Book Title: Vishwa Ajayabi Jain Shraman
Author(s): Nandlal B Devluk
Publisher: Arihant Prakashan

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Page 620
________________ ૬૦૮ વિશ્વ અજાયબી : वाणी के जादुगर, मालवमणि, बंधुयुगल आचार्यदेवेश आप सुप्रसिद्ध हिन्दी लेखक होने के साथ-साथ प्रसिद्ध प्रवचनकार भी हैं। आपको जनमानस की वाणी के श्री जितरत्नसागर सूरीश्वरजी म.सा. जादूगर के नाम से पुकारते हैं। आप ऐसे एक मात्र मुनिवर आचार्य श्री जितरत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. का जन्म थे कि जिन्हें मालवा-मेवाड के श्री संघो ने मिलकर प्रतापगढ़ सन 1962 में ओशवंशी मंडोवरा गौत्रीय श्रेष्ठीवर्य श्री ___ में में मालवभूषण । पूज्य आचार्य भगवंत श्री मनसुखलालजी के घर में हुआ। आपके माता-पिता का नाम नवरत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा में सौ. ताराबाई एवं पंचमलाल था। आप गौतमपुरा गांव में व्याख्यानकार की उपाधि देकर सम्मानित किया। जन्मे थे। आपका संसारी नाम जितेन्द्रकुमार था किन्तु आपके प्रवचन का नाम सुनते ही लोग उमड़ पड़ते आपको सभी जितेन्द्र के नाम से पुकारते थे। आपका लाडला हैं। आपके ज़ाहिर प्रवचन हमेशा सुनने जैसे होते हैं। आपने नाम राजु था। दक्षिणभारत में भी प्रवचन द्वारा धूम मचा दी थी। आज भी आपने अपने ही गांव में मेट्रिक तक अभ्यास किया लोग आपको याद करते हैं। आप हर चातुर्मास में पर्युषण एवं बाद में अपने माता-पिता, भाई-बहन और काका-काकी के पश्चात् पैंतालीस आगम परिचय वाचना का आयोजन के साथ संयम अंगीकार कर लिया। सन् 1977 में मात्र 15 करते हैं जिसे श्रवण कर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। वर्ष की वय में आप जितेन्द्र से जितरत्नसागरजी बन गए। आजकल लोग आपको आगमवाले महाराज के नाम से आपने बाल्यवय में संयम ग्रहण कर अपने पिता मुनि पहचानने लगे हैं। जिनरत्नसागरजी म.सा. की छत्रछायामें धार्मिक अभ्यास आपको सन 24-3-2002 में गणि पदवी भक्तामर किया। आपने सिद्ध-हेम-शब्दानुशासन नामक व्याकरण कर महातीर्थ में प्रदान की गई। दक्षिण भारत में चेन्नई में सन संस्कृत-प्राकृत में प्रवीणता हांसिल की, तो प्रकरण भाष्य 8-2-2005 में आप पंन्यास पद पर आरूढ़ हुए एवं सन् 27कर्मग्रन्थ आदि का अभ्यास भी बाल्यकाल में ही संपन्न किया। . 2-2008 में भक्तामर महातीर्थ अभ्युदय धाममें आपकी HIRO सानी आमा आपने अपने दादागुरुदेव श्री अभ्युदयसागरजी की आचार्य पदवी हुई। यह प्रथम परिवार है कि जिनके परिवार आज्ञा से अपना छठा चातुर्मास मध्यप्रदेश के देवास शहर में जितने मुनि बने थे आज सभी आचार्य बने हुए है। आपके में करके अपनी शासनप्रभावना का श्री गणेश किया। आप परिवार से अभी पांच आचार्य भगवंत शासन की सेवा कर अच्छे वक्ता के रूप में उभरे। सन् 1983 में आपने इन्दौर रहे हैं। शहर में चातुर्मास कर धूम मचा दी थी, अब आप अपनी आपकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में मालवदेश में कई पहचान बनाने में सफल हो गये था श्रावकगण उन्ह अपन मंदिरो का जिर्णोद्धार, नूतन जिनालय, उपाश्रय आदि का नाम से जानने लगे थे। फिर तो आपने निरंतर चातुर्मास निर्माण हुआ है एवं वर्तमान में हो रहा है। आपके मार्गदर्शन जारी रखें एवं शासनप्रभावक के रूपमें उभरे। में दो महातीर्थों का कार्य भी संचालित हो रहा है। मालवाआपने साहित्य क्षेत्र में भी रुचि लेनी प्रारंभ कीया एवं मेवाड़ की सीमा पर स्थित श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ तालाब आप आगमोद्धारक मासिक के लिए कहानियाँ एवं लेख प्रतापगढ़ एवं श्री भक्तामर महातीर्थ अभ्युदय धाम धार लिखने लगे। आपकी साहित्यिक यात्रा निरंतर आगे बढ़ती आपकी देन है। रही। आप सिद्धहस्त लेखक के रूप में जाने जाते हैं। आपके आपको बचपन से जीवदया में विशेष रुचि रही है द्वारा आज तक 217 पुस्तकें छोटी-बड़ी लिखी जा चुकी है। अतः आपने गौशालाओं पर भी अपना ध्यान केन्द्रित किया आपके द्वारा लिखी श्रीपाल-मयणा चित्रमय चारित्र, श्राद्धविधि है। गौतमपुर-देपालपुर-उन्हैल-आगर-मालवा-बडौद, सुखेडा भावानुवाद, श्रावकजीवन के छत्तीस कर्तव्य, सृष्टिक सबसे भक्तामर तीर्थ धार आदि स्थानों पर आपकी प्रेरणा और पुराना धर्म, जैन धर्म का परिचय, मंत्र जपो नवकार, मार्गदर्शन में गौशालाओ का निर्माण हुआ है एवं संचालित अभ्युदयचित्रकथाएँ, अहिंसा चित्रावली, आगम परिचय वाचना हो रही है। आपको साधर्मिकों के उद्धार में भी गहरी रुचि आदि अनेक पुस्तकें खूब ही लोकप्रिय बनी हुई हैं। है। मालवा में आप इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं। आपके Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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