Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 122
________________ सं० तरंग वईकहा ॥९६॥ चरिय | समणसोचा सपियतरंगवईए वेरग्गं SeeCeeCee20 | कूरकग्मो होऊण इमो वि संजओ जाओ। जोग्गा दुक्खक्खवणं अम्हे वि तवं अणुचरेमो॥२५॥ संभारियदुक्खा निवइयाय तो | कामभोगनिविण्णा । पाएसु तस्स पडिया समणस्स समाहिजुत्तस्स ।।२६।। सीसे निवेसियंजलिपुडा य पच्चुट्ठिया पुणो भणिमो। तकालबंधवं तं जीवियगुणदायगं समणं ॥२७॥ जं चकवायजुयलयं भे तया हयं परभवंसि । नरमिहुणयं पर(इह)भवे उ नीणिय चोरपल्लीउ ।।२९॥ तं मिहुणं इणमम्हो दिण्णं भे जस्स जीवियं तयाइ । देहि पुणो जह तइया अम्हं दुक्खाण वोच्छेयं ॥२९॥ जाइपरंपरविणिघायमरणबहुदुक्खसंकडस्स द्वामा । भीया अणिचवासासुहस्स संसारवासस्स ॥३०॥ जिणवयणुञ्जयपंथेण विविहतवनियमगहियपच्छयणा । निव्याणगमणतुरिए इच्छामो भे तवग्गओ ॥ ३१ ॥ तो भणइ सो सुविहिओ जो काही सीलसंजमं सययं । सो सम्बदुक्खमोक्खं अचिरेण (कालेण) गच्छिहिइ ॥३२॥ "जइ नेच्छह विणिवायं जाइपरंपरसएसु अणुहविउं । बजेह | | पावकम्मं ताव इय तिव्युञ्जया होह ।। ३३ ।। नजड़ धुवं तु मरणं न नजइ होहिती कया तं ति। तं जीवियं न पावइ ताव वरं भे कओ धम्मो ॥३४॥ विरलुस्सासेण मरतएण वेलविणाणुकंठेण निस्सण्णेण नकतवचरणपवित्थरो कउ । ३५(१)।। हठेण बलिय- | पंचिंदिएण आउंमि परिसरंतंमि। सक्का सोग्गइमग्गा जोग्गा हु धरि जे ।।३६।। बहुविग्धे सुहर. जे अणिचपरिणामजीवि जए। सद्धा बद्धेयव्या कायव्वे धम्मचरणमि ॥ ३७ । जस्स न वरेज मच्चू जीवो दुक्खं च जो न पावेजा। तस्त हु तवगुणजोगो कओ व अकयउ व्य जुञ्जेजा ॥ ३८ ॥ निययमरणमि लोया आलोयं संजमस्स लघृण । न हु बद्धतीयमाउ जाह ताहेब गंतव्यो ३९(१)।। अत्ते निययसोक्खलोए बहुचिरे य जीवियंसि चलंमि । धम्मचरणमि बुद्धी नरेण निचं पिकायच्या"॥४०॥ एवं सुविहि Poemovezmomenmen Jain Education Incm For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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