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परीसहज्झयणम् समणं संजयं दन्तं हणेज्जा कोइ कत्थई ।
नात्थ जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए ॥२७॥ १४ दुक्करं खलु भो निच्चं अणगारस्स भिक्खुणो।
सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किंचि अजाइयं ॥२८॥ गोयरग्गपविटुस्स पाणी नो सुप्पसारए।
सेओ अगारवासु त्ति इइ भिक्खू न चिन्तए ॥ २९॥ १५ परेसु घासमेसेज्जा भोयणे परिणिट्टिए।
लद्ध पिण्डे अलद्धे वा नाणुतप्पेज्ज पण्डिए ॥३०॥ अज्जेवाहं न लब्मामि अवि लाभो सुए सिया।
जो एवं पडिसंचिक्खे अलामो तं न तज्जए ॥३१॥ १६ नच्चा उप्पइयं दुक्खं वेयणाए दुहटिए ।
अदीणो थावए पर्व पुटो तत्थहियासए ॥ ३२॥ तेहच्छं नाभिनन्देज्जा संचिक्खत्तगवेसए।
एवं खु तस्स सामण्णं जं न कुज्जा न कारवे ॥ ३३ ॥ १७ अचेलगस्स लूहस्स संजयस्स तवस्सिणो।
तणस सयमाणस्स हुज्जा गायविराहणा ॥३४॥ आयवस्स निवाएणं अउला हवह वेयणा।
एवं नच्चा न सेवान्त तन्तुजं तणतज्जिया ॥३५॥ १८ किलिनगाए मेहावी पंकेण व रएण वा। चिंस वा परियावेण सायं नो परिदेवए ॥ १६ ॥ वेएज निजरापेही आरियं धम्मऽणुत्तरं ।
जाव सरीरभेउ त्ति जलं कारण धारए ॥ ३७॥ १९ अभिवायणमन्भुटाणं सामी कुज्जा निमन्तणं ।
जे ताई पडिसेवन्ति न तेर्सि पीहए मुणी ॥ ३८॥ अणुक्कसाई अपिच्छे अनाएसी अलोलए।
रसेसु नाणुगिज्झेज्जा नाणुतप्पेज्ज पनवं ॥ ३९ ॥ २० से नूणं मए पुवं कम्माणाणफला कडा।
जेणाहं नाभिजाणामि पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४०॥ अह पच्छा उइज्जन्ति कम्माणाणफला कडा।। एवमस्सासि अप्पाणं नच्चा कम्मविवागयं ॥४१॥