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३६.२५५-] उराध्ययनसूत्रम्
कन्दप्पमाभिओगं च किदिबसिय मोहमासुरतंच। एयाउ दुग्गईओ मरणम्मि विराहिया होन्ति ॥२५५ ॥ मिच्छादसणरत्ता सनियाणा उ हिंसगा। इय जे मरन्ति जीवा तेसिं पुण दुल्हा बोही ॥२५६॥ सम्मइंसणरत्ता अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा। इय जे मरन्ति जीवा तेर्सि सुलहा भवे बोही॥ २५७॥ मिच्छादसणरत्ता सनियाणा कण्हलेसमोगाढा। इय जे मरन्ति जीवा तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥२५८॥ जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करेन्ति भावण । अमला असंकिलिट्टा ते होन्ति परित्तसंसारी॥२५९॥ बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चेव य बहूणि। मरिहिन्ति ते वराया जिणवयणं जे न जाणन्ति ॥२६॥ बहुआगमविलाणा समाहिउप्पायगा य गुणगाही। एएण कारणेणं अरिहा आलोयणं सोउं ॥ २६१॥ कन्दप्प-कोक्कुयाई तह सील-सहाव-हसप-विगहाई । विम्हावन्तो य परं कन्दप्पं भावणं कुणइ ॥ २६२॥ मन्ताजोगं काउं भूईकम्मं च जे पउजन्ति । साय-रस-इडि-हेउं अमिओगं भावणं कुणइ ॥ २६३ ॥ नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहूणं। माई अवण्णवाई किब्बिसियं भावणं कुणइ ॥ २६४ ॥ अणुबद्धरोसपससे तह य निमित्तमि होइ पडिसेवि। एपहि कारणेहि आसुरियं भावणं कुणइ ॥ २६५॥ सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलप्पवेसो य। अणायारभण्डसेवा जम्मणमरणाणि बन्धन्ति ॥ २६६॥ इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुए। छत्तीसं उत्तरज्झाएं भवसिद्धीयसंमए ।। २६७ ॥ त्ति बोम
॥जीवाजीवविभत्ती समत्ता ॥ ३९ ॥..
॥ उत्तराध्य य न सूत्रं समाप्तम् ॥