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भूमिका
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नाम
काल
नाम
काल
१. पूज्यपाद' (देवनन्दी) ४७०-५१२ वि. २. भामह२६ शती ३. दण्डी '
७०० वि. ४. पाल्यकीत्ति' ८७१.९२४ वि. ५. दमसागर मुनि १०५० वि. ६. वृद्धकवि ७. सालाहण"
८. हाल ६. मनोरथ
१०. अर्जुन . ११. गोसल''
१२. गोविन्द १३. चतुर्मुख'३
छंदःशास्त्र के परवर्ती ग्रंथों में से प्रसिद्ध कतिपय ग्रन्थ निम्नलिखित हैं :
१. बृहत्संहिता :-यह वराहमिहिर की ज्योतिष विषयक रचना है। प्रसंगवश इसके चौदहवें अध्याय में ग्रह-नक्षत्रों की गति-विधि के साथ छंदों का विवेचन भी मिलता है । कीथ के अनुसार वराहमिहिर का स्वतन्त्र छंदःशास्त्र का ग्रंथ भी होना चाहिए किन्तु ऐसा कोई ग्रंथ अभी तक देखने में नहीं आया।
२. जानाश्रयी-छन्दोविचिति :-जनाश्रय (?) नामक कवि ने इसकी रचना विष्णुकुण्डीन (कृष्णा और गोदावरी का जिला) के अधिपति माधववर्मन् प्रथम के राज्य में-जिसका समय ६ शताब्दी A. D. पूर्व माना जाता है की है । यह ग्रंथ ६ अध्यायों में विभक्त है । इसका प्राकृत-छन्दों का अन्तिम अध्याय महत्वपूर्ण है । गणशैली स्वतन्त्र है । युधिष्ठिर मीमांसकजी४ ने गणस्वामी को ही इसका कर्ता माना है।
३. जयदेवच्छन्दस्--जयदेव की रचना होने से यह 'जयदेवच्छन्दस्' के नाम से
१-जयकीत्तिः-छंदोनुशासन, ८,१६
२-कीथ : ए हिस्ट्री आव संस्कृत लिटरेचर ३,४,५-वैदिक-छंदोमीमांसा, पृ. ६०-६१ ६-विरहांकः-वृत्तजातिसमुच्चय २।८-६ तथा ३३१२
२।८.६ ८-
३२१२ 8-कविदर्पण-रोजस्थान प्राच्य विद्या, प्रतिष्ठान जोधपुर, सन १९६२ १०-११-रत्नशेखर : छन्दःकोश (कविदर्पण गत) , , , १२-१३-स्वयम्भूछन्द१४-वैदिक-छदोमीमांसा, पृ०६१