयं सोवीरजवोदगं च ।
नो हीलए पिण्डं नीरसं तु पन्तकुलाई परिव्वए स भिक्खू ॥ १३ ॥
सदा विविहा भवन्ति लोए दिव्वा माणुस्सगा तिरिच्छा । भीमा भयभेरवा उराला जो सोच्चा न विहिज्जई स भिक्खू ॥ १४ ॥ वादं विविहं समिच्च लोए सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा | पन्ने अभिभूय सव्वसी उवसन्ते अविहेडए स भिक्खू ॥ १५ ॥ असिप्पजीवी आगेहे अमित्ते जिइन्दिर सव्वओ विप्पमुक्के । अणुक्क साई लहुअप्पमक्खी चेच्चा गिहं एगचरे स भिक्खु ॥ १६ ॥
न्ति बेमि
५ सभिक्खुयं नाम समत्तं ॥ १५ ॥
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
बम्भचेरसमाहिठाणा
[-१६.४ ॥ बम्भचेरसमाहिठाणा षोडशं अध्ययनम् ॥
सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं । इह खलु थेरेहिं भगवन्तहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पसत्ता जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्मयारी सया अप्पमत्ते विहरेजा। कयर खलु तेथेरोहिं भगवन्तहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा॥ इमे खलु ते थेरेहि भगवन्तहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ताजे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा। तं जहा। विवित्ता सयणासणाई सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे। नो इत्थीपसुपण्डमसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे। तं कहमिति चे । आयारियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्स बम्भयारिस्स बम्मचेरे संका वा कंखा वा विहगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा मेद वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ मंसेज्जा। तम्हा नो इत्थिपसुपण्डगसंसत्ताई.सयणासयाई सेविसा हवइ से निग्मन्ये॥१॥
नो इत्थीणं कहं कहित्ता हवा से निग्मन्थे। ते कहमिति चे। आयरियाह। निग्गन्थस्स खलु इत्थाणं कहं कहेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिज्जा भेदं वा लमज्जा उम्मायं वा पाउँणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवंज्जा केवलिपलत्ताओ धम्माओ मंसज्जा। तम्हा नो इत्थीणं कहं कहेज्जा ॥२॥ ____नो इत्थीणं सद्धिं समिसेज्जागए विहरित्ता हवह से निग्गन्थे ते कहमिति थे। आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं समिसेज्जागयस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपसत्ताओ धम्माओ भंसज्जा। तम्हा खल नो निग्गन्ये इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरेज्जा ॥३॥
नो इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई मणोरमाई आलोइत्ता निज्झाइत्ता हवद से निग्गन्थे। तं कहमिति चे आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं इन्दियाई मणोहराईमणोरमाई आलोएमाणस्स निज्झायमाणस्स
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६.४-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् बम्भयारिस्स बम्मचेरे संका वा कंखा वा विहगिच्छा वा समुप्पजिजा भेद वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दहिकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसज्जा। तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थणिं इन्दियाइं मणोहराई मणोरमाई आलोएज्जा निज्झाएज्जा॥४॥
नो इत्थीणं कुडन्तरांस वा दूसन्तरंसि वा भित्तन्तरंसि वा कूइयसई वा रुइयसई वा गीयसई वा हसियसदं वा थणियसई वा कन्दियसदं वा विलवियसई वा सुणेत्ता हवह से निग्गन्थे। तं कहमिति थे। आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कुडन्तरंसि वा दूसन्तरंसि वा भित्तन्तरंसि वा कूइयसई वा रुझ्यसई वा गीयसहं वा हसियसई वा थणियसई वा कन्दियसई वा विलवियसई वा सुणेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विहगिच्छा बा समुप्पजिज्जा मेदं वा लमज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा केवलिपनत्ताओ धम्माओ भंसज्जा। तम्हा खंलु नो निग्गन्थे इत्थीणं कुडन्तरांसि वा दूसन्तरासि वा भित्तन्तरंसि वा कूड्यसई वा रुझ्यसह वा मीयसई वा हसियसई वा थणियसई का कन्दियसई वा विलवियसई वा सुणेमाणे विहरेज्जा ॥५॥
नोनिग्गन्थे पुन्वरयं पुन्वकीलियं अणुसरित्ता हवा से निग्गन्थे। तं कहमिति चे। आयरियाह। निग्गन्थस्स खलु पुत्वरयं पुत्वकीलियं अणुसरमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपनत्ताओ धम्माओ मंसज्जा । तम्हा खल नो निग्गन्थे पुव्वरयं पुव्वकीलियं अणुसरेज्जा ॥६॥
नो पणीयं आहारं आहरित्ता हवह से निग्गन्थे। तं कहमिति चे। आयरियाह। निग्गन्थस्स खलु पणीयं आहारं आहारमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेदं वा लमज्जा उम्मायं वा पाउाणिज्जा। दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा केवलिपचत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गन्थे पणीयं आहारं आहारेज्जा ॥७॥
नो आइमायाए पाणमोयणं आहारेत्ता हवह से निग्गन्थे। तं कहमिति चे। आयरियाह । निग्गन्धस्स खलु अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा.भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपमत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गन्थे अइमायाए पाणभोयणं आहारंजा ॥८॥
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
बम्भचेरसमाहिठाणा
[-१६८ ___ नो विभूसाणुलाई हवा से निग्गन्थे। तं कहमिति चे। आयरियाह। विभूसावत्तिए विभूसियसरीरे इत्थिजणस्स अभिलसणिज्जे हवइ । तओ णं इत्थिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा वा विगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे विभूसाणुवाई हविज्जा ॥९॥
नो सहरूवरसगन्धफासाणुवाई हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु सद्दरूवरसगन्धफासाणुवाइयस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपनत्ताओ धम्माओ मंसज्जा। तम्हा खलु नो सदरूव. रसगन्धफासाणुवाई भवेज्जा से निग्गन्थे। इसमे बम्भचेरसमाहिठाणे हवह ॥ १०॥
॥ भवन्ति इत्य सिलोगा ॥ तं जहा ॥
जं विवित्तमणाहण्णं रहियं इत्थिजणेण य। बम्भचेरस्स रक्खट्टा आलयं तु निसेवएं ॥१॥ मणपल्हायजणणिं कामरागविवडणि । बम्भचेररओ भिक्खू थीकहं तु विवज्जए ॥२॥ समं च संथवं थीहिं संकहं च अभिक्खणं । बम्भचेररओ भिक्खू निच्चसो परिवज्जए ॥ ३ ॥ अंगपच्चंगसंठाणं चारुल्लवियपेहिवं । बम्मचेररओ थीणं चक्खुगिझं विवज्जए॥ ४ ॥ कूडचं रुइयं गीयं हसियं थणियकन्दियं । बम्भचेररओ थीणं सोयगेज्झं विवज्जए ॥५॥ हासं किडं ररं वप्पं सहसावित्तासियाणि य।। बम्भचेररओ थीणं नाणुचिन्ते कयाइ वि ॥६॥ पणीयं भत्तपाणं तु खिप्पं मयविवडणं । बम्भचेररओ भिक्खू निचसो परिवज्जए ॥ ७॥ धम्मलद्धं मियं काले जत्तत्थं पणिहाणवं। नाइम तु मुंजेज्जा बम्भुचेररओ सया ॥८॥
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६.९ -
उत्तराध्ययनसूत्रम् विभूसं परिवज्जेज्जा सरीरपरिमण्डणं । बम्भचेररओ भिक्खू सिंगारत्थं न धारए ॥ ९॥ सद्दे सवे य गन्धे य रसे फासे तहेव य। पंचविहे कामगुणे निच्चसो परिवज्जए ॥१०॥ आलओ थीजणाइण्णो थीकहा य मणोरमा। संथवो चेव नारीणं तासिं इन्दियदरिसणं ॥११॥ कूइयं रुइयं गीयं हासभुत्तासियाणि य। पणीयं भत्तपाणं च अइमायं पाणभोयणं ॥१२॥ गत्तभूसणमिटुं च कामभोगा य दुज्जया। नरस्सऽत्तगवसिस्स विसं ताल उहं जहा ॥१३॥ दुज्जए कामभोग य निच्चसो परिवज्जए। संकाठाणाणि सवाणि वज्जेज्जा पणिहाणवं ॥१४॥ धम्माराम चरे भिक्खू धिइमं धम्मसारही। धम्मारामरए दन्ते बम्मचेरसमाहिए ॥१५॥ देवदाणवगन्धवा जक्खरक्खसकिबरा। बम्भयारिं नमंसन्ति दुक्करं जे करन्ति तं ॥१६॥ एस धम्मे धुवे निच्चे सासए जिणदेसिए। सिद्धा सिज्झन्ति चाणेण सिज्झिसन्ति तहावरे । १७॥
त्ति बोमि। ॥ बम्भचेरसमाहिठाणा समत्ता॥१६॥
॥ पावसमणिज्ज सप्तदशं अध्ययनम् ॥ जे केइ उ पव्वइए नियण्ठे धम्म सुणित्ता विणओववने। सुदुल्लहं लाहिडं बोहिलाभ विहरेज्ज पच्छा य जहासुहं तु ॥१॥ सेज्जा वढा पाउरणं मि अत्थि उप्पज्जई भोत्तु तहेव पाउं। जाणामि जं वह आउसु त्ति किं नाम काहामि सुरण भन्ते ॥ २॥ . जे के पवईए निहासीले पगामसो भोच्चा।
पेच्चा सुहं सुवह पावसमणि त्ति वुच्चई ॥३॥
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
पावसमाणिज्ज
[-१७ आयरियउवज्झाएहिं सुयं विणयं च गाहिए। ते चेव खिसई बाले पावसमणि त्ति वुच्चई ॥४॥ आयरियउवज्झायाणं सम्मं नो पडितप्पह। अप्पडिपूयए थद्धे पावसमणि त्ति वुच्चई ॥५॥ सम्मघमाणो पाणाणि बीयाणि हरियाणि य। असंजए संजयमनमाणे पावसमाण त्ति वुच्चई ॥६॥ संथारं फलगं पीढं निसेज्जं पायकम्बलं । अप्पमज्जियमारुहइ पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ ७॥ दवदवस्स चरई पमत्ते य अभिक्खणं। उल्लंघणे य चण्डेय पावसमणि त्ति वुच्चई ॥८॥ पडिलेहेइ पमत्ते अवउज्झह पायकम्बलं। पडिलेहाअणाउत्ते पावसमाण त्ति वुच्चई ॥९॥ पडिलेहेइ पमत्ते से किंचि हु निसामिया । गुरुपारिभावए मिचं पावसमणि त्ति वुचई ॥१०॥ बहुमाई पमुहरी थद्धे लुद्धे आणिग्गहे। असंविभागी अचियत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई ॥११॥ विवादं च उदीरेइ अहम्मे अत्तपन्नहा। वुग्गहे कलहे रत्ते पावसमाण त्ति वुच्चाई। १२॥ अथिरासणे कुक्कुईए जत्थ तत्थ निसीयई । आसणम्मि अणाउत्ते पाबसमाण त्ति वुच्चाई ॥१३॥ ससरक्खपाए सुबई सेज्जं न पडिलेहह । संथारए अणाउत्ते पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १४ ॥ दुद्धदहीविगईओ आहारेह अभिक्खणं। अरए य तवोकम्मे पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१५॥ अत्यन्तम्मि य सूरम्मि आहारेइ अभिक्खणं । चोइओ पडिचोएइ पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १६ ॥ आयरियपरिचाई परपासण्डसेवए। गाणंगणिए दुन्भूए पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१७॥ सयं गेहं परिचज्ज परगेहसि वावडे। निमित्तेण य ववहरई पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१८॥
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७.१९-] उत्तराध्ययनसूत्रम् ..
४४ सन्नाइपिण्डं जेमेइ नेच्छई सामदाणियं। गिहिनिसेज्जं च वाहेइ पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १९ ॥ एयारिसे पंचकुसीलसंवुडे रूवंधरे मुणिपवराण हेछिमे। अयंसि लोए विसमेव गरहिए न से इहं नेव परत्थ लोए ॥ २०॥ जे वज्जए एए सया उदोसे से सुम्चए होड मुणीण मज्झे।। अयंसि लोए अमयं व पूइए आराहए लोगमिणं तहा परं ॥ २१॥
त्ति बमि॥ ॥ पावसमणिज्जं समत्तं ॥१७॥
॥ संजइज्जं अष्टादशं अध्ययनम् ॥ कम्पिल्ले नयरे राया उदिण्णबलवाहणे । नामेणं संजए नामं मिमव्वं उवणिग्गए ॥१॥ हयाणीए गयाणीए रहाणीए तहेव य। पायत्ताणीए महया सव्वओ परिवारिए ॥२॥ मिए छुहित्ता हयगओ कम्पिल्लज्जाणकेसरे। भीए सन्ते मिए तत्थ वहेह रसमुच्छिए ॥३॥ अह केसरम्मि उज्जाणे अणमारे तवोधणे। सज्झायज्झाणसंजुत्ते धम्मज्झाणं झियायई ॥४॥ अप्फोवमण्डवम्मि झायई खवियासवे। तस्सागप मिगे पासं वहेई से नराहिवे ॥५॥ अह आसगओ राया खिप्पमागम्म सो तहि । हए मिगे उ पासित्ती अणगारं तत्थ पासई ॥६॥ अह राया तत्थ संभन्तो अणगारो मणाऽऽहओ। मए उ मन्दपुण्णेणं रसगिद्वेण धत्तुणा ॥७॥ आसं विसज्जात्ताणं अणगारस्स सो नियो। विणएण वन्दए पाए भगवं एत्थ मे खमे ॥ ८॥ अह मोणेण सो भगवं अणगारे झाणमस्सिए। रायाणं न पडिमन्तेइ तओ राया भयद्दओ॥९॥
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
४५
संजइज्जं
संजओ अहमम्मीति भगवं वाहराहि मे । कुद्धे तेण अणगारे डहेज्ज नरकोडिओ ॥ १० ॥ अभयं पत्थिवा तुभं अभयदाया भवाहि य । अणिच्चे जीवलोगम्मि किं हिंसाए पसज्जसि ॥ ११ ॥ जया सव्वं परिञ्चज्ज गन्तव्वमवसस्स ते । अणिच्चे जीवलोगम्मि किं रज्जम्मि पसज्जासि ॥ १२ ॥ जीवियं चेव रूवं च विज्जुसंपायचंचलं । जत्थ तं मुज्झसी रायं पेच्चत्थं नावबुज्झसे ॥ १३ ॥ दाराणि य सुया चेव मित्ता य तह बन्धवा । जीवन्तमणुजीवन्ति मयं नाणुव्वयन्ति य ॥ १४ ॥ नीहरन्ति मयं पुत्ता पियरं परमदुक्खिया । पियरो वि तहा पुत्ते बन्धू रायं तवं चरे ॥ १५ ॥ तओ तेणऽज्जिए दव्वे दारे य परिरक्खिए । कीलन्तऽन्ने नरा रायं हटुतुमलंकिया ॥ १६ ॥ तेणावि जं कयं कम्मं सुहं वा जइ वा दुहं । कम्मुणा तेण संजुत्तो गच्छई उ परं भवं ॥ १७ ॥ सोऊण तस्स सो धम्मं अणगारस्स अन्तिए । महया संवेगनिव्वेगं समावन्नो नराहिवो ॥ १८ ॥ संजओ चइउं रज्जं निक्खन्तो जिणसासणे । गद्दभालिस्स भगवओ अणगारस्स अन्ति ॥ १९ ॥ चिच्चा र पत्वइए खत्तिए परिभासइ । जहा ते दी सई रूवं पसन्नं ते तहा मणो ॥ २० ॥ .. किंनामे किंगोत्ते कस्लट्ठाए व माहणे । कहं पडियरसी बुद्धे कहं विणीए त्ति वृच्चसि ॥ २१ ॥ संजओ नाम नामेणं तहा गोत्तेण गोयमे ।
भाली ममायरिया विज्जाचरणपारगा ॥ २२ ॥ किरिचं अकिरियं विणयं अन्नाणं च महामुणी ।. एहिं चउहि ठाणेहिं मेयन्ने किं पभासई ॥ २३ ॥ इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुडे । विज्ज्ञाचरणसंपन्ने सच्चे सच्चपरक्कमे ॥ २४ ॥
[ - १८.२४
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८.२५-- ]
उत्तराध्ययन सूत्रम्
पडन्ति नरए घोरे जे नरा पाक्कारिणो । दिव्वं च गईं गच्छन्ति चरित्ता धम्ममारियं ॥ २५ ॥
मायावइयमेयं तु मुसाभासा निरत्थिया । संजममाणो वि अहं वसामि इरियामि य ॥ २६ ॥ सव्वे ते विइया मज्झं मिच्छादिट्ठी अणारिया । विजमाणे परे लोए सम्मं जाणामि अप्पगं ॥ ६७ ॥
अहमासी महापाणे जुइमं वरिसस ओवमं । जा सा पाली महापाली दिव्वा वरिससओवमा ॥ २८ ॥
से चुए बम्भलोगाओ माणुसं भवमागए । अप्पणी य परेसिं च आउं जाणे जहा तहा ॥ १९ ॥
नाणारुई च छन्दं च परिवज्जेज्ज संजए । अट्ठा जे य सव्वत्था इइ विज्जामणुसंचरे ॥ ३० ॥ पडिक्कमामि परिणाणं परमन्तेहिं वा पुणो । अहो उट्ठिए अहोरायं इइ विज्जा तवं चरे ॥ ३१ जं च मे पुच्छसी काले सम्मं सुद्धेण चेयसा । ताई पाउकरे बुद्धे तं नाणं जिणसासणे ॥ ३२ ॥ किरियं च रोयए धीरे अकिरियं परिवज्जए । दिट्ठीए दिट्टिसंपन्ने धम्मं चर सुदुच्चरं ॥ ३३ ॥ एयं पुण्णपयं सोचा अत्थधम्मोवसोहियं । भरहो वि भारहं वासं चेच्चा कामाई पव्व ॥ ३४ ॥ सगरो व सागरन्तं भरहवासं नराहिवो । इस्सरियं केवलं हिच्चा दयाए परिनिवुडे ॥ ३५ ॥ चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिडिओ। पव्वज्जमब्भुवगओ मघवं नाम महाजसो ॥ ३६ ॥ सकुमारो मणुस्सिदो चक्कवट्टी महडिओ । पुत्तं रज्जं ठवेऊणं सो वि राया तवं चरे ॥ ३७ ॥ चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महडिओ । सन्ती सन्तिकरे लोए पत्ती गइमणुत्तरं ॥ ३८ ॥ इक्खागरायवसभो कुन्यू नाम नरीसरो । विक्खायकित्ती भगवं पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ३९ ॥
४६.
