Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंग
वईकहा ॥ ३९ ॥
पियस्स पइण्णा
Ordeeoneezenecipe
चेव गुणे विकत्थेतो ॥९३।। तइया य वाहकष्टप्पहारपडिसिद्धजीवित्रओ संतो। तीसे नवरि नयाणं जय वा चकवाईण ।।९४॥ ददृटूण
ममं अणुगयं तहिं सिणेहेण । सोगो हिययवणदयो सुदृढ़तरं मे समञ्जलिओ ॥१५॥ तो रागवणसमुट्टिएण पियविप्प-IN ओगकलुणेण । दक्खेण भरियमणो किह व नयाणा तहिं पडिओ।९। एयं जहाणुभ्यं सव्वं कहियं मए समासेणं । चित्तालो. यणसंभारिएण भारियं दुक्खं आरूढोमि ।।९७।। पइण्णा[न] मए अण्णमहिलामाणं पि पत्थियव्या(व्वे) तीसे अणुपालणकारणकएण ॥९८(१)।। जई मे कहिं चि वि होजा तीए सह समागमो वरतणूए। तो नवरिकामभोगे माणुस्से हैं अमिलसेजा ।।९९।। पुबह अवेहा वचहा केण इमो चित्तपट्टओ लिहिओ। नूण पत्थपत्तित्ता होही तीसे न संदेहो ॥६००।। सयमप्पणो वा लिहिय लत्थस्स व देसिय इमं तीए। जाणामि अभिण्णाणेहि न लिहेज तं अमोजपुव्यं ॥१(१)।। अणुभूयं तीए समं मे तया सउणभावे तं । नहु वए(जाणे)ज अण्णो लिहिउं तीए विणावस्सं ॥२।। एयं सोऊण अहं सुन्दरि! उमक्कियामि चित्तपडं । होही हु पुच्छियव्वं इतो सि कहामि ॥३(१)।। देवी उत्थयमाणीसेउवाय तत्थ वावडा अच्छाहिं । पलोयंति तत्तो परिपुच्छगं इंतं ॥ ४.१) । ता आगओ ससंभंतलोयणो पुच्छिया अहं तेणा। लिहिऊण चित्तपट्टे नगरी विम्हाविया केण ॥ ५ ॥ तं बेमि सेटिकण्णा तरंगवइय त्ति नामओ भद्दा । तीए अमिप्पायकयं न य किर अलियं इमं लिहियं ॥६॥ सो एव गहियपरमत्थवित्थरो तस्स चित्तकम्मरस । तत्थेव पडि नियत्तो जत्थथि सो तुहं नाहो ॥७॥ अणुमग्गतो गयाहं तस्स य तो तत्थ एगया संति । अच्छामि अणण्णमणा वयणे तेसि निसामंती ॥ ८॥ तो भणइ तत्थ गंतु तरुणो हासुस्सुओ उवहसंतो। मा भाहि पउमदेवय ! बालाय तुट्ठा हि ते गोरी ।।५।। सेट्टिस्स उसभसेणस्स बालिया नामओ तरंगवती । अप्पामिप्पायगया तीए किर कयं इमं चित्तं ॥१०॥
codae
|| ३९॥
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