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६.१०-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् न चित्ता तायए भासा कुओ विज्जाणुसासणं । विसमा पावकम्मोहिं बाला पंडियमाणिणो ॥ १० ॥ जे केइ सरीरे सत्ता वण्णे रूवे य सव्वसो। मणसा कायवक्केणं सवे ते दुक्खसंभवा ॥११॥ आवना दीहमद्धाणं संसारंमि अणंतए। तम्हा सम्वदिसं पस्सं अप्पमत्तो परिव्वए ॥१२॥ बहिया उडमादाय नावकंखे कयाह वि। पुवकम्मखयट्ठाए इमं देहं ससुद्धरे॥१३॥ विविच्च कम्मुणो हेर्ड कालखी परित्वए । मायं पिंडस्स पाणस्स कडं लखूण भक्खए ॥१४॥ सनिहिंचन कुवेज्जा लेवमायाए संजए। पक्खी पत्तं समादाय निरवेक्खी परित्वए ॥१५॥ एसणासमिए लज्जू गामे अणियओ चरे।
अप्पमत्तो पमत्तेहिं पिंडवायं गवेसए ॥१६॥ एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तररंसी अणुसरनाणदंसणधरे अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए॥ति बेमि॥
। खुड्डागनियंठिज्जं समतं ॥६॥
॥ एलयं सप्तमं अध्ययनम् ॥ जहाएसं समुद्दिस्स कोइ पोसेज्ज एलयं ।
ओयणं जवसं देज्जा पोसेज्जा वि सयंगणे ॥१॥ तओ से पुढे परिवूढे जायमेए महोदरे। पीणिए विउले देहे आएसं परिकंखए ॥२॥ जाव न एइ आएसे ताव जीवह से दुही। अह पत्तंमि आएसे सीसं छेत्तूण भुज्जई ॥३॥ जहा खलु से उरम्भे आएसाए समीहिए। एवं बाले अहम्मिटे ईहई नरयाउयं ॥ ४॥