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१५.३ – ]
उत्तराध्ययनसूत्रम्
अक्कीसवहं विन्तु धीरे मुणी चरे लाढे निच्चमायगुत्ते । अव्वग्गमणे असंपहिले जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ३ ॥ पन्तं सयणासणं भत्ता सीउण्हं विविहं च दंसमसगं । अव्वग्गमणे असंपहिट्टे जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ४ ॥ नो सक्कमिच्छई न पूयं नो वि य वन्दणगं कुओ पसंतं । से संजय सुव्वए तवस्सी सहिए आयगवेसए स भिक्खू ॥ ५ ॥ जेण पुण जहाइ जीवियं मोहं बा कसिणं नियच्छई । नरनारिं पजहे सया तवस्सी न य कोऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥ ६ ॥ छिन्नं सरं भोमं अन्तलिक्खं सुमिणं लक्खणदण्डवत्थुविज्जं । अंगवियारं सरस्स विजयं जे विज्जाहिं न जीवइ स भिक्खू ॥ ७ ॥ मन्तं मूलं विविधं बेज्जचिन्तं वमणाविरेयणधूमणेत्तसिसाणं । आउरे सरणं तिगिच्छियं च तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू ॥ ८ ॥ खत्तियगण उग्गरायपुत्ता माहणभोइय विविहा य सिप्पिणो । नो तेसिं वयह सिलोगपूयं तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू ॥ ९ ॥ गिहिणी जे पव्वइएण दिट्ठा अप्पवइएण व संथुया हविज्जा ।
सिं इहलोइयफल। जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥ १० ॥ सयणासणपाणभोयणं विविहं खाइमसाइमं परेसिं । अदए पडिसेहिए नियण्ठे जे तत्थ न पउस्सई स भिक्खू ॥ ११ ॥ जं किं चि आहारपाणजायं विविहं खाइमसाइमं परेसिं लक्षं । जो तं तिविहेण नाणुकम्पे मणवय काय सुसंवुडे स भिक्खू ॥ १२ ॥ आयामगं चेव जवोदणं च सीयं सोवीरजवोदगं च ।
नो हीलए पिण्डं नीरसं तु पन्तकुलाई परिव्वए स भिक्खू ॥ १३ ॥
सदा विविहा भवन्ति लोए दिव्वा माणुस्सगा तिरिच्छा । भीमा भयभेरवा उराला जो सोच्चा न विहिज्जई स भिक्खू ॥ १४ ॥ वादं विविहं समिच्च लोए सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा | पन्ने अभिभूय सव्वसी उवसन्ते अविहेडए स भिक्खू ॥ १५ ॥ असिप्पजीवी आगेहे अमित्ते जिइन्दिर सव्वओ विप्पमुक्के । अणुक्क साई लहुअप्पमक्खी चेच्चा गिहं एगचरे स भिक्खु ॥ १६ ॥
न्ति बेमि
५ सभिक्खुयं नाम समत्तं ॥ १५ ॥