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भूमिका
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यास्क ने गायत्री को अग्नि के साथ, त्रिष्टुप् को इन्द्र के साथ तथा जगती को आदित्य के साथ भाग लेने वाला कहा है।'
छंदों का देवों के साथ संबंध तो वाजसनेयी-संहिता आदि में भी मिलता है। वैदिक छंदों के इस प्रकार के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि रहस्यमिश्रित वर्णन से भी छंदों के स्वरूप पर प्रकाश पड़ता है और वेदार्थ-ज्ञान में उनकी उपयोगिता भी कम नहीं है। पाणिनि ने तो छंद को वेद का पाद कहा है -'छन्दः पादौ तु वेदस्य'।' पिंगल के पूर्ववर्ती छन्दःशास्त्र के प्राचार्य
पिंगल से पूर्व का कोई ग्रंथ छंदों के विषय में प्राप्त नहीं है, परन्तु उनके पूर्ववर्ती अनेक ग्रंथकारों के नाम मिलते हैं। इससे पता चलता है कि उनके पूर्व छंदःशास्त्र की एक अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान थी। उनके पहले के कुछ प्राचार्यों का परिचय यहां दिया जा रहा है
१. शिव व उनका परिवार__शिव को छंदःशास्त्र के प्रवर्तक आदि प्राचार्य के रूप में यादवप्रकाश और राजवात्तिककार ने स्मरण किया है। व्याकरण के आदि आचार्य भी शिव माने जाते हैं । संभव है ये केवल शेव-सम्प्रदाय में ही प्रवर्तक माने जाते हों। वेदांगों के शैव या माहेश्वर-सम्प्रदाय का प्राचीन काल में महत्वपूर्ण स्थान रहा ज्ञात होता है। शिव के साथ उनके पुत्र गुह व पत्नी पार्वती का नाम भी छंदःशास्त्र के प्रवक्ता के रूप में लिया जाता है। नन्दी शिव का वाहन माना जाता है। संभव है यह किसी शिव-भक्त आचार्य का नाम रहा हो । राजवार्तिककार के अनुसार ये पतंजलि के गुरु तथा पार्वती के शिष्य थे। वात्स्यायन ने कामशास्त्र के प्राचार्य के रूप में भी नन्दी के नाम का उल्लेख किया है जो शिव के अनुचर थे।
२. सनत्कुमार
यादवप्रकाश के भाष्य के अन्त में दी हुई अज्ञात लेखक को परम्परा में
१-निरुक्त ७।८-११ २-वाजसनेयी-संहिता १४॥१८-१९; मैत्रायणी-संहिता ॥११६; काठक-संहिता १७:३.४;
जैमिनीय-ब्राह्मण ६९ ३-पाणिनीय-शिक्षा ४१ ४-कामसूत्रम्, १११८