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॥ णमो यद्धमाणस्स ॥ . ॥ णमो णाणस्स ॥ ॥ णमो राइंदसूरिस्स ॥
श्री उपदेश माला
रणसिंह का चरित्र १. श्रेयस्करं कामितदानदक्षं प्रणम्य वीरं जितकर्मपक्ष ।
पदार्थमात्र-स्फुटदर्शनेनोपदेशमालां विवृणोमि किंचित् ॥
अर्थ : श्रेयस्कर, इच्छित प्रदान करने में समर्थ, कर्म समूह के विजेता 'वीर को नमस्कार कर, पदार्थ के स्पष्ट दर्शन से, मैं उपदेश माला का किंचित् विवरण करता हूँ।
। यद्यपि उपदेश माला की अनेक टीकाएँ प्रस्तुत है, तथापि मैं अनिंदनीय टीका कर रहा हूँ। जगत् में चन्द्र का प्रकाश होने पर भी, क्या लोग घर में दीएँ नही जलाते हैं?
श्री धर्मदास गणि ने अपने पुत्र को प्रतिबोधित करने के लिए, सर्व भावों से युक्त तथा अनेक भव्यात्माओं को उपयोगी, उपकारकारक ऐसे सुबोध ग्रंथ का लेखन किया है।
कर्मक्षय विधायक रणसिंह (धर्मदासगणि का पुत्र) का सुंदर चरित्र प्रथम कहा जाता है।
जंबूद्वीप में समृद्ध विजयपुर नगर है। उस नगर में विजयसेन राजा राज्य करता था। उसकी अजया-विजया दो रानियाँ थी। उन दोनों में विजया रानी राजा को अत्यंत प्रिय थी। विषय-सुख का उपभोग करती हुई विजया गर्भवती बनी। विजया को गर्भिणी देखकर अजया ने सोचा मैं पुत्र रहित हूँ| यदि विजया को पुत्र होगा तो वह राज्याधिकारी बनेगा, ऐसा विचार कर उसने सूतिका-कर्म करनेवाली स्त्री को बुलाया और बहुत धन देने का वचन देकर कहाजब विजया को पुत्र हो तब मृत बालक लाकर उसे दिखलाना। विजया के पुत्र को मुझे समर्पित कर देना।
विजया रानी ने उचित समय पर पुत्र को जन्म दिया। तब सूतिका
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