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१७.१९-] उत्तराध्ययनसूत्रम् ..
४४ सन्नाइपिण्डं जेमेइ नेच्छई सामदाणियं। गिहिनिसेज्जं च वाहेइ पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ १९ ॥ एयारिसे पंचकुसीलसंवुडे रूवंधरे मुणिपवराण हेछिमे। अयंसि लोए विसमेव गरहिए न से इहं नेव परत्थ लोए ॥ २०॥ जे वज्जए एए सया उदोसे से सुम्चए होड मुणीण मज्झे।। अयंसि लोए अमयं व पूइए आराहए लोगमिणं तहा परं ॥ २१॥
त्ति बमि॥ ॥ पावसमणिज्जं समत्तं ॥१७॥
॥ संजइज्जं अष्टादशं अध्ययनम् ॥ कम्पिल्ले नयरे राया उदिण्णबलवाहणे । नामेणं संजए नामं मिमव्वं उवणिग्गए ॥१॥ हयाणीए गयाणीए रहाणीए तहेव य। पायत्ताणीए महया सव्वओ परिवारिए ॥२॥ मिए छुहित्ता हयगओ कम्पिल्लज्जाणकेसरे। भीए सन्ते मिए तत्थ वहेह रसमुच्छिए ॥३॥ अह केसरम्मि उज्जाणे अणमारे तवोधणे। सज्झायज्झाणसंजुत्ते धम्मज्झाणं झियायई ॥४॥ अप्फोवमण्डवम्मि झायई खवियासवे। तस्सागप मिगे पासं वहेई से नराहिवे ॥५॥ अह आसगओ राया खिप्पमागम्म सो तहि । हए मिगे उ पासित्ती अणगारं तत्थ पासई ॥६॥ अह राया तत्थ संभन्तो अणगारो मणाऽऽहओ। मए उ मन्दपुण्णेणं रसगिद्वेण धत्तुणा ॥७॥ आसं विसज्जात्ताणं अणगारस्स सो नियो। विणएण वन्दए पाए भगवं एत्थ मे खमे ॥ ८॥ अह मोणेण सो भगवं अणगारे झाणमस्सिए। रायाणं न पडिमन्तेइ तओ राया भयद्दओ॥९॥