Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंग
बईकहा
काले ॥२४॥ जिणवयणनिउणनिच्छिय सुइकलाण्णाड्डिय समाणखुड्डीया। संघाडएण हिण्डइ दुक्खक्खयकारणा मिक्खा ॥२५।। तस- तरंगवईए पाणबीयरहिए दगमट्टियसंकुले विवजंती। पाणदयट्ठाय महिं जुगपमाणं निरिक्खंती॥२३॥भट्ठावलट्ठा निंदियं रामप्पसायमसत्थासा । मिक्वत्थं सुत्तविरुद्धघरे लोयविरुद्धे य वजंती ॥ २७॥ सा किंचि अट्टयघरं परिवाडीपडियमइगया अजा। धवलत्तगुणसमूहब्य चंदलेहा
सेट्टिणी| नहयलंसि ॥२८॥ सा तत्थ अणावाहा क्वगयतमपाणवीयहरियंमि । एसणसोहणजोग्गे ठायइ य घरंगणुद्देसे ॥२९।। पत्थिजति
भवणे
आगमणं | तत्थ द्विया घरमंदिरकिंकरीहिं जुबईहिसारूवविम्हयमाणमाहि विष्फारियच्छीहिं ॥३०॥ दण तयं ताओ विमलाओ संस्थ(ल)वंति सहियाओ। देवावह अणवजं दच्छिह लच्छीनिभं अजं ॥३१॥ "बहुलोयतणुइएहिं असंठवियलंठएहिं अग्गेहिं । पयईनिहिं संकुचिएहि केस(से)हिं सोहती ॥ ३२॥ तवकिसयपण्डरेणं लावण्णुप्पेहडेण वयणेणं धवलब्भपूड विणिग्गय पुण्णिमचंदं उवहसंती । ३३।। सकुलिदेसेसु तणूजुत्नपलस्था य थाणपालीया। कण्णा गुणसंपुण्णा भृमणसुण्णावि संच्छणा ॥३४॥ आभासणुअएण य संघाडिविणिग्गएण हत्थेण । फेणविणग्गयताले चालेयकमलं विलवन्ती ॥ ३५ ॥ वा(ना)सिं च विहियाण समणी रूवाहिगारस देणं । अह घरममुहवेला तं वेलं निग्गया घरिणी ॥२६॥ गंभीरसुस्मिरीया पुणके रायत्यसव्यंगी। धोवमहग्याभरणा धवलदुकूलुत्तरासंगा ॥३७॥ दट्टण तयं तुट्ठा खुड्डीसहियं सुजायसुंदरं । नियघरअंगणदेसं मुहुत्तमोहाकरं अजं ॥ ३८ ॥ चंदइ य विम्हियमणे(णा) तं अजं सुद्धचीउगभोगं । महियामंधु(थुम्सुद्दियं च फेणोत्थयं लच्छि ॥३९।। खुडीए पणाम घरणी काऊण विणयसंपुण्णं । विम्हय वियाणियच्छी मयलंछणसच्छहच्छायं ।। ४० ॥ पेच्छइ (अ)जाए. मुहं छणं अच्छीहिं कस(सि)ण१ अ० लट्ट०। २ पेच्छिजद। ३० हिं। ४ अ० ०० बालोचेन कृशीभूतः।६ कर्णविधर देशेषु।७ भा०ताको । ९० स०। IDI||३||
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