Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
View full book text
________________
सं० तरंग
वईकहा ॥१०२॥
सेट्ठिणीए अणुवयगहणं
सा.
| पयारं । कट्ठागारमनिस्सियमति(इ)मि अाहिं ताहि समं ॥२३|| तवज चक्लनि(न)भोपति समियतेयमंडलो जाओ। ताहे नहय
लतिलओ च्छि मसं उग्गओ (अत्थं संगो) सूरो॥२४॥ तत्थ य गणिणीए समं आलोइयनिंदियपडिकंता | धम्माणुरागरत्ता गयं | पि रत्तिं न याणामि ||२५|| अण्णदिवसंमि य तओ य सत्याहसुओ सो य गणिवसहो। अणिययवासवसही विहरिंसु महियल-II |तलंमि ॥२६॥ गणिणीए सगासमी गहिया सिक्खा मए वि दुविहा वि । तवचरणकरणनिरया वेरग्गगया अहं परिणि ! |२७||
एवं विहारविहिणा विहरताओ इह समायाओ। छहस्स पारणाए अजाहं निग्गया मिक्खा(ख) ॥२८॥ एवं च पुच्छियाए तुमए || सव्वं मए तुहं कहियं । सुहृदुक्खपरंपरयं इह परलोए जमणुभूयं ।।२५।। एवं पसाहियंमि तरंगवइयाए तीए समणीए । चिंतेइ | तओ घरिणी कह दुकरकारिया एसा ॥३०॥ एवं विहतारुण्णे एवं विहाए देहसेवाए। एवं विहदुकरतवो ति तो भणइ सेट्ठिजाया ॥३१॥ भयवइ ! इच्छामणुग्गहमिणं तिजं कहियं नियचरियं । खमह य न ह जं किलेसविया ॥३२।। भणिऊण पायवडिया भीया, भवसारया दुरंताओ। भणइ किमम्हं होही खुत्ताणं विसयपंकमि ॥३३॥ मोहच्छण्णा अम्हे तुम्हं चरियासु दुक्करा अन्जे!। ता तह कहेसु अम्हं जह संसारे न हिंडामो॥३४॥ तो भणइ तरंगवती काउंन चरसि संजमं जइ वि । तो कुग गिहत्थधम्मं जिणवयणे निच्छया होऊ॥३५।। सोऊण य सा एवं बयणं अजाए अमयमारमिणं । हिययं धरेइ हिट्ठ अणुग्गहं मण्णमाणीओ॥३६॥ धम्ममि लद्धबुद्धी तत्थ य संवेगजायसद्धा य। सीलब्धयगुणव्वयसमगहेच्छा य ॥ ३७ ।। अभिगयजीवाजीवा जाया य सुभा जिणसत्थएच्छा (एसा)। घच्छीय अणुव्वयाई सीलाणि वयाणि य बहणि ॥३८॥ सेसा विजा तरुणीओ सव्वा सोऊण कहमिणं
१ आगच्छामि।
बोबा
22022
॥१०२॥
Jain Education MLL
For Private & Personal Use Only
ainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 126 127 128 129 130