Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 61
________________ सं० तरंगकहा ।। ३५ ।। सहस्मरस्सी जगपदीवो ||३०|| उडओ य 'विलिपत्तो लहद्दव कुंकुमेण जियलोए। पउमागर पडिबोहणकयवावारुधुरो सूरो ।। ३१॥ भाविसिणेहमइयाए तत्थ दिट्ठीए में पियं तिब्बसे फलपरिउसहासन्नमुहपउता महरो ॥३२ (१) || वयारमहरवयणरक्खाणी रइयकरतलामेला । ओवसरिया सारसिया मज्झ सकासंइम मे वा ।। ३३ (१) । । सो मेहरहिय वितिमिर नरयनिसायरस मत्तमुहसोहा । दिजे चिरप्पणट्टो माणरमण ते सपरमाणा || ३४.१ ) || आससुसीहोरुं जियभयसत्तट्ठ चाल हरिणच्छी । तेण समयं पमुइया कामं कामस्स पूरे हि । ३५|| एंव भांति व मए सहसाणि य वयणमुद्दियहिययाए। तुट्टान (ए) समयगृढा अब्भुट्टिया रोमकूपाए || ३६ || भणिया यम पियसहि ! कहं विण्याओ तए महं । जम्मंतरचक्काओ परियट्टियदेहसंटाणो ||३७|| तो भणइ सुणसु सररुह विउद्ध सामिणि | गम्भमरिण व्व जाणुपुच्चाए सुयणु ! जह दंसणं तस्स ।। ३८ ।। तुमए वि अहं सामिणि । कल्लं अवरहकालसमयमि । | पाहिया सवयं घेण गच्छंती ।। ३९ ।। उईमि सम थयेरि माणूयपउस्तरीय सितं । चित्तए इयन्ते घरसालाए तेणंतरेण अरविंदनंदणो ॥ ४० ॥ गयणचंदक्षणा घेत्तृण गतु सामिणि । आलोयं जीवलोयस्स महियनीसंदो चम्महकंदो ॥ ४१ ॥ उमदजुण्हाउ उष्णमडपुण्ण चंद्रो सामिणी ! | रतिमुहानन्दो आयामतलाए निम्मलमि ।। ४२ (१) । पप्फुल्लचन्द पउ [म] मस्सय "उचलणपफेदियम्स जोहारउ पकड़ । ४३ (१) । तत्थ वरजाणवाहणसमस्मिया सत्थगहिया नव ( ब ) त्था इडिविलासं (स) पगन्मा रायाणं ते अणुकरेंति || ४४ || परपुरिमदिविमयपरिवजिया जाणसंदणगयाओ। पत्थंति रतिचारं ईसालु मंद महिलाओ || ४५||| बेइ य पायचारेण तत्थ चारं करंति वरतरुणा । हत्थेसु समालग्गा हिययालग्गाण तरुणाण ||४३|| केई य इदुगोडियम मागमा१ अ० विलिं । २ अ० पेव भणिति । ३ अ० उद्दामि । ४ अमितं । ५ अ० भसल बल० । Jain Education International For Private & Personal Use Only पियमिलण कहा 3 11 34 11 www.jainelibrary.org

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