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
संजइज्जं
[-१८.५३ सागरन्तं चइत्ताणं भरहं नरवरीसरो। .. अरो य अरयं पत्तो पत्तो गइमणुत्तरं ॥४०॥ चइत्ता मारह वासं चहत्ता बलवाहणं । चइत्ता उत्तमे भोए महापउमे तवं चरे ॥४१॥ एगच्छत्तं पसाहित्ता महिं मानिसूरणो। हरिसेणो मणुस्सिन्दो पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४२ ॥ अनिओ रायसहस्सेहिं सुपरिच्चाई दमं चरे। जयनामो जिणक्खायं पत्तो गइमणुत्तरं ॥४३ ॥ दसण्णरज्जं मुइयं चइत्ताणं मुणी चरे । दसण्णभद्दो निक्खन्तो सक्खं सक्केण चोइ ओ ॥४४॥ नमी नमेइ अप्पाणं सकवं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही सामण्णे पज्जुवटिओ॥ ४५ ॥ करकण्डू कलिंगेसु पंचालेसु य दुम्मुहो । नमी राया विदेहेसु गन्धारेसु य नग्गई ॥ ४६॥ एए नरिन्दवसभा निक्खन्ता जिणसासणे । पुत्ते रज्जे ठवेऊणं सामण्णे पज्जुवट्टिया ॥४७॥ सोवीररायवसभो चइत्ताण मुणी चरे। उदायणो पवइओ पत्तो गहमणुत्तरं ॥४८॥ तहेव कासीराया सेओसच्चपरक्कमे । कामभोगे परिच्चज्ज पहणे कम्ममहावणं ॥४९॥ तहेव विजओ राया अणटाकित्ति पव्वए। रज्जं तु गुणसमिद्धं पयहित्तु महाजसो ॥५०॥ तहेवुग्गं तवं किच्चा अवाक्खित्तेण चेयसा। महाबलो रायरिसी आदाय सिरसा सिरिं ॥५१॥ कहं धीरो अहेऊहिं उम्मत्तो व माहिं चरे। एए विसेसमादाय सूरा दढपरक्कमा ॥५२॥ अच्चन्तनियाणखमा सच्चा मे भासिया वई। अतरिंसु तरन्तेगे तरिस्सन्ति अणागया ॥५३॥
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८.५४-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् कहं धीरे अहेऊहिं अत्ताणं परियावसे । सम्वसंगविनिम्मुक्के सिद्ध हवह नीरए ॥५४॥त्ति बेमि ॥
॥संजइज्जं समत्तं ॥१८॥
॥ मियापुत्तीयं एकोनविंशतितमं अध्ययनम् ॥
सग्गीवे नयरे रम्मे काणणुज्जाणसोहिए। राया बलभद्दा त्ति मिया तस्सग्गमाहिसी॥१॥ तेसिं पुत्ते बलसिरी मियापुर्त त्ति विस्सुए। अम्मापिऊण दइए जुवराया दमीसरे ॥२॥ नन्दणे सो उ पासाए कीलए सह इथिहिं। देवे दोगुन्दगे चेव निच्चं मुइयमाणसो ॥३॥ मणिरयणकोट्टिमतले पासायालोयणटिओ। आलोएड नगरस्स चउक्वतियचञ्चरे ॥४॥ अह तत्थ अइच्छन्तं पासई समणसंजयं। तवनियमसंजमधरं सीलड्डूं गुणआगरं ॥५॥ तं देहई मियापुत्ते दिट्टीए अणिमिसाए उ । कहिं मन्नेरिसं एवं दिट्टपुत्वं मए पुरा ॥६॥ साहुस्स दरिसणे तस्स अज्झवसाणाम्मि सोहणे । मोहंगयस्स सन्तस्स जाईसरणं समुप्पन्नं ॥७॥ जाईसरणे समुप्पन्ने मियापुत्ते महिड्डिए । सरई पोराणियं जाइं सामण्णं च पुरा कयं ॥८॥ विसपहि अरज्जन्तो रज्जन्तो संजमम्मि य।
अम्मापियरं उवागम्म इमं वयणमबी ॥९॥ सुयाणि मे पंच महन्वयाणि नरएसु दुक्खं च तिरिकव जोणिसु । निविणकामो मि महण्णवाओ अणुजाणह पन्वइस्सामि अम्मो ॥१०॥
अम्मताय मए भोगा भुत्ता विसफलोरमा । पच्छा कडुयविवागा अणुबन्धदुहावहा ॥११॥
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
‘मियापुत्तीय इमं सरीरं अणिञ्चं असुई असुइसमवं । असासयावासमिणं दुक्खकेसाण मायणं ॥१२॥ असासए सरीरम्म रई नोवलभामहं । पच्छा पुरा व चइयत्वे फेणबुब्बुयसचिमे ॥१३॥ माणुसत्ते असारम्मि वाहीरोगाण आलए। जरामरणपत्थम्मि खणं पि न रमामऽहं ॥१४॥ जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं रोगाणि मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो जत्थ कीसन्ति जन्तवो ॥१५॥ खेत्तं वत्थु हिरण्णं च पुत्तदारं च बन्धवा। ८ चहत्ताणं इमं देहं गन्तवमवसस्स मे॥१६॥ जहा किम्पागफलाणं परिणामो न सुन्दरो। एवं भुत्ताण भोगाणं परिणामो न सुन्दरो ॥१७॥ अद्धाणं जो महन्तं तु अपाहेओ पवज्जई। गच्छन्ते से ही होइ छुहातण्हाए पीडिए ॥१८॥ एवं धम्म अकाऊणं जो मच्छह परं भवं । गच्छन्तो सो दुही होइ बाहीरोगेहिं पीडिओ ॥१९॥ अद्धाणं जो महन्तं तु सपाहेओ पवजई। गच्छन्तो सो सुही होइ छुहातण्हाविवजिओ ॥ २०॥ एवं धम्म पि काऊणं जो गच्छह परं भवं। गच्छन्तो सो सुही होह अप्पकम्मे अवेयणे ॥२१॥ जहा गेहे पलित्तम्मि तस्स मेहस्स जो पहू। सारभण्डाणि नीणेइ असारं अवउज्झइ ॥२२॥ एवं लोए पलित्तम्मि जराए मरणेणय। अप्पाणं तारइस्सामि तुन्भेहिं अणुमनिओ ॥२३॥ तं बिन्ति अम्मापियरो सामण्णं पुत्त दुञ्चरं। गुणाणं तु सहस्साई धारेयव्वाइं भिक्खुणा ॥२४॥ समया सव्वभूएसु सत्तुमित्तेसु वा जगे। पाणाइवायविरई जावज्जीवाए दुकरं ॥ २५॥ निच्चकालऽप्पमत्तेणं मुसावायविवजणं।
भासियव्वं हियं सच्चं निञ्चाउत्तेण दुक्करं ॥ २६. [[UTS-II. L. 4]
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९.२७-]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
दन्तसोहणमाइस्स अदत्तस्स विवजणं । अणवज्जेसणिज्जस्स गेण्हणा अवि दुक्करं ॥२७॥ विरई अबम्भचेरस्स कामभोगरसन्नुणा। उग्गं महत्वयं बम्भ धारयव्वं सुदुक्करं ॥ २८॥ धणधनपेसवग्गेसु परिग्गहविवज्जणं । सव्वारम्मपरिच्चाओ निम्ममत्तं सुदुक्करं ॥ २९॥ चउन्विहे वि आहारे राईभोयणवज्जणा। सबिहीसंचओ चेव वजेयत्वो सुदुक्करं ॥ ३०॥ छुहा तण्हा य सीउण्हं दसमसगवेयणा। अक्कोसा दुक्खसेज्जा य तणफासा जल्लमेव य ॥ ३१ ॥ तालणा तज्जणा चेव वहबन्धपरीसहा। दुक्खं भिक्खायरिया जायणा य अलाभया ॥३२॥ कावोया जा इमा वित्ती केसलोओ य दारुणो। दुक्खं बम्भवयं घोरं धारेउ य महप्पणो ॥ ३३ ॥ सुहोइओ तुमं पुत्ता सुकुमालो सुमन्जिओ। न हु सी पभू तुम पुत्ता सामण्णमणुपालिया ॥ ३४॥ जावज्जीवमविस्सामो गुणाणं तु महत्मरो। गुरू उ लोहमारो व्व जो पुत्ता होइ दुव्यहो ॥ ३५ ॥ आगासे गंगसोओ व्व पडिसोओं व्व दुत्तरो। बाहार्हि सागरो चेव तरियन्वो गुणोयही ॥३६॥ वालुयाकवलो चेव निरस्साए उ संजमे। असिधारागमणं चेव दुक्करं चरिउं तवो ॥ ३७॥ अहीवेगन्तदिट्टीए चरित्ते पुत्त दुच्चरे। जवा लोहमया चेव चावेयत्वा सुदुक्करं ॥ ३८॥ जहा अग्गिसिहा दित्ता पाउं होइ सुदुक्करा। तहा दुक्करं करेउं जे तारुण्णे समणत्तणं ।। ६९॥ जहा दुक्खं भरेउं जे होइ वायस्स कोत्थलो। तहा दुक्खं करउंजे कीवेणं समणत्तणं ॥४॥ जहा तुलाए तोलेउं दुक्करो मन्दरो गिरी। तहा निहुय नीसंकं दुक्करं समणत्तणं ॥४१॥
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
કર
मियापुत्तीयं
जहा भुयाहिं तरिउं दुक्करं रयणागरो । तहा अणुवसन्तेणं दुत्तरं दमसागरो ॥ ४२ ॥ भुंज माणुस्सए भोगे पंचलक्खणए तुमं । भुक्तभोगी तओ जाया पच्छा धम्मं चरिस्ससि ॥ ४३॥
[ - १९.५६
सो बेइ अम्मापियरी एवमेयं जहा फुडं । इह लोए निप्पिवासस्स नत्थि किंचि विदुक्करं ॥ ६४ ॥ सारीर माणसा चेव वेयणाओ अणन्तसो । भए सोढाओ भीमाओ असई दुक्खभयाणि य ॥ ४५ ॥ जरामरणकन्तारे चाउरन्ते भयागरे ।
मए सोढाणि भीमाणि जम्माणि मरणाणि य ॥ ४६ ॥ जहा इहं अगणी उण्हो एत्तोऽणन्तगुणे तर्हि । नरपसु वेयणा उण्हा अस्साया वेड्या मए ॥ ४७ ॥ जहा इमं इहं सीयं एत्तोऽणन्तगुणं तहिं । नरएस वेयणा सीया अस्साया वेइया मए ॥ ४८ ॥ कन्दन्तो कंदुकुम्भीसु उड़पाओ अहोसिरो । हुयासणे जलन्तम्मि पक्कपुव्वो अणन्तसो ॥ ४९ ॥ महादवग्गिसंकासे मरुम्मि वइरवालुए। कलम्बवालुयाए य दडपुव्वो अणन्तसो ॥ ५० ॥ रसन्तो कन्दुकुम्भीसु उडूं बद्धो अबन्धवो । करवत्तकरकयाईहिं छिन्नपुव्वो अणन्तसो ॥ ५१ ॥ अइतिक्खकण्टगाइण्णे तुंगे सिम्बलिपायवे । खेवियं पासबद्धेणं कड्डोकडाहिं दुक्करं ॥ ५२ ॥ महाजन्तेसु उच्छू वा आरसन्तो सुभेरवं । पीलिओ मि सम्मेहिं पावकम्मो अणन्तसो ॥ ५३ ॥ कूवन्तो कोलसुणएहिं सामेहिं सबलेहि य । पालिओ फालिओ छिन्नो विष्फुरन्तो अणेगसो ॥ ५४ ॥ असीहि अयसिवण्णाहिं भल्लीहिं पट्टिसेहि य । छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य ओइण्णो पावकम्मुणा ॥ ५५ ॥ अवसो लोहर हे जुत्तो जलन्ते समिलाजुए । चीइओ तोत्तजुत्तहिं रोज्झो वा जह पाडिओ ॥ ५६ ॥
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९.५७ -] उत्तराध्ययनसूत्रम्
हुयासणे जलन्तम्मि चियासु महिसो विव । बड्डो पक्को य अवसो पावकम्मेहि पाविओ ॥ ५७ ॥ बला संडासतुण्डहिं लोहतुण्डेहि पक्खिहिं। विलुत्तो विलवन्तो हैं ढंकगिद्धेहिंऽणन्तसो ॥ ५८॥ तण्हाकिलन्तो धावन्तो पत्तो वेयरणिं नदि। जलं पाहिति चिन्तन्तो खुरधाराहिं विवाइओ ॥५९॥ उण्हाभितसो संपचो असिपत्तं महावणं। असिपत्तेहिं पडन्तेहिं छिन्नपुत्वो अणेगसो ॥६॥ मुग्गरेहिं मुसंढीहिं सूलेहिं मुसलहि य। गयासं भग्गगत्तेहिं पत्तं दुक्खं अणन्तसो ॥६१॥ खुरोहिं तिक्खधारेहिं छुरियाहिं कप्पणीहि य । कप्पिओ फालिओ छिन्नो उक्लित्तो य अणेगसो ॥६॥ पासेहिं कूडजालेहिं मिओ वा अवसो अहं । वाहिओ बद्धरुद्धो वा बहू चेव विवाइओ॥६३ ॥ गलहिं मगरजालेहिं मच्छो वा अवसो अहं । उल्लिओ फालिओ गहिओ मारिओ य अणन्तसो ॥६४॥ वीदेसपहि जालेहिं लेप्पाहि सउणो विव। गहिओ लग्गो बद्धो य मारिओ य अणन्तसो ॥६५ ।। कुहाडफरसुमाईहिं वहईहिं दुमो विव। कुट्टिओ फालिओ छिन्नो तच्छिओ य अणन्तसो॥६६॥ चवडमुट्टिमाईहिं कुमारेहिं अयं पिव । ताडिओ कुट्टिओ मिन्नो चुण्णिओ य अणन्तसो ॥६७॥ तत्ताइं तम्बलोहाइं तउयाई सीसयाणि य। पाइओ कलकलन्ताई आरसन्तो सुमेरवं ॥ ६८॥ तुहं पियाई मंसाई खण्डाई सोल्लगाणि य. खाविओ मि समसाई अग्गिवण्णाई गसो ॥६९॥ तुहं पिया सुरा सीहू मेरओ य महणिय। पाइओ मि जलन्तीओ वसाओ रुहिराणि य ॥७॥ निच्चं भीएण तत्थेण दुहिएण वहिएण य। परमा दुहसंबद्धा वेयणा वेड्या मए । ७१॥
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
मियापुत्तीयं
[-१९८६ तिव्वचण्डप्पगाढाओ घोराओ अइदुस्सहा। महन्भयाओ भीमाओ नरपस वेइया मए ॥७९॥ जारिसा माणुसे लोए ताया दीसन्ति वेयणा। एत्तो अणन्तगुणिया नरपलं दुक्खवेयणा ॥७३॥ सव्वमवेस अस्साया वेयणा वेड्या मए । निमेसन्तरमित्तं पिजं साया नत्थि वेयणा ॥७४॥ तं बिन्तऽम्मापियरो छन्देणं पुत्त पव्वया । नवरं पुण सामण्णे दुक्खं निप्पडिकम्मया ॥७॥ सो बेह अम्मापियरो एवमेयं जहाफुडं। पडिकम्म को कुणई अरण्णे मियपक्खिणं ।। ७६॥ एगभूए अरण्णे व जहा उ चरई मिगे। एवं धम्म चरिस्सामि संजमेण तवेण य ॥ ७७॥ जया मिगस्स आर्यको महारण्णमि जायई। अञ्चन्तं रुक्खमूलम्मि को 5 ताहे तिगिच्छई ॥ ७८॥ को वा से ओसहं वेई को वा से पुच्छई सुहं । को ले भत्तं व पाणं वा आहरितु पणामए ॥७९॥ जया य से सही होइ तया.मच्छड गोयरं। : मत्तपाणस्स अट्ठाए वल्लराणि सराणि य ॥ ८०॥ खाइत्ता पाणियं पाउं वल्लरेहिं सरोहिय। मिगचारियं चरित्ताणं गच्छई मिगचारियं ॥८१॥ एवं समुटिओ मिक्खू एवमेव अणेगए ।
मिगचारियं चरित्ताणं उई पक्कमई दिसं॥८२॥ जहा मिगे एग अणेगचारी अणेगवासे धुवगोयरे य। एवं मुणी गोयरियं पविढे नो हीलए नो वि य खिसएज्जा ॥८३॥
मिगचारियं चरिस्सामि एवं पुत्ता जहासुहं । अम्मापिईहिऽणुनाओ जहाह उवहिं तओ॥८४॥ मियचारियं चरिस्सामि सम्वदुक्खविमोक्खणि। तुम्भेहिं अम्बऽणुनाओ गच्छ पुत्त जहासुहं ॥८५॥ एवं सो अम्मापियरो अणुमाणित्ताण बहुविहं । ममत्तं छिन्दई ताहे महानागो व्व कंचुयं ॥८६॥
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९.८७ -] उत्तराध्ययनसूत्रम्
इड्डी वित्तं च मित्ते य पुत्तारंच नायओ। रेणुयं व पडे लग्गं निद्धणित्ताण निग्गओ ॥ ८७॥ पंचमहत्वयजुत्तो पंचहिं समिओ तिगुत्तिगुत्तो य। सन्भिन्तरबाहिरओ तवोकम्मंसि उज्जुत्तो ॥८८॥ निम्ममो निरहंकारो निस्संगो चत्तगारवो। समो य सव्वभूएसु तसेसु थावरेसु य ॥८९॥ लाभालाभे सुहे दुक्खे जीविए मरणे तहा। समो निन्दापसंसासु तहा माणावमाणओ ॥९॥ गारवेसुं कसाएसुं दण्डसल्लभएसु य। नियत्तो हाससोगाओ अनियाणो अबन्धणो ॥९१ ॥ अणिस्सिओ इहं लोए परलोए अणिस्सिओ। वासीचन्दणकप्पो य असणे अणसणे तहा ॥ ९ ॥ अप्पसत्थेहि दारेहिं सव्वओ पिहियासवे । अज्झप्पज्झाणजोगेहिं पसत्थदमसासणे ॥१३॥ एवं नाणेण चरणेण दंसणेण तवेण य। भावणाहि य सुद्धाहिं सम्मं भावेत्तु अप्पयं ॥९॥ बहुयाणि उ वासाणि सामण्णमणुपालिया। मासिएण उ भत्तेण सिद्धि पत्तो अणुत्तरं ॥९५॥ एवं करन्ति संबुद्धा पण्डिया पवियखणा। • विणियट्टन्ति भोगेसु मियापुत्ते जहामिसी ॥ ९६॥ महापभावस्स महाजसस्स मियाइ पुत्तस्स निसम्म भासियं । तवप्पहाणं चरियं च उत्तमं गइप्पहाणं च तिलोगविस्सुयं ॥९७॥ वियाणिया दुक्खविवद्धणं धणं ममत्तबधं च महाभयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं धारेज निव्वाणगुणावहं महं ॥९८॥ त्ति बेमि॥
॥ मियापुत्तीयं समत्तं ॥१९॥
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
०.१४
महानियण्ठिजं
[- ॥ महानियण्ठिज्जं विंशतितमं अध्ययनम् ॥ सिद्धाण नमो किच्चा संजयाणं च भावओ। अत्थधम्मगई तच्च अणुसर्टि सुणेह मे ॥१॥ पभूयरयणो राया सेणि मगहाहियो। विहारजतं निज्जाओ माण्डिकुञ्छिसि चेइए ॥२॥ नाणादुमलयाइण्णं नाणापक्खिनिसेवियं। नाणाकुसुमसंछनं उज्जाणं नन्दणोवमं ॥३॥ तत्थ सो पासई साहं संजयं सुसमाहियं। निसण्णं रुक्खमूलम्मि सुकुमालं सुहोइयं ॥४॥ तस्स रुवं तु पासित्ता राहणो तम्मि संजए। अञ्चन्तपरमो आसी अउलो रूवविम्हओ ॥५॥ अहो वण्णो अहो एवं अहो अज्जस्य सोमया। अहो खन्ती अहो मुत्ती अहो भोगे असंगया ॥६॥ तस्स पाए उ वन्दित्ता काऊण य पयाहिणं । नाइदरमणासने पंजली पडिपुच्छई॥७॥ तरुणो सि अज्जो पब्वइओ भोगकालम्मि संजया। उपट्टिओ सि सामण्णे एयमटुं सुणेमि ता ॥८॥ अणाहो मि महाराय नाहो मज्झ न विज्जई। अणुकम्पगं सुहि वावि कचि नाभिसमेमऽहं ॥९॥ तओ सो पहसिओ राया सेणिओ मगहाहिवो। एवं ते इडिमन्तस्स कहं नाहो न विज्जई ॥१०॥ होम नाहो भयन्ताणं भोगे भुंजाहि संजया। मित्तनाईपरिवुडो माणुस्सं खु सदुल्लहं॥ ११ ॥ अप्पणा वि अणाहो सि सेणिया मगहाहिवा। अप्पणा अणाहो सन्तो कस्स नाहो भविस्ससि ॥ १२ ॥ एवं वृत्तो नरिन्दो सो सुसंभन्तो सुविम्हिओ। वयणं अस्सुयपु साहुणा विम्हयानिओ ॥१३॥ अस्सा हत्थी मणुस्सा मे पुरं अन्तेउरं च मे। भुंजामि माणुसे भोगे आणाइस्सरियं च मे ॥१४॥
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०.१५ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
एरिसे सम्पयग्गम्मि सव्वकामसमप्पिए । कहं अणाहो भवइ मा हु भन्ते मुलं वए ॥ १५ ॥
न तुमं जाणे अणाहस्स अत्थं पोत्थं च पत्थिवा । जहा अणाहो भवई सणाहो वा नराहिवा ॥ १६॥
सुणेह मे महाराय अव्वक्तितेण घेयसा । जहा अणाहो भवई जहा मे य पवत्तियं ॥ १७ ॥ कोसम्बी नाम नयरी पुराणपुरभेयणी । तत्थ आसी पिया मज्झ पभूयधणमंचओ ॥ १८ ॥ पढमे वर्ष महाराय अउला मे अच्छिवेयणा । अहोत्या विउलो डाहो सव्वंगेतु य पत्थिवा ॥ १९
सत्थं जहा परमतिक्खं सरीरविवरन्तरे । आवीलिज्ज अरी कुद्धो एवं मे अच्छिवेयणा ॥ २० ॥६ तियं मे अन्तरिच्छं च उत्तमंगं च पीडई । इन्दासाणीसमा घोरा वेयणा परमदारुणा ॥ २१ ॥ उवट्टिया मे आयरिया विज्जामन्ततिमिच्छया । अधयां सत्यकुसला मन्तमूलविसारया ॥ २२ ॥ ते मे तिमिच्छं कुव्वन्ति चाउप्पायं जहाहियं । न य दुकखा विमोयन्ति एसा मज्झ अणाया ॥ २३ ॥
पिया मे सव्वसारं पि दिज्जा हि मम कारणा । न य दुक्खा विमोएड एसा मज्झ अणाया ॥ २४ ॥
माया य मे महाराय पुत्त सोग दुहट्टिया । न य दुक्खा विमोएड एसा मज्झ अणाहया ॥ २५ ॥
भायरो मे महाराय सगा जेटुकणिट्ठगा ।
न य दुक्खा विमीयन्ति एसा मज्झ अणाहया ॥ २३ ॥ मणीओ मे महाराय सगा जेटुकणिट्ठगा । न य दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्झ अणाया ॥ २७ भारिया मे महाराय अणुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुण्णेहिं नयणेहिं उरं मे परिसिंचाई ॥ २८ ॥ अन्नं पाणं च पहाणं च गन्धमल्लविलेवणं । म नायमणायं वा सा बाला नेव भुंजई ॥ २९ ॥
५६.
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
महानियण्ठिज्जं
[-२०.४४ खणं पि मे महाराय पासाओ वि न फिट्टई। न य दुक्खा विमोएड एसा मज्झ अणाहया ॥३०॥ तओ हं एवमासु दुक्खमा हु पुणो पुणो। वेयणा अणुभविउं जे संसारम्मि अणन्तए ॥ ३१॥ सई च जर मुच्चेज्जा वेयणा विउला इओ। . खन्तो दन्तो निरारम्मो पव्वए अणगारियं ॥ ३२॥ एवं च चिन्तहत्ताणं पसुत्तो मि नराहिवा। परियत्तन्तीए राईए वेयणा मे खयं गया ॥ ३३॥ तओ कल्ले पभायम्मि आपुच्छित्ताण बन्धवे। रखन्तो दन्तो निरारम्भो पव्वहओऽणगारियं ॥ ३४॥ तो हं नाहो जाओ अप्पणो य परस्सय। सव्वेसिं चेव भूयाणं तसाण थावराण य ॥ ३५॥ अप्पा नई वेयरणी अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा धेणू अप्पा मे नन्दणं वणं ॥३६॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य दुक्खाण य सहाण य ।
अग्पा मित्तममित्तं च दुप्पष्ट्रियसुपष्टिओ ॥ ३७॥ इमा हु अन्ना वि अणाहया निवा तमेगचित्तो निहुओ सुणहि। नियण्ठधम्म लहियाण वीजहा सीयन्ति प्गे बहुकायरा नरा ॥ ३८।। जो पवइत्ताण महत्वयाई सम्मं च नो फासयई पमाया। अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे न मूलओ छिन्दइ बन्धणं से ॥ ३९ ॥ आउत्तया जस्स न अस्थि काइ इरियाए भासाए तहेसणाए। आयाणनिक्खवदुगुंछणाए न धीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥४०॥ चिरं पि से मुण्डरुई भवित्ता अथिरन्वए तवनियमहि भट्रे। चिरं पि अप्पाण किलेसइत्ता न पारए होइ हु संपराए ॥४१॥ पोल्ले व मुद्री जह से असारे अयन्तिए कूडकहावणे वा। राढामणी वेरुलियप्पगासे अमहग्धए होइ य जाणएसु॥४२॥ कुसीललिंगं इह धारइत्ता इसिज्झयं जीविय वूहइत्ता। असंजए संजयलप्पमाणे विणिग्यायमागच्छद से चिरं पि ॥ ४३ ॥ विसं तु पीयं जह कालकूट हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं । एसो विधम्मो विसओववन्नो हणाइ वेयाल इवाविवन्नो॥४४॥
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०.४५-] उच्चराध्ययनसूत्रम्
जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे निमित्तकोऊहलसंपगाढे । कुहेडविज्जासवदारजीवी न गच्छई सरणं तम्मि काले ॥ ४५ ॥ तमंतमेणेव उ से असीले सया दुही विप्परियासुवेइ । संधावई नरगतिरिक्खजोणि मोणं विराहेत्तु असाहुरूवे ॥४६॥ उद्देसियं कीयगडं नियागं न मुंबई किंचि अणेसणिज्जं । अग्गी विवा सम्बमक्खी भवित्ता इत्तोचुए गच्छइ कट्टपावं ॥ १७ ॥ न तं अरी कण्टछेत्ता करेइ जं से करे अप्पणिया दुरप्पया। से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते पच्छाणुतावेण दयाविहूणो ॥ ४८ ॥ निरष्टिया नग्गरुई उ तस्स जे उत्तिम विवज्जासमेई । इमे वि से नत्थि परेविलाए दुहओ वि से झिज्जइ तत्थ लोए ॥ १९॥ एमेवऽहाछन्दकुसीलरूवे मग्गं विराहेनु जिणुत्तमाणं। कुररी विवा भोगरमाणुगिद्धा निरसोया परियावमेइ ॥ ५० ॥ सोचाण मेहावि सुमासियं इमं अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मगं कुसीलाण जहाय सत्वं महानियण्ठाण वए पहेणं ॥५१॥ चरित्तमायारगुणन्निए तओ अणुत्तरं संजम पांलियाणं। निरासवे संखवियाण कम्म उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ।। ५२॥ एवुग्गदन्ते वि महातवोधणे महामुणी महापइन्ने महायसे। महानियण्ठिज्जामिणं महासुयं से काहई महया वित्थरेणं ॥ ५३॥ तुट्रो य सेणिओ राया इणमुदाहु कयंजली।
अणाहत्तं जहाभूयं सुर मे उवदसियं ॥५४॥ तुझं सुलद्धं खु मणुस्सजम्मं लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी। तुम्भे सणाम य सबन्धवा य,जंभे ठिया मग्गे जिणुत्तमाण ॥५५ ।।
तं सि नाहो अणाहाणं सव्वभूयाण संजया। खामेमि ते महाभाग इच्छामि अणुसासिउं॥५६॥ पुच्छिऊण मप तुम्भं झाणविग्यो उ जो कओ।
निमन्तिया य भोगेहिं तं सव्वं मरिसेहि मे ॥ ५७॥ एवं थुणित्ताण स रायसीहो अणगारसीहं परमाइ भत्तिए । सोरोहो सपरियणो सबन्धवो धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा ॥५८॥
ऊससियरोमकूवो काऊण य पयाहिणं । अभिवन्दिऊण सिरसा अइयाओ नराहिवो ॥५९॥
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
'५९
समुद्दपालीयं
[-२१.११ इयरो वि गुणसमिद्धो तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य । विहग इव विप्पमुक्को विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥६०॥
॥त्ति बमि ॥ महानियण्ठिज्जं समत्तं ॥२०॥
-
॥ समुद्दपालीय एकविंशं अध्ययनम् ।। चम्पाए पालिए नाम सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवओ सीसे सो उ महप्पणो ॥१॥ निग्गन्थे पावयणे सावए से वि कोविए। . पोएण ववहरन्ते पिहुण्डं नगरमागए ॥२॥ पिहुण्डे ववहरन्तस्स वाणिओ देह धूयरं। तं ससत्तं पइगिज्झ सदेसमह पत्थिओ ॥३॥ अह पालियस्त थरणी समुइंमि पसई । अह बालए तहिं जाए समुद्दपालि त्ति नामए ॥४ खेमेण आगए चम्पं सावए वाणिए घरं। संवड़ई घरे तस्स दारए से सुहोइए ॥५॥ बावत्तरि कलाओ य सिक्खई नीइकोविए। जोवणेण य संपन्ने सुरूवे पियदसणे ॥६॥ तस्स रूवव भज्जं पिया आणेह रूविर्णि। पासाए कीलए रम्मे देवो दोगुन्दओ जहा ॥७॥ अह अन्नया कयाई पासायालोयणे ठिओ।। वज्झमण्डणसोभागं वज्झं पासह वज्झगं ॥८॥ तं पासिऊण संविग्गो समुद्दपालो इणमब्बवी। अहोऽसुभाण कम्माणं निजाणं पावगं इमं ॥९॥ संबुद्धो सो तहिं भगवं परमसंवेगमागओ। .
