Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 125
________________ सं० तरंगचईकहा accwCa धम्म ॥७३॥ रजसमता र अम्हे वि य वेवि पुत्तयं च इमं । सव्वं च दव्वजायं पुत्त ! किं ते परिचयसि ।। ७४ ॥ वासाणिपिउणो पड़ काइवयाणि कामभोगे निरुम्सुओ भुजा । पच्छग्गे परिणयव ओ चरिहिसि उग्गं समणधम्मं ॥७५|| अम्मापिऊहिं एवं तेहिं कलुणं उवएसो तहि भणिओ। भणड चरणनिच्छियमई दिवंत सत्थवाहसुओ॥७६॥ "जहा कोसियाकीडोनियसरीरकरण अण्णाणी । हियकामओ निरंभइ अप्पाणं तंतुमेतेण ।। ७७ ॥ तह मोहमोहियमी विसयसुहकामओ दुहसएहिं । इथिकएण निरंभइ अप्पाणं रागदोसेहि ।। ८॥ तो रागदोसदुक्खदुओ सया विविहजोणिभवगहणं । मिच्छत्तसमुच्छण्णो पडिही संसारकंतारं ॥ ७९ ॥ न वि तह बहुयं सोक्खं हवती पूरिस्रो पियाए लंभंमि । पावइ जह बहतरयं दक्खं थीविओगंमि ॥८०|| मग्गिजंतो दुक्खं जणेइ लदो य रक्खणकएगं । सोऽयं कुणइ विणढे तो किर दुक्खावहो अत्थो ।।८।। अम्मापियरो भाउयभजा पुत्तो य बंधवा सुहिया । एते सिणेहमइया निगडा निव्वाण मग्गस्म ।। ८२।। जह सत्थसमारूढो साहायलोभेण दुग्गमग्गगओ । अणुपालेंति वैयंता जणो जणं सत्थजागरणं ॥ ८३ ॥ निकतारो य पुणो कत्थ य ठाणाउ तं पयहिऊणं । अण्णोण्णएहिं वनइ पंथेहिं जणो जगवयंमि ।। ८४ ॥ एवमिह लोए जं वा विइजिया होति बंधवा नाम | सुहदुक्खं मत्तपरिपालंबणत्य जुत्तीकय (2)||८|| सिणेहाउ विसंजोगविउ इउ पुणो बंधवे पमोत्तूण । वञ्चति निययकम्मोदएहिं नाणागतिविसेसे ॥ ८६ ।। वसमक्खियनिव्वबंवेण एगंतरउवगएण । रागो परिN हरियव्यो अबरागो मुत्तिमग्गोत्ति ॥८७। लघृण धम्मबुद्धिं गुणपलियसकालियं गहेयब्ध । जाव न करेइ चवला आउपडिच्छे| दणं कालो ।।८८।। एवं परमत्थनिच्छयं विहस्सुणा जयणं पडिजुत्तेण । कत्थइ अपजमाणेण हवइ मोक्खो सुहं गंतु" ।। ८९॥ १ अ० वयंतो । २ अ० पणिय० । O ॥ ९९ ॥ Jain Education Deadlinal For Private & Personal Use Only Yojainelibrary.org

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