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२०.४५-] उच्चराध्ययनसूत्रम्
जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे निमित्तकोऊहलसंपगाढे । कुहेडविज्जासवदारजीवी न गच्छई सरणं तम्मि काले ॥ ४५ ॥ तमंतमेणेव उ से असीले सया दुही विप्परियासुवेइ । संधावई नरगतिरिक्खजोणि मोणं विराहेत्तु असाहुरूवे ॥४६॥ उद्देसियं कीयगडं नियागं न मुंबई किंचि अणेसणिज्जं । अग्गी विवा सम्बमक्खी भवित्ता इत्तोचुए गच्छइ कट्टपावं ॥ १७ ॥ न तं अरी कण्टछेत्ता करेइ जं से करे अप्पणिया दुरप्पया। से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते पच्छाणुतावेण दयाविहूणो ॥ ४८ ॥ निरष्टिया नग्गरुई उ तस्स जे उत्तिम विवज्जासमेई । इमे वि से नत्थि परेविलाए दुहओ वि से झिज्जइ तत्थ लोए ॥ १९॥ एमेवऽहाछन्दकुसीलरूवे मग्गं विराहेनु जिणुत्तमाणं। कुररी विवा भोगरमाणुगिद्धा निरसोया परियावमेइ ॥ ५० ॥ सोचाण मेहावि सुमासियं इमं अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मगं कुसीलाण जहाय सत्वं महानियण्ठाण वए पहेणं ॥५१॥ चरित्तमायारगुणन्निए तओ अणुत्तरं संजम पांलियाणं। निरासवे संखवियाण कम्म उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ।। ५२॥ एवुग्गदन्ते वि महातवोधणे महामुणी महापइन्ने महायसे। महानियण्ठिज्जामिणं महासुयं से काहई महया वित्थरेणं ॥ ५३॥ तुट्रो य सेणिओ राया इणमुदाहु कयंजली।
अणाहत्तं जहाभूयं सुर मे उवदसियं ॥५४॥ तुझं सुलद्धं खु मणुस्सजम्मं लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी। तुम्भे सणाम य सबन्धवा य,जंभे ठिया मग्गे जिणुत्तमाण ॥५५ ।।
तं सि नाहो अणाहाणं सव्वभूयाण संजया। खामेमि ते महाभाग इच्छामि अणुसासिउं॥५६॥ पुच्छिऊण मप तुम्भं झाणविग्यो उ जो कओ।
निमन्तिया य भोगेहिं तं सव्वं मरिसेहि मे ॥ ५७॥ एवं थुणित्ताण स रायसीहो अणगारसीहं परमाइ भत्तिए । सोरोहो सपरियणो सबन्धवो धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा ॥५८॥
ऊससियरोमकूवो काऊण य पयाहिणं । अभिवन्दिऊण सिरसा अइयाओ नराहिवो ॥५९॥