Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 86
________________ सं० तरंग वईकहा पल्लीए आणयणं | सद्देण रोवमाणी तजिया नित्सेिहिं चोरेहिं । मा दासी कासि वोलं मा तरुणमिमं वहेहामो॥३५॥ एव भणिया निलुक्का पियस्स पाणपरिरक्खणनिमित्तं । बाद कंपियहियया निस्सई तत्थ रोयामि ॥३६।। अंसुविलिचलडं अहरोठें हं करेमि रोयंती। नयणघरिहिं ण्हवंती वरे विव पओहरे नियए ॥ ३७ ॥ दळूण रयणपुष्णं तुट्ठो तहियं करंडयं मुकं । अह भणइ चोरवंदस्स नायगो घरिणि ! सुहडे तहिं ॥ ३८ ॥ एक्को धवलघरे विलुमि पुण ह न वि होज एत्तियं । मोल्लं इणमो जह बहुए दिवसे जयंमि कीलिय च यपसिं गा हिययघरवासिणीणं काउं च पियं सहिलियाणं ॥३९-४०॥ एवं मंतेऊणं उत्तिण्णा नइयडाओते चोरा। 'विउं(ह) निज्झायंता दक्खिणहुंता पयर्टेति॥४१॥ तो फुल्लसूरवल्लीए तेहिं संदाणिया दुग्गया वि। विसमविसमहल्लिं चोरसुहल्लिं निया पल्लिं ॥४२॥ गिरिकोलंबनिविट्ठ लटुं पाणियदरिद्दपेरतं । अंतो बहुपाणियं विसमं अगमं परवत्त(ती)णं ॥४३॥ असिसत्तिफल(ग)कंडकणककुंतविविहाउहेहिं चोरेहिं । विविहजणनिव्वमि(वहनि)ग्गमापवेससंरक्खियदारं ॥४४॥ मल्लिहडिपडहडंडुक्किमउंदसंखपिरीलिक्खसुहलं । उग्गीयहसियच्छलियविग्घुट्टिकोद्विसद्दालं ॥४५॥ पेच्छामो य पविट्ठा ठागं सजपासायपजाए । पाणि"निसुंभणतुट्टाए बहुधयचिंधाए अजाए कमाइणीए ठाणं ।। ४६-४७(१) || नमिऊण पयाहिणं च काऊणं दक्खिण्हतच्छावारा | अण्णपव्वागतो वारे ॥४८(१)। तो तेहिं जह च्छाणंगो तक्खरनामभावं मामत्ति । आभासिया य अभिनंदिया य कम्मप्पयाणेहि ॥४९॥ तेहिं विपव्या भट्ठा दिट्ठा कयकम्मया नियंतत्ता । सव्वे अणहसरीरा लाभसमग्गा इयस हुँति ॥५०॥ पल्लिं च अल्लियंते लयाए संदाणिए दुयग्गे वि | दच्छीयणे अण्णिमि सा विम्हियहियतेहिं चोरा ॥५१(१)। भाणिएह तहिं केई अरहइ नरनारि १ अ० जूयंमी। २ मार्गम् । ३ अ० मल। ४ हिंसा। Connecन्य io202 Jain Education in For Private & Personal Use Only Mitwainelibrary.org

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