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વિશ્વ અયબી :
महाराज जैसे और संत बहुत कम हुए हैं जिनके परिवार दिन मुंबई में जब आखिर सांस लीतो उनकी जुबां पर के इतने सदस्यों ने साधु जीवन स्वीकारा हो। यह उनकी नवकार मंत्र का जाप था और कानों में आचार्य चंद्रानन तपस्याओंका ही परिणाम था कि उनके परिवार के लोग सागर सूरीश्वर महाराज के लोगस्स की गूंज थी। ही नहीं अन्य लोग भी उनकी तरफ खिंचे चले आए और अपने अनुयायियों में दादा गुरुदेव के नाम से उनका समुदाय ९०० से भी ज्यादा सदस्यों के आंकडे को विख्यात आचार्य दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज के पार कर गया।
___ जीवनकाल में जितने विशाल आयोजन हुए उनके आचार्य दर्शन सागर सरिश्वर महाराज की चातुर्मास मुकाबले कई गुना ज्यादा विराट उनकी अंतिम यात्रा रही। तपस्याओं के दौरान धार्मिक आयोजनों का बड़ा मुंबई में अब तक किसी भी व्यक्ति की अंतिम यात्रा में सिलसिला शुरू होना बहत आम बात थी। यही कारम इतने लोग इससे पहले और इसके बाद शामिल नहीं हुए रहा कि राजस्थान में सर्वाधिक १९ चातुर्मास तपस्याओं जितने आचार्यदर्शन सागर सूरिश्वर महाराज की अंतिम के दौरान लाखों लोगों ने धर्म परायण जीवन को जिया यात्रा में। सड़के लाल और आकाश में गलाल, सभी
और खुद को सर्वकल्याण के लिए समर्पित किया। भक्तों के चेहरे लाल यह नजारा था इस महान तपस्वी की राजस्थान की १९ चातुर्मास के अलावा मध्य प्रदेश में अंतिम विदायी का। जो लोग जीते जी कथा, कहावतों १६, महाराष्ट्र में १५, गुजरात में १० और एक-एक और किस्सों में शामिल हो जाते हैं, आचार्य दर्शन सागर चातर्मास पचिम बंगाल, बिहार एवं उत्तर प्रदेश में करके सूरिश्वर महाराज भी उन्हीं में से एक थे। ऐसे दिव्य संत देशभर के लोगों को सत्य की राह दिखाई और अहिंसा को हम सबका शत् शत् नमन। का मार्ग मजबूत करने की प्रेरणा दी। धर्म प्रसाद के प्रति
सौजन्य: ५.सा.श्री पिताश्री म.सा. तथा पू.सा.श्री जबरदस्त समर्पण और सत्य की संवेदना को ही जीवन ३ताश्री म.सा. ( मा२४)नी प्रेरणाथी श्री शे: 451414 का धर्म मानने के साथ-साथ अपने पास आए हर
સારાભાઈ દેરાસરજી ટ્રસ્ટ (શ્રી ચંદ્રપ્રભસ્વામી . જૈન દેરાસર)
૧૮૬ રાજા રામમોહમરાય રોડ, પ્રાર્થના સમાજ, सांसारिक व्यक्ति में धार्मिक, सात्विक और सत्य की
મુંબઈ ૪0000૪ તરફથી चेतना जागत करने के फलस्वरूप ही आचार्य दर्शन सागर सरिश्वर महाराज संवत १९८६ दीआ के बाद पवित्र तीर्थ नि:स्पृह भावे संयम बनने टीपावनार पालीताणा में संवत २००८ की कार्तिक वद ३ को गणि
પૂ. આ. શ્રી વિજયમનોહરસૂરિજી મ. पदवी और इसी पर्वतराज शत्रुजय की गोद में बसे तीर्थ
સંતોની ભૂમિ સૌરાષ્ટ્રના જામનગર શહેર પાસેના पालीताणा में संवत २०२२ की माघ सुद ११ को
બગસરા ગામે, પિતા કસ્તુરચંદભાઈ અને માતા સંતોકબહેનને उपाध्याय पदवी से विभूषित हुए। संवत २०३५ की माघ २ सं. १९४९मा मेला भयंद्रने भाबडेन नामे भोटी सुद ५ को मुंबई के पायधुनी स्थित गोडीजी तीर्थ में उन्हें पहन सने त्रिभुवन नामे नानामा ता. उभयंदनी १२ आचार्य पदवी और संवत २०४७ में फाल्गुन वद ३ को वर्षनी क्ये पिता अवसान थयु. माता संतोइन । मुंबई के प्रारना समाज में गच्छाधिपति के पद से नवाजे ए संस्कारी अने घनिष्ठ संन्नारी तां. त्रो संतानोने गए इस महान तपस्वी संत ने बारह वर्षो तक ९०० संतों सं२४ारी भने स्वावबंदी बनावी सं. १८६४मा दीक्षा के समुदाय के गच्छाधिपति के रूप में देश और दुनिया । અંગીકાર કરી સાધ્વીશ્રી સરસ્વતીશ્રીજી બન્યાં. બહેન को धर्म, सत्य और अहिंसा की राह दिखाने के साथ ही
રંભાબહેનનાં લગ્ન કરીને હેમચંદ્ર માતા સાધ્વીજીને વંદન आचार्य दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज संवत २०५९ में
કરવા મહેસાણા ગયા. ત્યાં પૂ. સરસ્વતીજીએ કહ્યું કે,
"मयंद्र! में दीक्षा सीधी नेतुं २४ गयो से छ. ५. भादरवा वद ३ के चार सितंबर १९९३ को शनिवार के
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