Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 83
________________ सं० तरंगवई कहा ॥ ५७ ॥ Jain Education वरभवणपुंडरीयंमि । कीलिहिसि निरुविग्गा सग्गंमी अच्छरवहु व्व ॥ ८७॥ | सोक्खस्स खणी दुक्खस्स नासणी जीवित व्व सव्वस्स । कुलवग्गय मज्झ य घरणी ! सि पिउति मं भणइ ।। ८८ ।। तो चकवायवासिय संभारियपणयतुरिएणा । रहयं जरमणीयमिमेण सुयंजरं निययं ॥ ८९ || पिययमफरिसरसपाणेण तेण य निव्वयामि कया । गिम्हुम्हा संतत व्त्र वासनियाविया वसुहा ॥९०॥ गाढमवगूहिया घ (म) ए तह वि न निरंतरं समल्लीणो । तस्स उरे मइ उरो पीणत्तणघणयाणं नाणुस्ल य ॥ ९१(१)।। सोक्खसुहावहेण [रे]हासेण कये विवाहेण । आत्राहेण सुहाणं गंधञ्च विवाहधम्मेणं ।। ९२ ।। नमिऊग निश्यदेवे पिएग कामंभ जायहा सेणं । सुरयमिस्सियइच्छियरइमहियनयणेण रुइयं मो । जोव्वणसस्स ग्गहणं पाणिग्गहणं कथं तेणं । । ९३-९४ (१) । । अवि यम्हम्मे हियन्त्रा चिरस्स दिट्ठेकम(मे)कपरितुट्ठा | पत्ता रइकल्लाणं गणिमाणुस्सय सुयसुहाणं ||१२|| भागीरहीर मज्झे कमेण नावापत्तीए वृज्झता । चक्कावय व्व रमिमो माणुसचकायका अम्हे ।। ९६ ।। तो चंदरइयतिलका जोन्हा परिमण्डपं डुग्दुकूला । तारोवयरेहारा रत्तीजुत्रती अइकंता ||९७|| गयणसरस्स मियंको चउजामतरंगनल्लियसरीरो । पुन्नोसरिउअवरं तरणं काउ व्त्र ससिहंसो ॥ ९८ ॥ हंसो (म)सारसकारंड चक्कवायरइएहिं गायजंपिया वित्र पहायमुहरेहिं कुररेहिं ।। ९९ ।। तो दिवसकम्मनक्खी सूरो उडेइ तिमिरपडियूरो गणगणग्गजालो आलोगो जीवलोगस्सा ॥ ९०० ॥ पुन्नमणोरहतुड्डा रहंगनामयविहंगसदेण । अम्हे वि गया दूरं भागीरहिपाणियरएण ||१|| तो भणइ पिययमो मं वेला मुहधोयणंमि पि हुस्साणि । न हु किर जुत्तो उदए रविणो काउं रइए संगो ||२॥ जमिणं दक्खिणकूले पुलिणसंखदलनिम्मलं बाले ! । वच्चामो एत्थ सइरं चोएस्सामो सुहे सुयणु ! ||३|| तो सो तत्तो हुंतो अत्र ९ख० पडिबुद्ध० । २ कुरलपक्षी । For Private & Personal Use Only गंधव्व विवाहेण परिणयणं ॥ ५७ ॥ www.ainelibrary.org

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