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पमायाणं
[- ३९.६२
घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाह । तं दोसउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ४८ ॥ गन्धस्स घाणं गहणं वयन्ति घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुनमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ४९ ॥ गन्धेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावर से विणासं । 'रागाउरे ओसहगन्धगिद्धे सप्पे बिलाओ विव निक्खमन्ते ॥ ५० ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । बुद्दन्तदासेण सएण जन्तु न किंचि गन्धं अवरुज्झई से ॥ ५१ ॥ एमन्तरत्ते रुइरंसि गन्धे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलसुवंर वाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ५२ ॥ मन्धाणुगा साणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ जेगरूवे । चित्तेर्हि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्टे ॥ ५३ ॥
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मन्धाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । व विओगे य कहं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ ५४ ॥ गन्धे अतित्चे य परिम्महमि सत्तोवसत्तो न उबेर तुट्ठि । अतुट्ठदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ५५ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो गन्धे अतित्तस्स परिग्गहे य । मासामुयं वडइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुञ्चई से ॥ ५६ ॥ मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ य पओगकाले व दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो गन्धे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ५७ ॥ गन्धाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोबमोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ५८ ॥ एमेव गन्धम्मि गओ पओसं उवेह दुक्खोहपरंपराओ । पटुचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ५९ ॥ गन्धे विरत्ती मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ६० ॥ जिब्भाए रसं गहणं वयन्ति तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसउं अमणुन्नमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ६१ ॥ रसस्स जिन्भं गहणं वयन्ति जिन्भाए रसं महणं वयन्ति । -रागस्स हेडं समणुन्नमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ६२ ॥