Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 93
________________ चोराणु कंपाए पल्लीए पलायणं सं० तरंग- त अम्हाणं अणुइयं ति भणिऊण । उत्ताणयकरयसंपुडेहि उदयं तहिं पीयं ।। ४९ ।। संपड़ नदृपयायो रजपरिभदुपस्थिवो चेव ।। वईकहा सूरो लंघियगयणो वलेज पुणो मुहठु(१) ॥५०॥ संकुइयनगो व्या वत्था सूयंति दिवसनिप्पेडा । वासंतणेगसउणया नियनिलउ॥६७॥ लत्तयबहुलेया ॥ ५१ ।। अह एवं अम्हाणं दियहो अइदीहंतो रुयंतागं । मरणभयवे विराणं घरिणि! तहा सो अइकतो ।। ५२ ॥ अह तिमिरनिवयसमो संपत्ता जीवलोगतिस्सा । कोसियनेगवतां गयणतलयसा(सो)हिया रत्ती ॥५३।। सायरकयाविट्ठीविया सो| जणस्स उडेइ । तह संचारिमतिलओ कुन्दकुसुमपंडुरो चंदो ॥५४॥ उक्कोडिहसियच्छालियपपडुपडहनिनायगीयपदाला। पल्लीमतपणचिरचोरेकरसजणा जाया ।। ५५।। तो जेमगपक्खित्ते जणंमि सो तकरो पियं सूयइ । भगइ य मा भाहि तुमं एह अहं ते पलाएमि ।।५६(१)। तो तेण निणियामो सउतायं केणई अनजंता । विजयदारेण (अ)म्हे पल्ली वंतीगेहरुरेण ॥५७(१) । रुन्दतणसुविरा वि निग्गया समहियं उ(तु)रता य । किच्चाहि निग्गयामो कामसरकुडीरमझेग ॥५८। तो तेण पुन्ववाहियपरिचियहरिवि वरसुणियपरिमाणो । गहिउ निवट्टा सुहिओ अडवी सीसंतओ पच्छो ।। ५९ ।। तो तत्थ निरिक्खंतो पुरओ पासे हि मग्गओ य IN पुणो । बहुसो य निसामंतो अद्धाणयचिडिओ सदं ॥६०॥ गहियाद(व)रणपहरणो उप्पीलियधणियबद्धसण्णाहो । वनइ पयमाणो | पंथं मोत्तूण पासेणं ॥६१।। भणइ मइ परुइ कोई ए भाहिंतो त इमेण पंथेण । जाव ताव मरणं कामे चोरो होरहिचारेमि ॥६२(१)।। IN गंतूण चिरं तह उप्पहेण पंथं पुणो समोइण्णा। चोरेण वेरेण तेग समया मजायभएण तह य ।।६३।। निहुया पब्भजमाणवणसुक्कपत्तसद्दाणुकारिणो केह। पक्खे पप्फोडता पक्खी रुक्खाहि उड्डीणा ॥६४|| वणमहिसवग्घदीवियतरच्छ पुल्लीण तह विरलेणं सुणिमो १ अज्ञायमानाः । २ ख० मे । ३ अ० रुंदत्तए पणसुधिराहिनि०। ४ व्याविशेषः । ५ सिंहानाम् । camerpeneracaeeocareer veer.eenexperience || ६७॥ Jain Education For Private & Personal Use Only Alainelibrary.org

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