आपुच्छऽम्मापियरो पव्वए अणगारियं ॥१०॥ जाहेत्तुऽसग्गन्थमहाकिलेसं महन्तमहिं कसिणं भयावहं । परियायधम्म चऽभिरोयएज्जा वयाणि सीलाणि परीसहे य॥ ११ ॥
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
२१.१२–]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
अहिंस सच्चं च अतेणगं च तत्तो य वम् अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंच महत्वयाणि चरिज्ज धम्मं जिणदेसियं विदू ॥ १२ ॥ सवेहिं भूपहिं दयाणुकम्पी खन्तिक्खमे संजयबम्भयारी । सावज्जजोगं परिवज्जयन्तो चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए ॥ १३७ काले कालं विहरेज्ज रहे बलाबलं जाणिय अप्पणो य । सीहो व सद्देण न संतसेज्जा वयजोग सुच्चा न असम्ममाहु ॥ १४ ॥ उdeमाणो उ परिव्वज्जा पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा । न सव्व सव्वत्थऽभिरोयएज्जा न यावि पूयं गरहं च संजय ॥ १५ ॥ अगछन्दामिह माणवेहिं जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइन्ति भीमा दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥ १६ ॥
परी सहा दुव्विसहा अणेगे सीयन्ति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्खू संगामसीसे इव नागराया ॥ १७ ॥ सीओसिणा दंसमसा य फासा आयंका विविहा फुसन्ति देहं । अकुक्रुओ तत्थऽहियासपज्जा रयाइं खेवेज्ज पुरेकडाई ॥ १८ ॥ पहाय रागं च तहेव दोसं मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणो । मेरु व्व वापण अकम्पमाणो परीसहे आयगुत्ते सहेज्जा ॥ १९ ॥ अणुन नावणए महेसी न यावि पूयं गरहं च संजए । .स उज्जुभावं पडिवंज्ज संजय निव्वाणमगं विरए उवेइ ॥ २० ॥ अरइरइसहे पहीणसंभवे विरए आयहिए पहाणवं । परमट्टपपार्ह चिट्टई छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥ २१ ॥ विवित्तलयणाई भएज्ज ताई निरोवलेवाई असंथडाई । इसीहि चिण्णाई महायसेहिं कारण फासेज्ज परीसहाई ॥ १२ ॥ स नाणनाणीवगए महेसी अणुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं । अणुत्तरे नाणधरे जसंसी ओभासई सूरिए वन्तलिक्खे ॥ २३ ॥ दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं निरंगणे सव्वओ विप्यमुक्के । रित्ता समुहं व महाभवोघं समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥ २४ ॥
॥ त्ति मि
॥ समुद्दपालीयं समत्तं ॥ ११ ॥
/
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
[-२३.१४
रहनेमिर्ज ॥ रहनेमिजं द्वाविंशं अध्ययनम् ॥
सोरियपुरांम नयरे आर्सि राया महिडिए। वसुदेव त्ति नामेणं रायलक्खणसंजुए ॥१॥ तस्स भज्जा दुवे आसी रोहिणी देवई तहा। तार्सि दोण्हं दुवे पुत्ता इट्टा रामकेसवा ॥२॥ सोरियपुरमि नयरे आसी राया महिडिए । समुद्दविजए नाम रायलक्खणसंजुए ॥३॥ तस्स भज्जा सिवा नाम तीसे पुत्तो महायसो। भगवं अरिटनेमि त्ति लोगनाहे दमीसरे ॥४॥ सोऽरिट्टनेमिनामो र लक्खणस्सरसंजुओ। अट्ठसहस्सलक्खणधरो गोयमो कालगच्छवी ॥५॥ वज्जरिसहसंघयणो समचउरंसो झसोयरो। तस्स राईमई कवं भजं जायइ केसवो ॥६॥ अह सा रायवरकमा सुसीला चारुपेहिणी। सदलकखणसंपन्ना विज्जुसोयामाणिप्पभा ॥७॥ अहाह जणओ तीसे वासुदेवं महिड्रियं। इहागच्छऊ कुमारी जा से कनं दलामि हं ॥ ८॥ सव्वीसहीहि ण्हविओ कयकोज्यमंगलो। दिवजयलपरिहिओ आभरणोहिं विभूसिओ॥९॥ मत्तं च गन्धहत्थिं वासुदेवस्स जेट्रगं। आरूढी सोहए अहियं सिरे चूडामणी जहा ॥१०॥ अह ऊसिएण छत्तेण चामराहि य सोहिए। दसारचक्केण य सो सव्वओ.परिवारिओ ॥११॥ चउरंगिणीए सेनाए रइयाए जहक्कम। तुरियाण सन्निनाएण दिव्वेण गगणं फुसे ॥१२॥ एयारिसाए इड्डीए जुईए उत्तिमाए य। नियगाओ भवणाओ निज्जाओ वण्हिपुंगवो ॥१३॥ अह सो तत्थ निज्जन्तो दिस्त पाणे भयदुए। वाढहिं पंजरेहिं च सनिरुद्ध सुदक्खिए ॥१४॥
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२.१५ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
जीवियन्तं तु संपत्ते मंसट्टा भक्तियव्वए । पासेत्ता से महापने सारहिं इणमब्बवी ॥ १५ ॥
कस्स अट्ठा इमे पाणा एए सव्वे सुहेसिणो । वाडेहिं पंजरेहिं च सन्निरुद्धा य अच्छहिं ॥ १६ ॥ अह सारही तओ भणइ एए भद्दा उ पाणिणो । तुझं विवाहकज्जं मि भोयावेउं बहुं जणं ॥ १७ ॥ सोऊण तस्स वयणं बहुपाणिविणासणं । चिन्तेइ से महापन्ने साणुक्को से जिएहि उ ॥ १८ ॥ जइ मज्झ कारणा एए हम्मन्ति सुबहू जिया । न मे एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सई ॥ १९ ॥ सो कुण्डलाण जुयलं सुत्तगं च महायसो । आभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामए ॥ २० ॥ मणपरिणामे य कए देवा य जहोइयं समोइण्णा । सव्विड्डीए सपरिसा निक्खमणं तस्स काउं जे ॥ २१ ॥ देवमणुस्सपरिवुडो सीयारयणं तओ समारूढो । निक्खामय बारगाओ रेवययंमि द्विओ भगवं ॥ २२ ॥ उज्जाणं संपत्तो ओइण्णो उत्तिमाओं सीयाओ । साहसीए परिवुडो अह निक्खमई उ चित्ताहिं ॥ २३ ॥ अह से सुगन्धगन्धि तुरियं मउकुंचिए । सयमेव लुंबई केसे पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ॥ २४ ॥ वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइन्दियं । इच्छियमणोरहे तुरियं पावसू तं दमीसरा ॥ २५ ॥ नाणेणं दंसणेणं च चरित्तेण तवेण य । खन्तीए मुक्ती वडमाणो भवाहि य ॥ २६ ॥ एवं ते रामकेसवा दसारा य बहू जणा । अरिट्टणेमिं वन्दित्ता अभिगया बारगापुरिं ॥ २७ ॥ सोऊण रायकन्ना पव्वज्जं सा जिणस्स उ । नीहासा य निराणन्दा सोगेण उ समुत्थिया ॥ २८ ॥ राईमई विचिन्ते धिरत्थु मम जीवियं । जा हं तेण परिचत्ता सेयं पव्वइउं मम ॥ २९ ॥
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
६३
रहने मज्जं
अहसा भमरसन्निभे कुञ्चफणगसाहिए | सयमेव लुंचई केसे धिइमन्ता ववस्सिया ॥ ३० ॥ वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइन्दियं । संसारसागरं घोरं तर कन्ने लहुं लहुं ॥ ३१ ॥ सा पव्वइया सन्ती पव्वावेसी तहिं बहुं । सयणं परियणं चेत्र सीलवन्ता बहुस्सुया ॥ ३२ ॥
गिरिं रेवययं जन्ती वासेणुल्ला उ अन्तरा । वासन्ते अन्धयारंमि अन्तो लयणस्स सा ठिया ॥ ३३ ॥
चीवराई विसारन्ती जहाजाय त्ति पासिया । रहनेमी भग्गचित्तो पच्छा दिट्ठो य तीइ वि ॥ ३४ ॥
भीया य सा तहिं वट्टु एगन्ते संजयं तयं । बाहाहिं काउं संगोप्फं वेवमाणी निसीयई ॥ ३५ ॥
अह सो वि रायपुत्ती समुद्दविजयंगओ । भीयं पवेवियं दट्टु इमं चक्कं उदाहरे ॥ ३६ ॥ रहनेमी अहं भद्दे सुरूवे चारुभासिणि । ममं भयाहि सुयणून ते पीला भविस्सई ॥ ३७ ॥ एहि ता भुंजिमो भोए माणुस्सं खु सुदुल्लाहं । भुत्तभोगी पुणो पच्छा जिणमग्गं चरिस्सिमो ॥ ३८ ॥ वडूण रहनेमिं तं भग्गुज्जोय पराइयं ।
राईमई असम्भन्ता अप्पाणं संवरे तहिं ॥ ३९ ॥ अह सा रायवरकन्ना सुट्टिया नियमव्वए । जाई कुलं च सीलं च रक्खमाणी तयं वए ॥ ४० ॥
जइ सि रूवेण वेसमणो ललिएण नलकूबरी । तहा वि ते न इच्छामि जइ सि सक्खं पुरन्दरो ॥ ४१ ॥ धिरत्थु ते जसो कामी जो तं जीवियकारणा । वन्तं इच्छसि आवाउं सेयं ते मरणं भवे ॥ ४२ ॥ अहं च भोगरायस्स तं च सि अन्धगवण्हिणो । मा कुले गन्धणा होमो संजम निहुओ चर ॥ ४३ ॥ जइ तं काहिति भावं जा जा दच्छसि नारिओ । वायाविद्धो व्व हढो अट्ठिअप्पा भविस्सासे ॥ ४४ ॥
. २२.४४..
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२.४५ -] उत्तराध्यवनसूत्रम्
गोवालो भण्डवालो वा जहा तद्दन्वऽणिस्सरो। एवं अणिस्सरो तं पि सामण्णस्स भविस्ससि ॥४५॥ तीसे सो वयणं सोचा संनयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ॥४॥ मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुसो जिइन्दिओ। सामण्णं निच्चलं फासे जावज्जीव वढन्वओ ॥ १७॥ उग्गं तवं चरित्ताणं जाया दोण्णि वि केवली। सव्वं कम्म खवित्ताणं सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ॥४८॥ एवं करेन्ति संबुद्धा पण्डिया पवियक्खणा। विणियट्टन्ति भोगेसु जहा सो पुरिसोत्तमो ॥४९॥त्ति बमि ।
॥ रहनेमिजं समत्तं ॥ २२॥
॥सिगोयमिजं त्रयोविंशं अध्ययनम् ॥ जिणे पासे त्ति नामेण अरहा लोगपूहओ। संबुद्धप्पा य सव्व धम्मतित्थयरे जिणे ॥१॥ तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे। केसीकुमारसमणे विज्जाचरणपारगे ॥२॥ ओहिनाणसुए बुद्धे सीससंघसमाउले। गामाणुगामं रीयन्ते सावत्थि पुरमागए ॥३॥ तिन्दुयं नाम उज्जाणं तम्मी नगरमण्डले। फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए ॥४॥ अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थयरे जिणे। भगवं वद्धमाणो त्ति सबलोगम्मि विस्सुए ॥५॥ तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे। भगवं गोयमे नाम विज्जाचरणपारगे॥६॥ बारसंगविऊ बुद्धे सीससंघसमाउले। गामाणुगामं रीयन्ते से वि सावत्थिमागए ॥७॥
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
केसिगोयमिज्जं
[-२३.२९ कोट्टगं नाम उज्जाणं तम्मी नयरमण्डले। फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए ॥८॥ केसीकुमारसमणे गोयमे य महायसे । उभी वि तत्थ विहरिंसु अल्लीणा सुसमाहिया ॥९॥ उभओ सीससंघाणं संजयाणं तवस्सिणं । तत्थ चिन्ता समुप्पन्ना गुणवन्ताण ताइणं ॥१०॥ केरिसो वा इमो धम्मो इमो धम्मो व केरिसो। आयारधम्मपणिही इमा वा साव केरिसी ॥११॥ चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महामुणी ॥ १२ ॥ अचेलगो य जो धम्मो जो इमो सन्तरुत्तरो। एगकज्जपवनाणं विसेसे किं नु कारणं ॥ १३॥ अह ते तत्थ सीसाणं विनाय पवितक्कियं। समागमे कयमई उभओ केसिगोयमा ॥ १४ ॥ गोयमे पडिरूवन्नू सीससंघसमाउले। जेटुं कुलमवेक्खन्तो तिन्दुयं वणमागओ॥१५॥ केसीकुमारसमणे गोयमं दिस्समागयं। पडिरूवं पडिवतिं सम्मं संपडिवज्जई ॥१६॥ पलालं फासुयं तत्थ पंचमं कुसतणाणि य। गोयमस्स निसेज्जाए खिप्पं संपणामए ॥१७॥ केसीकुमारसमणे गोयमे य महायसे। उभओ निसण्णा साहन्ति चन्दसूरसमप्पभा ॥१८॥ समागया बहू तत्थ पासण्डा कोउगा मिगा। गिहत्थाणं चऽणेगाओसाहस्सीओ समागया ॥१९॥ देवदाणवगन्धवा जवखरक्खसकिन्नरा। अदिस्साणं च भूयाणं आसी तत्थ समागमो॥२०॥ पुच्छामि ते महाभाग केसी गोयममन्बवी। तओ केसि वुवन्तं तु गोयमो इणमन्बवी ॥२१॥ पुच्छ भन्ते जहिच्छं ते केसि गोयममन्त्री।
तओ केसी अणुन्नाए गोयमं इणमन्बी ॥२२॥ [UTS-II. .5] .
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
२३.२३ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ । दोसिओ वद्धमाणेण पासेण य महामुनी ॥ २३ ॥ एगकज्जपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं । धम्मं दुविहे मेहावि कहं विप्पञ्चओ न ते ॥ २४ ॥ तओ को बुवन्तं तु गोयमो इणमन्बवी । पन्ना समिक्ख धम्मतत्तं तत्तविणिच्छियं ॥ २५ ॥ पुरिमा उज्जुजडा उ वंकजा य पच्छिमा । मज्झिमा उज्जुपन्ना उ तेण धम्मे दुहा कए ॥ २६ ॥ पुरिमाणं दुव्विसोज्झो उ चरिमाणं दुरणुपालओ । कप्पो मज्झिमगाणं तु सुविसोज्झो सुपालओ ॥ २७ ॥ साहु गोयम पना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ॥ २८ ॥ अचेल गो य जो धम्मो जो इमो सन्तरुत्तरो । देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महासुणी ॥ २९ ॥ एगकज्जपवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं । लिंगे दुविहे मेहावी कहं विप्पञ्चओ न ते ॥ ३० ॥ केसिमेवं बुवाणं तु गोयमो इणमब्बवी । विनाणेण समागम्म धम्मसाहणमिच्छ्रियं ॥ ३१ ॥ पच्चयत्थं च लोगस्स नाणाविहविगप्पणं । जत्तत्थं गहणत्थं च लोगे लिंगपओयणं ॥ ३२ ॥ अह भवे पन्ना उ मोक्खसम्भूय साहणा । नाणं च दंसणं चैव चरितं चेव निच्छए ॥ ३३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अनो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ॥ ३४ ॥ अगाणं सहस्साणं मज्झे चिट्ठसि गोयमा । तेय ते अहिगच्छन्ति कहं ते निज्जिया तुमे ॥ ३५ ॥ एगे जिए जिया पंच पंच जिए जिया दस । दसहा उं जिणित्ताणं सव्वसत्तू जिणामहं ॥ ३६ ॥ सनू य इह के वृत्ते केसी गोयममन्ववी । तओ केसिंबुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ ३७ ॥
६६
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
६७
केसिगोयमिज्जं
पगप्पा अजिए सत्तू कसाया इन्दियाणि य । ते जिणिन्तु जहानायं विहरामि अहं मुणी ॥ ३८ ॥ साहु गोयम पन्ना ते छिनो मे संसओ इमो । अम्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ॥ ३९ ॥ दीसन्ति बहवे लोए पासबद्धा सरीरिणो । मुक्कपासो लहुब्भूओ कहं विहरसी मुणी ॥ ४० ॥ ते पासे सव्वसो छित्ता निहन्तॄण उवायओ । सुक्कपासो लहुब्भूओ विहरामि अहं मुणी ॥ ४१ ॥ पासा य इइ के वृत्ता केसी गोयममब्बवी ।
सिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ ४२ ॥ रागद्दोसादओ तिव्वा नेहपासा भयंकरा । ते छिन्दित्ता जहानायं विहरामि जहक्कमं ॥ ४३ ॥
साहु गोयम पना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ॥ ४४ ॥
अन्तोहिययसंभ्रूया लया चिट्ठइ गोयमा । फलेइ विसभक्खीणि सा उ उद्धरिया कहूं ॥ ४५ ॥ तं लयं सव्वसो छित्ता उद्धरित समूलियं । विहरामि जहानायं मुक्को मि विसभक्खणा ॥ ४६ ॥ लया य इइ का वृत्ता केसी गोयममन्त्रवी । केसिमेवं बुवन्तं तु गोयमो इणमब्ववी ॥ ४७ ॥ भवतण्हा लया वृत्ता भीमा भीमफलोदया । तमुच्छिन्तु जहानायं विहरामि जहासुहं ॥ ४८ ॥ साहु गोयम पना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अम्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ॥ ४९ ॥ संपज्जालिया घोरा अग्गी चिट्ठर गोयमा । जे डहन्ति सरित्था कहं विज्झाविया तुमे ॥ ५० ॥ महामेहप्पसूयाओ गिज्झ वारि जलुत्तमं । सिंचामि सययं देहं सित्ता नो व डहन्ति मे ॥ ५१ ॥ अग्गी य इइ के कुत्ता केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमन्दवी ॥ ५२ ॥
[ - २३.५२
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
२३.५३ - ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
कसाया अग्गिणो वृत्ता सुयसीलतवो जलं । सुयधाराभिहया सन्ता भिन्ना हु न डहन्ति मे ॥ ५३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ तं मे कहसु गोयमा ॥ ५४ ॥ अयं साहसिओ भीमो दुट्टस्सो परिधावई । जंसि गोयम आरूढो कहं तेण न हीरसि ॥ ५५ ॥ पधावन्तं निगिण्हामि सुयरस्सी समाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं मग्गं च पडिवज्जई ॥ ५६ ॥
आसे य इइ के कुत्ते केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ ५७ ॥ मणो साहसिओ भीमो दुट्टस्सो परिधावई । तं सम्मं तु निगिण्हामि धम्मसिक्खाए कन्थगं ॥ ५८ ॥ साहु गोयम पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ॥ ५९ ॥ कुप्पहा बहवो लोए जेहिं नासन्ति जन्तुणो । अद्धा कह वट्टन्ते तं न नाससि गोयमा ॥ ६० ॥ जे य मग्गेण गच्छन्ति जे य उम्मग्गपट्टिया । ते सव्वे विझ्या मज्झं तो न नस्सामहं मुणी ॥ ६१ ॥ मग्गे य इइ के वृत्ते केसी गोयममब्बवी । केलिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ ६२ ॥
कुप्पवयणपासण्डी सव्वे उम्मग्गपट्टिया । सम्मग्गं तु जिणक्खायं एस मग्गे हि उत्तमे ॥ ६३ ॥
साहु गोयम पन्ना ते छिनो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ॥ ६४ ॥
महा उदगवेगेणं वुज्झमाणाण पाणिणं । सरणं गई पइट्टा य दीवं कं मन्नसी मुणी ॥ ६५ ॥ अत्थि एगो महादीवो वारिमज्झे महालओ । महा उदगवेगस्स गई तत्थ न विज्जई ॥ ६६ ॥
दीवे य इइ के कुत्ते केसी गोयममन्ववी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ ६७ ॥
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
६९
केसिगोयमिज्जं
जरामरणवेगेणं वुज्झमाणाण पाणिणं । धम्म दीवो पट्टा य गई सरणमुत्तमं ॥ ६८ ॥
साहु गोयम पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अम्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ॥ ६९ ॥
अण्णवंसि महोहंसि नावा विपरिधावई । जंसि गोयममारूढो कहं पारं गमिस्ससि ॥ ७० ॥
जा उ अस्साविणी नावा न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नावा सा उ पारस्स गामिणी ॥ ७१ ॥
नावा य इह का वृत्ता केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥ ७२ ॥ - सरीरमाहु नाव त्ति जीवो वुञ्चइ नाविओ । संसारो अण्णवो वृत्तो जं तरन्ति महेसिणो ॥ ७३ ॥
साहु गोयम पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ॥ ७४ ॥ अन्धयारे तमे घोरे चिट्ठन्ति पाणिणो बहू | को करिस्सर उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं ॥ ७५ ॥ उग्गओ विमलो भाणू सव्वलो गप्पभंकरो । सो करिस्सर उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं ॥ ७६ ॥ भाणू य इइ के वुत्ते केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवन्तं तु गोयमो इणमव्ववी ॥ ७७ ॥ उग्गओ खीणसंसारो सन्वन्नू जिणभक्खरो । सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोयांमे पाणिणं ॥ ७८ ॥ साहु गोयम पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ॥ ७९ ॥ सारीरमाणसे दुक्खे बज्झमाणाण पाणिणं । खेमं सिवमणाबाहं ठाणं किं मन्नसी मुणी ॥ ८० ॥ अत्थि एवं धुवं ठाणं लोगग्गंमि दुरारुहं । जत्थ नत्थि जरा मच्चू वाहिणो वेयणा तहा ॥ ८१ ॥
[ - २३.८२
ठाणे य इइ के वृत्ते केसी गोयममब्बवी । सिमेवं तं तु गोयमो इणमव्बवी ॥ ८२ ॥
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
२३.८३-] उत्तराध्ययनसूत्रम्
निव्वाणं ति अबाहं ति सिद्धी लोगग्गमेव य। खेमं सिवं अणाबाहं जं चरन्ति महेसिणो॥८३॥ तं ठाणं सासयं वासं लोगग्गमि दुरारुहं। जं संपत्ता न सोयन्ति मवोहन्तकरा मुणी॥८४॥ साहु गोयम पन्ना ते छिनो मे संसओ इमो। नमो ते संसयाईय सम्वसुत्तमहोयही॥८५॥ एवं तु संसए छिन्ने कैसी घोरपरक्कमे। अभिवन्दित्ता सिरसां गोयमं तु महायसं ॥८६॥ पंचमहत्वयधम्म पडिवज्जइ भावओ। पुरिमरस पच्छिमंमी मग्गे तत्थ सुहावहे ॥ ८७॥ केसीगोयमओ निच्चं तम्मि आसि समागमे। सुयसीलसमुक्कंसो महत्थऽत्थविणिच्छओ॥८८ । तोसिया परिसा सवा सम्मग्गं समुवट्रिया। संथुया ते पसीयन्तु भयवं केसिगोयमे ॥ ८९॥ त्ति बेमि॥
॥केसिगोयमिजं समत्तं ॥१३॥
॥ समिईओ चतुर्विशं अध्ययनम् ॥
अट्र पवयणमायाओ समिई गुत्ती तहेव य। पंचेव य समिईओ तओ गुत्तीओ आहिया ॥१॥ इरियाभासेसणादाणे उच्चारे समिई इय॥ मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती य अटुमा ॥२॥ एयाओ अट्ट समिईओ समासेण वियाहिया। दुवालसंगं जिणक्खायं मायं जत्थ उ पवयणं ॥३॥ आलम्बणेण कालेण मग्गेण जयणाइ य। चउकारणपरिसुद्धं संजए इरियं रिए ॥४॥ तत्थ आलंबणं नाणं देसणं चरणं तहा। काले य दिवसे वुत्ते मग्गे उप्पहवज्जिए ॥५॥
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
समिईओ
[-२३.२० दव्वओ खेत्तओ चेव कालओ भावओ तहा। जायणा चउन्विहा वुत्ता तं मे कित्तयओ सुण ॥६॥ दव्वओ चक्खुसा पेहे जुगमित्तं च खेत्तओ। कालओ जाव रीएज्जा उवउत्ते य भावओ ॥७॥ इन्दियत्थे विवज्जित्ता सज्झायं चेव पंचहा। तम्मुत्ती तप्पुरकारे उवउत्ते रियं रिए ॥८॥ कोहे माणे य मायाए लोभे य उवउत्तया । हासे भए मोहरिए विगहासु तहेव च ॥९॥ एयाई अट्ट ठाणाइं परिवज्जितु संजए। असावज्जं मियं काले मासं भासेज्ज पनवं ॥१०॥ गवेसणाए गहणे य परिभोगेसणाय जा। आहारोवहिसेज्जाए एए तिन्नि विसोहए ॥११॥ उग्गमुप्पायणं पढमे बीए सोहेज्ज एसणं । परिभोयमि चउक्कं विसोहेज जयं जई ॥१२॥ ओहोवहोवग्गहियं भण्डगं इविहं मुणी। गिण्हन्तो निक्खिवन्तो वा पउंजेज इमं विहिं ॥ १३ ॥ चक्खुसा पडिलेहित्ता पमज्जेज जयं जई। आइए निक्खिवेज्जा वा दुहओ वि समिए सया ॥१४॥ उच्चारं पासवणं खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उवहिं देहं अन्नं वावि तहाविहं ॥१५॥ अणावायमसंलोए अणावाए चेव होइ संलोए। आवायमसंलोए आवाए चेय संलोए ॥ १६ ॥ अणावायमसंलोए परस्सऽणुवघाइए। समे अज्झुसिरे यावि अचिरकालकर्यमि य ॥१७॥ वित्थिपणे दरमोगाढे नासन्ने बिलवज्जिए। तसपाणबीयरहिए उच्चाराईणि वोसिरे ॥१८॥ एयाओ पंच समिईओ समासेण वियाहिया। एत्तो य तओ गुत्तीओ वोच्छामि अणुपुत्वसो ॥१९॥ सच्चा तहेव मोसा य सच्चमोसा तहेव य। चउत्थी असच्चमोसा य मणगुत्तीओ चउन्विहा ॥२०॥
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
२४.२१-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् .
