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२४.२१-]
उत्तराध्ययनसूत्रम् .
संरम्भसमारम्भे आरम्भे य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ॥२१॥ सच्चा तहेव मोसा य सच्चमोसा तहेव य। चउत्थी असच्चमोसा य वगुत्ती चउव्विहा ॥२२॥ संरम्भसमारम्भे आरम्भे य तहेव य। वयं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ॥२३॥ ठाणे निसीयणे चेव तहेव य तुयदृणे। उलंघणपलंघणे इन्दियाण य झुंजणे ॥२४॥ संरम्भसमारम्भे आरम्भे य तहेव य। कायं पवत्तमाणं तु नियत्तेज जयं जई ॥२५॥ एयाओ.पंच समिईओ चरणस्स य पवत्तणे। गुत्ती नियत्तणे वुत्ता असुभत्थेसु सव्वसो ॥२६॥ एसा पवयणमाया जे सम्म आयरे मुणी। से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पण्डिए ॥२७॥ त्ति बेमि.
॥ समिईओ समत्ताओ ॥ २४॥
॥ जन्नइज्ज पंचविंशं अध्ययनम् ॥ माहणकुलसंभूओ आसि विप्पो महायसो। जायाई जमजनंमि जयघोसे त्ति नामओ॥१॥ इन्दियग्गामनिग्गाही मग्गगामी महामुणी। गामाणुगामं रीयन्ते पत्ते वाणारसिं पुरिं ॥२॥ वाणारसीए बहिया उज्जाणमि मणोरमे।। फासुए सेज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए ॥३॥ अह तेणेव कालेणं पुरीए तत्थ माहणे। विजयघोसे त्ति नामेण जन जयश् वेयवी ॥४॥ अह से तत्थ अणगारे मासक्खमणपारणे। विजयघोसस्स जनंमि भिक्खमट्ठा उवाहिए ॥५॥