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सूमिका
६. वसिष्ठ
जयकीर्ति ने इनका नाम छंदःशास्त्र के प्राचार्य के रूप में लिया है ।
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१०. सैतव -
इनका नाम सभी परम्पराओं में श्राया है । ऐसा ज्ञात होता है कि ये बहुत प्रसिद्ध आचार्य रहे होंगे ।
११. भरत -
ये नाट्यशास्त्र-कर्त्ता भरत से अभिन्न ज्ञात होते हैं । जयकीर्ति ने छन्द:शास्त्र के प्रवक्ता के रूप में इनके नाम का स्मरण किया है । नाट्यशास्त्र के १४वें तथा १५ वें परिच्छेद में भरत ने छन्दों पर विचार किया है । सम्भव है इनका कोई पृथक् ग्रंथ भी इस विषय पर रहा हो ।
१२. कोहल—
कोहल का नामोल्लेख भी जयकीर्ति ने ही किया है ।
द्वापरयुगीय अन्य छन्दः प्रवक्ता
मीमांसकजी ने यास्क, रात, क्रोष्टुकि, कौण्डिन्य, ताण्डी, अश्वतर, कम्बल, काश्यप, पांचाल (बाभ्रव्य) तथा पतंजलि को द्वापरकालीन छंदःशास्त्र के प्राचार्य के रूप में विभिन्न साक्षियों के आधार पर स्वीकार किया है । यास्क के किसी पृथक् छंद संबंधी ग्रंथ का पता नहीं चलता । अन्य आचार्यों के मतों का ही यत्रतत्र उल्लेख मिलता है ।
कलियुग के प्रारम्भ में होने वाले छंदः प्रवक्ता -
मीमांसकजी ने उक्थशास्त्रकार, कात्यायन, गरुड, गार्ग्य, शौनक आदि का कलियुग के प्रारम्भ में होने वाले छंदः शास्त्र - प्रवक्ताओं के रूप में नामोल्लेख किया है। पिंगल का काल भी उन्होंने यही माना है ।
उपर्युक्त छंदःशास्त्र - प्रवक्ताओं के कोई ग्रंथ इस समय प्राप्त नहीं हैं, परंतु उनके मतों के उद्धरण अन्य ग्रंथों में मिल जाते हैं। परवर्ती विद्वानों को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले आचार्य पिंगल रहे हैं ।
श्राचार्य पिंगल और पिंगल - छन्दःसूत्र
पिंगल को कीथ ने प्राकृत - छंदो-विषयक ग्रंथ " प्राकृत - पैंगलम् " के रचयिता
१ - वैदिक - छन्दोमीमांसा ५६