संरम्भसमारम्भे आरम्भे य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ॥२१॥ सच्चा तहेव मोसा य सच्चमोसा तहेव य। चउत्थी असच्चमोसा य वगुत्ती चउव्विहा ॥२२॥ संरम्भसमारम्भे आरम्भे य तहेव य। वयं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ॥२३॥ ठाणे निसीयणे चेव तहेव य तुयदृणे। उलंघणपलंघणे इन्दियाण य झुंजणे ॥२४॥ संरम्भसमारम्भे आरम्भे य तहेव य। कायं पवत्तमाणं तु नियत्तेज जयं जई ॥२५॥ एयाओ.पंच समिईओ चरणस्स य पवत्तणे। गुत्ती नियत्तणे वुत्ता असुभत्थेसु सव्वसो ॥२६॥ एसा पवयणमाया जे सम्म आयरे मुणी। से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पण्डिए ॥२७॥ त्ति बेमि.
॥ समिईओ समत्ताओ ॥ २४॥
॥ जन्नइज्ज पंचविंशं अध्ययनम् ॥ माहणकुलसंभूओ आसि विप्पो महायसो। जायाई जमजनंमि जयघोसे त्ति नामओ॥१॥ इन्दियग्गामनिग्गाही मग्गगामी महामुणी। गामाणुगामं रीयन्ते पत्ते वाणारसिं पुरिं ॥२॥ वाणारसीए बहिया उज्जाणमि मणोरमे।। फासुए सेज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए ॥३॥ अह तेणेव कालेणं पुरीए तत्थ माहणे। विजयघोसे त्ति नामेण जन जयश् वेयवी ॥४॥ अह से तत्थ अणगारे मासक्खमणपारणे। विजयघोसस्स जनंमि भिक्खमट्ठा उवाहिए ॥५॥
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
७
जन्नइज्जं
[-२५.१० समुवट्टियं तहिं सन्तं जायगो पडिसेहए। न हु दाहामि ते भिक्खं भिक्खू जायाहि अनो॥६॥ जे य वेयविऊ विप्पा जन्नट्ठा य जे दिया। जोइसंगविऊ जे य जे य धम्माण पारगा ॥७॥ जे समत्था समुद्धत्तुं परमप्पाणमेव य। तेसिं अन्नमिणं देयं भो भिक्खू सव्वकामियं ॥८॥ सो तत्थ एव पडिसिद्धो जायगेण महामुणी। न वि रुटो न वि तुट्ठो उत्तिमट्ठगवेसओ॥९॥ नऽन्नटुं पाणहे वा न वि निव्वाहणाय वा। तेसि विमोक्खणट्ठाए इण वयणमब्बी ॥१०॥ नवि जाणसि वेयमुहं नवि जन्माण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं जं च जं च धम्माण वा मुहं ॥११॥ जे समत्था समद्धत्तु परमप्पाणमेव य। न ते तुम वियाणासि अह जाणासि तो भण ॥ १२ ॥ तस्सऽक्खवपमोक्खं तु अवयन्तो तहिं विओ। सपरिसो पंजली होउं पुच्छई तं महामुणिं ॥१३॥ वेयाणं चं मुहं खूहि बूहि जन्माण जं मुहं।। नक्खत्ताण मुहं बूहि बूहि धम्माण वा मुहं ॥१४॥ जे समत्था समुद्धत्तुं परमप्पाणमेव य। एयं मे संसयं सव्वं साहू कहसु पुच्छिओ ॥१५॥ अग्गिहुत्तमुहा वेया जन्नट्टी वेयसां मुहं । नक्खत्ताण मुहं चन्दो धम्माणं कासवो मुहं ॥१६॥ जहा चन्दं गहाईया चिट्ठन्ती पंजलीउडा। वन्दमाणा नमसन्ता उत्तम मणहारिणो ॥१७॥ अजाणगा जन्नवाई विज्जामाहणसंपया। गूढा सज्झायतवसा भासच्छन्ना इवऽग्गिणो ॥१८॥ जो लोए बम्भणो वृत्तो अग्गीव महिओ जहा। सया कुसलसंदिटुं तं वयं बूम माहणं ॥ १९॥ जो न सज्जइ आगन्तुं पव्वयन्तो न सोयई । रमए अज्जवयणमि तं वयं बूम माहणं ॥२०॥
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
२५.२१-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् जायरूवं जहामटुं निद्धन्तमलपावगं। रागदोसभयाईयं तं वयं बूम माहणं ॥२१॥ तबस्सियं किसं दन्तं अवचियमंससोणियं । सुस्वयं पत्तनिव्वाणं तं वयं बूम माहणं ॥ २२ ॥ तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण य थावरे । जो न हिंसइ तिविहेणं तं वयं बूम माहणं ॥ २३ ॥ कोहा वा जइ वा हासा लोहा वा जइ वा भया। मुसं न वयई जो उ तं वयं बूम माहणं ॥२४॥ चित्तमन्तमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं। न गिण्हाइ अदत्तं जो तं वयं बूम माहणं ॥२५॥ दिवमाणुसतेरिच्छं जो न सेवइ मेहुणं । मणसा कायवक्केणं तं वयं बूम माहणं ॥२६॥ जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलित्तं कामहिं तं वयं बूम माहणं ॥ २७ अलोलुयं मुहाजीविं अणगारं अकिंचणं। असंसत्तं गिहत्येसु तं वयं बूम माहणं ॥२८॥ जहित्ता पुश्वसंजोगं नाइसंगे य बन्धवे। जो न सज्जइ एपहिं तं वयं बूम माहणं ॥२९॥ पसुबन्धा सव्ववेया जटुं च पावकम्मुणा। न तं तायन्ति दुस्सीलं कम्माणि बलवन्ति हि ॥ ३०॥ न वि मुण्डिएण समणो न ओंकारेण बम्मणो। न मुणी रण्णवासेणं कुसचीरेण तावसा॥३१॥ समयाए समणो होइ बम्भचेरेण बम्भणो। नाणेण य मुणी होइ तवेणं होइ तावसो ॥३१॥ कम्मुणा बम्भणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥ ३३ ।। एए पाउकरे बुद्धे जेहिं होइ सिणायओ। सव्वकम्मविनिम्मुक्कं तं वयं बूम माहणं ॥ ३४॥ एवं गुणसमाउत्ता जे भवन्ति दिउत्तमा। ते समत्था उ उद्धत्तुं परमप्पाणमेव य॥३५॥
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
सामायारी
[-२६.१ एवं तु संसए छिन्ने विजयघोसे य माहणे । समुदाय तओ तं तु जयघोसं महामुर्णि ॥३६॥ तुडे य विजयघोसे इणमुदाहु कयंजली। माहणत्तं जहाभूयं सुटु मे उवंदसियं ॥ ३७॥ तुम्भे जइया जन्नाणं तुम्भे वेयविऊ विऊ। जोइसंगविऊ तुम्भे तुन्भे धम्माण पारगा ॥ ३८॥ तुम्भे समत्था उद्धत्तुं परमप्पाणमेव य।। तमणुग्गहं करेहऽम्हं भिक्खणं भिक्खुउत्तमा ॥ ३९॥ न कज्जं मज्झ भिक्खेण खिप्पं निक्खमसू दिया। मा भमिहिसि भयावट्टे घोरे संसारसागरे ॥४०॥ उवलेवो होइ भोगेसु अभोगी नोवलिप्पई। भोगी भमइ संसारे अभोगी विप्पमुच्चई ॥४१॥ उल्लो सुक्को य दो छढा गोलया मद्रियामया। दो वि आवडिया कुड्डे जो उल्लो सोऽत्थ लग्गई ॥ ४२ ॥ एवं लग्गन्ति दुम्मेहा जे नरा कामलालसा। विरचा उन लग्गन्ति जहा से मुक्कगोलए ॥४३॥ एवं से विजयघोसे जयघोसस्स अन्तिए । अणगारस्स निक्खन्तो धम्म सोच्चा अणुत्तरं ॥४४॥ खवित्ता पुत्वकम्माई संजमेण तवेण य। जयघोसविजयघोसा सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ॥४५॥ ॥त्ति बेमि ।।
॥ जन्मइज्जं समत्तं ॥२५॥
॥ सामायारी षविंशतितमं अध्ययनम् ॥ सामायारि पवक्खामि सव्वदुक्खविमोक्खणि। जं चरित्ताण निग्गन्था तिण्णा संसारसागरं ॥१॥ पढमा आवस्सिया नाम बिइया य निसीहिया। आपुच्छणा य तइया चउत्थी पडिपुच्छणा ॥२॥
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
२६.३ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
पंचमी छन्दणा नाम इच्छाकारी य छुट्टओ । सत्तमी मिच्छकारी य तहक्कारो य अट्टमो ॥ ३ ॥ अडाणं च नवमं दसमी उवसंपदा । एसा दसंगा साहूणं सामायारी पवेइया ॥ ४ ॥ गमणे आवस्सियं कुज्जा ठाणे कुज्जा निसीहियं । आपुच्छणं सयंकरणे परकरणे पडिपुच्छणा ॥ ५ ॥ छन्दणा दव्वजाएणं इच्छाकारो य सारणे । मिच्छाकारो य निन्दाए तहक्कारो पडिस्सुए ॥ ६ ॥ अभुवाणं गुरुपूया अच्छणे उवसंपदा । एवं दुपंच संजुत्ता सामायारी पवेइया ॥ ७ ॥ पुव्विल्लमि चउन्माए आइचचंमि समुट्ठिए । भण्डयं पडिलेहित्ता वन्दित्ता य तओ गुरुं ॥ ८ ॥ पुच्छिज्ज पंजलिउडो किं कायव्वं मए इहं । इच्छं निओइउं भन्ते वेयावच्चे व सज्झाए ॥ ९ ॥ वेयावच्चे निउत्तेणं कायव्वं अगिलायओ । सज्झाए वा निउत्तेण सव्वदुक्खविमोक्खणे ॥ १० ॥ दिवसरस चउरो भागे भिक्खू कुज्जा वियक स्वणो । तओ उत्तरगुणे कुज्जा दिणभागेसु चउसु वि ॥ ११ ॥ पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई । तइयाए भिक्खाधरियं पुणो चउत्थी सज्झायं ॥ १२ ॥ आसाढे मासे दुपया पोसे मासे चउप्पया । चित्तासोसु मासेसु तिपया हवइ पोरिसी ॥ १३ ॥ अंगुलं सत्तर तेणं पक्खेणं च दुरंगुलं ।
ए हाय वावी मासेणं चउरंगुलं ॥ १४ ॥ आसाढबहुलपक्खे भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुणवइसाहेसु य बोद्धव्वा ओमरत्ताओ ॥ १५ ॥ जेामूले आसाढसावणे छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा । अहिं बीयतइयंमितए दस अट्ठहिं चउत्थे ॥ १३ ॥ रत्तिं पिवउरो भागे भिक्खु कुज्जा वियक्खणी । तओ उत्तरगुणे कुज्जा राइभारसु चउसु वि ॥ १७ ॥
७६.
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
199
सामायारी
पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई । तइयाए निद्दमोक्खं तु चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ॥ १८ ॥ जं नेइ जया रति नक्खत्तं तमि नहचउब्भाए । संपत्ते विरमेज्जः उज्झायं पओसकालम्मि ॥ १९ ॥ तमेव य नक्खत्ते गयणचं उभागसावसेसंमि ! वेरत्तियं पि कालं पडिले हित्ता मुणी कुज्जा ॥ २८ ॥ पुव्विल्लमि चउभाए पडिलेहित्ताण भण्डयं । गुरुं वन्दित्तु सज्झायं कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ॥ २१ ॥ पोरिसीए चउभाए वन्दित्ताण तओ गुरुं । अपडिक्कमित्ता कालस्स भायणं पडिलेहए ॥ २२ ॥ मुहपोत्तिं पडिलेहित्ता पडिले हिज्ज गोच्छगं । गोच्छगलइयं गुलिओ वत्थाई पडिलेहए ॥ २३ ॥
[ – २६.३२
उ थिरं अतुरियं पुव्वं ता वत्थमेव पडिलेहे । तो बिइयं पप्फोडे तइयं च पुणो पमज्जिज्जा ॥ २४ ॥ अणच्चावियं अवलियं अणाणुबन्धि अमोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा पाणीपाणिविसोहणं ॥ २५ ॥ आरभडा सम्मद्दा वज्जेयव्वा य मोसली तइया । पप्फोडणा चउत्थी विक्खित्ता वेश्या छट्ठी ॥ २६ ॥ पसिढिलपल म्बलोला एगा मोसा अणेगरूवधुणा । कुणइ पमाणिपमायं संकियगणणोवगं कुज्जा ॥ २७ ॥ अणूणाइरित्तपडिलेहा अविवच्चासा तहेव य । पढमं पयं पसत्थं सेसाणि य अप्पसत्थाई ॥ २८ ॥ पडिलेहणं कुणन्तो मिहोकहं कुणइ जणवयकहं वा । देइ व पच्चक्खाणं वाएड सयं पडिच्छइ वा ॥ २९ ॥ पुढवी- आउक्काए तेऊ- वाऊ - वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणापमत्तो छण्हं पि विराहओ होइ ॥ ३० ॥ पुढवी - आउक्काए तेऊ - वाऊ - वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणाआउत्तो छण्हं संरक्खओ होइ ॥ ३१ ॥ तइयाए पोरिसीए भत्तं पाणं गवेसए । छण्हं अन्नयरागम्मि कारणंमि समुट्ठिए ॥ ३२ ॥
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
२६.३३-] उत्तराध्ययनसूत्रम् --
वेयण-वेयावच्चे इरियटाए य संजमाए। तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिन्ताए ॥३३॥ निग्गन्थो धिइमन्तो निग्गन्थी विन करेज्ज छहिं चेव । ठाणेहिं उ इमेहिं अणइक्कमणा य से होइ ॥ ३४॥ आयंके उवसग्गे तितिक्खया बम्मचेरगुत्तीस । पाणिदया तवहेउं सरीरवोच्छेयणट्टाए ।। ३५॥ अवसेसं भण्डगं गिज्झ चक्खुसा पडिलेहए। परमद्धजोयणाओ विहारं विहरए मुणी ॥ ३६ ॥ घउत्थीए पोरिसीए निक्खिवित्ताण मायणं । सज्झायं च तओ कुज्जा सव्वभावविभावणं ॥३७॥ पोरिसीए चउन्माएं वन्दित्ताण तओ गुरूं। पडिक्कमित्ता कालस्स सेज्जंतु पडिलेहए ॥३८॥ पासवणुच्चारभूमिं च पडिलेहिज्ज जयं जई। । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमोक्खणं ॥ ३९ ॥ देवसियं च ईयारं चिन्तिजा अणुपुत्वसो। नाणंमि दसणे चेव चरित्तम्मि तहेव य॥४०॥ पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरूं। देसियं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कम ॥४१॥ पडिकमित्तु निस्सल्लो वन्दित्ताण तओ गुरुं। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सम्वदुक्खविमोक्खणं ॥४१॥ पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरुं। थुइमंगलं च काऊण कालं संपडिलेहए ॥४३॥ पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं शियायई। तइयाए निद्दमोक्खं तु सज्झायं तु चउत्थिए ॥४४॥ पोरिसीए चउत्थीए कालं तु पडिलेहिया। सज्झायं तु तओ कुज्जा अबोहेन्तो असंजए ॥४५॥ पोरिसीए चउन्माए वन्दिऊण तओ गुरुं। पडिक्कमित्तु कालस्त कालं तु पडिलेहए ॥१६॥ आगए कायवोस्सग्गे सव्वदुक्खविमोक्खणे । काउस्सग्गं तओ कुज्जा सन्वदुक्खविमोक्खणं ॥४७॥
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
७९
खलुकिज्ज्ज
[-२७.६ राइयं च अईयारं चिन्तिज्ज अणुपुव्वसो। नाणंमि दसणंमि य चरित्तंमि तवंमि य ॥४८॥ पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरुं। राइयं तु अईयारं आलोएज्ज जहक्कम ॥४९॥ पडिकमित्तु निस्सल्लो वन्दित्ताण तओ गुरूं। काउस्सग्गं तओ कुज्जा सव्वदुक्खविमाक्खणं ।। ५०॥ किं तवं पडिवज्जामि एवं तत्थ विचिन्तए। काउस्सग्गं तु पारित्ता वन्दई य तओ गुरुं ॥५१॥ पारियकाउस्सग्गो वन्दित्ताण तओ गुरूं।। तवं तु पडिवज्जेज्जा कुज्जा सिद्धाण संथवं ॥५२॥ एसा सामायारी समासेण वियाहिया। जं चरित्ता बहू जीवा तिण्णा संसारसागरं ॥५३॥ ॥त्ति बेमि।।
॥ सामायारी समत्ता ॥२६॥
॥ खलुंकिज्ज सप्तविंशतितमं अध्ययनम् ।।
थेरे गणहरे गग्गे मुणी आसि विसारए। आइण्णे गणिमावम्मि समाहि पडिसंधए ॥१॥ वहणे वहमाणस्स कन्तारं अइवत्तई। जोगे वहमाणस्स संसारी अइवत्तई ॥२॥ खलंके जो उ जोएड विहम्माणो किलिप्सई। असमाहिं च वेएइ तोत्तओ से य भज्जई ॥३॥ एगं डसइ पुच्छंमि एगं विन्धइऽभिक्खणं। एगो भंजइ समिलं एगो उप्पहपट्टिओ॥४॥ एगो पडइ पासेणं निवेसइ निवज्जई। उकुद्दइ उप्फिडइ सढे बालगवी वए॥५॥ माई मुद्धण पडइ कुद्धे गच्छइ पडिप्पहं। मयलक्खेण चिट्टई वेगेण य पहावई ॥६॥
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
२७.७ -]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
छिन्नाले छिन्दइ सेल्टिं दुद्दन्तो भंजए जगं। से वि य सुस्सुयाइत्ता उज्जाहत्ता पलायए ॥७॥ खलंका जारिसा जोज्जा दुस्सीसा वि हु तारिसा। जोइया धम्मजाणम्मि भजन्ति धिइदुन्धला॥८॥ इडीगारविए एगे एगेऽत्थ रसगारवे। सायागारविए एगे एगे सुचिरकोहणे॥९॥ भिक्खालसिए एगे एगे ओमाणभीरुए। थद्धे एगे अनुसासम्मी हेऊहिं कारणेहि य ॥१०॥ सो वि अन्तरभासिल्लो दोसमेव पकुवई। आयरियाणं तु वयणं पडिकूलेइऽभिक्खणं ॥११॥ न सा ममं वियाणाइ न य सा मज्झ दाहिई। निग्गया होहिई मन्ने साहू अन्नोऽत्थ वच्चउ ॥१२॥ पेसिया पलिउंचन्ति ते परियन्ति समन्तओ। रायवेटुिं च मन्नन्ता करेन्ति भिडिं मुहे ॥१३॥ वाइया संगहिया चेव भत्तपाणेण पोसिया। जायपक्खा जहा हंसा पक्कमन्ति दिसोविसिं। १४॥ अह सारही विचिन्तेइ खलंकेहि समागओ। किं मज्झ दुटुसीसेहिं अप्पा मे अवसीयई ॥१५॥ जारिसा मम सीसाओ तारिसा गलिगदहा। गलिगदहे जहित्ताणं दढं पगिण्हई तवं ॥१६॥ मिउ मद्दवसंपन्नो गम्भीरो सुसमाहिओ। विहरइ महिं महप्पा सीलभूएण अप्पणा ॥ १७॥त्ति वेमि ॥
॥ खलुंकिज्जं समत्तं ॥ २७॥
॥ मोक्खमग्गगई अष्टाविंशतितमं अध्ययनम् ।।
मोक्खमग्गगई तच्चं सुणेह जिणभासियं । चउकारणसंजुत्तं नाणदसणलक्खणं ॥१॥
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
८१.
मोक्खमग्गगई
[-२८.१६ नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गो त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहि ॥२॥ नाणं च देसणं चेव चरित्तं च तवी तहा। एयमग्गमणुप्पत्ता जीवा गच्छन्ति सोग्गई ॥३॥ तत्थ पंचविहं नाणं सुयं आभिनिबोहियं ।
ओहिनाणं तु तइयं मणनाणं च केवलं ॥४॥ एयं पंचविहं नाणं दुव्वाण य गुणाण य । पज्जवाण य सब्वेसिं नाणं नाणीहि दंसियं ॥५॥ गुणाणमासओ दन्वं एगदव्वस्सिया गुणा। लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे ॥६॥ धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गल-अन्तवो। एस लोगो त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं ॥७॥ धम्मो अहम्मो आगासं दवं इक्विकमाहियं । अणन्ताणि य दव्वाणि कालो पुग्गल-जन्तवो ॥ ८॥ गइलकखणो उ धम्मो अहम्मो ठाणलक्खणो। भायणं सव्वदव्वाणं नहं ओगाहलक्खणं ॥९॥ वत्तणालखणो कालो जीवो उवओगलक्षणो,। नाणेणं दसणेणं च सुहेण य दुहेण य ॥१०॥ नाणं च दंसणं चेव चरितं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य एयं जीवस्स लक्खणं ॥११॥ सद्दन्धयार-उज्जोओ पहा छायातवेवा। वण्णरसगन्धफासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥१२॥ एगत्तं च पुहत्तं च संखा संठाणमेव य। संजोगा य विभागा य पज्जवाणं तु लक्खणं ॥१॥ जीवाजीवा य बन्धो य पुण्णं पावासवो तहा। संवरो निज्जरा मोक्खो सन्तेए तहिया नव ॥१४॥ तहियाणं तु भावाणं सम्भावे उवएसणं। भावेणं सद्दहन्तस्स सम्मत्तं तं वियाहियं ॥१५॥ निसग्गवएसरुई आणालई सुत्त-बीयरुइमेव। .
