Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 92
________________ बंदीणं पुरओ निय| सरूवकहणं सं० तरंग- पियवयणसमासाइयमउयसोया पुणो जाया ॥३३॥ अ(पे)च्छामि रुण्णपिण्डियबंदीजणा विमणामलविरुद्धा । बद्धा पययामुद्धा वईकहा || पइणा समयं भिगीवेय ॥ ३४ ॥ काउ य तत्थ मज्झं कलुणविलवाणि यं सुवेगाओ। संह]भरियनिययपक्खा चिरं पिरोयंति बंदीओ ॥ ३५॥ काओ सम्भाववच्छलमउयहियया वसणसमुदयं(अम्हे) । दट्टण परुण्णाओ अणुकंपाकंपियंगीओ ॥ ३६॥ | अरुणलोयणाओ वि भणंति कत्तो किह वेत्थ अणत्थघरं । तकरहत्थं इमं पत्ता ॥ ३७(१) ॥ तं चकवायजाई सुहोदयं मजणं व हत्थिस्स | वाहेण चक्कवाओ वहिओ जह हं अणुमया य ॥३८॥जह पुगो आयाया माणुसमवंमि वच्छ नयरीए । जह तत्थ एकमेको नाओ चित्तोवदेसेणं ॥ ३९ ॥ जह जाइया मदिण अहयं जह ण(णा)सिया य पियवसहिं । चेडी सारसिया सा जह य | | पलायाणि नावाए ॥४०॥ भागीरहीए पुलिणे जह य गहियाई तेहिं (चोरेहि)।तं सव्वं रोयंती परिणी! साहेमि बंदीणं ॥४१॥ एयं सोऊण महं सो चोरो निग्गओ पडालीओ।कुणइ अणुकंपमाणो ऊसासियबंधणं रमणं ॥४२॥ अह ताओ य रमणीओ निब्भच्छियतजिया तहिं तेण व । मेघालंजियभीय च मयवहूओ पलाणाओ ॥४३।। तासु य गयासु तो भणइ पिययमं तकरो सणियं च। मा भीया होय(ह) [अहं] तो मरणाओ अहं विमोइस्सं ॥४४॥ सव्वत्थामेण वि सबहा दिपाणे य परिचपत्ताणं । पाणपरिरक्खणं मे काहं पाणे य दाऊण ॥४५॥ एयं निसम्म वयणं तस्स मुहा निग्गयं तहिं अम्हं । मरणुतासविणासो परिओसो उत्तमो जाओ ॥४६॥ अच्छहु(उ) अम्हाणं जीवियं ति तो जिणवरे य नमिऊणं । पच्चक्खाणा कीरस्स पारणा तस्स कासी या ।। ४७॥ लोपत्तपत्तलीयए मंसं काऊण तकरो अरो (रे)। अम्हे जेमणमिणं ति भुंजह भणत्ती(ती) दरं खु गंतव्वं ।।४८|| अम्हेहिं नेच्छियं १ अ० जणविमण । Jain Education intamational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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