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वृत्तमौक्तिक
थीं । इसलिए वैदिक छंदों के अतिरिक्त लौकिक छंदों पर भी विवेचना होने लगी होगी और इस विषय के अनेक ग्रंथ विद्यमान होंगे । विद्वानों की मान्यता है कि छंदःशास्त्र के प्रमुख प्राचार्य पिंगल पाणिनि के समकालीन थे । छंदःशास्त्र के विकास में पिंगल का वही स्थान है जो व्याकरण- परम्परा में पाणिनि का है । aण्डी, यास्क, कौटुकि, सैतव, काश्यप, रात, माण्डव्य आदि आचार्य पिंगल से भी प्राचीन हैं । इससे छंदः शास्त्र की अतिप्राचीनता के विषय में किसी प्रकार कोई संदेह नहीं रह जाता है ।
छन्दःशास्त्र के प्राचीन श्राचार्य
वेदांगों के प्रवक्ता शिव और बृहस्पति माने जाते हैं । महाभारत के एक उल्लेख के अनुसार वेदांगों का प्रवचन बृहस्पति ने तथा एक दूसरे उल्लेख के अनुसार शिव ने किया । परवर्ती ग्रंथकारों ने छंदःशास्त्र के प्रवक्ता श्राचार्यों की परम्परा का उल्लेख किया है । छंदः सूत्र - भाष्य के अन्त में यादवप्रकाश ने छंद:शास्त्र के प्रवर्तक आचार्यों की परम्परा का उल्लेख किया है
छंदोज्ञानमिदं भवाद् भगवतो लेभे सुराणां गुरुः, तस्माद् दुश्च्यवनस्ततो सुरगुरुर्माण्डव्यनामा ततः । माण्डव्यादपि सैतवस्तत ऋषियस्कस्ततः पिंगलः,
तस्येदं यशसा गुरोर्भुवि धृतं प्राप्यास्मदाद्यैः क्रमात् ॥ इसी ग्रंथ के अन्त में किसी का एक अन्य श्लोक भी दिया हुआ है :
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छन्दः शास्त्रमिदं पुरा त्रिनयनाल्लेभे गुहोऽनादितः,
तस्मात् प्राप सनत्कुमारमुनितस्तस्मात् सुराणां गुरुः । तस्माद्देवपतिस्ततः फणिपतिस्तस्माच्च सत्पिंगल: तच्छिष्यैर्बहुभिर्महात्मभिरयो मह्यं प्रतिष्ठापितम् ॥
पं० युधिष्ठिर मीमांसक ने इनमें से प्रथम परम्परा को अधिक विश्वसनीय माना है । उन्होंने राजवार्तिक में उल्लिखित
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शिवगिरिजानन्दिफणीन्द्र बृहस्पतिच्यवनशुक्रमाण्डव्याः । सैतवपिंगल गरुडप्रमुखा आद्या जयन्ति गुरुचरणाः ।।
१ - वैदिक छन्दोमीमांसा पृ० ४६
२- वेदांगानि तु बृहस्पतिः -महाभारत, शान्तिपर्व २१२।३२ ३- वेदात् षडंगान्युद्धृत्य - महाभारत शान्तिपर्व २८४।९२ ४-उपर्युक्त मतों के लिए द्रष्टव्य, वैदिक छंदोमीमांसा, पृ० ५७