अभिगम-वित्थाररुई किरिया-संखेव-धम्मई ॥१६॥ [ITS-II.U.6]
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
२८-१७-] उत्तराध्ययनसूत्रम्
भूयत्थेणाहिगया जीवाजीवा य पुण्णपावं च। सहसम्मइयासवसंवरो य रोएइ उ निसग्गो ॥१७॥ जो जिणदिटे भावे चउविहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नऽनह त्ति य स निसग्गरुइ ति नायवो ॥१८॥ एए चेव उ भावे उवइटे जो परेण सद्दहई। छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइ त्ति नायव्वो ॥१९॥ रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम ॥२०॥ जो सुत्तमहिज्जन्तो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायवो ॥२१॥ एगेण अणेगाई पयाई जी पसरई उ सम्मत्तं। उदर व्व तेल्लबिन्दू सो बीयरुइ त्ति नायव्वो ॥२२॥ सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्थओ दिटुं । एक्कारस अंगाई पइण्णगं दिट्ठिवाओ य ॥२३॥ दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा। सव्वाहि नयविहीहिं वित्थाररुइ त्ति नायव्वो॥२४॥ दसणनाणचरित्ते तवविणए सव्वसमिइगुत्तीसु। जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम ॥ २५॥ अणभिग्गहियकुदिट्री संखेवरुइ त्ति होइ नायवो। अविसारओ पवयणे अणभिग्गाही य सेसेसु ॥२६॥ जो अस्थिकायधम्मं सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च। सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइ ति नायवो ॥ २७॥ परमत्थसंथवो वा सुदिट्रपरमत्थसेवणा वा वि। वावन्नकुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥२८॥ नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं दसणे उ भइयत्वं । सम्मत्तचरित्ताई जुगवं पुत्वं व सम्मत्तं ॥ २९॥ नादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा। अगुणिस्स नत्थि मोक्खो नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥ ३०॥ निस्संकिय-निक्कंखिय-निवितिगिच्छा अमूढदिट्टी य। उबवूह-थिरीकरणे वच्छल्ल-पभावणे अट्ठ॥३१॥
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
a
सम्मत्तपरक्कमे
सामाइयत्थ पढमं छेओवट्ठावणं भवे षीयं । परिहारविसुद्धीयं सुदुमं तह संपरायं च ॥ ३२ ॥ अकसायं अहक्खायं छउमत्थस्स जिणस्स वा । - एयं चयरित्तकरं चारितं होइ आहियं ॥ ३३ ॥ तवो य दुविहो तो बाहिरम्भिन्तरो त । बाहिरी छवि वृत्तो एमेवब्भिन्तरो तो ॥ ३४ ॥ नाणेण जाणई भावे दंसणेण व सद्दहे । चरित्रेण न गेण्हाइ तवेज परिसुज्झई ॥ ३५ ॥
[ - २९.४१
खवेत्ता पुव्वकम्माई संजमेण तवेण य । सव्वदुक्खप्पहीणट्टा पक्कमन्ति महेसिणो ॥ ३६ ॥ ॥ त्ति बेमि ॥
4. मोक्खमग्गगई समता ॥ २८ ॥
॥ सम्मत्तपरक्कमे एकोनत्रिंशं अध्ययनम् ॥
सुयं मे आउ ते भगवया एवमक्खायं । इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नाम अज्झयणे समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेंइए जं सम्मं सहहित्ता पत्तियाइता रोयइत्ता फासिता पालइता तीरिता कित्तइत्ता सोहइत्ता आराहिता आणाए अणुपालहत्ता बहवे जीवा सिज्झन्ति बुज्झन्ति मुच्चन्ति परिनिव्वायन्ति सव्वदुक्खाण्णमन्तं करोन्ति । तस्स णं अयमट्ठे एवमाहिज्जा तं जहा । संवेगे १ निव्वेए २ धम्मसद्धा ३ गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया ४ आलोयणया ५ निन्दणया ६ गरिहणया ७ सामाइए ८
उस्वी सत्थवे ९ वन्दणे १० पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पञ्चक्खाणे १३ थवथुईमंगले १४ कालपडिलेहणया १५ पायच्छिखकरणे १६ खमाबयणया १७ सज्झाए १८ वायणया १९ पडिपुच्छणया २० पडियट्टणया २१ अणुप्पेहा २२ धम्मका २१ सुयस्ल आराहणया २४ एगग्गमणसंनिवेसणया २५ संजमे २६ तवे २० वोदाणे २८ सुहसाए २९ अप्पाडेबद्धया ३० विवित्तसय णास णसेवष्णया ३१ विणियदृणया ३२ संभोगपञ्चक्खाणे ३३ उवहिपच्चक्खाणे ३४ आहारपचक्खाणे ३५ कसायपच्चक्खाणे ३६ जोग
चक्खाणे ३७ सरीरपच्चक्खाणे ३८ सहायपच्चक्खाणे ३९ भचपच्चक्खाणे ४० सम्भावपच्चवखाणे ४१ पडिवणया ४२ बेयावच्चे ४३
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
२९.४४ -]
उत्तराध्ययनसूत्रम् सत्वगुणसंपुण्णया ४४ वीरागया १५- खन्ती १६ मुत्ती ४७ मद्दवे ४८. अज्जवे ४९ भावसच्चे ५० करणसच्चे ५१ जोगसच्चे ५२ मणगुत्तया ५३ वइगुत्तया ५४ कायगुत्तया ५५ मणसमाधारणया ५६ वइसमाधारणया ५७ कायसमाधारणया ५८ नाणसंपन्नया ५९ सणसंपन्नया ६० चरित्तसंपन्नया ६१ सोइन्दियनिग्गहे ६२ चक्खिन्दियनिग्गहे ३३ घाणिन्दियनिग्गहे ६४ जिभिन्दियनिग्गहे ६५ फासिन्दियनिग्गहे ३६ कोहविजए ६७ माणविजए ६८ मायाविजए ६९ लोहविजए ७० पेज्जदोसमिच्छादसणविजए ७१ सेलेसी ७२ अकम्मया ७३॥
१ संवेगेणं भन्ते जीवे किं जणयह॥ संवेगेणं अणुत्तरं धम्मसद्धं जणयइ । अणुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हवमागच्छइ । अणन्ताणुबन्धिकोहमाणमायालोभे खवेइ। कम्मं न बन्धइ। तप्पञ्चइयं च णं मिच्छत्तविसोहि काऊण दंसणाराहए भवइ । दसणविसोहीए य णं विसुद्धाए अत्थेगइए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ । सोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं नाइक्कमइ ॥१॥
२ निव्वेएणं मन्ते जीवे किं जणयइ ॥ निवेएणं दिवमाणुसतेरिच्छिएसु कामभोगेसु निवेयं हव्वमागच्छइ । सव्वविसएसु विरज्जइ सन्चाविसएसु विरज्जमाणे आरम्भपरिच्चायं करेइ। आरम्भपरिच्चायं करेमाणे संसार• मग्गं वोच्छिन्दह सिद्धिमग्गं पडिवले य भवइ॥२॥ . ३ धम्मसद्धाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ धम्मसद्धाए णं सायासोक्खेसु रज्जमाणे विरज्जइ। आगारधर्म च चयइ अणगारिए गं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं छेयणभेयणसंजोगाईणं वोच्छेयं करेइ. अन्वाबाहं च सुहं निव्वत्तेइ ॥३॥
४ गुरुसाहम्मियसुस्सूसणाए णं मन्ते जीवे कि जणयइ ॥ गुरुसाहम्मियसुस्सूसणाए णं विणयपडिवत्ति जणयह। विणयपडिवन्ने य णं जीवे अणच्चासायणसीले नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवदुग्गईओ निरुम्भह । वण्णसंजलणभत्तिबहुमाणयाए मणुस्सदेवगईओ निबन्धइ सिद्धि सोग्गई च विसोहेइ पसत्थाई च णं विणयमूलाई सबकज्जाई साहेइ । अन्ने य बहवे जीवे विणिइत्ता भवइ ॥४॥
५ आलोयणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ आलोयणाए णं मायानियाणमिच्छादरिसणसल्लाणं मोक्खमग्गविग्घाणं अणन्तसंसारबन्धणाणं उद्धरणं करेइ। उज्जुभावं च जणयइ। उज्जुभावपडिवन्ने य णं जीवे अमाई इत्थीवेयनपुंसगवेयं च न बन्धइ । पुचवद्धं च णं निज्जरेइ ॥५॥
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
सम्मत्तपरक्कमे
[- २९-१६
६ निन्दणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ निन्दणयाए णं पच्छाणुतावं जणय । पच्छाणुतावेणं विरज्जमाणे करणगुणसेढिं पडिवज्जइ । करणगुणसेटिं पडिवन्ने य णं अणगारे मोहणिज्जं कम्मं उग्धाएइ ॥ ६ ॥
७ गरहणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ गरहणयाए अपुरेक्कारं जणयइ । अपुरेक्कारगए णं जीवे अप्पसत्थेहिंतो जोगेहिंतो नियत्तेइ पसत्थे य पडिवज्जर पसत्थजोगपडिवन्ने य णं अणगारे अणन्त घाइपज्जवे खवे ॥ ७॥
८ सामाइएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ सामाइएणं सावज्जजोगविरइं
जणयह ॥ ८ ॥
९ चउव्वीसत्थएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ च० दंसणविसोहिं जणयइ ॥ ९ ॥
१० वन्दणणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ व० नीयागोयं कम्मं खवेइ | उच्चागोयं कम्मं निबन्धइ । सोहग्गं च णं अप्पडिहयं आणाफलं निव्वत्तेर दाहिणभावं च णं जणयइ ॥ १० ॥
११ पडिक्कमणेणं मन्ते जीवे किं जणयइ । प० वयछिद्दाणि पिहेइ । 'पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असबलचरित्ते अट्टसु पवयणमायासु उवउते अपुहत्ते सुप्पणिहिंदिए विहरइ ॥ ११ ॥
१२ काउस्सग्गेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ का० तीयपड़प्पन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ । विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वुयहियए ओहरियभरु व्वं भारवहे पसत्थज्झाणोवगए सुहंसुहेणं विहरइ ॥ १२ ॥
१३ पच्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ प० आसवदाराई निरुम्मइ । पच्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ । इच्छानिरोहं गए य णं जीवे सव्वदव्वंसु विणीयतण्हे सीइभूए विहरइ ॥ १३ ॥
१४ थवथुइमंगलेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ थ० नाणदंसणचरितबोहिलाभं जणयइ । नापदंसणचरित्तोहिलाभसंपन्ने य णं जीवे अन्तकिरियं कप्पविमाणोववत्तिगं आराहणं आराहेइ ॥ १४ ॥
१५ कालपडिलेहणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ का० नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ ॥ १५ ॥
१६ पायच्छित्तकरणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ पा० पावविसोहिं जय निरइयारे वावि भवइ । सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवज्जमाणे मृगं च मग्गफलं च विसोहेइ आयारं च आयारफलं च आराहेइ ॥ १६ ॥
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
८६
२९.१७-1
उत्तराध्ययनसूत्रम्
१७ खमावणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ ख० पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणभावसुवगए य सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु मेत्तीभावमुप्पाएइ। मेत्तीभावमुवगए यावि जीवे भावविसोहिं काऊण निभए भवइ ॥१७॥ १८ सज्झाएण भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ स० नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ ॥ १८ ॥
१९ वायणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ वा० निज्जरं जणयइ । सुयस्स य अणासायणाए बट्टए । सुयस्स अणासायणाए वट्टमाणे तित्थधम्मं अवलम्बइ । तित्थधम्मं अवलम्बमाणे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ ॥ १९ ॥
२० पडिपुच्छणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ प० सुत्तत्थतदुभया विसोइ । खामोहणिज्जं कम्मं वोच्छिन्दइ ॥ २० ॥
२१ परियहणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ प० वंजणाई जणयइ वैजगलद्धिं च उप्पाएइ ॥ २१ ॥
२२ अणुप्पेहा णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ अ० आउयवज्जाओ सतकम्मप्पगडीओ घणियबन्धणबद्धाओ सिटिलबन्धणबद्धाओ पकरेह | दीहकालइयाओ हस्सकालट्ठियाओ पकरेइ । तिव्वाणुभावाओ मन्दाणुभावाओ पकरेइ । [ बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ ] आउयं च णं कम्मं सिया बन्धइ सिया नो बन्धइ । असायावेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ अणाइयं च णं अणवद्ग्गं दीहमद्धं चाउरन्तं संसारकन्तारं खिप्पामेव वीइवयइ ॥ २२ ॥
२३ धम्मकहाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ ध० निज्जरं जणयइ । धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ । पवयणपभावेणं जीवे आगमेसस्स भद्दत्ताए कम्मं निबन्धई ॥ २३ ॥
२४ सुरस आराहणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ सु० अन्नाणं ads न य संकिलिस्सइ ॥ २४ ॥
२५ एगग्गमणसंनिवेसणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ ए० चित्तनिरोह करेइ ॥ २५ ॥
२६ संजमएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ सं० अणण्हयन्तं जणयइ ॥ २६ ॥ २७ तवेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ तवेणं वोदाणं जणयइ ॥ २७ ॥
२८ वोदाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ वो० अकिरियं जणयः । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ २८ ॥
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
सम्मत्तपरकमे
[-२९.३९ २९ सुहसाएणं मन्ते जीवे किंजणयह ॥ सु० अणुस्सय जणयइ । अणुस्सुयाए णं जीवे अणुकम्पए अणुभडे विगयसोगे चरित्तमोहणिज्जं कम्म खवेह ॥२९॥
३० अप्पतिवद्धयाए णं मन्ते जीवे कि जणयह ॥ अ० निस्संगतं जणयह । निस्संगत्तेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असज्जमाणे अप्पडिबद्धे यावि विहरह॥३०॥
३१ विवित्तसयणासणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयह ॥ वि० चरित्त. गृत्ति जणयइ। चरित्तगुत्ते य णं जीवे विविचाहारे दढचरिते एगन्तरए मोक्खभावपडिवन्ने अटविहकम्मगण्ठि निज्जरेह ॥३१॥
२ विनियदृणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयह ॥ वि० पावकम्माणं अकरण्याए अब्भुटेइ । पुत्वबद्धाण य निज्जरणयाए तं नियत्वेह तओ पच्छा चाउरन्तं संसारकन्तारं वीइक्या ॥३२॥
१३ संभोमपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयह॥सं० आलम्बणाई खवेइ । निरालम्बणस्स य आययट्रिया जोगा भवन्ति । सएणं लाभेणं संतुस्सइ परलाभं नो आसाएइ परलाभं नो तक्केइ नो पीहेइ नो पत्थेइ नो अमिलसइ। परलाभं अणस्सायमाणे अतक्केमाणे अपीहमाणे अपत्थेमाणे अणमिलसमाणे दुच्चं सुहसेजं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ ३३॥ -- ३४ उवहिपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे कि जणयह ॥ उ. अपलिमन्थं जणयहानिरुवहिए णं जीवे निक्कंसी उवहिमन्तरेण य न संकिलिस्सई ॥३४॥
३५ आहारपच्चक्खाणेणं मन्ते जीवे किं जणयइ ॥ आ० जीवियासंसप्पओग वोच्छिन्दइ । जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दिता जीवे आहारमन्तरेणं न संकिलिस्सइ ॥ ३५॥
३६ कसायपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे कि जणयइ ॥ क. वीयरागभावं जणयह । वीयरागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे मकह ॥३६॥
३७ जोगपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयह ॥ जो० अजोगत्तं जणयइ । अजोगी जं जीवे नवं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्धं निज्जरेइ ॥ ३७॥
३८ सरीरपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे कि जणयह ॥ स० सिद्धाइ. सयगुणत्तणं निव्वत्तेइ। सिद्धाइसयगुणसंपने य जं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ ॥ ३८॥
३९ सहायपञ्चक्खाणेणं भन्ते-जीवे कि जणयह ॥ स० एगीभावं जणयइ । एगीभावभूए वि य णं जीवे एगग्गं भावेमाणे अप्पझंझे अप्पकलहे
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
२९-३९ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
.८८
अप्पकसाए अप्पतुमंतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ ॥ ३९ ॥
४० भत्तपच्चक्खाणं मन्ते जीवे किं जणयइ ॥ भ० अणेगाईं भवसयाइं निरुम्भइ ॥ ४० ॥
४१ सब्भावपञ्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ स० अनियि arat | अनियgिपडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ तं जहा वेयणिज्जं आउयं नामं गोयं । तओ पच्छा सिज्झइ वुज्झइ मुच्चइ सव्वदुकखाणमन्तं करेइ ॥ ४१ ॥
४२ पडिवयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ प० लाघवियं जणयइ ।" - लघुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्थलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज्जरूवे अप्पडिलेहे जिइन्दिए विउलतवसमिइसमन्नागए यावि भवइ ॥ ४२ ॥
४३ वेयावच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ वे० तित्थयरनामगोतं कम्मं निबन्धइ ॥ ४३ ॥
४४ सव्वगुणसंपन्नया णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ स० अपुणरा-वत्तिं जणयइ । अपुणरावत्ति पत्तर य णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ ॥ 88 ॥
४५ वीयरागयाए णं मन्ते जीवे किं जणयइ ॥ वी० नेहाणुबन्धणाणि तण्हाणुबन्धणाणि य वोच्छिन्दइ मणुन्नामणुन्नेसु सदरूवर सफरिसगन्धेसु चेव विरज्जइ ॥ ४५ ॥
४६ खन्तीए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ ख० परीसहे जिणइ ॥ ४६ ॥ ४७ मुक्तीए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ मु० अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं अपत्थणिज्जो भवइ ॥ ४७ ॥
४८ अज्जवयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ अ० काउज्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ । अविसंवायणसंपन्नया ए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ ॥ ४८ ॥
४९ मद्दवयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ म० अणुस्सियत्तं जणय | अणुस्सियते णं जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाई निट्टावेइ ॥ ४९ ॥
५० भावसच्चेणं मन्ते जीवे किं जणयइ ॥ भा० भावविसोहिं जणयइ ॥ भावविसोहीए वट्टमाणे जीवे अरहन्तपनत्तस्स धम्मस्स आरा हणयाए अब्भुट्ठेइ | अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्त आराहणयाए अब्भुट्टित्ता परलोगधम्मस्स आराहए हवइ ॥ ५० ॥
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
सम्मत्तपरक्कमे
[ - ९९.६१
५१ करणसच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ क० करणसत्ति करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहावाई तहाकारी यावि
जणयइ । भवइ ॥ ५१ ॥
८९
५२ जोगसच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ जो० जागं विसोहेइ ॥५२॥ ५३ मणगुत्तयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ म० जीवे एगग्गं जणय | एगग्गचित्ते णं जीवे मणगुत्ते संजमाराहए भवइ ॥ ५३ ॥
५४ वयगुत्तयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ व० निव्वियारत्तं जणयइ । निव्विारे णं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते यावि भवइ ॥ ५४ ॥ ५५ कायगुत्तयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ का० संवरं जणयइ । संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोहं करेइ ॥ ५५ ॥
५६ मणसमाहारणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ म० एगग्गं जणया । एगग्मं जणइत्ता नाणपज्जवे जणयइ | नाणपज्जवे जणइन्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छत्तं च निज्जरेइ ॥ ५३ ॥
५७ वयसमाहारणयाए णं भन्ते जीवे किं जणय | व० वयसाहारणदंसणपज्जवे विसोहेइ । वयसाहारणदंसणपज्जवे विसोहित्ता सुलहबोहियत्तं निव्वत्तेर दुल्लहबोंहियत्तं निज्जरेइ ॥ ५७ ॥
५८ कायसमाहारणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ का० चरितपज्जवे विसोहेइ । चरित्तपज्जवे विसोहित्ता अहक्खायचरितं विसोइ । 'अहक्खायचरितं विसोहित्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ ५८ ॥
५९ नाणसंपन्नयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ना० जीव सव्वभावाहिगमं जणय | नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विणस्सर | जहा सूई ससुत्तापडिया न विणस्सइ । तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्स ॥ नाणविणयतवचरितजोगे संपाउणइ ससमयपरसमयविसार ए य असंघाय णिज्जे भवइ ॥ ५९ ॥
६० दंसणसंपन्नयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ दं० भवमिच्छतच्छेयणं करेइ परं न विज्झाया । परं अविज्झाएमाणे अणुत्तरेणं नाणदंसणेणं अप्पाणं संजोएमाणे सम्मं भावेमाणे विहरइ ॥ ६० ॥
६१ चरित्तसंपन्नयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ च० सेलेसी भावं जणयइ । सेलेसिं पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । त पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सुव्वदुक्खाणमन्तं करे इ ॥ ६१ ॥
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
२९.६९-] - उत्तराध्ययनसूत्रम्
९० . . ६२ सोइन्दियनिग्गहेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ सो० मणुलामणुनेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणयह तप्पञ्चइयं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्ध च निज्जरेइ ॥६॥
६३ चक्खिन्दियनिग्गहेणं भन्ते जीवे किं जणयह ॥ च० मणुनामणुनेसु रूवेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ तप्पचइयं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्धं च निज्जरेइ ॥६३॥ .
