Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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सं० तरंग
वईकहा
गेहाओ
पलायणं
| मणिवुत्तं वइरजुत्तं सव्वाभरणं मए वितं गहियं । संभारा जाइया मायगावयापहि वच्चामो तो।।५७(१)।। तेण एवं भणिया तस्स य छंदमणुयत्नमाणी य । अपडिच्छिय सारसियं घरिणि संपत्थिया तुरियं ।।५८।। तं सब्बरतिपसरेण नयरिं अवंगुयदारं दट्टण । अभिगयामो तत्तो जउणं नई समुत्तिण्णा ।। ५९(१) ॥ अह तत्थ नियच्छामो नावं खीलंमि रज्जुपडिबद्धं । लहुयं गमणसमस्थं विच्छिण्णमच्छिद्दकुच्छीय ॥६०॥ तं मुकबंधणंगो(ग) दो वि जणा सत्तरं समारूढा । आवल्लयं च गिण्हइ निक्खित्तकरण्डओ रमणो ॥६१।। नागाणं च पणामं तत्थ य काऊण तीए य नदीए । ता तं समुद्दवहियं जउणासोतं पजामो ।।३।। तो णे दाहिणपासे तत्थ सियाला वियालहिंडणया। सब्वचउप्पयमंवा पुण्णा संखा इव मंदंति ॥६३ ।। सोऊण पिययमेण य नावा ठविया अहं च आभट्ठा। मा णामोत्ता माणिणि ! एणं सउणं मुहुत्तागं ॥३४॥"वामा खेमा घायंति दाहिणा मग्गओ नियत्तंति । वहबंधणं च | पुरओ दिति सियाला अणुसरंता" ॥६५॥ नवरत्थ गुणोएको जं मे जीवियविणासणं नत्थि | अप्पो होही दोसो दिसापसत्तण गुणेणा तो ॥६६॥ एवं जपमाणो रे गाणाआवायसंकिओ ततु । सो अणुसोत्तो हुत्तो नावा वेगेण दाहीया ॥३७॥ चवला वेगेण वाहियदुपवेगपवाइय व्व वच्चामो। मालेलन्तरंगपवग्गिया गमणतुरगीए नावाए ॥६९। आवाचं ताव जह पुरो रुक्खा तडेसु दीसंति । विवलता वजण्णा वणं मग्गउत्तव्यमाणेणा !६९|| विमियर्थवियवहंतीमिवायमिक्कपविविहतीरकहा । सउणगणबोलरहिया जे उणा मोणं पिव पइट्ठा ॥७०॥ अह ताव क्वगयमओ पीसत्थो पुव्वपरिचयगुणेणं । अह देइ पिययभो मे हियउल्हवं समुल्लावं
१ अ० तापहि । २ अपावृतद्वारम् । ३ पश्यामः । ४ एयं । ५ अ० वेल्लयः। ६ थमियः। ७ अ० निवाय।
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