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[-२३.१४
रहनेमिर्ज ॥ रहनेमिजं द्वाविंशं अध्ययनम् ॥
सोरियपुरांम नयरे आर्सि राया महिडिए। वसुदेव त्ति नामेणं रायलक्खणसंजुए ॥१॥ तस्स भज्जा दुवे आसी रोहिणी देवई तहा। तार्सि दोण्हं दुवे पुत्ता इट्टा रामकेसवा ॥२॥ सोरियपुरमि नयरे आसी राया महिडिए । समुद्दविजए नाम रायलक्खणसंजुए ॥३॥ तस्स भज्जा सिवा नाम तीसे पुत्तो महायसो। भगवं अरिटनेमि त्ति लोगनाहे दमीसरे ॥४॥ सोऽरिट्टनेमिनामो र लक्खणस्सरसंजुओ। अट्ठसहस्सलक्खणधरो गोयमो कालगच्छवी ॥५॥ वज्जरिसहसंघयणो समचउरंसो झसोयरो। तस्स राईमई कवं भजं जायइ केसवो ॥६॥ अह सा रायवरकमा सुसीला चारुपेहिणी। सदलकखणसंपन्ना विज्जुसोयामाणिप्पभा ॥७॥ अहाह जणओ तीसे वासुदेवं महिड्रियं। इहागच्छऊ कुमारी जा से कनं दलामि हं ॥ ८॥ सव्वीसहीहि ण्हविओ कयकोज्यमंगलो। दिवजयलपरिहिओ आभरणोहिं विभूसिओ॥९॥ मत्तं च गन्धहत्थिं वासुदेवस्स जेट्रगं। आरूढी सोहए अहियं सिरे चूडामणी जहा ॥१०॥ अह ऊसिएण छत्तेण चामराहि य सोहिए। दसारचक्केण य सो सव्वओ.परिवारिओ ॥११॥ चउरंगिणीए सेनाए रइयाए जहक्कम। तुरियाण सन्निनाएण दिव्वेण गगणं फुसे ॥१२॥ एयारिसाए इड्डीए जुईए उत्तिमाए य। नियगाओ भवणाओ निज्जाओ वण्हिपुंगवो ॥१३॥ अह सो तत्थ निज्जन्तो दिस्त पाणे भयदुए। वाढहिं पंजरेहिं च सनिरुद्ध सुदक्खिए ॥१४॥