Book Title: Tarangvaikaha
Author(s): Padliptsuri, Nemichandrasuri,
Publisher: Jivanbhai Chotabhai Zaveri
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० तरंगवईकहा ॥४२॥
घणदेवेण
पुत्तट्टू तरंगवईपत्थणा
पुण आगया पासं ॥४२॥ उण्हं णिस्ससंती बाहाविललोयणा संपरितत्ता। वाहं निरंभमाणी इमाणि वयणाणि भाणीय ॥४३।। सो | किर पुहइव(ल)हो सस्थाहो मित्तबंधवसमग्गो। तुह कएण उवगओ सेडिमुवट्ठाणमझगयं ॥४४॥ भाणीय सत्थवाहो धणदेवो
पउमदेवयस्स अम्हं । दिजउ तरंगवइया नण्णह य किं दिजउ मुल्लं ॥ ४५ ॥ तो किर दुट्ठो इमाणि उवयारसुण्णविरसाणि तस्स । पणयवहारे करणीणि वयणाणि भाणिया ।।४६।। कम्मं जस्स पवासो जस्स निययघरे नत्थि कहस्स । सधदेसातिहिस्स दाहामि अहं धूयं तस्स ।।४७(१)।। तद्वेकवेणि विणयउकंठयनद्धमण्णाम्भा अणुवद्ध स एव पगलित्त ॥४८(१)।। तत्थ कमला लेहपवत्ती य गयणा भत्तु विप्पओगंमि। सुद्धजलोहलियंगी उमइलगीच्छणेसु पि ॥ ४९ ।। पावेज बालिया मे सत्थाहकुलसुसंपयाए वि। थोऊण य वेहव्वं जावजी फुडं दुक्खं ।। ५०॥ अवगयोहाणपसाहणसुगंधवरवासदरिदस्स । वि य देज पव किर पडिसुद्धो पडिसामिहास (2)॥५१|| xxx पणयग्गसम्माणो पयर्ड विउ सत्थाहो निग्गओ विमणो ॥५२।। एवं सोऊण अहं हिमहयनलिणिव्व नट्ठसोहग्गा। सोगपलीवियहियया खणेण जाया विगयहासा॥५३॥ हासोवसंतसोगा अब्भहित हयदूरियच्छीया। चेडिं बेमि रुयंति इमाणि वयणाणि तो परिणि !॥५४॥ जइ कामसरद्दविओ चएजा सो जीवियं पिययमो। तो हं पिन जीविजं जीविए तं मो ॥५५। जइ ता तिरिक्खजोणिगयाए सो अणुमओ संतो। एण्डि किह जीविस्सं तेण विणा बहगणेणं ॥५६॥ जाहि तुम सारसिए! मूलंमि तस्स मइ नाहस्स । अक्खरलेहा य तुं मह वयणेणं इमं भणसु ॥५७(१)।। लिहिओ उ भुञ्जपत्ते लेहो | सहसिस्थिजि रंगुलिकारणमय रट्टयाणुपुब्बो चडुबयण चए सणुणो पउरो॥५८(१)।। ण्हाणमणमदिया पिण्डिमुद्दियतिलकलंछणं लेहं
१ अ० नियए । २ वियण ।
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ता॥ ४२ ॥
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