Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंगबईकहा ॥ ७० ॥
गामजुवईओ
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भयमुक्का घरिणि! गच्छामो तं गामं ॥ ९६ ॥ दीसंति वोद्रहीओ सवलयबाहुपरिणद्धकंठेहिं । कडितडनिवेसिएहिं कुडेहिं उदगं | वहंतीओ ॥ ९७ ॥ चिंतेमि किंतु विहियं कुडेहिं जं जुबतिसोणिक(त)डएसु । सवलयं तु उवगूढा जह पियपुरिस व अच्छंति
॥९८॥ ताओ वि विम्हयवियाणिएहिं अच्छीहिं णं अविस्सामं । पेच्छंति विम्हियाओ चिरं पि घोलायमाणीओ ॥ ९९ ॥ तो | गाम वरवतिमहिलियाहिं तुंबवियडत्थणीहि । तयं रूढाहिं समवगूढ तह पत्तामो दुयग्गा वि ॥११००|| अम्हे लत्तणविम्हएण अच्छीहिं अमुयमाणीहिं । अण्णोण्णरहस्सपेल्लणपसंगओ गामतरुणीहि ॥ १॥ भग्गा तत्थ वईओ कत्थ व कडकडस्स किडिकावि । तरुणीहिं पेच्छियव्वयं अण्णाणअहेिजिणतीहिं ॥ २॥ वहभंजणसद्देण य थेरा हि उबिग्गया रत्थं । भुकुभुकुभुति | कत्थ य उद्धमुहा पिंडिया सुणहा ॥३॥ अइरेगसिढिलबलयाओ पण्डुरमइलदुब्बलंगीओ। जक्खाहिवाओ वि पेच्छंति काहीए | मयं तेहिं अम्हे ॥ ४(१)। मसिणपाडुयारगनियसणाहिं कडिगहिय[चेडय]चेडरूयाहिं । घरनिग्गयाहिं घरिणि ! गहवइपरिणीहिं ॥ (१) । सो दिट्टा अणुमाणिन्दियगेज्झो तत्थ अवत्थंतरे बहु अम्हे । पन्ना(ए) पेच्छंता रच्छा य अइच्छिया सणियं ॥६(१)| वगगमणवलणवणिया तण्डं च छुहं समं च अगणिती। जीयब्वयलोमिल्ला कहिण्णा तई अडविं ॥७(१) ' नट्ठभय व अच्छिगइ ति तत्तचलणवियणाममिणगामा। ताहे परिस्समहं चिंतीय छुहं च तण्डं च ॥ ८॥ तत्थ य बेमि पिययम पहियत्तकारणेण | निहोस । कत्थइ च्छुहवेहाराहारं ता गवेसामो ॥ ९॥ तो भन्नइ पिय यमो तकरपरिमुट्ठमोल्लसव्वस्सो । कडिए (कहं पर)स्स घरं अणजमाणा ध(प)विस्सामो ॥१०॥ वसणपरिपीडिएण वि कुलमाणमणूणगं वहंतेण । देहि त्ति कलुणभावेण दुक्खमुचत्थाईउ
१ अ० पध्धुपारगः । २ अ० पजन्ना।
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मा.के.सा
कोषा
|| ७०॥
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