Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंग
वईकहा
नियघरवुत्तो
॥७२॥
permercroecond
भूमितले साहए पिययमस्स । वामकरंगुलिनिवहं दाहिण(हत्थेण) घेत्तूण ॥ २८ ॥ सेविभवणमि कण्णा गय ति अह निम्मले | पहायमि । तो किर दासीए मे कहिओ मे पुव्वसंबंधो ॥ २९ ॥ रत्तिं च अवक्कमणं चोरियगमणं च सयणपक्खस्स । कहियं जहाणुभूयं सव्वं मे दासचेडीया(ए) ॥३०॥ भणिओ य अजपुत्तो (सत्थवाहो) घरमागंतूण सेविणा कल्लं । विवाहे य खमाहि महं जं सि कडुइओ मए कल्लं ॥३१।। मग्गिजउ मे जामाउओ लहु एउ मा य बीहेउ । किं काहीइ उ पुत्तो विदेसवासो परघरेसु ॥३२॥ तुझं च पुन्वजाई सव्वं साहीय आणुपुञ्चीए । सस्थाहस्स गहवई जह कहियं दासचे डीए ॥३३॥ तुझं च विप्पओगेण वच्छला परजणं रोयाति । रोच्छीय कलुणसरयं सोगभरपेल्लिया अम्बा ॥३४।। भ(फुरिया य वच्छनयरी तत्तो य बहुजणपरसुईए । सत्थाहसुओ जाईसरो त्ति सेविस्स य सुय त्ति ॥३५।। तो सेट्ठिसत्थवाहेहिं तत्थ देसनगरागरसएसु । संपेसिया मणुस्सा समंततो मग्गिउं तुम्भे ॥३६॥ महमयि पाणासगं पेसितुमि तुम्भे गवेसिउं कल्लं । अन्जयपुत्तो वि अहं न य तत्थ सुणं पवित्ती ते ॥३७॥ चिंतेमि खीणदब्बा धणियपरद्धा कयावराहा य । पच्चंते सेवंते पुरिसा दुरहीय विजाय ॥३८॥ परिपुच्छिऊण निऊणं इउ तउ[तहिं] निरिक्खिण(णेण) इहमागशे। देवा य मे पसण्णा जं मे सफलो समो जाओ॥३९॥ तुम्भं च इमे दिण्णा सत्थाहेहि समयं गहवतीहिं । लेहा सहत्थलिहिय त्ति उवणिया तेण पणएण ॥४०॥ अह पणमिऊण गहिया लेहा तत्थ अजपुत्तेण । संदिट्ठा विट्ठा य ततो निसामती ॥४१(१)।। उग्घाडयकारणेण अणेण अणुवाइया सणियं सणियं । होज हुरहस्स वयणमि हं ति पच्छायययंतेण ॥४२॥ तो ते पयासलेहा गहियत्था तत्थ अजउत्तेण । अह वाइया ससई सुणावत्थं पुणो मज्झ । ४३ ॥ रोस
१ अ० रुया । २ अ० कारेण ।
॥ ७२॥
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