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चित्तसम्भूइज्जं
[-१३.३५ जहेह सीही व मियं गहाय मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले। न तस्स माया व पिया व भाया कालम्मि तम्मंसहरा भवंति ॥२२॥ न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइओ न मित्तवग्गा न सुया न बन्धवा । एक्को सयं पच्चणुहोइ दुक्खं कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ॥ २३॥ चेच्चा दुपयं च चउप्पयं च खेत्तं गिहं धणधनं च सन्वं । सकम्मबीओ भवसो पयाइ परं भव सुंदर पावगं वा ॥२४॥ तं इक्कगं तुच्छसरीरगं से चिईगयं डज्झिय पावगेणं। भज्जा य पुत्ता वि य नायओ य दायारमन्नं अणुसंकमन्ति ॥ २५॥ उवणिज्जई जीवियमप्पमायं वण्णं जरा हरइ नरस्स राय। पंचालराया वयणं सुणाहि मा कासि कम्माई महालयाई ॥२६॥ अहं पि जाणामि जहह साहू जं मे तुमं साहसि वक्कमेयं । भोगा इमे संगकरा हवन्ति जे दुज्जया अज्जो अम्हारिसेहिं ॥२७॥ हत्थिणपुरम्मि चित्ता इट्टणं नरवई महिडियं । कामभोगसु गिद्धणं नियाणमसुहं कडं ॥२८॥ तस्स में अपडिकन्तस्स इमं एयारिसं फलं।
जाणमाणो वि जं धम्मं कामभोगेसु सुच्छिओ ॥ २९॥ नागो जहा पंकजलावसन्नो दटुं थलं नाभिसमेइ तीरं। एवं वयं कामगुणसु गिद्धा न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो ॥ ३०॥ अच्चेइ कालो तूरन्ति राइओ न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा। उविच्च भागा पुरिसं चयन्ति दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ॥ ३९ ॥ जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो अज्जाई कम्माई करेहि रायं। धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकम्पी तो होहिसि देवो इओ विउव्वी ॥ ३२ ॥ न तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी गिद्धो सि आरम्भपरिग्गहेसु। माहं कआ एत्तिउ विप्पलावा गच्छामि राय आमन्तिओ सि ॥ ३३ ॥ पंचालराया वि य बम्भदत्तो साहुस्स तस्स वयणं अकाउं । अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥ ३४॥ चित्ता वि कामेहि विरत्तकामो उदग्गचारित्ततवो महेसी। अणुत्तरं संजम पालइत्ता अणुत्तरं सिद्धिगई गओ ॥ ३५॥ त्ति बेमि॥
॥चित्तसंभूइज्जं समत्तं ॥१३॥
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| JTS-II. 1. 3]