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उत्तराबवनसूत्रम् पमेव रूवम्मि गोपओसं उवह दुक्खोहपरंपराओ। पटुचिचो य चिणाइ कम्मं से पुणो होइ बुहं विवाने ॥१३॥ रुवे विरतो मषुओ बिसोमो एएण दुक्खोहपरंपरेण। न लिप्पए भवमो वि सन्तो जलेण वा पोक्सारिणीपलासं॥३४॥ सोयस्स सई गहर्ष वयन्ति तं रागोउं तु मणुपमाहु।' तं दोसहेउं अमणुबमा समो व जो तेस वीयरामो ॥ ३५॥ सहस्स सोयं महणं वयन्ति सोबस्त सई महर्ष वयन्ति। रागस्स हेउं समणुषमाहु दोसस्स हेउं अमजुबमाहु॥३६॥ सद्देसु जो मिदिमुवेह तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे हरिणमिमे व सुद्धे सहे अतिते समुह मच्छु ॥ ३७॥ जे यावि कोसं समुवेद तिव्वं तंसिक्खणे से उ उवेद दुक्खं। दुद्दन्तदोसेण सपण जन्तू न किचि सह अबरुज्झई से॥१८॥ एगन्तरत्ते रुहरंसि सद्दे अतालिसे सेकुई पोर्स। दुक्खस्स संपीलमुवेद वाले न लिप्पई तेण मुणी विरामो ॥ ३९ ॥ सद्दाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसा णेयरवे। चित्तोहं ते परियाको पाले पीले अत्तमुक किलिडे ॥१०॥ सदाणुवाएण परिम्गहेण उप्पावणे रक्खणसबिओमे। ' वए विओगे य कहं सुहं से संमोमकाले य अतित्तिलामे ॥११॥ सद्दे आतित्ते य परिग्गहमि सत्तोवसत्तो न उवह तुष्टि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोमाविले आययई अदत्तं ॥१२॥ तण्हाभिभूयस्स अपत्तहारिणो सहे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वह लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से॥४३॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्यओ य पओगकाले य दुही दुरन्ते। एवं अदत्ताणि समाययन्तो सहे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥४४॥ सहाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवमोगे वि किलेसबुक्खं निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ॥४५॥ एमेव सहम्मि गओ पओसं उबेह दुक्खोहपरंपराओ। पदचित्तो व चिणाइ कम्म जं से पुणो होड दुहं विवागे॥४६॥ सहे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण। न लिप्पए भवमझे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं॥४७॥