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उत्तराध्ययनसूत्रम्
तत्तो वि य उवट्टित्ता संसारं बहुं अणुपरियडन्ति । बहुकम्मलेवलित्ताणं बोही होइ सुदुलहा तेसिं ॥ १५ ॥ कसि पि जो हमें लोयं पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से इइ दुप्पूरए इमें आया ॥ १६ ॥ जहा लाहो तहा लोहो लाहा लोही पवडूई । दीमासकयं कज्जं कोडीए वि न निडियं ॥ १७ ॥
नो रक्सीसु गिज्झेज्जा गंडवच्छासुणेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता खेल्लन्ति जहा व दासेहिं ॥ १८ ॥
नारीसु नोवगिज्झेज्जा इत्थी विप्पजहे अणगारे । धम्मं च पेसलं नच्चा तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं ॥ १९ ॥
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इइ एस धम्मे अक्खाए कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं । तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति तेहिं आरा हिया दुवे लोग ॥ २० ॥ त्ति बोम ॥
॥ काविलीयं समत्तं ॥ ८ ॥
॥ नभिपव्वज्जा नवमं अध्ययनम् ॥
चइऊण देवलोगाओ उववन्नो माणुसंमि लोगंमि । उवसन्तमोहणिज्जो सरई पोराणियं जाई ॥ १ ॥ जाई सरितु भयवं सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवेत्तु रज्जे अभिणिक्खमई नमी राया ॥ २ ॥ से देवलोगसरिसे अन्तेउरवरगओ वरे भोए । भुंजितु नमी राया बुद्धो भोगे परिच्चयई ॥ ॥ मिहिलं सपुरजणवयं बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिवखन्तो एगन्तमहिडिओ भयवं ॥ ४ ॥ कोलाहलगन्भूयं आसी मिहिलाए पव्वयन्तंमि । तइया रायरिसिंमि नमिमि अभिणिक्खमन्तंमि ॥ ५ ॥ अब्भुट्टियं रायरिसिं पव्वज्जाठाणमुत्तमं ॥ सक्को माहणरुवेण इमं वयणमन्त्रवी ॥ ६ ॥