६४ घाणिन्द्रियनिग्गहेणं भन्ते जीवे कि जणयइ ॥ घा० मणुनामणुन्नेसु गन्धेसु रागदोसनिग्गहे जणयइ तप्पच्चइयं कम्म. न बन्धह पुन्वबद्धं च निज्जरेइ ॥६४॥
६५ जिन्भिन्दियनिग्गहेणं भन्ते जीवे किं जणयह ॥ जि० मणुनामगुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ .. पुन्वबद्धं च निज्जरेइ ॥६५॥
६६ फासिन्दियनिग्गहेणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ फा० मणुनामणुन्नेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धह पुवबद्ध च निज्जरेइ ॥६६॥
६७ कोहविजएणं भन्ते जीवे कि जणयइ ॥ को खन्ति जणयह कोहवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ पुथ्वबद्धं च निज्जरेइ ॥६॥
६८ माणविजएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ मा० मद्दवं जणयइ माणवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्धं च निज्जरेइ ॥६८॥
६९ मायाविजएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ मा० अज्जवं जणयइ मायावेयणिज्ज कम्मं न बन्धइ पुव्ववद्धं च निजरेइ ॥ ६९॥
७० लोभविजएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ॥ लो० संतोसं जणयह लोभवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ पुव्वबद्धं च निज्जरेह ॥ ७० ॥
___७१ पिज्जदोसमिच्छादसणविजएणं भन्ते जीवे किं जणयह। पि० नाणदंसणचरित्ताराहणयाए अब्भुटेइ ॥ अट्टविहस्स कम्मस्स कम्मगण्ठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणुपुवीए अटुवीसइविहं मोहणिज्जं कम्म उग्घाएइ पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दसणावराणज्जं पंचविहं अन्तरायं एए तिन्नि वि कम्मंसे जुगवं खवेइ । तो पच्छा अणुत्तरं कसिणं पडिपुण्णं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभासगं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेइ । जाव सजोगी भवइ ताव इरियावहियं कम्म निबन्धइ सुहफरिसं इसमयठिइयं । तं पढमसमए बद्धं बिइयसमए वेइयं
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
९१
तवमग्गं
[- ३०.६
तइयसमए निज्जिण्णं तं बद्धं पुटुं उदीरियं वेइयं निज्जिण्णं सेयाले य अकम्मं चावि भवइ ॥ ७१ ॥
७२ अहाउयं पालइत्ता अन्तोमुहुत्तद्भावसेसाउए जोगनिरोहं करेमाणे सुहुमकिरियं अप्पडिवाई सुक्कज्झाणं झायमाणे तप्पढमयाए मणजोगं निरुम्भइ वइजोगं निरम्भइ कायजोगं निरुम्भइ आणापाणनिरोहं करेइ ईसि पंचरहस्सक्खरुच्चारणद्वाए य णं अणगारे समुच्छिन्नकिरिय अनियट्टि सुक्कज्झाणं झियायमाणे वेयणिज्जं, आउयं नामं गोत्तं च एए चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेइ ॥ ७२ ॥
७३ तओ ओरालियतेयकम्माई सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते अफुसमाणगई उडुं एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गन्ता सागारोवउत्ते सिज्झइ बुज्झइ जाव अन्तं करेइ ॥ ७३ ॥
७४ एस खलु सम्मत्तपरक्कमस्स अज्झयणस्स अट्ठे समणेणं भगवया महावीरेणं आघविए पन्नविए परूविए दंसिए उवदंसिए ॥ ७४ ॥ ॥ त्ति बेमि ॥
॥ सम्मत्तपरक्कमे समत्ते ॥ २९ ॥
॥ तवमग्गं त्रिंशं अध्ययनम् ॥
जहा उ पावगं कम्मं रागदोससमज्जियं । खवेइ तवसा भिक्खू तमेगग्गमणो सुण ॥ १ ॥ पाणवहमुसावाया अदत्तमेहुणपरिग्गहा विरओ । राईभोयणविरओ जीवो भवइ अणासवो ॥ २ ॥ पंचसमिओ तिगुत्तो अकसाओ जिइन्दिओ । अगारवो य निस्सल्लो जीवो होइ अणासवो ॥ ३ ॥ एएसि तु विवञ्चासे रागद्दोस समज्जियं । खवेइ उ जहा भिक्खू तमेगग्गमणो सुण ॥ ४ ॥ जहा महातलायस्स सन्निरुद्धे जलागमे । उरिसचणाए तवणाए कमेणं सोसणा भवे ॥ ५ ॥ एवं तु संजयस्सावि पावकम्मनिरासवे । भवकोडीसंचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ ॥ ६ ॥
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
३०.७-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् सो तवो दुविहो वुत्तो बाहिरन्भिन्तरो तहा। बाहिरो छन्विहो वुत्तो एवमन्भिन्तरो तवो॥७॥ अणसणमूणोयरिया भिक्खायरिया य रसपरिचाओ। कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ॥८॥ इत्तरिय मरणकाला य अणसणा दुविहा भवे। इत्तरिय सावकंखा निरवकंखा उ बिइजिया ॥९॥ जो सो इत्तरियतवो सो समासेण छविहो।' सेढितवो पयरतवो घणो य तह होइ वग्गो य ॥१०॥ तत्तो य वग्गवग्गो पंचमो छ?ओ पइण्णतवो। मणइच्छियचित्तत्थो नायवो होइ इत्तरिओ॥११॥ जा सा अणसणा मरणे दुविहा सा वियाहिया। सवियारमवियारा कायचिटुं पई भवे ॥१२॥ अहवा सपरिकम्मा अपरिकम्मा य आहिया। नीहारिमणीहारी आहारच्छेओ दोसु वि॥१३॥ ओमोयरणं पंचहा समासेण वियाहियं । स्वओ खेत्तकालेणं भावेणं पज्जवेहि य॥१४॥ जो जस्स उ आहारो तत्तो ओमं तु जो करे। जहन्नेणेगसित्थाई एवं दवेण ऊ भवे ॥१५॥ गामे नगरे तह रायहाणिनिगमे य आगरे पल्ली। खेडे कब्बडदोणमुहपट्टणमडम्बसंबाहे ॥१६॥ आसमपए विहारे सन्निवेसे समायघोसे य। थलिसेणाखन्धारे सत्थे संवट्टकोढे य॥१७॥ वाडेसु व रच्छासु व घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं। कप्पइ उ एवमाई एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥१८॥ पेडा य अद्धपेडा गोमुत्तिपयंगवीहिया चेव। सम्बुक्कावट्टाऽऽययगन्तुंपञ्चागया छट्ठा॥१९॥ दिवसस्स पोरुसीणं चउण्हं पि उ जत्तिओ भवे कालो। एवं चरमाणो खलु कालोमाणं मुणेयव्वं ॥२०॥ अहवा तइयाए पोरिसीए ऊणाइ घासमेसन्तो। चउभागूणाए वा एवं कालेण ऊ भवे ॥२१॥
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
तवमग्गं
[-३०.३६ इत्थी वा पुरिसो वा अलंकिओ वाऽणलंकिओ वा वि। अन्नयरवयत्थो वा अन्नयरेणं व वत्थेणं ॥२२॥ अन्नेण विसेसेणं वण्णेणं भावमणुमुयन्ते उ। एवं चरमाणो खलु भावोमाणं मुणेयव्वं ॥२३॥ दवे खेत्ते काले भावम्मि य आहिया उ जे भावा। एपहि ओमचरओ पज्जवचरओ भवे भिक्खू ॥२४॥ अट्टविहगोयरग्गं तु तहा सत्तेव एसणा। अभिग्गहा य जे अन्ने भिक्खायरियमाहिया ॥२५॥ खीरदहिसप्पिमाई पणीयं पाणभोयणं । परिवज्जणं रसाणं तु भणियं रसविवज्जणं ॥२६॥ ठाणा वीरासणाईया जीवस्स उ सुहावहा । उग्गा जहा धरिज्जन्ति कायकिलेसं तमाहियं ॥२७॥ एगन्तमणावाए इत्थीपसुविवज्जिए। सयणासणसेवणया विवित्तं सयणासणं ॥२८॥ एसो बाहिरगतवो समासेण वियाहिओ। अन्भिन्तरं तवं एत्तो वुच्छामि अणुपुत्वसो ॥२९॥ पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं च विउस्सग्गो एसो अन्भिन्तरो तवो ॥३०॥ आलोयणारिहाईयं पायच्छित्तं तु दसविहं। जे भिक्खू वहई सम्मं पायच्छित्तं तमाहियं ॥ ३१॥ अन्भुटाणं अंजलिकरणं तहेवासणदायणं । गुरुभत्तिभावसुस्सूसा विणओ एस वियाहिओ ॥ ३९ ॥ आयरियमाईए वेयावच्चम्मि दसविहे। आसेवणं जहाथामं वेयावच्चं तमाहियं ॥ ३३॥ वायणा पुच्छणा चेव तहेव परियट्टणा। अणुप्पेहा धम्मकहा सज्झाओ पंचहा भवे ॥३४॥ अट्टरुद्दाणि वज्जित्ता झाएज्जा सुसमाहिए। धम्मसुक्काई झाणाई झाणं तं तु बुहा वए ॥ ३५ ॥ सयणासणठाणे वा जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्त विउस्सग्गो छट्ठो सो परिकित्तिओ ॥३६॥
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
३०.३७ - ]
उत्तराध्ययनसूत्रम
एवं तवं तु दुविहं जे सम्मं आयरे मुणी ।
से खिष्पं सव्वसंसारा विष्पमुच्च पण्डिए ॥ ३७ ॥ त्ति बेमि ॥
॥ तवमग्गं समत्तं ॥ ३० ॥
॥ चरणविही एकत्रिंशं अध्ययनम् ॥
चरणविहिं पवक्खामि जीवस्स उ सुहावहं । जं चरित्ता बहू जीवा तिष्णा संसारसागरं ॥ १ ॥
एगओ विरहं कुज्जा एमओ य पवत्तणं । असंजमे नियति च संजमे य पवत्तणं ॥ २ ॥
रागद्दोसे य दो पावे पावकम्मपवत्तणे ।
जे भिक्खू रुम्भई निचं से न अच्छइ मण्डले ॥ ३ ॥
दण्डाणं गारवाणं च सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयई निचं से न अच्छर मण्डले ॥ ४ ॥
दिव्वे य जे उवसग्गे तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खू सहई सम्मं से न अच्छइ मण्डले ॥ ५ ॥
विगहाकसायसन्नाणं झाणाणं च दुयं तहा । जे भिक्खू वज्जई निचं से न अच्छइ मण्डले ॥ ६ ॥ वसु इन्दियत्थेसु समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निञ्चं से न अच्छर मण्डले ॥ ७ ॥ . लेसासु छसु कापसु छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निचे से न अच्छर मण्डले ॥ ८ ॥ पिण्डोग्गहपडिमासु भयट्ठाणेसु सत्तसु ।
जे भिक्खू जयई निचं से न अच्छा मण्डले ॥ ९ ॥ मदेसु बम्भगुत्ती भिक्खुधम्ममि दसविहे । जे भिक्खू जयई निश्चं से न अच्छइ मण्डले ॥ १० ॥ उवासगाणं पडिमासु भिक्खूणं पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निचं से न अच्छर मण्डले ॥ ११ ॥
९४
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
पमायट्ठाणं
[- ३२.२ किरियासु भूयगामेसु परमाहम्मिएसु य। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छाइ मण्डले ॥१२॥ गाहासोलसएहिं तहा असंजमम्मि य। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छद मण्डले ॥१३॥ बम्भम्मि नायज्झयणेसु ठाणेसु या समाहिए। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छह मण्डले ॥१४॥ एगवीसाए सबले बावीसाए परीसहे।। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छह मण्डले ॥१५॥ तेवीसाइ सूयगडे रूवाहिएसु सुरेसुअ। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छह मण्डले ॥१६॥ पणुवीसभावणासु उद्देसेसु दसाइणं। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥१७॥ अणगारगुणेहिं च पगप्पम्मि तहेव य। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥१८॥ पावसुयपसंगेसु मोहट्टाणेसु चेव य। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले ॥१९॥ सिद्धाइगुणजोगेसु तेत्तीसासायणासु य। जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मण्डले॥२०॥ ईई एएस ठाणेसु जे भिक्खू जयई सया। खिप्पं सो सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पण्डिओ॥२१॥त्ति बमि॥
॥चरणविही समत्ता॥ ३१॥
॥पमायट्ठाणं द्वात्रिंशं अध्ययनम् ॥
अच्चन्तकालस्स समूलगस्स सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो। तं भासओ मे पडिपुण्णचित्ता सुणेह एगन्तहियं हियत्थं ॥१॥ नाणस्स सवस्स पगासणाए अन्नाणमोहस्स विवज्जणाए। रागस्स दोसस्स य संखएणं एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥२॥
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
३२.३--]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
तहसेस मग्गो गुरुविद्धसेवा विवज्जणा बालजणस्स दूरा । सज्झायएगन्तनिसेवणा य सुत्तत्थसंचिन्तणया धिई य ॥ ३ ॥ आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धि । निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्गं समाहिकामे समणे तवस्सी ॥ ४ ॥
९६
न वा लभेज्जा निउणं सहायं गुणाहियं वा गुणओ समं वा । एको वि पावाई विवज्जयन्तो विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो ॥ ५ ॥
जहा य अण्डप्पभवा बलागा अण्डं बलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहाययणं खु तण्हा मोहं च तण्हाययणं वयन्ति ॥ 11 रागो य दोसो विय कम्मबीयं कम्मं च मोहप्पभवं वयन्ति । कम्मं च जाईमरणस्स मूलं दुक्खं च जाईमरणं वयन्ति ॥ ७ ॥ दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा । तन्हा हया जस्स न होइ लोहो लोहो हओ जस्स न किंचणाई ॥ ८ ॥
रागं च दोसं च तहेव मोहं उद्धत्तुकामेण समूलजालं ।
जे जे उवाया पडिवज्जियव्वा ते कित्तइस्सामि अहाणुपुवि ॥ ९ ॥ रसा पगामं न निसेवियव्वा पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवन्ति दुमं जहा साउफलं व पक्खी ॥ १० ॥ जहा दवग्गी परिन्धणे वणे समारुओ नोवसमं उवेइ । एविन्दियग्गी वि पगामभोइणो न बम्भयारिस्स हियाय करसई ॥ ११ ॥ विवित्तसेज्जासणजन्तियाणं ओमासणाणं दमिइन्द्रियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ॥ १२ ॥ जहा बिराला सहस्स मूले न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे न बम्भयारिस्स खमो निवासो ॥ १३ ॥ नवलावण्णविलासहासं न जंपियं इंगियपहियं वा । इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता दहुं ववस्से समणे तवस्सी ॥ १४ ॥ असणं चेव अपत्थणं च अचिन्तणं चेव अकित्तणं च । इत्थी जणस्सारियझाणजुग्गं हियं सया बम्भवए रयाणं ॥ १५ ॥ कामं तु देवीहि विभूसियाहिं न चाइया खोभइउं तिगुत्ता । तहा वि एगन्तहियं ति नच्चा विवित्तवासो मुणिणं पत्थो ॥ १६ ॥ मोक्खाभिकंखिस्स उ माणवस्त संसार भीरुस्स ठियस्स धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए जहित्थिओ बालमणोहराओ ॥ १७ ॥
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
९७
पमायट्ठाणं
[- ३२.३२
एए य संगे समइक्कमित्ता सुदुत्तरा चेव भवन्ति सेसा । जहा महासागरमुत्तरित्ता नई भवे अवि गंगासमाजा ॥ १८ ॥ कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स । जं काइयं माणसियं च किंचि तस्सऽन्तगं गच्छ बीयरागो ॥ १९ ॥ जहा य किंपागफला मणोरमा रसेज वण्णेण यं भुज्जमाणा । ते खुड्डए जीविय परचमाणा एओवमा कामगुणा विवागे ॥ २० ॥ जे इन्द्रियाणं विसया मणुना न तेसु भावं निसिरे कयाइ । न याऽमणुने मणं पि कुज्जा समाहिकामे समणे तवस्सी ॥ ३१ ॥ चक्लुस्स रूवं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुनमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ २२ ॥ अवस्स खक्खुं गहणं वयन्ति चक्खुस्स रूवं महणं वयन्ति । रामस्स हेउं समणुनमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ २३ ॥ रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे आलोयलोले समुवेइ मच्चुं ॥ २४ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिनं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइन्तदोसेण सएण जन्तू न किंचि रूवं अवरुज्झई से ॥ २५ ॥ पान्तरत्ते रुइरंसि रूवे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेज मुणी विरामे ॥ २६ ॥ रुवाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ णेगरूवे । चित्तर्हि ते परितावे बाले पीलेइ अन्तट्ठगुरु किलिट्टे ॥ २७ ॥ रुवाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसनिओगे । वर विओगे य कहं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ २८ ॥
वे अतित्ते य परिग्गमि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । अतुट्टिदोषेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ २९ ॥ तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वडु लोभदोसा तत्थाऽवि दुक्खा न विमुञ्चई से ॥ ३० ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो रुवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ३१ ॥ रुवाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदृक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ३२ ॥ [JTS-II. U. 7]
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
३२.३३ -]
उत्तराबवनसूत्रम् पमेव रूवम्मि गोपओसं उवह दुक्खोहपरंपराओ। पटुचिचो य चिणाइ कम्मं से पुणो होइ बुहं विवाने ॥१३॥ रुवे विरतो मषुओ बिसोमो एएण दुक्खोहपरंपरेण। न लिप्पए भवमो वि सन्तो जलेण वा पोक्सारिणीपलासं॥३४॥ सोयस्स सई गहर्ष वयन्ति तं रागोउं तु मणुपमाहु।' तं दोसहेउं अमणुबमा समो व जो तेस वीयरामो ॥ ३५॥ सहस्स सोयं महणं वयन्ति सोबस्त सई महर्ष वयन्ति। रागस्स हेउं समणुषमाहु दोसस्स हेउं अमजुबमाहु॥३६॥ सद्देसु जो मिदिमुवेह तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे हरिणमिमे व सुद्धे सहे अतिते समुह मच्छु ॥ ३७॥ जे यावि कोसं समुवेद तिव्वं तंसिक्खणे से उ उवेद दुक्खं। दुद्दन्तदोसेण सपण जन्तू न किचि सह अबरुज्झई से॥१८॥ एगन्तरत्ते रुहरंसि सद्दे अतालिसे सेकुई पोर्स। दुक्खस्स संपीलमुवेद वाले न लिप्पई तेण मुणी विरामो ॥ ३९ ॥ सद्दाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसा णेयरवे। चित्तोहं ते परियाको पाले पीले अत्तमुक किलिडे ॥१०॥ सदाणुवाएण परिम्गहेण उप्पावणे रक्खणसबिओमे। ' वए विओगे य कहं सुहं से संमोमकाले य अतित्तिलामे ॥११॥ सद्दे आतित्ते य परिग्गहमि सत्तोवसत्तो न उवह तुष्टि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोमाविले आययई अदत्तं ॥१२॥ तण्हाभिभूयस्स अपत्तहारिणो सहे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वह लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से॥४३॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्यओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते। एवं अदत्ताणि समाययन्तो सहे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥४४॥ सहाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवमोगे वि किलेसबुक्खं निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ॥४५॥ एमेव सहम्मि गओ पओसं उबेह दुक्खोहपरंपराओ। पदचित्तो व चिणाइ कम्म जं से पुणो होड दुहं विवागे॥४६॥ सहे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण। न लिप्पए भवमझे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं॥४७॥
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
पमायाणं
[- ३९.६२
घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाह । तं दोसउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ४८ ॥ गन्धस्स घाणं गहणं वयन्ति घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुनमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ४९ ॥ गन्धेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावर से विणासं । 'रागाउरे ओसहगन्धगिद्धे सप्पे बिलाओ विव निक्खमन्ते ॥ ५० ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । बुद्दन्तदासेण सएण जन्तु न किंचि गन्धं अवरुज्झई से ॥ ५१ ॥ एमन्तरत्ते रुइरंसि गन्धे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलसुवंर वाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ५२ ॥ मन्धाणुगा साणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ जेगरूवे । चित्तेर्हि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्टे ॥ ५३ ॥
९९
मन्धाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । व विओगे य कहं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ ५४ ॥ गन्धे अतित्चे य परिम्महमि सत्तोवसत्तो न उबेर तुट्ठि । अतुट्ठदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ५५ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो गन्धे अतित्तस्स परिग्गहे य । मासामुयं वडइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुञ्चई से ॥ ५६ ॥ मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ य पओगकाले व दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो गन्धे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ५७ ॥ गन्धाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोबमोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ५८ ॥ एमेव गन्धम्मि गओ पओसं उवेह दुक्खोहपरंपराओ । पटुचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ५९ ॥ गन्धे विरत्ती मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ६० ॥ जिब्भाए रसं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ६१ ॥ रसस्स जिन्भं गहणं वयन्ति जिन्भाए रसं महणं वयन्ति । -रागस्स हेडं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ६२ ॥
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
३९.६३– ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
रसेसु जो गेहिमुवेर तिव्वं अकालियं पावर से विणासं । रागाउरे बडिसविभिन्नकाए मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ॥ ६३ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवे दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू रसं न किंचि अवरुज्झई से ॥ ६४ ॥ एगन्तरन्ते रुइरे रसम्मि अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ६५ ॥ रसाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ णेगरूवे । चित्तेर्हि ते परितावेह वाले पीलेइ अत्तट्ठगुरु किलिट्टे ॥ ६६ ॥
१००
रसाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसच्चिओगे । वए विओगे यं कहं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ ६७ ॥ रसे अतित्ते य परिग्गहंमि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । अतुट्टिदासेण दुही परस्स लोभाविले आययई अवृत्तं ॥ ६८ ॥ तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वडइ लोभदोसा तत्थावि हुक्खा न विमुच्चई से ॥ ६९ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओमकाले य दुही दुरन्ते । एवं अताणि समाययन्तो रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ७० ॥ . रसाणुरत्तस्स नरस्त एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ७१ ॥ एमेव रसम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठचित्तो य चिणाह कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ७२ ॥ रसे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ७३ कायस्स फासं गहणं वयन्ति तं रामहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दो सहेउं अमणुचमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ७४ ॥ फासरस कार्य गहणं वयन्ति कायस्स फाखं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुनमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ७५ ॥ फासेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावर से विणासं । रागाउरे सीयजलावसने गाहम्गहीए महिसे विवन्ने ॥ ७६ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिब्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदासेण सएण जन्तु न किंचि फासं अवरुज्झई से ॥ ७७ ॥
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
पमायट्ठाणे .
[-३३.९२ एगन्तरत्ते रुइरंसि फासे अतालिसे से कुणई पओसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो॥७॥ फासाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ गरूवे। चित्तेहिं ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तगुरू किलिट्टे॥७९॥ फासाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसनिओगे। वए विओगे य कहं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥८०॥ फासे अतित्ते य परिग्गहमि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्टि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥१॥ तहाभिभूयस्य अदत्तहारिणो फासे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वडा लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चाई से ॥८२॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते। एवं अदत्ताणि समाययन्तो फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥८३॥ फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि। तत्थोवमोगे वि किलेसदुखं निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ॥ ८४ ॥ एमेव फासम्मि गओ पोसं उवह दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणार कम्मं जं से पुणो होड दुहं विवागे॥ ५॥ फासे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥८६॥ मणस्त भावं गहणं वयन्ति तं रागहेडं तु मणुन्नमाहुः । तं दोसहेउं अमणुनमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो॥८७॥ भावस्स मणं गहणं वयन्ति मणस्स भावं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेडं अमणुनमाहु ॥८॥ भावेसु जो गिद्धिमुवेद तिव्वं अकालियं पावर से विणासं। रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे करेणुमग्गावाहिए गए वा ॥८॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तसि क्खणे से उ उवेह दुक्ख । दुद्दन्तदोसण सएण जन्तू न किचि भावं अवरुज्झई से ॥१०॥ एगन्तरत्ते रुहरंसि मावे अतालिसे से कुणई पओसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो॥९१॥ भावाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसह णेगरूवे। चित्तेहिं ते परितावेइ ब्राले पीलेइ अत्तगुरू किलिटे ॥ ९२ ॥
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९.९३ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
भावाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसनिओगे ।
वए विओगे य कहं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ ९३ ॥ भावे अतित्ते य परिग्गहंमि सत्तोवसत्तो न उवे तुट्ठि । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अवृत्तं ॥ ९४ ॥ तण्हाभिभूयस्त अदत्तहारिणो भावें अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वडुइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुचई से ॥ ९५ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो भावे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ९६ ॥ भावाणुरत्तस्स नरस्त एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ॥ ९७ ॥ एमेव भावम्मि गओ पओसं-उवेश दुक्खोहपरंपराओ । पट्टचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुष्णो. होइ दुहं विवागे ॥ ९८ ॥ भावे विरत्तो मणुओ विसोमो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ९९ ॥ एविन्दियत्था य मणस्स अत्था दुक्खस्स हेउं मणुयस्स रागिणो । ते चेव थोवं पि कयाइ दुक्खं न वीयरामस्स करेन्ति किंचि ॥ १०० ॥
१०९
न कामभोगा समयं उवेन्ति न यावि भोगा विगई उवेन्ति । जे तप्पओसी य परिग्गही य सो तेसु मोहा विगई उवेइ ॥ १०१ ॥ कोहं च माणं च तहेव मायं लोह दुगुंछं अरई रहं च । हासं भयं सोगपुमित्थिवेयं नपुंसवेयं विविहे य भावे ॥ १०२ ॥ आवज्जई एवमणेगरूवे एवंविहे कामगुणेसु सत्तो । अ य एयप्पभवे विसेसे कारुण्णदीणे हिरिमे वहस्से ॥ १०३ ॥ कप्पं न इच्छिज्ज सहायलिच्छू पच्छाणुतावेण तवप्पभावं । एवं वियारे अभियप्पयारे आवज्जई इन्दियचोरवरसे ॥ १०४ ॥ तओ से जायन्ति पओयणाई निमज्जिडं मोहमहण्णवम्मि । सुहेसिणो दुक्खविणोयणट्ठा तप्पच्चयं उज्जमए य रागी ॥ १८५ ॥ विरज्जमाणस्स य इन्द्रियत्था सद्दाश्या तावइयप्पगारा । न तस्स सव्वे वि मणुन्नयं वा निव्वन्त्तयन्ती अमणुन्नयं वा ॥ १०६ ॥ एवं ससंकप्पविकप्पणासुं संजायई समयमुवट्टियस्स । अत्थे असंकष्पयओ तओ से पहीयए कामगुणेसु तन्हा ॥ १०७ ॥
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०३
कम्मपयडी
स वीयरागो कयसव्यकिच्चो खवेइ नाणावरणं खणणं । तहेव जं दंसणमावरेह जं चऽन्तरायं पकरेंह कम्मं ॥ १०८ ॥ सव्वं तओ जाणइ पासए य अमोहणे होइ निरन्तराए । अणासवे झाणसमाहिजुत्ते आउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे ॥ १०९ ॥ सो तस्स सव्वस्स दुहस्स मुक्को जं बाहई सययं जन्तुमेयं । दीहामयं विप्पमुक्को पसत्यो तो होइ अञ्चन्तसुही कयत्थो ॥ ११० ॥ अणाइकालप्पभवस्स एसो सव्वस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो । वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता कमेण अञ्चन्तसुही भवन्ति ॥ १११ ॥ त्ति बेमि ॥
॥ पमायट्ठाणं समत्तं ॥ ३२ ॥
॥ कम्मपयडी त्रयस्त्रिंशं अध्ययनम् ॥
अटु कम्माई वोच्छामि आणुपुवि जहक्कमं । जहिं बद्धो अयं जीवो संसारे परिवट्टई ॥ १ ॥ नाणस्सावरणिज्जं दंसणावरणं तहा । वेयणिज्जं तहा मोहं आउकम्मं तहेव य ॥ २ ॥ नामकम्मं च गोयं च अन्तरायं तहेव य । एवमेयाई कम्माई अट्ठेव उ समासओ ॥ ३॥ नाणावरणं पंचविहं सुयं आभिणिबोहियं । ओहिनाणं च तइयं मणनाणं च केवलं ॥ ४ ॥ निद्दा तहेव पयला निद्दानिद्दा पयलपयला य । तत्तो य थी गिद्धी उ पंचमा होइ नायव्वा ॥ ५ ॥ चक्खुमचक्खुओहिस्स दंसणे केवले य आवरणे । एवं तु नवविगप्पं नायव्वं दंसणावरणं ॥ ६ ॥ वेयणीयं पिय दुविहं सायमसायं च आहियं । सायरस उ बहू भेया एमेव असायस्स वि ॥ ७ ॥ मोहणिज्जं पि दुविहं दंसणे चरणे तहा । दंसणे तिविहं वृत्तं चरणे दुविहं भवे ॥ ८ ॥
[- ३३८
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
३३.९-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् सम्मत्तं चेव मिच्छतं सम्मामिच्छत्तमेव य । एयाओ तिथि पयडीओ मोहणिजस्स सणे ॥९॥ चरित्तमोहणं कम्मं इविहं तु वियाहियं । कसायमोहणिजं तु नोकसायं तहेव च ॥१०॥ सोलाविहमेएणं कम्मं तु कसायज। सत्तविहं नवविहं वा कम्मं च नोकसायजं ॥११॥ नेरइयतिरिक्खाउंमणुस्साउं तहेव य। देवाउयं चउत्थं तु आउकम्मं चउन्विहं ॥१९॥ नाम कम्मं तु दुविहं सुहममुहं च आहियं। सुहस्त उ बहू भेया एमेव असुहस्स वि ॥ ११॥ मोयं कम्मं दुविहं उच्चं नीरंच आहियं। उच्च अट्रेविहं होह एवं नीर्य पि आहियं ॥ १४॥ दाणे लामे य भोमे य उवमोगे वीरिए तहा। पंचविहमन्तरायं समासेमविवाहिये ॥१५॥ एयाओ मूलपयडीओ उसराओ य आहिया। पएसम्मं खेत्तकाले य भावं चाहत्तरं सुण ॥१६॥ सम्वेसिं चेव कम्माणं पएसम्ममणन्तम। गण्ठियसत्ताईयं अन्तो सिद्धाण आहियं ॥१७॥ सत्यजीवाण कम्मं तु संगहे छद्दिसागयं। सन्वेस वि पएसेस सव्वं सब्वेण बदगं ॥१८॥ उदहीसरिसनामाण ती कोडिकोडिओ। उक्कोसिया ठिई होइ अन्तोमुलुत्तं जहनिया ॥१९॥ आवरणिज्जाण दुण्हं पि वेयणिजे तहेव य। अन्तराए य कम्मम्मि ठिई एसा वियाहिया ॥२०॥ उदहीसरिसनामाणं सत्तर कोडिकोडिओ। मोहणिजस्स उकोसा अन्तोमुहुत्तं जहनिया॥२१॥ तेत्तीस सागरोवमा उक्कोसेण वियाहिया। ठिई उ आउकम्मस्स अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥२२॥ उदहीसरिसनामाणं वीसई कोडिकोडिओ। नामगोत्ताणं उक्कोसा अट्ठ मुहत्ता जहन्निया ॥२३.
