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समुद्दपालीयं
[-२१.११ इयरो वि गुणसमिद्धो तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य । विहग इव विप्पमुक्को विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥६०॥
॥त्ति बमि ॥ महानियण्ठिज्जं समत्तं ॥२०॥
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॥ समुद्दपालीय एकविंशं अध्ययनम् ।। चम्पाए पालिए नाम सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवओ सीसे सो उ महप्पणो ॥१॥ निग्गन्थे पावयणे सावए से वि कोविए। . पोएण ववहरन्ते पिहुण्डं नगरमागए ॥२॥ पिहुण्डे ववहरन्तस्स वाणिओ देह धूयरं। तं ससत्तं पइगिज्झ सदेसमह पत्थिओ ॥३॥ अह पालियस्त थरणी समुइंमि पसई । अह बालए तहिं जाए समुद्दपालि त्ति नामए ॥४ खेमेण आगए चम्पं सावए वाणिए घरं। संवड़ई घरे तस्स दारए से सुहोइए ॥५॥ बावत्तरि कलाओ य सिक्खई नीइकोविए। जोवणेण य संपन्ने सुरूवे पियदसणे ॥६॥ तस्स रूवव भज्जं पिया आणेह रूविर्णि। पासाए कीलए रम्मे देवो दोगुन्दओ जहा ॥७॥ अह अन्नया कयाई पासायालोयणे ठिओ।। वज्झमण्डणसोभागं वज्झं पासह वज्झगं ॥८॥ तं पासिऊण संविग्गो समुद्दपालो इणमब्बवी। अहोऽसुभाण कम्माणं निजाणं पावगं इमं ॥९॥ संबुद्धो सो तहिं भगवं परमसंवेगमागओ। .
आपुच्छऽम्मापियरो पव्वए अणगारियं ॥१०॥ जाहेत्तुऽसग्गन्थमहाकिलेसं महन्तमहिं कसिणं भयावहं । परियायधम्म चऽभिरोयएज्जा वयाणि सीलाणि परीसहे य॥ ११ ॥