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१९.२७-]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
दन्तसोहणमाइस्स अदत्तस्स विवजणं । अणवज्जेसणिज्जस्स गेण्हणा अवि दुक्करं ॥२७॥ विरई अबम्भचेरस्स कामभोगरसन्नुणा। उग्गं महत्वयं बम्भ धारयव्वं सुदुक्करं ॥ २८॥ धणधनपेसवग्गेसु परिग्गहविवज्जणं । सव्वारम्मपरिच्चाओ निम्ममत्तं सुदुक्करं ॥ २९॥ चउन्विहे वि आहारे राईभोयणवज्जणा। सबिहीसंचओ चेव वजेयत्वो सुदुक्करं ॥ ३०॥ छुहा तण्हा य सीउण्हं दसमसगवेयणा। अक्कोसा दुक्खसेज्जा य तणफासा जल्लमेव य ॥ ३१ ॥ तालणा तज्जणा चेव वहबन्धपरीसहा। दुक्खं भिक्खायरिया जायणा य अलाभया ॥३२॥ कावोया जा इमा वित्ती केसलोओ य दारुणो। दुक्खं बम्भवयं घोरं धारेउ य महप्पणो ॥ ३३ ॥ सुहोइओ तुमं पुत्ता सुकुमालो सुमन्जिओ। न हु सी पभू तुम पुत्ता सामण्णमणुपालिया ॥ ३४॥ जावज्जीवमविस्सामो गुणाणं तु महत्मरो। गुरू उ लोहमारो व्व जो पुत्ता होइ दुव्यहो ॥ ३५ ॥ आगासे गंगसोओ व्व पडिसोओं व्व दुत्तरो। बाहार्हि सागरो चेव तरियन्वो गुणोयही ॥३६॥ वालुयाकवलो चेव निरस्साए उ संजमे। असिधारागमणं चेव दुक्करं चरिउं तवो ॥ ३७॥ अहीवेगन्तदिट्टीए चरित्ते पुत्त दुच्चरे। जवा लोहमया चेव चावेयत्वा सुदुक्करं ॥ ३८॥ जहा अग्गिसिहा दित्ता पाउं होइ सुदुक्करा। तहा दुक्करं करेउं जे तारुण्णे समणत्तणं ।। ६९॥ जहा दुक्खं भरेउं जे होइ वायस्स कोत्थलो। तहा दुक्खं करउंजे कीवेणं समणत्तणं ॥४॥ जहा तुलाए तोलेउं दुक्करो मन्दरो गिरी। तहा निहुय नीसंकं दुक्करं समणत्तणं ॥४१॥