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०५
लेसझयणं
[-३४.१० सिद्धाणऽणन्तभागो य अणुभागा हवन्ति । सम्वेस वि पएसग सव्वजीवे सऽइच्छियं ॥२४॥ तम्हा एएसि कम्माण अणुभागे वियाणिया। एपसि संवरे चैव खवणे य जए बुहे ॥२५॥ति बेमि॥
कम्मपयडी समत्ता ॥३३॥
॥लेसज्झयणं चतुस्त्रिंशं अध्ययनम् ॥ लेसज्झयणं पवक्खामि आणुपुन्वि जहकम। छह पि कम्मलेसाणं अणुभावे सुणेह मे १॥ नामाई वण्णरसगन्धफासपरिणामलक्खणं। ठाणं ठिई गई चाउं लेसाणं तु सुणेह मे ॥२॥ किण्हा नीला य काय तेज पम्हा तहेव य । सुकलेसा य छट्ठा ये नामाई तु जहकमं॥३॥ जीमूयनिरसंकासा गवलरिटुगसनिमा। . संजणनयणनिमा किण्हलेसा उ वण्णओ॥४॥ नीलाऽसोगसंकासा चासपिच्छसमप्पमा॥.. बेरुलियनिद्धसंकासा नीललेसा उ वण्णओ ॥५॥ अयसीपुप्फसंकासा कोइलच्छदसानिमा। पारेवयगीवनिमा काऊलेसा उवण्णओ॥६॥ हिंगुलधाउसंकासा तरुणाइञ्चसनिमा। सुयतुण्डपईवनिमा तेऊलेसा उ वण्णओ ॥७॥ हरियालमेयसंकासा हलिहाभेयसंनिमा। सणासणकुसमनिमा पम्हलेसा उ वण्णओ ॥८॥ संखंककुन्दसंकासा खीरपूरसमप्पमा। रययहारसंकासा सुक्कलेसा उ वण्णओ॥९॥ जह कडुयतुम्बगरसो निम्बरसो कडुयरोहिणिरसो वा। पत्तो वि अणन्तगुणो रसो य किण्हाए नायन्वो॥१०॥
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
३४.११-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् जह तिकडुयस्स य रसो तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ नीलाए नायवो ॥११॥ जह तरुणअम्बगरसो तुवरकविट्ठस्त वावि जारिसओ। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ काऊए नायवो ॥१२॥ जहपरिणयम्बगरसो पक्ककविठ्ठस्स वावि जारिसओ। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ तेऊए नायवो ॥१३॥ वरवारुणीए व रसो विविहाण व आसवाण जारिसओ। महुमेरयस्त व रसो पत्तो पम्हाए परएणं॥१४॥ खज्जूरमुद्दियरसो खीररसो खण्डसक्कररसो वा। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ सुक्काए नायवो ॥१५॥ जह गोमडस्स गन्धो सुणगमडस्स व जहा आहिमडस्स। एत्तो वि अणन्तगुणो लेसाणं अप्पसत्याणं ॥१६॥ जह सुरहिकुसुमगन्धो गन्धवासाण पिस्समाणाणं । एत्तो वि अणन्तगुणो पसत्थलेसाणं तिण्हं पि ॥१७॥ जह करगयस्स फासो गोजिन्भाए व सागपत्ताणं । एत्तो वि अणन्तगुणो लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥१८॥ जह बूरस्स व फासो नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं । एत्तो वि अणन्तगुणो पसत्थलेसाण तिण्हं पि ॥१९॥ तिविहो व नवविहो वा सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा। दुसओ तेयालो वा लेसाणं होइ परिणामो ॥२०॥ पंचासवप्पवत्तो तीहिं अगुत्तो छसुं अविरओ य । तिव्वारम्भपरिणओ खुड्डो साहसिओ नरो॥२१॥ निद्धन्धसपरिणामो निस्संसो अजिइन्दिओ। एयजोगसमाउत्तो किण्हलेसं तु परिणमे ॥२२॥ इस्साअमरिसअतवो अविज्जमाया अहीरिया य । गेही पओसे य सढे पमत्ते रसलोलुए ॥२३॥ आरम्भाओ अविरओ खुड्डो साहस्सिओ नरो। एयजोगसमाउत्तो नीललेसं तु परिणमे ॥२४॥ वंके वंकसमायारे नियडिल्ले अणुज्जुए। पलिउंचग ओवहिए मिच्छदिट्ठी अणारिए ॥२५॥
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
- लेसज्मयों
[-३४.४० उप्फालगदुष्टुवाई य तेणे यावि य मच्छरी। एयजोगसमाउत्तो काऊलेसं तु परिणमे ॥२६॥ नीयावित्ती अचवले अमाई अकुऊहले। विणीयविणए दन्ते जोगवं उवहाणवं ॥२७॥. पियधम्मे वढधम्मे वजमीरू हिएसए। एयजोगसमाउत्तो तेऊलेसं तु परिणमे ॥२८॥ पयणुक्कोहमाणे य मायालोमे य पयणुए। पसन्तचित्ते दन्तप्पा जोगवं उवहाणवं ॥२९॥ तहा पयणुवाई य उवसन्ते जिइन्दिए। एयजोगसमाउत्तो पम्हलेसं तु परिणमे ॥३०॥ अरुहाणि वजित्ता धम्मसुक्काणि शायए। पसन्तचित्ते दन्तप्पा समिए गुत्ते य गुत्तिसु॥३१॥ सरागे वीयरागे वा उवसन्ते जिइन्दिए। एयजोगसमाउत्तो सुक्कलेसं तु परिणमे ॥३२॥ असंखिजाणोसप्पिणीण उस्सप्पिणीण जे समया। संखाईया लोगा लेसाण हवन्ति ठाणा ॥३३॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना तेत्तीसा सागरा मुहुत्तहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा किण्हलेसाए ॥३४॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना दस उदही पलियमसंखभागमभहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा नीललेसाए ॥३५॥ मुहुतद्धं तु जहन्ना तिण्णुदही पलियमसंखभागमभाहया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा काउलेसाए ॥३६॥ मुहुतद्धं तु जहन्ना दोण्णुदही पलियमसंखभागमभाहया । उकोसा होइ ठिई नायव्वा तेउलेसाए ॥३७॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना दस होन्ति य सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायब्वा पम्हलेसाए ॥ ३८॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना. तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया! उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा सुक्कलेसाए ॥३९॥ एसा खलु लेसाणं ओहेण ठिई उ वणिया होइ । चउस वि गईसु एत्तो लेसाण ठित वाच्छामि ॥ ४०॥
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
३४.४१ --]
उत्तराध्ययनसूत्रम् दस वाससहस्साई काऊए ठिई जहन्निया होइ । तिण्णुदही पलियमसंखभागं च उक्कोसा ॥४१॥ तिण्णुदही पलियवमसंखमागो जहन्न नीलठिई । दस उदही पलिओवममसंखभागं च उक्कोसा ॥४२॥ दस उदही पलिओवममसंखभागं जहन्निया होइ। तेत्तीससागराई उक्कोसा होइ किण्हाए ॥४३॥ एसा नेरइयाणं लेसाण ठिई उ वणिया होइ। तेण परं वोच्छामि तिरियमणुस्साण देवाणं ॥४४॥ अन्तोसुहुत्तमद्धं लेसाण ठिई जहिं जहिं जाउ। तिरियाण नराणं वा वज्जित्ता केवलं लेसं ॥४५॥ मुहुत्तद्धं तु जहना उक्कोसा होह पुत्वकोडी उ। नवहि वरिसहिं ऊणा नायव्वा सुक्कलेसाए ॥४६॥ एसा तिरियनराणं लेसाण ठिई उ वणिया होइ। तेण परं वोच्छामि लेसाण ठिई उ देवाणं ॥४॥ दस वाससहस्साई किण्हाए ठिई जहनिया होइ। पलियमसंखिज्जइमो उक्कोसा होइ किण्हाए ॥४८॥ ज़ा किण्हाए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमन्महिया। जहन्नेणं नीलाए पलियमसंखं च उक्कोसा॥४९॥ . जा नीलाए ठिई खलु उक्कोसा साउ समयमन्महिया। जहनेणं काऊए पलियमसंखं च उक्कोसा ॥५०॥ तेण परं बोच्छामि तेऊलेसा जहा सुरगणाणं। भवणवह-वाणमन्तर-जोइस-चेमाणियाणं च ॥५१॥ पलिओवमं जहन्ना उक्कोसा सागरा उ दुण्हऽहिया। पलियमसंखेज्जेणं होई सभागेण तेऊए ॥५२॥ दस वाससहस्साई तेऊए ठिई जहनिया होह। दुण्णुदही पलिभोवमअसंखभागं च उक्कोसा ॥५३॥ जा तेऊए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया। जहनेणं पम्हाए दस मुद्त्ताऽहियाई उक्कोसा ॥५४॥ जा पम्हाए ठिई खलु उक्कोसा सा उसमयमभहिया। जहन्नेणं सुक्काए तेत्तीसमुहुत्तमन्भहिया ॥ ५५॥
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०९
अणगारज्झयण
[-३५.५. किण्हा नीला काऊ तिनि वि एयाओ अहम्मलेसाओ। एयाहि तिहि वि जीवो दुग्गई उववजई ॥५६॥ तेऊ पम्हा सुक्का तिमि वि एया धम्मलेसाओ। एयाहि तिहि वि जीवो सुग्गई उववज्जई ॥५७॥ लेसाहिं सवाहिं पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । नहु कस्सह उववाओ परे भवे अस्थि जीवस्स ॥५८॥ लेसाहिं सव्वाहिं चरिमे समयम्मि परिणयाहिं तु। न हु कस्सह उववाओ परे भवे अस्थि जीवस्स ॥५९॥ अन्तमुहत्तम्मि गए अन्तमुत्तम्मि सेसए चव। लेसाहिं परिणयाहिं जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥६॥ तम्हा एयासि लेसाणं अणुभावं वियाणिया। अप्पसत्थाओं वज्जित्ता पसत्थाओंऽहिट्टिए मुणि ॥६१॥
॥त्ति बेमि ॥
लेसज्झयणं समत्तं ॥ ३४॥
॥अणगारज्झयणं पञ्चत्रिंशं अध्ययनम् ॥
सुणेह मे एगमणा मग्गं बुद्धहिं देसियं । जमायरन्तो भिक्खू दुक्खाणन्तकरे भवे ॥१॥ गिहवासं परिञ्चज्ज पवजामस्सिए मुणी। इमे संगे वियाणिज्जा जेहिं सज्जन्ति माणवा ॥२॥ तहेव हिंसं अलियं चोजं अवम्भसेवणं । इच्छाकामं च लोभं च संजओ परिवज्जए ॥३॥ मणोहरं चित्तघरं मल्लधूवेण वासियं। . सकवाडं पण्डुरुल्लोवं मणसा वि न पत्थए ॥४॥ इन्दियाणि उ भिक्खुस्स तारिसम्मि उवस्सए। दुकराई निवारे कामरागविवडणे ॥५॥
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
३५.६ – ]
उत्तराध्ययन सूत्रम्
सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एक्कओ । पइरिक्के परकडे वा वासं तत्थऽभिरोयए ॥ ६ ॥ फासुयम्मि अणाश्वाहे इत्थीहि अणभिहुए । तत्थ संकप्पए वासं भिक्खू परमसंजए ॥ ७ ॥ न सयं गिहाई कुविज्जा व अन्नेहिं कारए । गिहकम्मसमारम्भे भूयाणं दिस्सए वहो ॥ ८ ॥ तसाणं थावराणं च सुदुमाणं बायराण य । तम्हा गिहसमारम्भं संजओ परिवज्जए ॥ ९ ॥ तहेव भत्तपाणेसु पयणे पयावणेसु य । पाणभूयदयडाए न फ्ये न पयावए ॥ १० ॥
जलधन्ननिस्सिया जीवा पुढवीकट्ठनिस्सिया । हम्मान्ति भत्तपाणेसु तम्हा भिक्खू न पयावए ॥ ११ ॥
विसप्पे सव्वओधारे बहुपाणविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे तम्हा जोहं न दीवए ॥ १२ ॥ हिरण्णं जायख्वं च मणसा वि न पत्थए । समलेडुकंचणे भिक्खू विरए कयविक्कए ॥ १३ ॥ किन्तो कइओ होइ विक्किणन्तो य वाणिओ । कविक्यम्मि वट्टन्तो भिक्खू न भवइ तारिसो ॥ १४ ॥ भिक्खियव्वं न केयत्वं भिक्खुणा भिक्खवित्तिणा । कविक्कओ महादोसो भिक्खावित्ती सुहावहा ॥ १५ ॥ समुयाणं उंछमे सिज्जा जहासुत्तमणिन्दियं । लाभालाभम्मि संतुट्टे पिण्डवायं चरे मुणी ॥ १६ ॥ अलोले न रसे गिद्धे जिन्भादन्ते अमुच्छिए । न र सट्टाप भुंजिज्जा जवणट्ठाए महामुणी ॥ १७ ॥ अच्त्रणं रयणं चैव वन्दणं पूयणं तहा । इड्डीसक्कारसम्माणं मणसा वि न पत्थए ॥ १८ ॥ सुक्कं झाणं झियाएजा अणियाणे अकिंचणे । वोसटुकाए विहरेज्जा जाव कालस्स पज्जओ ॥ १९ ॥ निज्जूहिऊण आहारं कालधम्मे उवट्टिए । जहिऊण माणुसं बोदि पहू तुक्खा विमुञ्चई ॥ २० ॥
११०
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीवाजीवविमत्ति .. [-३६.११ निम्ममे निरहंकारे वीयरामो अणासवो। संपत्तो केवलं.नाणं सासयं परिणिबुडे ॥ २१ ॥ त्ति बेमि ॥
॥ अणमारज्झयणं समत्तं ॥ ३५ ॥.
॥जीवाजीवविमत्ती पत्रिंशं अध्ययनम् ॥ 36॥ जीवाजीवविभत्ति सणेह मे एगमणा इओ। जं जाणिऊण मिक्खू सम्म जयह संजमे ॥१॥ जीवा चेव अजीवा व एस लोए वियाहिए। अजीवदेसमामाले अलोने से वियाहिए ॥२॥ दत्वओ खत्तओ चेव कालओ भावओ तहा। परूवणा तेसि भवे जीवाणमजीवाण य॥२॥ रूविणो चेवऽरुवीय अजीवा विहा भवे। अरूवी दसहा वुत्ता रूविणो यचउब्बिहा४॥ धम्मत्थिकाए तसे तप्पएसे य आहिए। अहम्मे तस्स देसे व तप्पएसे य आहिए ॥५॥ आगासे तस्स देसे बतप्पएसे य आहिए। अद्धासमए चेव अरूवी दसहा भवे ॥६॥ धम्माधम्मे य दो चेव लोगमित्ता वियाहिया। लोगालोगे य आगासे समए समयखेत्तिए॥७॥ धम्माधम्मागासा तिनि वि एए अणाझ्या। अपज्जवसिया चेव सव्वद्धं तु वियाहिया ॥८॥ समए वि सन्तई पप्प एक्मेव वियाहिए। आएसं पप्प साईए सपज्जवसिए वि य॥९॥ खन्धा य खन्धदेसा य तप्पएसा तहेव य। परमाणुणो य बोदवा रूविणो य चउन्विहा॥१०॥ एगत्तेण पुहत्तेण खन्धा य परमाणुणो। लोएगदेसे लोप य भइयव्या से उखेत्तओ।
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६.११ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं च उम्विहं ॥ ११ ॥
संत पप्प तेऽणाई अपज्जवसिया वि य । ठि पडुच्च साईया सपज्जवसिया विय ॥ १२ ॥
असंखकालमुक्कोसं एक्को समओ जहनयं । अजीवाण य रूवीणं ठिई एसा वियाहिया ॥ १३ ॥
अणन्तकालसुक्को समेक्को समओ जहन्नयं । अजीवाण य रूवण अन्तरेयं वियाहियं ॥ १४ ॥ वण्णओ गन्धओ चैव रसओ फासओ तहा ।
ठाणओ य विओ परिणामो तेसि पंचहा ॥ १५ ॥ वण्णओ परिणया जे उ पंचहा ते पकिन्तिया । किver नीला य लोहिया हालिद्दा सुकिला तहा ॥ १३ ॥ गन्धओ परिणया जे उ दुविहा ते वियाहिया । सुब्भिगन्धपरिणामा डुब्भिगन्धा तहेव य ॥ १७ ॥ रसओ परिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । तित्तकडुयकसाया अम्बिला मडुरा तहा ॥ १८ ॥ फासओ परिणया जे उ अट्टहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउया चेव गरुया लहुया तहा ॥ १९ ॥ सीया उण्हा य निद्वा य तहा लुक्खा य आहिया । इय फासपरिणया एए पुग्गला समुदाहिया ॥ २० ॥ संठाणपरिणया जे उ पंचहा ते पकित्तिया । परिमण्डला य वट्टा व तंसा चउरंसमायया ॥ २१ ॥ aण्णओ जे भवे किण्हे भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चैव भइए संठाणओ विय ॥ २२ ॥ वण्णओ जे भवे नीले भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ वेव भइए संठाणओ विय ॥ २३ ॥
वण्णओ लोहिए जे उ भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चैव भइए संठाणओ वि य ॥ २४ ॥ वण्णओ पीयए जे उ भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चैव भइए संठाणओ वि य ॥ २५ ॥
११२
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीवाजीवविमत्ती
[-३६.४० वण्णओ सुकिले जे उ भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेय भइए संठाणओ वि य ॥२६॥ गन्धओ जे भवे सुन्मी भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥२७॥ गन्धओ जे भवे दुम्भी भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥२८॥ रसओ तित्तए जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ फासओ चेव भइए संठाणी वि य॥ २९॥ रसओ कडुए जे उ भइए से उवण्णओ। गन्धओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥३०॥ रसओ कसाए जे उ भइए से उवण्णओ। गन्धओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥३१॥ रसओ अम्बिले जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ फासओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥३२॥ रसओ महरए जे उभइए से उ वण्णओ। गन्धी फासओ चेव भइए संठाणओ वि य॥३३॥ फासओ कक्खडे जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ विय ॥ ३४॥ फासओ मउए जे उ भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥१५॥ फासओ गुरुए जे उ भइए से उ वण्णी । गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य॥३६॥ फासओ लहुए जे उ भइए से उवण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥ ३७॥ फासओसीयए जे उ भइए से उवण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥३८॥ फासओ उण्हए जे उ भइए से उवण्णओ। गन्धओ रसओ चेव. भइए संठाणओ वि य ॥३९॥ फासओ निद्धए जेउ भइए-से उवण्णओ।
गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणी वि य॥४०॥ [ITS-ILU. 8].
