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बहुस्सुयपुज्ज
[-११.१ चिच्चाण धणं च भारियं पव्वइओ हि सि अणगारियं । मा वन्तं पुणो वि आइए समयं गोयम मा पमायए ॥ २९ ॥ अवउज्झिय मित्तबन्धवं विउलं चेव धणोहसंचयं । मा तं बिइयं गवेसए समयं गोयम मा पमायए ॥ ३० ॥ न हु जिणे अज्ज दिस्सई बहुमए दिस्सई मग्गदसिए। संपइ नेयाउए पहे समयं गोयम मा पमायए॥३१॥ अवसोहिय कण्टगापहं ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया समयं गोयम मा पमायए ॥ ३२ ॥ . अबले जह भारवाहए मा मग्गे विसमे वगाहिया। पच्छा पच्छाणुतावए समय गोयम मा पमायए॥ ३३ ॥ तिण्णो हु सि अण्णवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम मा पमायए ॥ ३४॥ अकलेवरसेणिमुस्सिया सिद्धि गोयम लोय गच्छसि। खेमं च सिवं अणुत्तरं समयं गोयम मा पमायए ॥ ३५ ॥ बुद्ध परिनिव्वुडे चरे गामगए नगरे व संजए। सन्तीमग्गं च वूहए समयं गोयम मा पमायए ॥३६॥ बुद्धस्स निसम्म भासियं सुकहियमट्रपओवसोहियं । रागं दोसं च छिन्दिया सिद्धिगई गए गोयमे ॥ ३७॥ त्ति बेमि॥
"एमपतयं समत्तं ॥१०॥
॥ बहुस्सुयपुज्जं एकादशं अध्ययनम् ॥ संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो। आयारं पाउकरिस्सामि आणुपुत्विं सुणेह मे ॥१॥ जे यावि होइ निविज्जे थद्ध लुद्ध अणिग्गहे। अभिक्खणं उल्लवई अविणीए अबहुस्सुए ॥२॥