________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [15 ធផgggggggggggggs चमर छत्र भामंडल तोरन बहुविध वन्दनवार बन्धाय। झारी धूप दहन चन्द्रोपम सब उपकरण धेरै विहिसाय॥ बाजनकी ध्वन रही छाय तहां सुर खग नाचत मन हरषाय। धन्न भाग उनही जीवनके जो यह कौतुक देखन जाय॥ ____ अथ पूजाकारक नौ तिलक वर्णन (अडिल्ल छन्द) सिखा सीस की जान ललाट सु लीजिये, कंठ हृदय अरू कान भुजा सु गनीजिये। कूख हाथ अरू नाभि सरल शुभ कीजिये, तब जिनवरको जजो तिलक नव कीजिये॥१३॥ अथ पूजाकारक खडा होनेकी विधि वर्णन (अडिल्ल छंद) वेदी दक्षिण ओर उत्तरमुख जानिये, __ अथवा पूवर और सुसन्मुख मानिये। मौन गहै मुख ढाक प्रफुल्लित गात है, पूजत श्री जिनदेव सु मन हरषात है // 14 // अथ पूजा आरम्भ वर्णन (कुसुमलता छंद) वेदी ऊपर कनक रकाबी तामैं करो थापना सार। सुवरण थार धरो ता आगे ता बिच रचो सांथियाकार॥ ताके ऊपर श्री पूजा विधि द्रव्य चढावों अष्टप्रकार। सकल सभाके नरनारी मिल मुखसों बोलो जै जैकार॥१५॥ दोहा-या विधिसों पूजा करें, मन वच तन धर ध्यान। सुरगनके पद भोगिकै, पावै पद निर्वान॥१६॥ इति श्री अकृत्रिम जिनमंदिर पूजनपाठकी पीठिका सम्पूर्णम्।