Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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चित्तपड
सं० तरंग
वईकहा ॥३७॥
VI
वण्णण
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इमा नाणावत्थंतरा अडवी ॥३२॥ सुट्ट विसरयाईया हेमंतवसंतगिम्हपजंता । नियगणपृष्फलया वणेसु य निरूवियारियव्वो ॥६३।। चक्कायजुवलयमिणं नाणावत्थंतरकयं सुठु । ठाणक विसुद्धिवियडं अवरोप्परनेहसंबद्धं ॥६४|| सलिलगयं पुलिणगयं गयणयलगयं च पउमिणिगयं च । कोमनिरंतरजोइयसमणुरागं अमिरगतं ।।६५।। पवररहस्सग्गीवो निव्वकूलो सकलसंरुयसरीरो । सुठ्ठ को | चक्काओ किंसुगनिगरोवमसरीरो ।। ६६ ।। सुकुमालतणुग्गीवो अगलियकोरंटनियरसरिवण्णो । रमणमणुयत्तमाणी सुठ्ठ कया
चक्कवाई वि ॥६७।। रूवेण रूवि(सूइ)यगुणो सुट्ठ य संभग्गपायवपयपयारी। हत्थी वि इमो लिहिओ जेद्रुपमाणेण माणेण ॥६८॥ उयरमाणो य नदि मजंतो य सलिले जहिच्छाए । मजियमेत्तो मत्तो किलिण्णगत्तो य उत्तिष्णो ।। ६९ ॥ वइमाहठाणडिओ आयण्णायडिएकवाणकरो। हत्थि पत्थेमाणो सुठु वयत्थो को बाहो ॥ ७० ॥ इणमो य सरसकेसरसालि कणि नपिंजरुजलसरीरो। विद्धो मुद्धयसउणो कडिदेसे वाहकंडेण ॥७१।। इणमो य चकवाई करणं पइमरणविकवा लिहिया। सालिकणियगरुइपडता उक्तत्थयमुक्कमवंगी ॥७२।। वाहेण नदीकच्छे को भिजंतो इमो य चकाओ । कयपाणपरिचाओ पसेविणामो कओ य सो ।।७३॥ इणमो य कलुणं चकाई अइगया इहं अग्गि। पइमग्गं विसोयरिंगपलीविया लिहिया ॥७४|| चित्तं जरोमणहारिकोमुईपेच्छणयं सारसब्यस्स । चित्ता सोउग्गम पुण न यावि जाणेज ।। ७५(१)।। जं पत्थ सो कोउहलनडिउपुरिसाण दाविजणदाणचरियं मिणतं पेच्छिऊण वित्थाण गओ मोहं ॥७६(१)।। तो पवररज्जुमुक्कोच इंदकेऊ सस त्ति सो पडिओ। सयराहं धरणियले पत्थरपइरिकसुण्णंमि ।।७७(१)।। पडिओ चिरेण नाओ तेहिं वयंसेहिं जइ वि आसण्णो। सो चित्त कम्मपेच्छणपसंगवक्खित्तचित्तेहिं
१ अ० वागसुसनिः । २ अ० सेन
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