Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri, 
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri

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Page 69
________________ सं० तरंग वईकहा ॥४३॥ पउमदेवस्स घरे सारसियाए Feee पेसणं अप्पक्खरं महत्थं हत्थे दासीया ।। ५९ ।। बेहि य ता सारसिए! इमाई वम्महनिबंधणकराइ । मम वयणाई रमणं हि ययालत्ताणि वयणाई ॥६०॥ जा गंगासलिलस्स रमणी अण्णजाई तुहाऽऽसिजा । भजा सा एस चकवाई आयाया सेट्ठिणो धूया।।६१।। तुज्झ परिमग्गणत्था य चित्तपट्टे पदसिओ तीए। जं नाह! तं सि दिवो सफला हु से जाया ॥ १२॥ परलोगविप्पवासिय मझं हिययघरवासिय जसस्सी। तुज्झ सणमाणी अणुमग्गं सा इह पत्ता ॥ ६३ ॥ जइ चक्कवाय जातीगो तउ धरइ मसंचंथे(?)तो जीवजीवियत्थे किर वीर मे देहि तं च सम्भावुप्पणं ॥६४(१)। (अणुरागं) आगारं सहसयाणं रमणं सभारेजा जो णे सउ आसि ॥६५(१)।। एयाणि य अण्णाणि य विहूरियहिययाए सा मए भणिया । गहसोक्वणयं मलं पिययममूलंमि गच्छंती॥६६॥ तेण सह संपउम्गि करेहि सुरयरसमुदयकारं मे । सामेण व भेएण व वयंसि ! उवपयाणेण वा ।।६७॥ अपाहिया व णप्पाहिया व भणिया व अभणिया व । सव्वं पियं भणेजा जं होइ गुणावहं मझ॥६८।। एवं भणिया मए सा चेडी संपत्थिया थिरजसस्स ।। मज्झ पियस्स सगासं हियएण समं महं परिणि ! ।। ६९ ॥ ताए य निग्गयाए मझ चिंता इमा समुप्पण्णा ? *xxx || तुम्हेहि | अहं सामिणि ! विसज्जिया निग्गया नरिंदपहं । सुंदरघरसोभंतसीमंतवच्छनयरीए ॥७७|| समइच्छिऊण चञ्चरचउक्कसिंघाडएबहु अहयं । वेसमणस वरोह सिरीए उवसोहियं पत्ता ।। ७८ ॥ तो हं संकियहियया योगत्तणं दायकोट्ठए तत्थ दारंमी उवविद्वब्य एवं गहेऊणं । ७९॥ बहुई संपउत्तीसु तत्थ लद्धासु य सदासचेडीसु । नायामि अहमपुवा ठविया भणिया य कत्तो सि ।।८०॥ सम्भावपडिच्छण्णं जं साहीणं सया महिलियाणं । तं मे अलियं वयणं तत्थुप्पण्णं च मे भणियं ।। ८१ ॥ जाणाहि अजपुत्त त्ति १ अ. अण्णं । २ . सण्णमाणी। ३ संदिष्टा । ४ सप्ततितमगाथोत्तरार्धात् षट्सप्ततितमपर्यन्तगाथा: प्रतौ त्रुटिताः । emecome205Deveadere ॥४३॥ Jain Educationa l For Private & Personal Use Only ainelibrary.org

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