________________
१६.९ -
उत्तराध्ययनसूत्रम् विभूसं परिवज्जेज्जा सरीरपरिमण्डणं । बम्भचेररओ भिक्खू सिंगारत्थं न धारए ॥ ९॥ सद्दे सवे य गन्धे य रसे फासे तहेव य। पंचविहे कामगुणे निच्चसो परिवज्जए ॥१०॥ आलओ थीजणाइण्णो थीकहा य मणोरमा। संथवो चेव नारीणं तासिं इन्दियदरिसणं ॥११॥ कूइयं रुइयं गीयं हासभुत्तासियाणि य। पणीयं भत्तपाणं च अइमायं पाणभोयणं ॥१२॥ गत्तभूसणमिटुं च कामभोगा य दुज्जया। नरस्सऽत्तगवसिस्स विसं ताल उहं जहा ॥१३॥ दुज्जए कामभोग य निच्चसो परिवज्जए। संकाठाणाणि सवाणि वज्जेज्जा पणिहाणवं ॥१४॥ धम्माराम चरे भिक्खू धिइमं धम्मसारही। धम्मारामरए दन्ते बम्मचेरसमाहिए ॥१५॥ देवदाणवगन्धवा जक्खरक्खसकिबरा। बम्भयारिं नमंसन्ति दुक्करं जे करन्ति तं ॥१६॥ एस धम्मे धुवे निच्चे सासए जिणदेसिए। सिद्धा सिज्झन्ति चाणेण सिज्झिसन्ति तहावरे । १७॥
त्ति बोमि। ॥ बम्भचेरसमाहिठाणा समत्ता॥१६॥
॥ पावसमणिज्ज सप्तदशं अध्ययनम् ॥ जे केइ उ पव्वइए नियण्ठे धम्म सुणित्ता विणओववने। सुदुल्लहं लाहिडं बोहिलाभ विहरेज्ज पच्छा य जहासुहं तु ॥१॥ सेज्जा वढा पाउरणं मि अत्थि उप्पज्जई भोत्तु तहेव पाउं। जाणामि जं वह आउसु त्ति किं नाम काहामि सुरण भन्ते ॥ २॥ . जे के पवईए निहासीले पगामसो भोच्चा।
पेच्चा सुहं सुवह पावसमणि त्ति वुच्चई ॥३॥