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६.४१-] उसराध्ययनसूत्रम्
फासओ लुक्खए जे उभइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए संठाणओ वि य ॥४१॥ परिमण्डलसंठाणे भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य॥४२॥ संठाणओ भवे वट्टे भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य॥४३॥ संठाणओ भवे तसे मइए से उवण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य ॥४४॥ संठाणओ भवे चउरंसे मइए से उ वण्णओ।। गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य॥१५॥ जे आययसंठाणे भइए से उवण्णओ। गन्धओ रसओ चेव भइए फासओ वि य॥४६॥ एसा अजीवविभत्ती समासेण वियाहिया। इत्तो जीवविभत्ति वुच्छामि अणुपुव्वसो ॥४७॥ संसारत्था य सिद्धा य दुविहा जीवा वियाहिया। सिद्धा गविहा वुत्ता तं मे कित्तयओ सुण ॥४८॥ इत्थी पुरिससिद्धा य तहेव य नपुंसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य गिहिलिंगे तहेव य॥४९॥ उक्कोसोगाहणाए य जहन्नमज्झिमाइ य। उहूं अहे य तिरियं च समुद्दम्मि जलम्मि य ॥५०॥ दस य नपुंसफ्सुं वीसं इत्थियासु य। पुरिसेस या अट्टसयं समएणेगेण सिज्झई॥५१॥ चत्तारि य गिहिलिंगे अन्नलिंगे इसेव य। सलिंगेण अट्टसयं समएणेगेण सिज्झई ॥५२॥ उक्कोसोगाहणाए य सिज्मन्ते जुगवं दुवे। चत्तारि जहनाए मज्झे अटुत्तरं सयं ॥५॥ चउरुड्डलोए य दुवे समुद्दे तओ जले वीसमहे तहेव य। सयं च अटुत्तर तिरियलोए समएणेगेण सिज्झई धुवं ॥५४॥ कहिं पडिहया सिद्धा कहिं सिद्धा पट्टिया। कहिं बोन्दि ब्रहत्ताणं कत्थ मन्तूण सिज्झई ॥ ५५॥
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
२१५
जीवाजीवविभत्ती
अलोए पsिहया सिद्धा लोयग्गे य पइट्टिया । इहं बोदि चरत्ताणं तत्थ गन्तूण सिज्झई ॥ ५६ ॥ बारसहिं जोयणेहिं सव्वट्टस्सुवरिं भवे । ईसीपमारनामा उ पुढवी छत्तसंठिया ॥ ५७ ॥
पणयालसयसहस्सा जोयणाणं तु आयया । तावइयं चैव वित्थिण्णा तिगुणो साहियपरिरओ ॥ ५८ ॥ अट्ठजोयणबाहुल्ला सा मज्झम्मि वियाहिया । परिहायन्ती चरिमन्ते मच्छियपत्ताओ तणुयरी ॥ ५९ ॥ अज्जुणसुवण्णगमई सा पुढवी निम्मला सहावेणं । उत्ताणगछत्तगसंठिया य भणिया जिणवरेहिं ॥ ६० ॥ संखंक कुन्दसंकासा पण्डुरा निम्मला सुहा । सीयाए जोयणे तत्तो लोयन्तो उ वियाहिओ ॥ ६१ ॥ जोयणस्स उ जो तत्थ कोसो उवरिमो भवे । तस्स कोसस्स छब्भाए सिद्धाणोगाहणा भवे ॥ ६२ ॥ तत्थ सिद्धा महाभागा लोगग्गम्मि पट्टिया । मवप्पवंचओ मुक्का सिद्धिं वरगई गया ॥ ६३ ॥ उस्सेहो जस्स जो होइ भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणा तत्तो य सिद्धाणोमाहणा भवे ॥ ६४ ॥ एगत्तेण साईया अपज्जवसिया विय । : पुहत्तेण अणाईया अफज्जवसिया वि य ॥ ६५ ॥ अरूविणो जीवघणा नाणदंसणसन्निया । अउलं सुहं संपत्ता उवमा जस्स नत्थि उ ॥ ६६ ॥ लोगेगदेसे ते सब्वे नाणदंसणसन्निया । संसारपारनित्थिण्णा सिद्धिं वरगई गया ॥ ६७ ॥ संसारत्था उ जे जीवा दुविहा ते वियाहिया । तसा य थावरा चैव थावरा तिविहा तहिं ॥ ६८ ॥
पुढवी आउजीवा य तहेव य वणस्सई । इच्चेए थावरा तिंविहा तेसिं भेए सुणेह मे ॥ ६९ ॥
[ - ३६.७०
दुविहा पुढवीजीवा सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ॥ ७० ॥
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६·७१ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
बायरा जे उ पज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया । सहा खरा य बोद्धव्वा सण्हा सत्तविहा तहिं ॥ ७१ ॥ किण्हा नीला य रुहिरा य हालिद्दा सुक्किला तहा । पण्डुपणगमट्टिया खरा छत्तीसईविहा ॥ ७२ ॥
पुढवी य सक्करा वालुया य उवले सिला य लोणूसे । अय-तय-तम्ब - सीसंग - रुप्प - सुवण्णे य वहरे य ॥ ७३ ॥ हरियाले हिंगुलुए मणोसिला सासगंजण- पवाले । अब्भपडलऽब्भवालुय बायरकार मणिविहाणे ॥ ७४ ॥ गोमेज्जए य रुयगे अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय-मसारगल्ले भुयमोयग - इन्दनीले य ॥ ७५ ॥ चन्द्रण- गेरुय-हंसगब्भे पुलए सोगन्धिए य बोद्धव्वे । चन्दप्पह-वेरुलिए जलकन्ते सूरकन्ते य ॥ ७६ ॥ एए खरपुढवी भेया छत्तीसमाहिया ।
विह्मणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया ॥ ७७ ॥ सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदे से य बायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउन्विहं ॥ ७८ ॥ संत पप्पऽणाई या अपज्जवसिया विय । ठिडं पडुच साईया सपज्जवसिया वि य ॥ ७९ ॥ बावीससहस्साइं वासाणुकोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं अन्तोमुहत्तं जहन्निया ॥ ८० ॥ असंखकालमुक्कीसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पुढवीणं तं कायं तु अमुंचओ ॥ ८१ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तीमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए का पुढवीजीवाण अन्तरं ॥ ८१ ॥ एसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि विहाणारं सहस्सओ ॥ ८३ ॥ दुविहा आउजीवा उ सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ॥ ८४ ॥ बायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदय उस्से हरतणू महिया हिमे ॥ ८५ ॥
११६
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीवाजीवविमत्ती
[-३६.१०० एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया। सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा ॥८६॥ सन्तई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया विय। ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ ८७॥ सत्तेव सहस्साई वासाणुकोसिया भवे। आउट्टिई आऊणं अन्तोमुत्तं जहचिया ॥८॥ असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुहुतं जहन्न। कायटिई आजणं तं कायं तु अमुंचओ। ८९॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहाय। विजदंमि सए काए आऊजीवाण अन्तरं ॥९०॥ एपसि वयोव मन्धो रसफासी। संठाणदेसओ वाबि विहाणाई सहस्सो ॥११॥ दुविहा वणस्सईजीवा सहुमा वायरा तहा। पजत्तमपज्जत्ता एवमेए दुहा पुणो ॥ ९२॥ बायरा जे उ पज्जत्ता दुबिहा ते वियाहिया। साहारणसरीराब पत्तेमा य तहेव य॥९॥ पत्तेगसरीरा उजेगहा ते पकित्तिया। रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य लया वल्ली तणा तहा ॥९॥ वलया पवमा कुहुणा जलरुहा ओसही तहा। हरियकाया य बोद्धव्वा पत्तेगाई वियाहिया ॥१५॥ साहारणसरीरा उ महा ते पकित्तिया। आलुए मूलए चेव सिंगबेरे तहेव य ॥१६॥ हरिली सिरिली सस्सिरिली जावई केयकन्दली। पलण्डुलसणकन्दे य कन्दली य कुडुपए ॥९७॥ लोहिणीहू य थीहू य कुहगा य तहेव य । कन्दे य वजकन्दे य कन्दे सूरणए तहा॥९८॥ अस्सकण्णी य बोद्धव्वा सीहकण्णी तहेव य। मुसुण्ढी य हलिहा यऽणेगहा एवमायओ ॥९९॥ एगविहमणाणत्ता सहुमा तत्य क्यिाहिया। . सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा ॥१०॥
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६:१०१ - उत्तराध्ययनसूत्रम्
संतई पप्पऽणाईया अपजवसिया वि यः। ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥१०१॥ दस चेव सहस्साईवासाणुक्कोसिया मवे। . वणप्लैण आउं अन्तोसुकुत्तं जहनगं ॥ १० ॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहनयं। . कायठिई पणमाणं तं कायं तु असुंचओ॥ १०३॥ असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुत्तं जहनयं। विजढंमि सए काए. पणमजीवाण अन्तरं ॥१०॥ एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो॥ १०५ ॥ इच्चेए थावरा तिविहा समासेण वियाहिया। इत्तो उ तसे तिविहे वुच्छामि अणुपुव्वसो॥ १०६ ॥ तेऊ वाऊ य बोद्धन्वा उराला य तसा तहा। .. इच्चेए तसा तिविहा तेर्सि मेए सुणेह मे ॥१०७॥ दुविहा तेउजीवा उ मुहमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेप दहा पुणो ॥१०८॥ बायरा जे उ पज्जत्ता गहा ते वियाहिया। इंगाले मुम्मुरे अगणी अछि जाला तहेव य ॥१०९॥ उक्का विज्जू य बोद्धव्वा गहा एवमायओ। एगविहमणाणता सुदुमा ते वियाहिया ॥ ११०॥ सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा। इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउन्विहं ॥ ११९॥ संतई पप्पडणाईया अपज्जवसिया विय। ठिहं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥११२ ॥ तिण्णेव अहोरत्ता उक्कोसेण वियाहिया। आउट्टिई तेऊणं अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥११३॥ असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं। कायट्टिई तेऊणं तं कायं तु अमुंचओ ॥ ११४ ॥ अणन्तकालमुक्कोतं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं। .. विजढांम सए काए तेज्जीवाण अन्तरं ॥११५॥
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीवाजीवविभत्ती [-३६.१३० एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वाविं विहाणाई सहस्ससो ॥११६॥ दुविहा वाउजीवा उ सुहमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेव दुहा पुणो॥ ११७ ॥ बायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया। उक्कलिया-मण्डलिया-घण-गुंजा सुद्ध-वाया य॥११८॥ संवगवाया यऽणेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया॥ ११९ ॥ सहुमा सव्वलोगम्मि एगदेसे य बायरा। रत्तो कालविभागं तु तेर्सि वुच्छं चउन्विहं ॥ १२०॥ संतई पप्पडणाइया अपज्जवसिया विय। ठिई.पडुश्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥१२१॥ तिण्णेव सहस्साई वासाणुक्कोसिया भवे। आउट्टिई वाऊणं अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥१९॥ असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं। कायट्टिई वाऊणं तं कायं तु अमुंचओ ॥१२३॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं। विजदंमि सए काए वाउजीवाण अन्तरं ॥१४॥ एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो॥१२५॥ ओराला तसा जे उचउहा ते पकित्तिया। बेइन्दिय-तेइन्दिय-चउसे-पंचिन्दिया चेव ॥१२६ ॥ बेइन्दिया उजे जीवा दुविहा ते पकित्तिया। पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १२७॥ किमिणो सोमंगला चव अलसा माइवाहया। वासीमुहा य सिप्पीया संखा संखणगा तहा ॥ १२८॥ पल्लोयाणुल्लया चेव तहेव य वराडगा। जलूगा जालगा चेव चन्दणा य तहेव य॥१२९॥ इइ बेइन्दिया एए णेगहा एवमायओ। लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १३०॥
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६-१३१ – ]
-
उत्तराध्ययनसूत्रम्
संत पप्पऽणाई या अपज्जवसिया वि य ।
ठिरं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ १३१ ॥ वासाइं बारसा वेव उक्कोसेण वियाहिया । इन्दियआउठिई अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १३२ ॥ संखिज्जकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियकायठि तं कायं तु अमुंचओ ॥ १३३ ॥
अणन्तकालमुक्कोसं अन्तो मुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियजीवाणं अन्तरं च वियाहियं ॥ १३४ ॥ एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो ॥ १३५ ॥ तेइन्द्रिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १३३ ॥ कुन्थुपिवलिउडुसा उक्कलुद्देहिया तहा ।
तणहारकट्ठहाराय मालुरा पत्तहारगा ॥ १३७ ॥ कप्पासऽट्ठिमिजा यन्तिदुगा तरसमिजगा । सदावरी य गुम्मी य बोद्धव्वा इन्दगाइया ॥ १३८ ॥ इन्दगोवगमाईया गहा एवमायओ ।
लोगगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १३९ ॥ संत पप्पाणाईया अपज्जवसिया विय | ठिरं पडुच्च साईया सपज्जवसिया विय ॥ १४० ॥
J
एगूणपणऽहोरत्ता उक्कोसेण वियाहिया । तेइन्दिय आउठिई अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १४१ ॥
संखिज्जकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियकायठि तं कायं तु अमुंचओ ॥ १४२ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियजीवाणं अन्तरेयं वियाहियं ॥ १४३ ॥ एएसिं वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि विहाणारं सहस्ससो ॥ १४४ ॥ चउरिन्दिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १४५ ॥
. १९०
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
१११
जीवा जीवविभत्ती
अन्धिया पोत्तिया चेव मच्छिया मसगा तहा । भमरे कीडपयेंगे य टिंकुणे कुंकुणे तहा ॥ १४६ ॥ कुक्कुडे भिंगिरीडी य नन्दावत्ते य विंछिए । टोले भिंगारी य विरली अच्छिवेहए ॥ १४७ ॥ अच्छिले माह अच्छिरोडए विचित्ते चित्तपत्तए । ओहिंजलिया जलकारी य नीया तन्तवयाइया ॥ १४८ ॥ इय चउरिन्दिया एए ऽणेगहा एवमायओ । लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १४९ ॥ संत पप्पऽणाईया अपज्जवसिया विय । ठि पडुच्च साईया सपज्जवसिया विय ॥ १५० ॥
[ - ३६.१६
छच्चेव य मासा उ उक्कोसेण वियाहिया । चउरिन्दिय - आउठिई अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १५१ ॥
संखिज्जकालमुक्कोसं अन्तो मुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दिय - कायठिई तं कार्यं तु अमुचओ ॥ १५२ ॥
अणन्तकालमुक्कोसं अन्तो मुहुत्तं जहन्नयं । चाउरिन्दियजीवाणं अन्तरेयं वियाहियं ॥ १५३ ॥ एएसिं वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो ॥ १५४ ॥ पंचिन्दिया उ जे जीवा चउव्विहा ते वियाहिया । नेरइयतिरिक्खा य मणुया देवा य आहिया ॥ १५५ ॥ नेरइया सत्तविहा पुढवीसु सत्तसू भवे । रयणाभसक्कराभा वालुयाभा य आहिया ॥ १५६ ॥
पंकाभा धूमाभा तमा तमतमा तहा । इइ नेरइया एए सत्तहा परिकित्तिया ॥ १५७ ॥ लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे उ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु वोच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ १५८ ॥ संत पप्पडणाईया अपज्जवसिया वि य ।. ठि पडुन्छ साईया सपज्जवसिया विय ॥ १५९ ॥ सागरोवममेगं तु उक्कोसेण वियाहिया । पढमाए जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥ १६० ॥
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२९
३६.९६१ -] उत्तराध्ययनसूत्रम्
तिण्णेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। दोच्चाए जहनेणं एगं तु सागरोवमं ॥१६१॥ सत्तेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। तइयाए जहन्नेणं तिण्णेव सागरोवमा ॥१६॥ दस सागरोवमा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। चउत्थीए जहन्नेणं सत्तेव सागरोवमा ॥१६३ ॥ सत्तरस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। पंचमाए जहन्नेणं दस चेव सागरीवमा ॥१६॥ बावीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। छट्ठीए जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ॥१६५॥ तेत्तीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। सत्तमाए जहनेणं बावीसं सागरोवमा ॥१६६ ॥ जा चेव य आउठिई नेरइयाणं वियाहिया। ' सा तेसिं कायठिई जहन्नुकोसिया भवे ॥१६७॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहुन्तं जहन्नयं। विजढंमि सए काए नेरइयाणं अन्तरं ॥ १६८ ॥ एपसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो॥ १६९ ॥ पंचिन्दियतिरिक्खाओ दुविहा ते वियाहिया। सम्मुच्छिमतिरिक्खाओ गम्भवक्कन्तिया तहा॥ १७ ॥. दुविहा ते भवे तिविहा जलयरा थलयरा तहा। खहयरा य बोद्धव्वा तेर्सि भेए सुणेह मे ॥ १७१॥ मच्छा य कच्छभा य गाहा य मगरा तहा। सुंसुमारा य बोद्धव्वा पंचहा जलयराहिया ॥ १७२॥ लोएगदेसे ते सव्वे न सम्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु वोच्छं तेसिं चउन्विहं ॥ १७३ ॥ संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ १७४॥ एगा य पुत्वकोडी उ उक्कोसेण वियाहिया। आउट्टिई जलयराणं अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १७ ॥
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीवाजीवविमती [-३६.१९१. पुन्चकोडीपुटुत्तं तु उक्कोसेण वियाहिया। कायट्टिई जलयराणं अन्तोमुत्तं जहसिया ॥ १७ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं। विजढूमि सए काए जलयराणं अन्तरं ॥ १७७ ॥ एपसिं वण्णओ चेव गंधओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो ॥१७॥ चउप्पया य परिसप्पा दुविहा थलयरा भवे । चउप्पया चउविहा ते मे कित्तयओ सुण ॥ १७९ ॥ एगखुरा दुखुरा चेव गण्डीपयसणप्पया। हयमाइगोणमाइगयमाइसीहमाइणो ॥१८० ॥ भुओरगपरिसप्पा य परिसप्पा दुविहा भवे।. मोहाई अहिमाई य एकेका गहा भवे ॥ १८१॥ लोएगदेखे ते सव्वे न सम्वत्य वियाहिया। एत्तो कालविभागं तु वोच्छं तेसिं चउन्विहं ॥१८॥ संतई पप्पणाईया अपज्जवसिया विय। टिइं पडुच साईया सपज्जवसिया वि य ॥१८३ ॥ पलिओवमा तिणि उ उक्कोसेज वियाहिया। आउट्टिई थलयराणं अन्तोसुहुत्तं जहनिया ॥ १८४ ॥ पुवकोडिपुहत्तेणं अन्तोमुत्तं जहनिया। कायट्टिई थलयराणं अन्तरं तेसिमं भवे ॥१८५ ॥ कालमणन्तमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहनयं। विजढम्मि सए काए थलयराणं तु अन्तरं ॥१८६॥ चम्मे उ लोमपक्खी य तझ्या समुग्गपक्खिया। विययपक्खी य बोद्धव्वा पक्खिणो य चउन्विहा ॥१८७॥ लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया। इत्तो कालविभागं तु वोच्छं तेसिं चउब्विहं ॥१८८॥ संतई पप्पऽणाईयां अपज्जवसिया वि य। ठिहं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥१८९॥ पलिओवमस्स भागो असंखेज्जइमो भवे। आउट्टिई खहयराणं अन्तोमुत्तं जहानिया ॥१९०॥ असंखभागो पलियस्स उक्कोसेण उ साहिओ। पुवकोडीपुहत्तेणं. अन्तोमुत्तं जहलिया॥ १९१ ॥
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६.१९२-] उत्सराध्ययनसूत्रम्
कायठिई सहयराणं अन्तरं तसिमं भवे। कालं अणन्तमुकोसं अन्तोमुहत्तं जहवायं ॥१९॥ एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संअणदेसओ वावि विहाणाहं सहस्ससो॥१९३॥ मणुया दुविहमेया उ ते मे कित्यओ सुण। संमुच्छिमा य मणुया मन्भवकन्तिया तहा ॥१९४॥ गब्मवकन्तिया जे उ तिविहा ते वियाहिया। अकम्मकम्मभूमा य अन्तरद्दीवया तहा ॥ १९५ ॥ पन्नरस तीसविहा भेया अट्टवीसई। संखा उ कमसो तेसिं इह एसा वियाहिया ॥१९६ ॥ संमुच्छिमाण एसेव मेओ होइ वियाहिओ। लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे विविवाहिया ॥१९७॥ संतई पप्पडणाईया अपज्जवसिया विय। ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ १९८॥ पलिओवमाई तिणि उ असंखज्जाइमो भवे । आउट्टिई मणुयाणं अन्तोमुहुत्तं जहचिया ॥१९९॥ पलिओवमाई तिणि उ उक्कोसेण उ साहिया। पुवकोडिपुहत्तेणं अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥२०॥ कायट्टिई मणुयाणं अन्तरं तेसिमं भवे। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहवयं ॥ २०१॥ एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो॥२०॥ देवा चउन्विहा वुत्ता ते मे कित्तयओ सुण । मोमिज्ज-वाणमन्तर-जोइस-वेमाणिया तहा ॥ २०३॥ इसहा भवणवासी अट्टहा वर्णचारिणी। पंचविहा जोइसिया दुविहा वेमाणिया तहा ॥ २०४॥ असुरा नागसुबण्णा विज्जू अग्गी वियाहिया। दीवोदहिदिसा वाया थणिया. मवणवासिणो । २०५॥ पिसायभूया जक्खा य रक्खसा किश्वराय किंपुरिसा। महोरगा य गन्धन्वा अट्टविहा वाणमन्तरा॥२०६ ॥ .
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीवाजीवविभत्ती
[-३६.९२२
चन्दा सूरा य नक्खत्ता गहा तारागणा तहा। दिसाविचारिणो चेव पंचहा जोइसालया॥ २०७॥ वेमाणिया उजे देवा दुविहा ते वियाहिया। कप्पोवगा य बोद्धव्वा कप्पाईया तहेव य ॥ २०८॥ कप्पोवगा बारसहा सोहम्मीसाणगा तहा। सर्णकुमारमाहिन्दा बम्भलोगा य लन्तगा ॥ २०९॥ महामुक्का सहस्सारा आणया पाणया तहा। आरणा अच्चुया चेव इइ कप्पोवगा सुरा ॥२१०॥ कप्पाईया उजे देवा दुविहा ते वियाहिया। गेविज्जाऽणुत्तरा चेव गेविजा नवहा तहिं ॥ २११ ॥ हेट्ठिमाहेट्ठिमा चेव हेट्ठिमामज्झिमा तहा। हेट्ठिमाउरिमा चेव मज्झिमाहेट्ठिमा तहा ॥ २१२ ॥ मज्झिमामज्झिमा चेव मज्झिमाउवरिमा तहा। उवरिमाहेट्टिमा चेव उवरिमामज्झिमा तहा ॥ २१३ ॥ उवरिमाउवरिमा चेव इय गेविज्जगा सुरा। विजया वेजयन्ता य जयन्ता अपराजिया ॥ १४ ॥ सव्वत्थसिद्धगा चेव पंचहाणुत्तरा सुरा। इय वेमाणिया एए गहा एवमायओ॥ २१५ ॥ लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे विवियाहिया। इत्तो कालविभागं तु वोच्छं तेसिं चउन्विहं ॥ २१६ ॥ संतई पप्पाडणाईया अपज्जवसिया विय।. ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥२७॥ साहियं सागरं एवं उक्कोसेणं ठिई भो। भोमेज्जाणं जहनेणं दसवाससहस्सिया ॥२१८॥ पलिओवममेगं तु उक्कोसेणं ठिई भवे । वन्तराणं जहनेणं दसवाससहस्सिया ॥ २१९॥ पलिओवनमेगं तु वासलक्खेण साहियं । पलिओवमट्टभागो जोइसेसु जहनिया ॥२२०॥ दो चेव सागराई उक्कोसेण वियाहिया। सोहम्मंमि जहन्नेणं एगं च पलिओवमं ॥२२१॥ सागरा साहिया दुन्नि उक्कोसेणं वियाहिया। ईसाणम्मि जहनेणं साहियं पलिओवमं ॥ २२२ ॥
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६.२२३ -] उत्तराध्ययनसूत्रम्
सागराणि य सत्तेव उक्कोसेणं ठिई भवे । सणंकुमारे जहनेणं दुन्नि ऊ सागरोवमा ॥२२३॥ साहिया सागरा सत्त उक्कोसेणं ठिई भवे । माहिन्दम्मि जहन्नेणं साहिया दुन्नि सागरा ॥ २२४॥ दस चेव सागराइं उक्कोसेणं ठिई भवे । बम्भलोए जहनेणं सत्त ऊ सागरोवमा ॥२२५॥ चउद्दस सागराई उक्कोसेणं ठिई भवे । लन्तगम्मि जहन्नेणं दस ऊ सागरोवमा ॥२२६ ॥ सत्तरस सागराई उक्कोसेणं ठिई भवे। महासुक्के जहन्नेणं चोद्दस सागरोवमा ॥ २२७॥ अट्ठारस सागराइं उक्कोसेणं ठिई भवे। सहस्सारे जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ॥ २२८ ॥ सागरा अउणवीसं तु उकोतेणं ठिई भवे। आणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा ॥ २२९॥ वीसं तु सागराई उक्कोसेणं ठिई भवे। पाणयम्मि जहन्नेणं सागरा अउणवीसई ॥ २३०॥ सागर। इक्वीसं तु उक्कोसेणं ठिई भवे। आरणम्मि जहन्नेणं वीसई सागरोवमा ॥२३१॥ बावीसं सागराइं उक्कोसेणं ठिई भवे। अच्चुयम्मि जहन्नेणं सागरा इक्कवीसई ॥२३२ . तेवीस सागराइं उक्कोसेणं ठिई भवे। पढमम्मि जहनेण बावीसं सागरोवमा ॥२३३॥ चउवीस सागराइं उक्कोसेणं ठिई भवे। बिइयम्मि जहन्नेणं तेवीसं सागरोवमा ॥ २३४॥ पणवीस सागराइं उक्कोसेणं ठिई भवे। तइयम्मि जहन्नेणं चउवीसं सागरोवमा ॥२३५ ।। छन्वीस सागराई उक्कोसेणं ठिई भवे। चउत्थम्मि जहन्नेणं सागरा पणुवीसई ॥२३६ ॥ सागरा सत्तवीसं तु उक्कोसेणं ठिई भवे। पंचमम्मि जहलेणं सागरा उ छवीसई ।। २३७ ॥ सागरा अट्टवीसं तु उक्कोसेणं ठिई मवे। छट्टम्मि जहनेणं सागरा सत्तवीसई ॥ २३॥
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीवाजीवविमत्ती [-३६.२५४ सागरा अउणतीसं तु उक्कोसेणं ठिई भवे। सत्तमम्मि जहनेणं सागरा अट्टवीसई ॥२३९ ॥ तीसं तु सागराई उक्कोसेणं ठिई भवे। अटुमम्मि जहन्नेणं सागरा अउणतीसई ॥२४॥ सागरा इक्वतीसं तु उक्कोसेणं ठिई भवे। नवमम्मि जहनेणं तीसई सागरोवमा ॥२१॥ तेत्तीस सागराइं उक्कोसेणं ठिई भवे। चउसु पि विजयाईसु जहनेणेक्वतीसई ॥ २४२ ॥ अजहन्नमणुक्कोसा तेत्तीस सागरोवमा। महाविमाणे सवढे ठिई एसा वियाहिया । २४३ ॥ जा चेव य आउठिई देवाणं तु वियाहिया। सा तेसि कायठिई जहनमुक्कोसिया भवे ॥२४४॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहुतं जहनयं। विजढंमि सए काए देवाणं हुज्ज अन्तरं ॥ २५॥ एपसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफाससो। .. संठाणदेसओ वावि विहाणाई सहस्सओ ॥ २४६ ॥ संसारत्था य सिधा य इय जीवा वियाहिया। रूविणो चेव रुवीय अजीवा दुविहा वि य ।। २४७॥ उय जीवमजीवे य सोचा सद्दहिऊण य। सम्वनयाणं अणुमए रमेज संजमे मुणी ॥ २४८॥ तओ बहूणि वासाणि सामण्णमणुपालिया। इमेण कम्मजोगेण अप्पाणं संलिहे मुणी ॥ २४९॥ बारसेव उवासाई संलेहुक्कोसिया भवे। संवच्छरं मज्झिमिया छम्मासा य जहनिया ॥ २५०॥ पढमे वासचउक्क्रमि विगई-निज्जूहणं करे। बिइए वासचउक्कम्मि विचित्तं तु तवं चरे ॥ २५१ ॥ एगन्तरमायामं कट्ठ संवच्छरे दुवे। तओ संवच्छरद्धं तु नाइविगिटुं तवं चरे ॥ २५ ॥ तओ संवरच्छरद्धं तु विगिट्टं तु तवं चरे। परिमियं चेव आया तमि संवच्छरे करे ॥२५३॥ कोडीसहियमायामं कट्ठ संवच्छरे मुणी। मासद्ध-मासिएणं तु आहारेण तवं चरे ॥१५४॥
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६.२५५-] उराध्ययनसूत्रम्
कन्दप्पमाभिओगं च किदिबसिय मोहमासुरतंच। एयाउ दुग्गईओ मरणम्मि विराहिया होन्ति ॥२५५ ॥ मिच्छादसणरत्ता सनियाणा उ हिंसगा। इय जे मरन्ति जीवा तेसिं पुण दुल्हा बोही ॥२५६॥ सम्मइंसणरत्ता अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा। इय जे मरन्ति जीवा तेर्सि सुलहा भवे बोही॥ २५७॥ मिच्छादसणरत्ता सनियाणा कण्हलेसमोगाढा। इय जे मरन्ति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥२५८॥ जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करेन्ति भावण । अमला असंकिलिट्टा ते होन्ति परित्तसंसारी॥२५९॥ बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चेव य बहूणि। मरिहिन्ति ते वराया जिणवयणं जे न जाणन्ति ॥२६॥ बहुआगमविलाणा समाहिउप्पायगा य गुणगाही। एएण कारणेणं अरिहा आलोयणं सोउं ॥ २६१॥ कन्दप्प-कोक्कुयाई तह सील-सहाव-हसप-विगहाई । विम्हावन्तो य परं कन्दप्पं भावणं कुणइ ॥ २६२॥ मन्ताजोगं काउं भूईकम्मं च जे पउजन्ति । साय-रस-इडि-हेउं अमिओगं भावणं कुणइ ॥ २६३ ॥ नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहूणं। माई अवण्णवाई किब्बिसियं भावणं कुणइ ॥ २६४ ॥ अणुबद्धरोसपससे तह य निमित्तमि होइ पडिसेवि। एपहि कारणेहि आसुरियं भावणं कुणइ ॥ २६५॥ सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलप्पवेसो य। अणायारभण्डसेवा जम्मणमरणाणि बन्धन्ति ॥ २६६॥ इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुए। छत्तीसं उत्तरज्झाएं भवसिद्धीयसंमए ।। २६७ ॥ त्ति बोम
॥जीवाजीवविभत्ती समत्ता ॥ ३९ ॥..
॥ उत्तराध्य य न सूत्रं समाप्तम् ॥
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
_