Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 123
________________ सं० तरंग__बईकहा ॥ ९७॥ सपिय| तरंगवईए दिक्खागहणं DonvocacanceDepos कायवयणं निसम्म आउयं चलं ति उव्वेग्गा । तवचरणकउच्छाहा उ मुहमो सुस्सणा दोवि ॥४१॥ पेमजणस य हत्थे सब्वे ते भूसणे निसिरिऊणं । भणिमो धरह इमे ता अम्हं अम्मापिउणं ति ॥४२॥ भगह य दुक्खविभीया नाणाजोणिपरिहिंडणुन्विग्गा । ऊरसरणुव्वेयकरं सामण्णं ते पवण्ण त्ति ॥४३॥ तेसिं च विणयखलियं खमह य किर सुहुमचादरं स । मत्तेहि पमत्तेहि य जं होज कयं कयाई पि ॥४४॥ एवं सोऊण अम्हं वयणं सहसा कुइयं परियणेण । परियणसहिया आधाविया ता नाइजाउ ॥४५|| सोऊण वयणमेयं ते पडिया ता पियमस्म पाएसु । मा नाह! अणाहाओ परिचएजत्ति बेंतीउ "४६॥ उपायवडियाहिं कह वि पियरस परिणी! पसाकासाहिं । बलिकम्मं चेत्र कयं अलयपडियपुष्फपुंजेहिं ॥४७॥ अपरिस्समरमिएहिं मणसा इच्छिय सयं गिहीएहिं । जुत्तो सि सत्तकालं मणोरहमपहिं सुरएहिं ॥४८॥ जइ वियरइ परिभोगं न लभामो ते सया नियमि। अच्छीहिं | पेच्छिउं जो तहबि तुम इच्छिमो निच्च ।।११।। अच्छोप्पा वि समाणो फुरियकुमुयपंडुरो कुमुयसोहो । कस्स न करेइ पीई सकलविमलमंडलो चंदो ॥५०॥ एयाणि य अण्णाणि य ताओ कलुणाणि विलबमाणीओ। तवचरणकरण विग्धं पियस्स काउं ववसि| याओ ॥५१॥ तं कलुणं मुंच सग्गं मणवाघायंतीओ अगगंतो। भोगविरत्तो रत्तो पारत्त सुहावहे धम्मे ॥५२॥ लुंचइ कुसुमुम्निस्से केसो (पिओ) केसे य तहिं अगणयंतो। वेरग्गसमावण्णो परजानिच्छिमतीओ॥५३॥ सयमेव लुइयसिरया अहं पि समणस तह य पाएसु । पडिया पिएण समयं दुक्ख विमोक्खं कुणह मे ति॥५४॥ तो तेण नहुविइ8 कयं च सामाइयं तहिं अम्हं । एकगियं पि जंतं उन्हें सोगति नेइ ॥ ५५ ॥ पाणिवहसुसावाया अदत्तमेहणपरिग्गहा विरती य । राईभोयण विरती तेण वद्धाविया अम्हं १ अ० सूसणा। Jain Education For Private & Personal Use Only Hainelibrary.org

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