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________________ ३६:१०१ - उत्तराध्ययनसूत्रम् संतई पप्पऽणाईया अपजवसिया वि यः। ठिई पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥१०१॥ दस चेव सहस्साईवासाणुक्कोसिया मवे। . वणप्लैण आउं अन्तोसुकुत्तं जहनगं ॥ १० ॥ अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहनयं। . कायठिई पणमाणं तं कायं तु असुंचओ॥ १०३॥ असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुत्तं जहनयं। विजढंमि सए काए. पणमजीवाण अन्तरं ॥१०॥ एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि विहाणाई सहस्ससो॥ १०५ ॥ इच्चेए थावरा तिविहा समासेण वियाहिया। इत्तो उ तसे तिविहे वुच्छामि अणुपुव्वसो॥ १०६ ॥ तेऊ वाऊ य बोद्धन्वा उराला य तसा तहा। .. इच्चेए तसा तिविहा तेर्सि मेए सुणेह मे ॥१०७॥ दुविहा तेउजीवा उ मुहमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता एवमेप दहा पुणो ॥१०८॥ बायरा जे उ पज्जत्ता गहा ते वियाहिया। इंगाले मुम्मुरे अगणी अछि जाला तहेव य ॥१०९॥ उक्का विज्जू य बोद्धव्वा गहा एवमायओ। एगविहमणाणता सुदुमा ते वियाहिया ॥ ११०॥ सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा। इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउन्विहं ॥ ११९॥ संतई पप्पडणाईया अपज्जवसिया विय। ठिहं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥११२ ॥ तिण्णेव अहोरत्ता उक्कोसेण वियाहिया। आउट्टिई तेऊणं अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥११३॥ असंखकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं। कायट्टिई तेऊणं तं कायं तु अमुंचओ ॥ ११४ ॥ अणन्तकालमुक्कोतं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं। .. विजढांम सए काए तेज्जीवाण अन्तरं ॥११५॥
SR No.022572
Book TitleUttaradhyayan Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR D Wadekar, N V Vaidya
PublisherFergussion College
Publication Year1954
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size10 MB
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