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सामायारी
[-२६.१ एवं तु संसए छिन्ने विजयघोसे य माहणे । समुदाय तओ तं तु जयघोसं महामुर्णि ॥३६॥ तुडे य विजयघोसे इणमुदाहु कयंजली। माहणत्तं जहाभूयं सुटु मे उवंदसियं ॥ ३७॥ तुम्भे जइया जन्नाणं तुम्भे वेयविऊ विऊ। जोइसंगविऊ तुम्भे तुन्भे धम्माण पारगा ॥ ३८॥ तुम्भे समत्था उद्धत्तुं परमप्पाणमेव य।। तमणुग्गहं करेहऽम्हं भिक्खणं भिक्खुउत्तमा ॥ ३९॥ न कज्जं मज्झ भिक्खेण खिप्पं निक्खमसू दिया। मा भमिहिसि भयावट्टे घोरे संसारसागरे ॥४०॥ उवलेवो होइ भोगेसु अभोगी नोवलिप्पई। भोगी भमइ संसारे अभोगी विप्पमुच्चई ॥४१॥ उल्लो सुक्को य दो छढा गोलया मद्रियामया। दो वि आवडिया कुड्डे जो उल्लो सोऽत्थ लग्गई ॥ ४२ ॥ एवं लग्गन्ति दुम्मेहा जे नरा कामलालसा। विरचा उन लग्गन्ति जहा से मुक्कगोलए ॥४३॥ एवं से विजयघोसे जयघोसस्स अन्तिए । अणगारस्स निक्खन्तो धम्म सोच्चा अणुत्तरं ॥४४॥ खवित्ता पुत्वकम्माई संजमेण तवेण य। जयघोसविजयघोसा सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ॥४५॥ ॥त्ति बेमि ।।
॥ जन्मइज्जं समत्तं ॥२५॥
॥ सामायारी षविंशतितमं अध्ययनम् ॥ सामायारि पवक्खामि सव्वदुक्खविमोक्खणि। जं चरित्ताण निग्गन्था तिण्णा संसारसागरं ॥१॥ पढमा आवस्सिया नाम बिइया य निसीहिया। आपुच्छणा य तइया चउत्थी पडिपुच्छणा ॥२॥