Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 106
________________ Che सं० तरंगवईकहा धूयापलायणे सेटिस्स चिंता CPECReceDecember होही निच्छिन्ना दीहराए रत्तीए । मज्झ वि य दाणि होहि कहिए लहुओ इमो दोसो ॥६०॥एयाणि य अण्णाणि य अणुचिंतंतीए व हिययाए । सयणपराए गया मे निदाचत्ताए सा रत्ती ॥ ६१ ॥ सेद्विस्स मया सिट्ठ पहायकालंसि पायवडियाए। तं तुह जाइसरणं गमणं च समं पिययमेणं ॥६२।। एयं सोऊण य से कुलमाणमणूणगं वहंतस्स । राहुगहिउ व्य चंदो मुहचंदो निप्पभो जाओ ॥६३॥ धी धी अहो अकजं ति गहवती करयले विहुणमाणो । तणयाए कुलवंसो णो हा जह अयसेण ढ(ड)ज्झिहिज्झा ॥ ६४(१) ॥ सयमागयं रहंगस नत्थि दोसो य सस्थवाहस्सा। सच्छंदकजतुरियाए एस दोसो म्ह धूयाए ॥६५॥ “सलिलपरियत्तमूले पाडेंति सए तडे जह नदीओ। पाडेंति दुसीला सुया तह कुलमाणे महिलियाओ ॥६६॥ दोससयाणं करणी मलिणी विउलस्स घरकुडंबस्स | धणस्स जीवलोए कुलंमि धूया न जायंति ॥ ३७॥ जं पयइरुद्दयस्स वि अव(ज)सस्स वि सव्वबंधवजणस्स । विणिवाइयवारित्ता जावजीवं कुणइ दाहं ।। ६८ ॥ कहगस्स उ वीसंभं कइयवयदुयारियाण महिलाणं । दप्पणगयं व रूबं दुग्गिज्झं जो ण हु हिययं ॥६९॥" भणियं च तेण कीस हु एयं पुव्वं मं(न) ते मह कहियं । तस्स चेय दिजंती नेयं विच्छायणं होतं ॥७०॥ तो बेमि तीए किर सवियामि नियएण जीविएण त्ति । रक्वह रहस्समेयं जा ताव मिलेमि [वसत्ति] (पिययं ति) ॥ ७१ ।। समयं च रक्खमाणी अओ मए भयवसाए नो कहियं । जं न हु निवेइयं मे तस्स पसीयंतु मे पाया ॥७२।। सोऊण एयमद्वं च सेद्विणी सा गया तहा मोहं । छायग्धं च गणंती मामिणि ! तुझं विओगं च ॥७३॥ दट्टण य तं | पडियं सहसा रोएइ विस्सरं दीणं । गरुलप्पवे (?) चिरं पिव नागकुलं । ७४ ।। पञ्चागयपाणाए तत्थ विलावकरणं अणेगविहं । घरमामिणीए रुणं रोयावयणं च बहुजणस्स ।।७५।। सव्वे य भाउया ते सकलत्ता परियणो कइ य रोयति । कलुणकलुणं सामिणी Ix ॥८ ॥ Jain Education Lonal For Private & Personal Use Only Ljainelibrary.org

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