Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ सं० तरंग वईकहा दारवालसाहज्जेण पवेसो ॥४४॥ Cococonnecper अजपुत्तस्स हं च देसेणं । इहाएसिया अपुव्या सुठु य मुणियामि तुम्भेहिं ।। ८२ ॥ तो सिद्धारवादो रहानिग्गमे पवेसो य । मग्गसयमत्तो वि महं नत्थि अविदिओ अहं कोइ ।।८३॥ बेमि य पसंसयंती तमहं धणं खु सत्थवाहकुलं । जस्सेरिसया तुम्भे करेह दारंमि वावारं ॥८४॥ मज्झ वि अणुग्गहं एत्तियं तु पसिऊण देह रे अजो। दाएहिं अजउत्तं जो पुत्तो सस्थवाहस्सा ।।८।। तो भणइ अजउत्तं दाएजं ते अहं सयं चेव । जइ परदारनिओगे पडिहारमहं न भजामि ॥८६॥ तो तेण दासचेडी संदिवा वञ्चिमं लहुं । नेहि य उवरिमतलयं पामूलं अजउत्तस्स ।।८७॥ तो तीए अहं नीया खणेण मणिकणगखचियभूमितलं । उवरिमतलयं रायपहो लायण्णवाले ।। ८८(१) ॥ ते मज्झ रयण बुच्चालयस्स उवरिं सुहासणनिसणं । दावेऊण पुरओ सा चेडी निग्गया तुरियं ।।८९।। अहमवि य तं उवगया वक्वित्ता तत्थ सुयणु वीसत्था । तं चकवायं एगण पेव्वुद्दारं करेमाणं ।।९०॥ मुक्खबडुयणसहियं | उच्छंगएण चित्तफलएण चेत्त धणु पिव कामं निकामं सुंदरलायणं ॥९१॥ नयणोदएण निचडं तएण विम्बं सुचित्तफलयम्मि। | दुस्सिक्खिउ व्व लिहि(लेह) लिहिउं फुसियं करेमाण(गो) ॥ ९२ ॥ अच्छइ तुज्झ समागममणोरहापूरिएण हियएण। अप्पाणं सोयतो सरीरसयडं विगयहासो ॥ ९३ ॥ तो विणयनमियगत्ता मत्थयमेलाविएहिं हत्थेहिं । बेमि पुरओ उवगया चिरं जियउ [[मन] अजउत्तो त्ति ।। ९४ ॥ तो तुवररत्तसाडयनियंसणो कुडिलदण्डकट्ठो में। [चं] भग(इ)चम्मो गट्ठो खयक्खरतुच्छकुच्छो । ९५।' उब्भडवयणोब्बद्धो अतिमुक्खो मक्कूडो विव अणाडो। मुक्खविगारपरब्मो विगारहागोकरी सो उ ।। ९६(१) । समतिच्छिए हियदोट्टियंसि जोवमेहि दत्तेहिं । 'पागड कुडियकण्णो टप्परकण्णा ।।९.७(१)|| तहिं बडुओ भणइ किण्णोतं भोदी सुंदर १ मे दारवालो। २ :० भेजामि। ३ अ० सुंदरे । ४ अ० पागडं । Cerence ॥४४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130