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३९.६३– ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
रसेसु जो गेहिमुवेर तिव्वं अकालियं पावर से विणासं । रागाउरे बडिसविभिन्नकाए मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ॥ ६३ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवे दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू रसं न किंचि अवरुज्झई से ॥ ६४ ॥ एगन्तरन्ते रुइरे रसम्मि अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ६५ ॥ रसाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइ णेगरूवे । चित्तेर्हि ते परितावेह वाले पीलेइ अत्तट्ठगुरु किलिट्टे ॥ ६६ ॥
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रसाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसच्चिओगे । वए विओगे यं कहं सुहं से संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ ६७ ॥ रसे अतित्ते य परिग्गहंमि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । अतुट्टिदासेण दुही परस्स लोभाविले आययई अवृत्तं ॥ ६८ ॥ तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वडइ लोभदोसा तत्थावि हुक्खा न विमुच्चई से ॥ ६९ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओमकाले य दुही दुरन्ते । एवं अताणि समाययन्तो रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ७० ॥ . रसाणुरत्तस्स नरस्त एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ७१ ॥ एमेव रसम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठचित्तो य चिणाह कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ७२ ॥ रसे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ७३ कायस्स फासं गहणं वयन्ति तं रामहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दो सहेउं अमणुचमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ७४ ॥ फासरस कार्य गहणं वयन्ति कायस्स फाखं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुनमाहु दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ७५ ॥ फासेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावर से विणासं । रागाउरे सीयजलावसने गाहम्गहीए महिसे विवन्ने ॥ ७६ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिब्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदासेण सएण जन्तु न किंचि फासं अवरुज्झई से ॥ ७७ ॥