________________ 14] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान मीठे हैं वचन मुख अक्षर सुपुष्ट कहै, गहै विनय गुरुकी सुपण्डित कहीजिये॥८६॥ अथ जिन-पूजा-विधि वर्णन-श्री मण्डप वर्णन (कुसुमलता छन्द श्री जिनमंदिर बने अनुपम रचो मांडना परम विशाल, ताके पश्चिमदिश वेदी गिन तीनपीठ अद्भुत सुविशाल। गंधकुटीपर सिंहासन है सुवरण रतन जडित द्युति लाल, ताके बीच कमल सुन्दर छवि परम मनोहर अति सुखमाल॥ कमल बीचमें बनी कर्णिका जगमग जगमग जोति महान, तापर श्री जिनबिंब विराजित दर्शन करत सचीपति आन। भामण्डल भव सात दिखावत तीन छत्र सो हैं सुखकार, चौसठ चंवर दुरै सिर ऊपर इन्द्र उच्चरत जै जैकार॥ दोहा-श्री जिनमुख पूरव दिशा, लखत दृगन हरषाय। वह सुख जानै सुखधनी, कै जानै जिनराय॥८९॥ अथ पूजाविधिवर्णन (कुसुमलता छन्द) जो नर पूजा करै जिनेश्वर प्रथम काम इम कर बनाय। मांजै वासन सरिताके तट तथा कूपजल लावै जाय॥ दोहरे छन्ना छान नीरकों विछलन देय तहां पहुंचाय। याविधि कर जल झारीभरके श्रीजिन न्हवन करै मन लाय॥ मंगल पाठ पढ़ें जहां भविजन मुख उचरत जै जै धुन गाय। मंगल द्रव्य धेरै तहां सुन्दर बाजे झांझर श्रवण सुहाय॥ वसु विधि द्रव्य मनोहर लेकर प्राशुक जलते धोय बनाय। देव शास्त्र गुरुकी पूजा कर बहुविधि भक्ति करें मन लाय॥