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२८-१७-] उत्तराध्ययनसूत्रम्
भूयत्थेणाहिगया जीवाजीवा य पुण्णपावं च। सहसम्मइयासवसंवरो य रोएइ उ निसग्गो ॥१७॥ जो जिणदिटे भावे चउविहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नऽनह त्ति य स निसग्गरुइ ति नायवो ॥१८॥ एए चेव उ भावे उवइटे जो परेण सद्दहई। छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइ त्ति नायव्वो ॥१९॥ रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम ॥२०॥ जो सुत्तमहिज्जन्तो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायवो ॥२१॥ एगेण अणेगाई पयाई जी पसरई उ सम्मत्तं। उदर व्व तेल्लबिन्दू सो बीयरुइ त्ति नायव्वो ॥२२॥ सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्थओ दिटुं । एक्कारस अंगाई पइण्णगं दिट्ठिवाओ य ॥२३॥ दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा। सव्वाहि नयविहीहिं वित्थाररुइ त्ति नायव्वो॥२४॥ दसणनाणचरित्ते तवविणए सव्वसमिइगुत्तीसु। जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम ॥ २५॥ अणभिग्गहियकुदिट्री संखेवरुइ त्ति होइ नायवो। अविसारओ पवयणे अणभिग्गाही य सेसेसु ॥२६॥ जो अस्थिकायधम्मं सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च। सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइ ति नायवो ॥ २७॥ परमत्थसंथवो वा सुदिट्रपरमत्थसेवणा वा वि। वावन्नकुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥२८॥ नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं दसणे उ भइयत्वं । सम्मत्तचरित्ताई जुगवं पुत्वं व सम्मत्तं ॥ २९॥ नादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा। अगुणिस्स नत्थि मोक्खो नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥ ३०॥ निस्संकिय-निक्कंखिय-निवितिगिच्छा अमूढदिट्टी य। उबवूह-थिरीकरणे वच्छल्ल-पभावणे अट्ठ॥३१॥