Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
View full book text
________________
सं० तरंगवईकहा
चोरेहिं गहिया
ocomeneceneraceaeiocaracanca
वयणं पियस्स पाएसुनिवडिय । अहयमो नाह! अणाई मं परिचएजे त्ति जंपति(ती) |२०|| जइ एव ववसियं ते पडिच्छे जा ता वहेमि अप्पाणं । न विहं पुणो समत्था तकरेहिं निहि(ह)यं तुमं दटुं ॥ २१ ॥ अवि (म)ह देहविरत्ति(ती) जुत्ता होह(इ) गुणेहि बहुएहि । तक्खरनिहयंमि तुमे न य जीवंती गुणं लब्भं (णो मज्झं) ।। २२ ।। मुदस्स विरस्स लद्धयभागीरहिए हि य
मजाखणपविस्म । सुमिणे व दिट्ठनट्ठो हा होहिसि दुल्लहो नाहा! ॥२३॥ होज व न वा होज पुणो समागमोणे परंमि लोगंमि । || जाव य जीवामि अहं ताव य अणुपालिाल)याहि तुमं ॥२४॥ जं होही त होही अण्णोअण्णे अमुंचमाणाणं । न वि नासंतो मुचइ
कम्मविवागप्पहाराणं ॥२५।। एवं बह विलवंती भंडणगमणं पियस्य वारंती। चोरे वेमि रुयंती मत्थयनत्यग्गहत्था ।।२६।। छंदेण सव्वसारं गिण्हह सव्वं पि मे सरीराओ। मा नवरि मुद्धपुरि वह पिययम मए भणिया ॥२७॥ तो च्छिण्णगयणगमणा विमणा सउणव्व च्छिण्णपक्रखपुडा। विपलाइउमचयंता घरिणि! चोरेहि मो गहिया ॥२८॥ अण्णेहिं पुषतरयं अण्णेहि पुत्रतरयं नावा गहिया करण्डओ य तओ। अहयं पि आरसन्ती उब्बूढा तत्थ अण्णेहिं ।। २९ ।। अह मे पिषयमो गहिओ मज्झ वयणं अलंघतो। मंतवलमलंघतो सविसो आसिविसो चेवा ॥३०॥ एवन्ह तत्थ विरेहि परिणि! भागीरहीए पुलिणमि । गेहियालं इंदो वि हरिउ य तेहि रयणा ण य करडाहो घोरुण विहणं सव्वाभरणं महं "मियत्तेहिं वीरत्तणं वईतेहिं य (घ)रिणि! न विण गुग्गया दोवि ॥३१-३२(१)।। घोरं सय(२) पिययमो रोयइ मणमणस निस्सई। दट्टणावियकुसुमं लययंमि म मंद सोहा या ॥ ३३ ॥ उलुत्तं च सिरिघरं एगद्विहियकमलं सरंतगयासोहं । दट्टण तत्थ रमणं अहमवि रोयामि दुक्खेण ॥३४॥
१ अ० लजं ( झं) । २ अ० मुद्धय । ३ अ० अग्णोण ने । ४ अ धारण । ५ हियनेहिं ।
Camera.Coecexceezeween
Jain Education H
For Private & Personal Use Only
Lainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130